HI/Prabhupada 0001 - एक करोड़ तक फैल जाअो: Difference between revisions
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चैतन्य महाप्रभु | प्रभुपाद: चैतन्य महाप्रभु सभी आचार्यो से कह रहे है की... नित्यानंद प्रभु, अद्वैत प्रभु और श्रीवासादी-गौर-भक्त-व्रिन्द, यह सभी आचार्य श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश के वाहक हैं । इसलिए आचार्य के मार्ग का अनुसरण करने का प्रयत्न करो । ऐसा करने से जीवन सफल होगा । ओर आचार्य बनना बहुत कठिन नहीं है । सबसे पहले, अपने आचार्य का निष्ठावान सेवक होने के लिए, अचूक तरीके से जो वे कहते हैं उसका पालन करो । उनको प्रसन्न करने का प्रयास करो ओर कृष्ण भावनामृत का फैलाव करो । बस इतना ही । यह बिल्कुल भी कठिन काम नहीं है । अपने गुरु महाराज के उपदेशका पालन करने की कोशिश करो ओर कृष्ण भावनामृतका फैलाव करो । चैतन्य महाप्रभु का यही आदेश है । | ||
नित्यानंद प्रभु , अद्वैत प्रभु और | |||
यह सभी आचार्य श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश के वाहक हैं । | |||
ऐसा करने से जीवन सफल | |||
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सबसे पहले, अपने आचार्य का निष्ठावान सेवक | |||
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उनको प्रसन्न करने का प्रयास करो ओर कृष्ण भावनामृत का फैलाव करो । | |||
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चैतन्य महाप्रभु का यही आदेश है | |||
:अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश | |||
:जारे देख तारे कह 'कृष्ण'-उपदेश | |||
:([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) | |||
आचार्य के उपदेश का | "मेरे आदेश का पालन करने से, तुम गुरु बन जाअोगे ।" और अगर हम अचूक तरीके से आचार्य पद्धति का अनुसरण करते हैं ओर अपने श्रेष्ठ प्रयासों द्वारा कृष्ण के उपदेश का फैलाव करने की कोशिश करते हैं । जारे देख तारे कह 'कृष्ण'-उपदेश ([[Vanisource:CC Madhya 7.128|चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८]]) । कृष्ण-उपदेश दों प्रकार के हैं । उपदेश का अर्थ है उपदेश शिक्षा। कृष्ण द्वारा दी गई शिक्षा, वह भी 'कृष्ण'-उपदेश है, और कृष्णके विषयमें प्राप्त किया गई शिक्षा, वह भी 'कृष्ण'-उपदेश है । कृष्णस्य उपदेश इति कृष्ण उपदेश । समास, शास्ति-तत-पुरुष-समास । और कृष्ण विषया उपदेश, वह भी कृष्ण उपदेश है । बाहु-व्रीहि-समास । संस्कृत व्याकरणको अध्ययन करने का यह तरीका है । तो कृष्ण उपदेश भगवद्-गीता है । वे प्रत्यक्ष रूप से शिक्षण दे रहे हैं । | ||
तो जो इस तरह कृष्ण-उपदेश का प्रसार कर रहा है, केवल कृष्णने जो कहा है उसे दोहराअो, तो तुम आचार्य बन जाते हो । यह बिलकुल भी कठिन नहीं है । वहा सब कुछ बताया गया है । हमें केवल तोते की तरह दोहराना है । एक दम तोते की तरह भी नहीं । तोता नहीं समझता है की मतलब क्या है, केवल बोलता है । लेकिन तुम्हे अर्थ भी समझना होगा; अन्यथा तुम कैसे समझा सकोगे ? तो, तो हम कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना चाहते हैं । केवल तुम अपने अाप को तैयार करो कि कैसे कृष्णकी शिक्षाको बहुत अच्छी तरह से दोहराना है, किसी भी अशुद्ध अर्थ के बिना । फिर, भविष्यमें... मान लो अभी तुम्हारे पास दस हज़ार है । फिर हम एक लाख तक फैल जाऍगे । इसकी आवश्यकता है । फिर एक लाख से दस लाख, और दस लाख से एक करोड़ । | |||
