HI/680620 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
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{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680620SB-MONTREAL_ND_01.mp3</mp3player>|"कृष्ण सभी के दिल में स्थित हैं। ऐसा नहीं है कि क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं, कृष्ण मेरे दिल के भीतर बैठे हैं। नहीं। कृष्ण सभी के दिल में बैठे हैं। ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति ([[Vanisource:BG 18.61|BG 18.61]])। इसलिए ... और वह भावुक है। वह ज्ञान में परिपूर्ण है। इसलिए यह क्रिया, जो कि कृष्ण को समझने की कोशिश कर रहा है, यह कृष्ण बहुत प्रसन्न करती हैं। क्योंकि आप कृपापूर्वक यहां आए हैं, और कृष्ण आपके भीतर हैं, और क्योंकि आप धीरता से सुन रहे है, वह पहले से ही प्रसन्न है। वह पहले से ही आप पर प्रसन्न है। और इसका प्रभाव यह होगा कि श्रुण्वतां स्वकथां कृष्ण: पुण्यश्रवणकीर्तन: । ह्रुद्यन्त: स्थो ह्यभद्राणि। अभद्र का अर्थ होता है ऐसी घिनौनी चीजें जो हम अपने दिल के भीतर बहुत पहले से संजोए हुए हैं ।|Vanisource:680620 - Lecture SB 01.04.25 - Montreal|680620 - प्रवचन SB 01.04.25 - मॉन्ट्रियल}}
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Latest revision as of 17:33, 17 September 2020

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
कृष्ण सभी के हृदय में स्थित हैं । ऐसा नहीं है कि क्योंकि मैं एक संन्यासी हूं, कृष्ण मेरे हृदय के भीतर बैठे हैं । नहीं । कृष्ण सभी के हृदय में बैठे हैं । ईश्वरः सर्वभूतानां हृद्देशेऽर्जुन तिष्ठति (भ.गी. १८.६१) । तो... और वे संवेदनशील है । वे ज्ञान में परिपूर्ण है । इसलिए केवल यह कार्य, की व्यक्ति कृष्ण को समझने की कोशिश कर रहा है, यह कृष्ण बहुत प्रसन्न करती हैं । क्योंकि आप कृपापूर्वक यहां आए हैं, और कृष्ण आपके भीतर हैं, और क्योंकि आप धैर्य से सुन रहे है, वे पहले से ही प्रसन्न है । वे पहले से ही आप पर प्रसन्न है । और इसका प्रभाव यह होगा कि श्रुण्वतां स्वकथा: कृष्ण: पुण्यश्रवणकीर्तन:, हृदि अंत: स्थो ही अभद्राणि । अभद्र का अर्थ होता है ऐसी घिनौनी चीजें जो हम जन्मो जन्मो से अपने हृदय के भीतर संजोए हुए हैं ।
680620 - प्रवचन श्री.भा. १.४.२५ - मॉन्ट्रियल