BN/Prabhupada 1071 - আমরা যদি ভগবানের সঙ্গ করি, তাঁকে সহযোগিতা করি, তাহলেও আমরা সুখী হই

Revision as of 14:41, 1 August 2015 by Visnu Murti (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Bengali Pages with Videos Category:Prabhupada 1071 - in all Languages Category:BN-Quotes - 1966 Category:BN-Quotes - L...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

660219-20 - Lecture BG Introduction - New York


Hindi

अगर हम भगवान के साथ संगति करते हैं, उनके साथ सहयोग करते हैं, तो हम सुखी बन जाते हैं हमें यह याद रखना होगा कि जब हम "श्री कृष्ण" कि बात करते हैं तो हम किसी सांप्रदायिक नाम का उल्लेख नहीं करते हैं । "श्री कृष्ण" नाम का अर्थ है सर्वोच्च अानन्द । इसकी पुष्टि की गई है कि परमेश्वर समस्त अानन्द के अागार हैं । हम सभी अानन्द की खोज में हैं । अानन्दमयोअभ्यासात् (वेदांत-सूत्र १।१।१२) । जीव या भगवान, क्योंकि हम चेतना से पूर्ण हैं, इसलिए हमारी चेतना सुख की खोज में रहती है । सुख । भगवान तो नित्य सुखी हैं, अौर यदि हम उनके साथ संगति करते हैं, उनके साथ सहयोग करते हैं, उनके साथ संगति करते हैं, तो हम भी सखी बन जाते हैं । भगवान इस मर्त्य लोक में सुख से पूर्ण अपनी वृन्दावन लीलाओं को प्रदर्शित करने के लिए अवतरित होते हैं । जब श्री कृष्ण वृन्दावन में थे, उनके गोपमित्रों के साथ उनकी लीलाऍ, उनकी गोप सखियों के साथ, उनके मित्रों के साथ, गोपियों के साथ, और वृन्दावन के निवासियों के साथ और बचपन में गायों को चराने की उनकी लीला, और श्री कृष्ण की ये सभी लीलाऍ सुख से अोतप्रोत थीं । सारा वृन्दावन, वृन्दावन की सारी जनता, उनको ही जानती थी । वे श्री कृष्ण के अतिरिक्त किसी को नहीं जानते थे । यहां तक ​​कि भगवान कृष्ण नें अपने पिता को निरुत्साहित किया, नंद महाराज को इंद्रदेव की पूजा करने से, क्योंकि वे इस तथ्य को प्रतिष्ठित करना चाहते थे कि लोगों को किसी भी देवता की पूजा करने की अावश्यक्ता नहीं है, सिवाय परमेश्वर के । क्योंकि जीवन का चरम लक्ष्य भगवद्धाम को वापस जाना है । भगवान कृष्ण के धाम का वर्णन भगवद् गीता में है, पंद्रहवें अध्याय, छटे श्लोक में,

न तद्भासयते सूर्यो
न शशांको न पावक:
यद गत्वा न निवर्तन्ते
तद धाम परमं मम
(भ गी १५।६)

अब उस नित्य चिन्मय आकाश का वर्णन ... जब हम आकाश की बात करते हैं, क्योंकि हमें अाकाश की भौतिक अवधारणा है, इसलिए हम सूरज, चॉद, तारे, अादि के सम्बन्ध में सोचते हैं । लेकिन भगवान बताते हैं कि नित्य आकाश में, सूरज की कोई अावश्यक्ता नहीं है । न तद्भासयते सूर्यो न शशांको न पावक: (भ गी १५।६) । न ही नित्य आकाश में चंद्रमा की अावश्यक्ता है । न पावक: का अर्थ है न तो बिजली या अग्नि की आवश्यकता है प्रकाश के लिए क्योंकि वह नित्य अाकाश ब्रह्मज्योति द्वारा प्रकाशित है । ब्रह्मज्योति, यस्य प्रभा (ब्र स ५।४०), परम धाम से निकलने वाली ज्योति । अब इन दिनों जब लोग अन्य ग्रहों तक पहुँचने का प्रयास कर रहे हैं, परमेश्वर के धाम को जानना कठिन नहीं है । भगवान का धाम नित्य अाकाश में है, अौर गोलोक कहलाता है । ब्रह्म-संहिता में इसका अतीव सुंदर वर्णन मिलता है, गोलोक एव निवसति अखिलात्म भूत: ( ब्र स ५।३७) । भगवान अपने धाम में नित्य निवास करते हैं, गोलोक, फिर भी वे अखिलात्म भूत: हैं, उन तक इस लोक से भी पहॅचा जा सकता है । और भगवान इसलिए अपने सच्चिदानन्द विग्रह रूप को व्यक्त करते हैं (ब्र स ५।१), ताकि हमें कल्पना न करनी पडे । कल्पना का कोई सवाल ही नहीं है ।

