HI/690430 प्रवचन - श्रील प्रभुपाद बोस्टन में अपनी अमृतवाणी व्यक्त करते हैं: Difference between revisions
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{{Audiobox_NDrops|Nectar Drops from Srila Prabhupada|<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/Nectar+Drops/690430LE-BOSTON_ND_01.mp3</mp3player>|भगवान कृष्ण कहते है कि जीवन की भौतिक अवधारणा या जीवन की शारीरिक अवधारणा में, हमारी इंद्रिया बहुत महत्वपूर्ण हैं । यह वर्तमान क्षण में चल रहा है । वर्तमान समय में नहीं, इस भौतिक संसार के निर्माण के समय से । यह बीमारी है की 'मैं ये शरीर हूँ' । श्रीमद भागवत कहता है की "यस्यात्म बुद्धिः कुणपे त्रि-धातुके स्व-धि: कलत्रादिषु भौम इज्य-धि: ([[Vanisource:SB 10.84.13|श्री.भा. १०.८४.१३]]), की जो कोई भी को यह शारीरिक धारणा पर है की, 'मैं यह शरीर हूँ' आत्मा बुद्धि कुणपे त्रि-धातु । आत्म-बुद्धि का मतलब है यह त्वचा और हड्डियों में स्वयं की धारणा । यह एक थैला है । यह शरीर थैला है जो बना है त्वचा, हड्डी, रक्त, मूत्र, मल, और कितनी अच्छी चीज़ो का । आप देख रहे हैं ? लेकिन हम सोच रहे हैं कि 'मैं हड्डी, त्वचा और मल और मूत्र का थैला हूँ । यह हमारी सुंदरता है । यह हमारा सब कुछ है ।|Vanisource:690430 - Lecture Northeastern University - Boston|690430 - प्रवचन नोर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी - बोस्टन}} |
Latest revision as of 10:22, 3 February 2021
Nectar Drops from Srila Prabhupada |
भगवान कृष्ण कहते है कि जीवन की भौतिक अवधारणा या जीवन की शारीरिक अवधारणा में, हमारी इंद्रिया बहुत महत्वपूर्ण हैं । यह वर्तमान क्षण में चल रहा है । वर्तमान समय में नहीं, इस भौतिक संसार के निर्माण के समय से । यह बीमारी है की 'मैं ये शरीर हूँ' । श्रीमद भागवत कहता है की "यस्यात्म बुद्धिः कुणपे त्रि-धातुके स्व-धि: कलत्रादिषु भौम इज्य-धि: (श्री.भा. १०.८४.१३), की जो कोई भी को यह शारीरिक धारणा पर है की, 'मैं यह शरीर हूँ' आत्मा बुद्धि कुणपे त्रि-धातु । आत्म-बुद्धि का मतलब है यह त्वचा और हड्डियों में स्वयं की धारणा । यह एक थैला है । यह शरीर थैला है जो बना है त्वचा, हड्डी, रक्त, मूत्र, मल, और कितनी अच्छी चीज़ो का । आप देख रहे हैं ? लेकिन हम सोच रहे हैं कि 'मैं हड्डी, त्वचा और मल और मूत्र का थैला हूँ । यह हमारी सुंदरता है । यह हमारा सब कुछ है । |
690430 - प्रवचन नोर्थईस्टर्न यूनिवर्सिटी - बोस्टन |