HI/660801 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/660801BG-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"पूर्ण भौतिक प्रकृति, प्रकृति के तीन गुणों , सतो गुण, रजों गुण और तमों गुण के प्रभाव के अधीन है। सम्पूर्ण मानव जाति को हम एक ही श्रेणी में नहीं गिन सकते। जब तक हम इस भौतिक जगत् में हैं, तब तक सभी की एक ही स्तर पर तुलना नहीं कर सकते। यह इस लिए संभव नहीं क्योंकि प्रत्येक जीव अलग-अलग गुणों के अधीन कर्म कर रहा है। इसलिए इसका विभाजन होना निश्चित् है। इस मुद्दे पर हमने पहले भी वार्तालाप किया है। लेकिन जब हम इस भौतिक स्तर से लोकान्तर करते हैं तब सब समान होते हैं। तब कोई विभाजन नहीं होता। अभी लोकान्तर कैसे करें? वह कृष्ण भावनामृत ही श्रेष्ठ प्रकृति है। ज्यों ही हम कृष्ण भावनामृत में पूर्णतया लीन या डूब जाते हैं तो हम प्रकृति के इन तीन गुणों से श्रेष्ठता प्राप्त कर लेते हैं। "|Vanisource:660801 - Lecture BG 04.13-14 - New York|660801 - Lecture BG 04.13-14 - New York}}
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Latest revision as of 02:55, 5 March 2022

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
समस्त भौतिक प्रकृति, प्रकृति के तीन गुणों- सतो गुण, रजों गुण और तमों गुण के प्रभाव के अधीन है। हम समस्त मानव जाति को एक ही श्रेणी में वर्गीकृत नहीं कर सकते। जब तक हम इस भौतिक संसार में हैं, तब तक सभी को एक ही स्तर पर नहीं रख सकते। यह इस लिए संभव नहीं, क्योंकि प्रत्येक जीव प्रकृति के अलग-अलग गुणों के प्रभाव से कर्म कर रहा है। इसलिए इसका विभाजन, प्राकृतिक विभाजन होना चाहिए। इस मुद्दे पर हमने पहले चर्चा की हुई है। किन्तु जब हम इस भौतिक स्तर से परे हो जाते हैं, तब सब समान होते हैं। तब कोई विभाजन नहीं होता। तो फिर परे कैसे हो? वह दिव्य प्रकृति कृष्ण भावनामृत है। जैसे ही हम कृष्ण भावनामृत में पूर्णतया लीन हो जाते हैं, वैसे ही हम प्रकृति के इन तीन गुणों से परे, दिव्यता प्राप्त कर लेते हैं।
660801 - प्रवचन भ.गी. ४.१३-१४ - न्यूयार्क