HI/670111 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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"जो प्रेमपूर्वक मेरी (कृष्ण की ) सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं। क्यूंकि भगवान कृष्ण हमारे भीतर हैं। तो कृष्णभावनामृत में एक निष्ठावान जीव को ज्ञान की कभी कमी नहीं आएगी।"" |Vanisource:670111 - Lecture CC Madhya 22.21-28 - New York|670111 - प्रवचन चै.च. मध्य २२.२१-२८ - न्यूयार्क}} | |||
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Latest revision as of 05:04, 14 April 2022
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी |
"जो व्यक्ति वास्तव में, गंभीरता से भक्तिमय सेवा में हैं, कृष्ण भक्ति में है, उन्हें ज्ञान की कमी नहीं होती है, क्योंकि आपने भगवद् गीता में भगवान को यह कहते हुए पाया हैं कि,तेषां सततं युक्तानांभजतां प्रीति पूर्वकमददामि बुद्धि योगं तमयेन माम उपयान्ति ते(भ.गी. १०.१०)
"जो प्रेमपूर्वक मेरी (कृष्ण की ) सेवा करने में निरन्तर लगे रहते हैं, उन्हें मैं ज्ञान प्रदान करता हूँ, जिसके द्वारा वे मुझ तक आ सकते हैं। क्यूंकि भगवान कृष्ण हमारे भीतर हैं। तो कृष्णभावनामृत में एक निष्ठावान जीव को ज्ञान की कभी कमी नहीं आएगी।"" |
670111 - प्रवचन चै.च. मध्य २२.२१-२८ - न्यूयार्क |