BH/Prabhupada 1060 - जब तक ले भगवद गीता के आदर के साथ स्वीकार ना कईल जाव...: Difference between revisions

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सर्वं एतद ऋतम मन्ये ([[Vanisource:BG 10.14|भ गी १०.१४]]). " हम स्वीकार करत बानी , आप जे कुछ कहत बानीं तवना पर हमरा पूरा विश्वास बा , उ सब सांच ह . आ आप के समझल , भगवान के समझल बूझल, बहुत मुश्किल बा . एही कारन से अपना के देवता लोग भी समझ नईखे सकत. रऊरा के बुझल देवता लोग खातिर भी कठिन बा . " एकर मतलब जे भगवान के समझल आदमी से भी उच्च लोग लोग खातिर भी , कठिन काम बा, तब कवनो अदना आदमी, अगर उनकर भगत ना बने, त कईसे समझी ? एही कारन से भगवद गीता के भगवान श्री कृष्ण के भगत का रूप में स्वीकार करे के चाहीं . आदमी का सोचे के चाहीं जे उ कृष्ण का बराबर उनके जईसन बा , इ ना सोचे के चाहीं जे उ साधारन आदमी ह , कम से कम उन्नत आदमी त जरूर. ना . श्रीकृष्ण जी स्वयं भगवान हईं . एह से सिद्धांत रूप से ही , अर्जुन के इ बात माने के चाहीं जे , जेकरा गीता के मरम समझे के बा, ओह आदमी का श्रीकृष्ण के भगवान का रूप में स्वीकार करे के चाहीं , आ तब , समर्पण के भावना से ... जब तक ले गीता के आदर के साथ समर्पण के मन से ना सुनल जाव , तब तक , गीता के समझल बहुत कठिन बा , काहे कि गीता के विषय गूढ़ ह . गीता में .... देखे के चाहीं जे एह में कवन चीज बा . भगवद गीता संसारिक झंझट से , आदमी के मुक्ति दिलावे खातिर ह . एह संसार में सभ आदमी अनेक तरह के परेशानी में बा , जईसे अर्जुन का भी कुरुक्षेत्र मैदान में लड़ाई लडे के मुश्किल रहे . तब उ श्रीकृष्ण के शरन धर लेहलन , जवना कारन गीता के प्रवचन भईल . ठीक अर्जुन जईसन, हमनी में से सभे संसार के झमेला से परेशान बा . असद ग्रहात . काहे कि ..... हमनीं के एह माया मोह के परिवेश में रहत बानीं . लेकिन वास्तव में, हमनीं के हालत असली नईखे . हमनीं के स्थिति शाश्वत ह , लेकिन कवनो ना कवनो कारन से एह 'असत' हालत में पहुँच गईल बानीं सन. ' असत ', मतलब - नकली, जे असल में नईखे . अब मुश्किल इ बा जे , एतना आदमी में केतना लोग , इ पूछता कि , " हम कहाँ बानी ? हमार असली जगह कहाँ बा ?" , इतना सुन्दर जगहा से अईसन दुःख वाला संसार में पहुच गईल बानीं सन ... जब तक ले इ सवाल मन में ना उठी , कि "हमरा दुःख काहे बा ? हमरा इ सब कष्ट ना चाहीं . सब तकलीफ से छुट्टी खातिर हम कोशिश कयीनीं लेकिन फेल हो गईनी ." जब तक ले इ भावना ना होई , उ आदमी सही आदमी ना कहल जाई . मन में इ सवाल जब उठे लागे , तबे आदमी के सही जीवन शुरू हो सकेला . ब्रह्म सूत्र में एह के " अथातो ब्रह्म जिज्ञासा " से संकेत दिहल बा . आदमी के सब कोशिश फेल हो जाई , जब तक ले इ सवाल मन में ना उठी . जवना आदमी के मन में इ सवाल शुरू हो गईल कि " हम के हईं ? काहे दुःख भोग रहल बानीं ? , हम कहाँ से आईल बानीं, आ मरला के बाद कहाँ जाएब ," इ सवाल आ गईला पर ओह आदमी के चेतना 'जागृत' कहल जाला , तब उ आदमी गीता समझे खातिर सही शिष्य बन सकता . ओह आदमी का 'श्रद्धावान' होखे के चाहीं , ' श्रद्धावान ' . ओह के मन में आदर होखे के चाहीं , भगवान से स्नेह के साथ आदर . ठीक अईसन आदमी , आदर्श पुरुष अर्जुन रहलन.
