HI/681230 बातचीत - श्रील प्रभुपाद लॉस एंजेलेस में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं

Revision as of 17:37, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)
HI/Hindi - श्रील प्रभुपाद की अमृत वाणी
"भगवद्गीता, इसे प्रतिदिन पढ़ा जाता है प्रायः सारी दुनिया में, किन्तु वे इसे समझते नहीं। केवल साधारण प्रकार से वे भगवद्गीता के पाठक बन जाते हैं, या केवल झूठमूठ ये सोचना कि "मैं भगवान हूँ" बस। वे कोई विशिष्ठ जानकारी नहीं लेते। आठवें अध्याय में एक श्लोक है, पारस तस्मात् तु भावो'न्यो व्यक्तो'व्यक्तात सनातनः (भगवद्गीता ८.२०): वहां एक अन्य प्रकृति है, इस भौतिक प्रकृति के परे, जो सनातन है। यह (भौतिक) प्रकृति सत्ता में आती है, पुनः विलय, विलय। परन्तु वह प्रकृति सनातन है। ये चीज़ें वहां (भगवद्गीता) में हैं।"
681230 - Interview - लॉस एंजेलेस