HI/Prabhupada 0678 - कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है

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Lecture on BG 6.25-29 -- Los Angeles, February 18, 1969

विष्णुजन: श्लोक २७: "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर रहता है वह निश्चय ही दिव्यसुख की सर्वो्च्च सिद्धी प्राप्त करता है । परमात्मा के साथ अपनी गुणात्मक एकता को समझने के कारण, वह मुक्त है, उसका मन शांत है वह रजो गुण से परे हो जाता है अौर वह पाप से मुक्त हो जाता है (भ गी ६।२७)

अट्ठाईस: "इस प्रकार योगाभ्यास में निरन्तर लगा रहकर, समस्त भोतिक कल्मष् से मुक्त हो जाता है, अात्मसंयमी योगी भगवान की दिव्य प्रेमाभक्ति में परमसुख प्राप्त करता है ।(भ गी ६।२८) ।"

प्रभुपाद: तो यहाँ पूर्णता है "जिस योगी का मन मुझ में स्थिर है ।" मेरा का मतलब है कृष्ण । कृष्ण बोल रहे हैं । अगर मैं बोल रहा हूँ, "मुझे एक गिलास पानी दे दो ।" इसका मतलब यह नहीं है कि पानी किसी और को देना है । इसी तरह, भगवद-गीता भगवान कृष्ण द्वारा कही गई है अौर वे कहते हैं " मैं ।" "मैं" का मतलब है कृष्ण । यह स्पष्ट समझ है । लेकिन कई टिप्पणीकार हैं, वे कृष्ण से विचलित होते हैं । मुझे नहीं पता क्यूं । यह उनका नापाक मकसद है । नहीं । "मैं" का मतलब है कृष्ण । तो कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति योग समाधि में हमेशा रहता है । अागे पढो ।