सर्वं एतद ऋतम मन्ये ([[Vanisource:BG 10.14 (1972)|भ गी १०.१४]]). " हम स्वीकार करत बानी , आप जे कुछ कहत बानीं तवना पर हमरा पूरा विश्वास बा , उ सब सांच ह . आ आप के समझल , भगवान के समझल बूझल, बहुत मुश्किल बा . एही कारन से अपना के देवता लोग भी समझ नईखे सकत. रऊरा के बुझल देवता लोग खातिर भी कठिन बा . " एकर मतलब जे भगवान के समझल आदमी से भी उच्च लोग लोग खातिर भी , कठिन काम बा, तब कवनो अदना आदमी, अगर उनकर भगत ना बने, त कईसे समझी ? एही कारन से भगवद गीता के भगवान श्री कृष्ण के भगत का रूप में स्वीकार करे के चाहीं . आदमी का सोचे के चाहीं जे उ कृष्ण का बराबर उनके जईसन बा , इ ना सोचे के चाहीं जे उ साधारन आदमी ह , कम से कम उन्नत आदमी त जरूर. ना . श्रीकृष्ण जी स्वयं भगवान हईं . एह से सिद्धांत रूप से ही , अर्जुन के इ बात माने के चाहीं जे , जेकरा गीता के मरम समझे के बा, ओह आदमी का श्रीकृष्ण के भगवान का रूप में स्वीकार करे के चाहीं , आ तब , समर्पण के भावना से ... जब तक ले गीता के आदर के साथ समर्पण के मन से ना सुनल जाव , तब तक , गीता के समझल बहुत कठिन बा , काहे कि गीता के विषय गूढ़ ह . गीता में .... देखे के चाहीं जे एह में कवन चीज बा . भगवद गीता संसारिक झंझट से , आदमी के मुक्ति दिलावे खातिर ह . एह संसार में सभ आदमी अनेक तरह के परेशानी में बा , जईसे अर्जुन का भी कुरुक्षेत्र मैदान में लड़ाई लडे के मुश्किल रहे . तब उ श्रीकृष्ण के शरन धर लेहलन , जवना कारन गीता के प्रवचन भईल . ठीक अर्जुन जईसन, हमनी में से सभे संसार के झमेला से परेशान बा . असद ग्रहात . काहे कि ..... हमनीं के एह माया मोह के परिवेश में रहत बानीं . लेकिन वास्तव में, हमनीं के हालत असली नईखे . हमनीं के स्थिति शाश्वत ह , लेकिन कवनो ना कवनो कारन से एह 'असत' हालत में पहुँच गईल बानीं सन. ' असत ', मतलब - नकली, जे असल में नईखे . अब मुश्किल इ बा जे , एतना आदमी में केतना लोग , इ पूछता कि , " हम कहाँ बानी ? हमार असली जगह कहाँ बा ?" , इतना सुन्दर जगहा से अईसन दुःख वाला संसार में पहुच गईल बानीं सन ... जब तक ले इ सवाल मन में ना उठी , कि "हमरा दुःख काहे बा ? हमरा इ सब कष्ट ना चाहीं . सब तकलीफ से छुट्टी खातिर हम कोशिश कयीनीं लेकिन फेल हो गईनी ." जब तक ले इ भावना ना होई , उ आदमी सही आदमी ना कहल जाई . मन में इ सवाल जब उठे लागे , तबे आदमी के सही जीवन शुरू हो सकेला . ब्रह्म सूत्र में एह के " अथातो ब्रह्म जिज्ञासा " से संकेत दिहल बा . आदमी के सब कोशिश फेल हो जाई , जब तक ले इ सवाल मन में ना उठी . जवना आदमी के मन में इ सवाल शुरू हो गईल कि " हम के हईं ? काहे दुःख भोग रहल बानीं ? , हम कहाँ से आईल बानीं, आ मरला के बाद कहाँ जाएब ," इ सवाल आ गईला पर ओह आदमी के चेतना 'जागृत' कहल जाला , तब उ आदमी गीता समझे खातिर सही शिष्य बन सकता . ओह आदमी का 'श्रद्धावान' होखे के चाहीं , ' श्रद्धावान ' . ओह के मन में आदर होखे के चाहीं , भगवान से स्नेह के साथ आदर . ठीक अईसन आदमी , आदर्श पुरुष अर्जुन रहलन.
