BH/Prabhupada 1078 - चैबीस घंटा भगवान के सुमिरन में मन आ बुद्धि लागल रहे के चाहीं: Difference between revisions
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जब परमेश्वर खातिर मजबूत प्रेम उपजी , तब , इ संभव बा कि आपन कर्त्तव्य के निर्वाह करत भगवान के भी लगातार स्मरण कईल जा सकता. ओही प्रेम भाव के बढावे के प्रयास करे के चाहीं . जईसे अर्जुन हर घड़ी भगवान के बारे में सोचत रहस. . उ चौबीस घंटा में , एक सेकण्ड खातिर भी भगवान के ना भूलस . हर जगह भगवान के साथे. साथे साथे , बहुत बड़ा योद्धा. भगवान कृष्ण कबहूँ अर्जुन के आपन युद्ध छोड़े के सलाह ना दिहलन , कि जंगल में चल जा , हिमालय में जा के धियान लगाव. अर्जुन के जब योग के तरीका बतावल गईल त अर्जुन ओकरा के स्वीकार ना कईलन , कहले कि " उ तरीका हमारा खातिर असंभव बा " तब भगवान् कहनीं , 'योगिनाम् अपि सर्वेषाम मद्गतेनान्तरात्मना ([[Vanisource:BG 6.47|भ गी ६.४७]]) '. मद्गतेनान्तरात्मना श्रद्धावान भजते यो माम स मे युक्ततमः मतः . सबसे बड़ा योगी उ ह , जे हरदम भगवान के चिंतन करत रहे ला , उहे सबसे बड़ा ज्ञानी , आ साथे साथे उहे सबसे बड़ा भगत भी ह . एही से भगवान् के आदेश बा जे 'तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम अनुस्मर युद्धय च ([[Vanisource:BG 8.7|भ गी ८.७]]) . " क्षत्रिय भईला के चलते लडाई कैसे छोड़ देब . तहरा युद्ध करही के पड़ी. हाँ, साथे साथे हर घरी , हमार सुमिरन करत रहब , त इ संभव बा ," अंत काले च माम एव स्मरन ([[Vanisource:BG 8.5|भ गी ८.५]]) " तब अंत काल में हमार सुमिरन संभव हो जाई " मयि अर्पित मनो बुद्धिः माम एवैस्यसि असंशयः . उ दोबारा कहत बाडन जे एह में कवनो संदेह नईखे . केहू भगवान के सेवा में अगर पूर्ण रूप से समर्पित बा , भगवान के दिव्य सेवा में , मयि अर्पित मनो बुद्धिः ([[Vanisource:BG 8.7|भ गी ८.७]]) . काहे कि , केवल देह से कर्म ना होला . हमनीं के काम, मन आ विवेक से भी होला . अगर जे, मन आ बुद्धि भी भगवान के स्मरण में लागल रही , तब शरीर के सब इन्द्रिय अपने आप भगवान के सेवा में लाग जाई . इहे भगवद गीता के रहस्य ह . एह कला के सीखे के चाहें कि कैसे , चौबीसों घंटा मन आ बुद्धि दूनो के भगवान के चिंतन में लगवले राखल जाव . आ , बस एतने से भगवान के धाम में पहुंचे में मदद मिल जाई चाहे शरीर छुटला के बाद आध्यात्मिक आकाश में . आजकाल के वैज्ञानिक लोग, बहुत साल से कोशिश में लागल बा , कि चन्द्रमा पर पहुँच जाईल जाव, लेकिन अभी तक उ संभव ना भईल . लेकिन भगवद गीता में एगो सलाह दिहल बा . मान लीं कि एक आदमी पचास साल ले ज़िंदा रहल ... . ओह के पचास साल तक आध्यात्मिक उन्नति खातिर केहू कोशिश ना कईलस . इ त बढ़िया बात बा . आ उ आदमी अगर दस चाहे पांच साल तक इ अभ्यास करे , मयि अर्पित मनो बुद्धिः ([[Vanisource:BG 8.7|भ गी ८.