Bengali

আমাদের এটিও মনে রাখতে হবে যে, যখন আমরা " কৃষ্ণে "র কথা বলি , এই নামটি অবশ্যই কোনো সম্প্রদায়ভুক্ত নাম নয় | কৃষ্ণ শব্দের অর্থ - সর্ব্বোচ্চ আনন্দ | এটি নিশ্চিত যে পরম পুরুষোত্তম ভগবান সকল আনন্দের আধার ও উত্স | আমরা সকলেই আনন্দের পিছনে ছুটছি , আনন্দময়ো ভ্যাসাত (বেদান্ত সূত্র ১.১.১২ )| জীবসমূহ অথবা ভগবান, কারণ আমরা সকলেই সচেতন , কাজেই আমাদের চেতনা সব সময় সুখের পিছনে ধাবিত হয়, সুখ | ভগবান ও শ্বাশ্বত কাল ধরে সুখী, এবং আমরা যদি ভগবানের সঙ্গ করি, তাঁকে সহযোগিতা করি, তাঁর্ লীলায় অংশগ্রহন করি , তাহলে আমরা ও সুখী হই| এই মর্ত্য জগতে ভগবান অবতরণ করেন বৃন্দাবন লীলায় তাঁর সর্ব্বোচ্চ আনন্দ প্রদর্শন করার জন্য | যখন ভগবান শ্রী কৃষ্ণ বৃন্দাবনে ছিলেন , গোপ বালক ও সখাদের সাথে তার লীলা , গোপী ও সখী দের সাথে , বৃন্দাবন বাসীর সাথে, শৈশবে গোধেনু পালন করতে , এবং ভগবান শ্রীকৃষ্ণের এই সমস্ত লীলা চিন্ময় আনন্দে পরিপূর্ণ | সমস্ত বৃন্দাবন , বৃন্দাবনের সমস্ত অধিবাসীগণ , শ্রী কৃষ্ণ কে কেন্দ্র করেই দিব্য আনন্দে পরিপূর্ণ ছিল | তারা কৃষ্ণ ব্যতিরেকে অন্য কাউকে জানতেন না, এমনকি কৃষ্ণ তার পিতাকে নিষেধ করেছিল, দেবরাজ ইন্দ্রের পূজা অর্চনা করতে , কারণ তিনি এটা প্রতিষ্ঠা করতে চেয়েছিলেন যে, জনগনের পরম পুরুষোত্তম ভগবান ব্যতিত অন্য কোনো দেবতার পূজা করার প্রয়োজন নেই , কারণ জীবনের পরম উদ্দেশ্য হচ্ছে ভগবানের আলয়ে ফিরে যাওয়া | ভগবদ্ধাম সম্পর্কে ভগবদ্গীতায় বর্ণনা করা হয়েছে, পঞ্চদশ অধ্যায়, ষষ্ঠ শ্লোক , ন তদ ভাসয়তে সূর্য , ন শশাঙ্ক ন পাবক যদ গত্বা ন নিবর্তন্তে , তত্ধাম পরমম মম (ভগবদ্গীতা ১৫.৬) | এখন চিদাকাশের বর্ণনা .... যখন আমরা আকাশের কথা বলি, যেহেতু আমাদের জড়াকাশের ধারণা রয়েছে, সেহেতু আমরা সূর্য , চন্দ্র , গ্রহ নক্ষত্র সমন্বিত আকাশ বুঝি | কিন্ত ভগবান চিদাকাশের বর্ণনা দিচ্ছেন, সেখানে সূর্যের প্রয়োজন নেই, ন তদ ভাসয়তে সূর্য , ন শশাঙ্ক ন পাবক (ভগবদ্গীতা ১৫.৬ ) | চিদাকাশে চন্দ্রের ও প্রয়োজন নেই | ন পাবক মানে আলোকিত করার জন্য বিদ্যুত অথবা অগ্নির ও প্রয়োজন নেই কারণ চিদাকাশ ব্রম্ম জ্যোতির দ্বারা উদ্ভাসিত | ব্রহ্ম জ্যোতি , যস্য প্রভা (ব্রহ্ম্য সংহিতা ৫.৪০) -পরম ধামের রশ্মিচ্ছটা। এখনকার দিনে যখন মানুষ অন্য গ্রহে যাওয়ার চেষ্টা করছে, তখন পরম পুরুষোত্তম ভগবানের ধাম উপলব্ধি লরা কঠিন নয়। ভগবদ্ধাম চিদাকাশে অবস্থিত এবং এটা গোলোক নামে অভিহিত। ব্রহ্ম সংহিতায় এটা সুন্দরভাবে বর্ণনা করা হয়েছে , গোলোক এব নিবসতি অখিলাত্ম-ভুত: ( ব্রহ্ম্য সংহিতা ৫.৩৭) | যদিও ভগবান তাঁর সনাতন দিব্য ধাম, গোলোকে বাস করেন, তথাপিও তিনি অখিলাত্ম ভুত:, তাকে এখানেও পাওয়া যাবে , তাই ভগবান তার প্রকৃত রূপ, সচ্চিদানন্দ বিগ্রহ (ব্রহ্ম সংহিতা ৫.১), প্রকাশ করতে এই জগতে আসেন, যাতে আমাদেরকে তার রূপ কল্পনা করতে না হয়। কল্পনার কোনো প্রশ্নই আসে না।