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660219-20 - Lecture BG Introduction - New York

सर्वं एतद ऋतम मन्ये (भ गी १०.१४). " हम स्वीकार करत बानी , आप जे कुछ कहत बानीं तवना पर हमरा पूरा विश्वास बा , उ सब सांच ह . आ आप के समझल , भगवान के समझल बूझल, बहुत मुश्किल बा . एही कारन से अपना के देवता लोग भी समझ नईखे सकत. रऊरा के बुझल देवता लोग खातिर भी कठिन बा . " एकर मतलब जे भगवान के समझल आदमी से भी उच्च लोग लोग खातिर भी , कठिन काम बा, तब कवनो अदना आदमी, अगर उनकर भगत ना बने, त कईसे समझी ? एही कारन से भगवद गीता के भगवान श्री कृष्ण के भगत का रूप में स्वीकार करे के चाहीं . आदमी का सोचे के चाहीं जे उ कृष्ण का बराबर उनके जईसन बा , इ ना सोचे के चाहीं जे उ साधारन आदमी ह , कम से कम उन्नत आदमी त जरूर. ना . श्रीकृष्ण जी स्वयं भगवान हईं . एह से सिद्धांत रूप से ही , अर्जुन के इ बात माने के चाहीं जे , जेकरा गीता के मरम समझे के बा, ओह आदमी का श्रीकृष्ण के भगवान का रूप में स्वीकार करे के चाहीं , आ तब , समर्पण के भावना से ... जब तक ले गीता के आदर के साथ समर्पण के मन से ना सुनल जाव , तब तक , गीता के समझल बहुत कठिन बा , काहे कि गीता के विषय गूढ़ ह . गीता में .... देखे के चाहीं जे एह में कवन चीज बा . भगवद गीता संसारिक झंझट से , आदमी के मुक्ति दिलावे खातिर ह . एह संसार में सभ आदमी अनेक तरह के परेशानी में बा , जईसे अर्जुन का भी कुरुक्षेत्र मैदान में लड़ाई लडे के मुश्किल रहे . तब उ श्रीकृष्ण के शरन धर लेहलन , जवना कारन गीता के प्रवचन भईल . ठीक अर्जुन जईसन, हमनी में से सभे संसार के झमेला से परेशान बा . असद ग्रहात . काहे कि ..... हमनीं के एह माया मोह के परिवेश में रहत बानीं . लेकिन वास्तव में, हमनीं के हालत असली नईखे . हमनीं के स्थिति शाश्वत ह , लेकिन कवनो ना कवनो कारन से एह 'असत' हालत में पहुँच गईल बानीं सन. ' असत ', मतलब - नकली, जे असल में नईखे . अब मुश्किल इ बा जे , एतना आदमी में केतना लोग , इ पूछता कि , " हम कहाँ बानी ? हमार असली जगह कहाँ बा ?" , इतना सुन्दर जगहा से अईसन दुःख वाला संसार में पहुच गईल बानीं सन ... जब तक ले इ सवाल मन में ना उठी , कि "हमरा दुःख काहे बा ? हमरा इ सब कष्ट ना चाहीं . सब तकलीफ से छुट्टी खातिर हम कोशिश कयीनीं लेकिन फेल हो गईनी ." जब तक ले इ भावना ना होई , उ आदमी सही आदमी ना कहल जाई . मन में इ सवाल जब उठे लागे , तबे आदमी के सही जीवन शुरू हो सकेला . ब्रह्म सूत्र में एह के " अथातो ब्रह्म जिज्ञासा " से संकेत दिहल बा . आदमी के सब कोशिश फेल हो जाई , जब तक ले इ सवाल मन में ना उठी . जवना आदमी के मन में इ सवाल शुरू हो गईल कि " हम के हईं ? काहे दुःख भोग रहल बानीं ? , हम कहाँ से आईल बानीं, आ मरला के बाद कहाँ जाएब ," इ सवाल आ गईला पर ओह आदमी के चेतना 'जागृत' कहल जाला , तब उ आदमी गीता समझे खातिर सही शिष्य बन सकता . ओह आदमी का 'श्रद्धावान' होखे के चाहीं , ' श्रद्धावान ' . ओह के मन में आदर होखे के चाहीं , भगवान से स्नेह के साथ आदर . ठीक अईसन आदमी , आदर्श पुरुष अर्जुन रहलन.