७]]) .... इ त बस, प्रैक्टिस के चीज ह . अभ्यास के इ तरीका भी एकदम आसान बा भक्ति के साथ श्रवणम . श्रवणम . सबसे आसान बा , केवल सुनल. | जब परमेश्वर खातिर मजबूत प्रेम उपजी , तब , इ संभव बा कि आपन कर्त्तव्य के निर्वाह करत भगवान के भी लगातार स्मरण कईल जा सकता. ओही प्रेम भाव के बढावे के प्रयास करे के चाहीं . जईसे अर्जुन हर घड़ी भगवान के बारे में सोचत रहस. . उ चौबीस घंटा में , एक सेकण्ड खातिर भी भगवान के ना भूलस . हर जगह भगवान के साथे. साथे साथे , बहुत बड़ा योद्धा. भगवान कृष्ण कबहूँ अर्जुन के आपन युद्ध छोड़े के सलाह ना दिहलन , कि जंगल में चल जा , हिमालय में जा के धियान लगाव. अर्जुन के जब योग के तरीका बतावल गईल त अर्जुन ओकरा के स्वीकार ना कईलन , कहले कि " उ तरीका हमारा खातिर असंभव बा " तब भगवान् कहनीं , 'योगिनाम् अपि सर्वेषाम मद्गतेनान्तरात्मना ([[Vanisource:BG 6.47 (1972)|भ गी ६.४७]]) '. मद्गतेनान्तरात्मना श्रद्धावान भजते यो माम स मे युक्ततमः मतः . सबसे बड़ा योगी उ ह , जे हरदम भगवान के चिंतन करत रहे ला , उहे सबसे बड़ा ज्ञानी , आ साथे साथे उहे सबसे बड़ा भगत भी ह . एही से भगवान् के आदेश बा जे 'तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम अनुस्मर युद्धय च ([[Vanisource:BG 8.7 (1972)|भ गी ८.७]]) . " क्षत्रिय भईला के चलते लडाई कैसे छोड़ देब . तहरा युद्ध करही के पड़ी. हाँ, साथे साथे हर घरी , हमार सुमिरन करत रहब , त इ संभव बा ," अंत काले च माम एव स्मरन ([[Vanisource:BG 8.5 (1972)|भ गी ८.५]]) " तब अंत काल में हमार सुमिरन संभव हो जाई " मयि अर्पित मनो बुद्धिः माम एवैस्यसि असंशयः . उ दोबारा कहत बाडन जे एह में कवनो संदेह नईखे . केहू भगवान के सेवा में अगर पूर्ण रूप से समर्पित बा , भगवान के दिव्य सेवा में , मयि अर्पित मनो बुद्धिः ([[Vanisource:BG 8.7 (1972)|भ गी ८.७]]) . काहे कि , केवल देह से कर्म ना होला . हमनीं के काम, मन आ विवेक से भी होला . अगर जे, मन आ बुद्धि भी भगवान के स्मरण में लागल रही , तब शरीर के सब इन्द्रिय अपने आप भगवान के सेवा में लाग जाई . इहे भगवद गीता के रहस्य ह . एह कला के सीखे के चाहें कि कैसे , चौबीसों घंटा मन आ बुद्धि दूनो के भगवान के चिंतन में लगवले राखल जाव . आ , बस एतने से भगवान के धाम में पहुंचे में मदद मिल जाई चाहे शरीर छुटला के बाद आध्यात्मिक आकाश में . आजकाल के वैज्ञानिक लोग, बहुत साल से कोशिश में लागल बा , कि चन्द्रमा पर पहुँच जाईल जाव, लेकिन अभी तक उ संभव ना भईल . लेकिन भगवद गीता में एगो सलाह दिहल बा . मान लीं कि एक आदमी पचास साल ले ज़िंदा रहल ... . ओह के पचास साल तक आध्यात्मिक उन्नति खातिर केहू कोशिश ना कईलस . इ त बढ़िया बात बा . आ उ आदमी अगर दस चाहे पांच साल तक इ अभ्यास करे , मयि अर्पित मनो बुद्धिः ([[Vanisource:BG 8.7 (1972)|भ गी ८.७]]) .... इ त बस, प्रैक्टिस के चीज ह . अभ्यास के इ तरीका भी एकदम आसान बा भक्ति के साथ श्रवणम . श्रवणम . सबसे आसान बा , केवल सुनल. | ||
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इहे नव ठो तरीका ह.. सबसे आसान बा केवल सुनल . | इहे नव ठो तरीका ह.. सबसे आसान बा केवल सुनल . | ||
