HI/680904 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions

 
No edit summary
 
Line 2: Line 2:
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - १९६८]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
[[Category:HI/अमृत वाणी - न्यूयार्क]]
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680904LE-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|"योग की प्रगति से किसी की सराहना करनी चाहिए। खुद को जानना चाहिए। दूसरों की सिफारिश की कोई आवश्यकता नहीं है, चाहे हम एक महान योगी हो या नहीं। मेरी उन्नति दूसरों की प्रशंसा पर निर्भर नहीं करती है। लेकिन मुझे खुद को धोखा नहीं देना चाहिए। मुझे खुद को सर्वोच्च भगवान नहीं मानना चाहिए, बिना योग्यता के। यह एक आत्म-धोखाधड़ी की प्रक्रिया है। "|Vanisource:680904 - Lecture Excerpt - New York|680904 - प्रवचन Excerpt - न्यूयार्क}}
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{Nectar Drops navigation - All Languages|Hindi|HI/680830 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद मॉन्ट्रियल में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680830|HI/680905 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद न्यूयार्क में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं|680905}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
{{Audiobox_NDrops|HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/680904LE-NEW_YORK_ND_01.mp3</mp3player>|योग की प्रगति से किसी की सराहना करनी चाहिए । खुद को जानना चाहिए । दूसरों की सिफारिश की कोई आवश्यकता नहीं है, की मैं एक महान योगी हूँ या नहीं । मेरी उन्नति दूसरों की प्रशंसा पर निर्भर नहीं करती है । लेकिन मुझे खुद को धोखा नहीं देना चाहिए । मुझे खुद को भगवान नहीं मानना चाहिए, बिना योग्यता के । यह एक आत्म-धोखाधड़ी की प्रक्रिया है ।|Vanisource:680904 - Lecture Excerpt - New York|680904 - प्रवचन अंश - न्यूयार्क}}

Latest revision as of 14:18, 14 April 2019

HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
योग की प्रगति से किसी की सराहना करनी चाहिए । खुद को जानना चाहिए । दूसरों की सिफारिश की कोई आवश्यकता नहीं है, की मैं एक महान योगी हूँ या नहीं । मेरी उन्नति दूसरों की प्रशंसा पर निर्भर नहीं करती है । लेकिन मुझे खुद को धोखा नहीं देना चाहिए । मुझे खुद को भगवान नहीं मानना चाहिए, बिना योग्यता के । यह एक आत्म-धोखाधड़ी की प्रक्रिया है ।
680904 - प्रवचन अंश - न्यूयार्क