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Latest revision as of 21:45, 8 June 2018
660219-20 - Lecture BG Introduction - New York
जब परमेश्वर खातिर मजबूत प्रेम उपजी , तब , इ संभव बा कि आपन कर्त्तव्य के निर्वाह करत भगवान के भी लगातार स्मरण कईल जा सकता. ओही प्रेम भाव के बढावे के प्रयास करे के चाहीं . जईसे अर्जुन हर घड़ी भगवान के बारे में सोचत रहस. . उ चौबीस घंटा में , एक सेकण्ड खातिर भी भगवान के ना भूलस . हर जगह भगवान के साथे. साथे साथे , बहुत बड़ा योद्धा. भगवान कृष्ण कबहूँ अर्जुन के आपन युद्ध छोड़े के सलाह ना दिहलन , कि जंगल में चल जा , हिमालय में जा के धियान लगाव. अर्जुन के जब योग के तरीका बतावल गईल त अर्जुन ओकरा के स्वीकार ना कईलन , कहले कि " उ तरीका हमारा खातिर असंभव बा " तब भगवान् कहनीं , 'योगिनाम् अपि सर्वेषाम मद्गतेनान्तरात्मना (भ गी ६.४७) '. मद्गतेनान्तरात्मना श्रद्धावान भजते यो माम स मे युक्ततमः मतः . सबसे बड़ा योगी उ ह , जे हरदम भगवान के चिंतन करत रहे ला , उहे सबसे बड़ा ज्ञानी , आ साथे साथे उहे सबसे बड़ा भगत भी ह . एही से भगवान् के आदेश बा जे 'तस्मात् सर्वेषु कालेषु माम अनुस्मर युद्धय च (भ गी ८.७) . " क्षत्रिय भईला के चलते लडाई कैसे छोड़ देब . तहरा युद्ध करही के पड़ी. हाँ, साथे साथे हर घरी , हमार सुमिरन करत रहब , त इ संभव बा ," अंत काले च माम एव स्मरन (भ गी ८.५) " तब अंत काल में हमार सुमिरन संभव हो जाई " मयि अर्पित मनो बुद्धिः माम एवैस्यसि असंशयः . उ दोबारा कहत बाडन जे एह में कवनो संदेह नईखे . केहू भगवान के सेवा में अगर पूर्ण रूप से समर्पित बा , भगवान के दिव्य सेवा में , मयि अर्पित मनो बुद्धिः (भ गी ८.७) . काहे कि , केवल देह से कर्म ना होला . हमनीं के काम, मन आ विवेक से भी होला . अगर जे, मन आ बुद्धि भी भगवान के स्मरण में लागल रही , तब शरीर के सब इन्द्रिय अपने आप भगवान के सेवा में लाग जाई . इहे भगवद गीता के रहस्य ह . एह कला के सीखे के चाहें कि कैसे , चौबीसों घंटा मन आ बुद्धि दूनो के भगवान के चिंतन में लगवले राखल जाव . आ , बस एतने से भगवान के धाम में पहुंचे में मदद मिल जाई चाहे शरीर छुटला के बाद आध्यात्मिक आकाश में . आजकाल के वैज्ञानिक लोग, बहुत साल से कोशिश में लागल बा , कि चन्द्रमा पर पहुँच जाईल जाव, लेकिन अभी तक उ संभव ना भईल . लेकिन भगवद गीता में एगो सलाह दिहल बा . मान लीं कि एक आदमी पचास साल ले ज़िंदा रहल ... . ओह के पचास साल तक आध्यात्मिक उन्नति खातिर केहू कोशिश ना कईलस . इ त बढ़िया बात बा . आ उ आदमी अगर दस चाहे पांच साल तक इ अभ्यास करे , मयि अर्पित मनो बुद्धिः (भ गी ८.७) .... इ त बस, प्रैक्टिस के चीज ह . अभ्यास के इ तरीका भी एकदम आसान बा भक्ति के साथ श्रवणम . श्रवणम . सबसे आसान बा , केवल सुनल.
- श्रवणं कीर्तनं विष्णो:
- स्मरणं पाद सेवनम
- अर्चनं वन्दनं दास्यम
- सख्यं आत्म-निवेदनम
- (श्री भा ७.५.२३).
इहे नव ठो तरीका ह.. सबसे आसान बा केवल सुनल .