भक्त: हरी बोल ! जय ! | |||
हॉ । आचार्य वे माया के विरुद्ध युद्ध घोषित करते हैं । | प्रभुपाद: तो तब आचार्य की कोई कमी नहीं रहेगी, और लोग सहजता से कृष्ण भावनामृत को समझेंगे । तो ऐसे एक संघठन का निर्माण करो । झूठमुठ का घमंड मत करो । आचार्यकी शिक्षाओं का पालन करो और अपने आप को उत्तम बनाने की कोशिश करो, परिपक्व । फिर माया को पराजित करना बहुत आसन हो जाएगा । हॉ । आचार्य, वे माया के विरुद्ध युद्ध घोषित करते हैं । | ||
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020
Lecture on CC Adi-lila 1.13 -- Mayapur, April 6, 1975
प्रभुपाद: चैतन्य महाप्रभु सभी आचार्यो से कह रहे है की... नित्यानंद प्रभु, अद्वैत प्रभु और श्रीवासादी-गौर-भक्त-व्रिन्द, यह सभी आचार्य श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश के वाहक हैं । इसलिए आचार्य के मार्ग का अनुसरण करने का प्रयत्न करो । ऐसा करने से जीवन सफल होगा । ओर आचार्य बनना बहुत कठिन नहीं है । सबसे पहले, अपने आचार्य का निष्ठावान सेवक होने के लिए, अचूक तरीके से जो वे कहते हैं उसका पालन करो । उनको प्रसन्न करने का प्रयास करो ओर कृष्ण भावनामृत का फैलाव करो । बस इतना ही । यह बिल्कुल भी कठिन काम नहीं है । अपने गुरु महाराज के उपदेशका पालन करने की कोशिश करो ओर कृष्ण भावनामृतका फैलाव करो । चैतन्य महाप्रभु का यही आदेश है ।
- अामार अाज्ञाय गुरु हया तार एइ देश
- जारे देख तारे कह 'कृष्ण'-उपदेश
- (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८)
"मेरे आदेश का पालन करने से, तुम गुरु बन जाअोगे ।" और अगर हम अचूक तरीके से आचार्य पद्धति का अनुसरण करते हैं ओर अपने श्रेष्ठ प्रयासों द्वारा कृष्ण के उपदेश का फैलाव करने की कोशिश करते हैं । जारे देख तारे कह 'कृष्ण'-उपदेश (चैतन्य चरितामृत मध्य ७.१२८) । कृष्ण-उपदेश दों प्रकार के हैं । उपदेश का अर्थ है उपदेश शिक्षा। कृष्ण द्वारा दी गई शिक्षा, वह भी 'कृष्ण'-उपदेश है, और कृष्णके विषयमें प्राप्त किया गई शिक्षा, वह भी 'कृष्ण'-उपदेश है । कृष्णस्य उपदेश इति कृष्ण उपदेश । समास, शास्ति-तत-पुरुष-समास । और कृष्ण विषया उपदेश, वह भी कृष्ण उपदेश है । बाहु-व्रीहि-समास । संस्कृत व्याकरणको अध्ययन करने का यह तरीका है । तो कृष्ण उपदेश भगवद्-गीता है । वे प्रत्यक्ष रूप से शिक्षण दे रहे हैं ।
तो जो इस तरह कृष्ण-उपदेश का प्रसार कर रहा है, केवल कृष्णने जो कहा है उसे दोहराअो, तो तुम आचार्य बन जाते हो । यह बिलकुल भी कठिन नहीं है । वहा सब कुछ बताया गया है । हमें केवल तोते की तरह दोहराना है । एक दम तोते की तरह भी नहीं । तोता नहीं समझता है की मतलब क्या है, केवल बोलता है । लेकिन तुम्हे अर्थ भी समझना होगा; अन्यथा तुम कैसे समझा सकोगे ? तो, तो हम कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना चाहते हैं । केवल तुम अपने अाप को तैयार करो कि कैसे कृष्णकी शिक्षाको बहुत अच्छी तरह से दोहराना है, किसी भी अशुद्ध अर्थ के बिना । फिर, भविष्यमें... मान लो अभी तुम्हारे पास दस हज़ार है । फिर हम एक लाख तक फैल जाऍगे । इसकी आवश्यकता है । फिर एक लाख से दस लाख, और दस लाख से एक करोड़ ।
भक्त: हरी बोल ! जय !
प्रभुपाद: तो तब आचार्य की कोई कमी नहीं रहेगी, और लोग सहजता से कृष्ण भावनामृत को समझेंगे । तो ऐसे एक संघठन का निर्माण करो । झूठमुठ का घमंड मत करो । आचार्यकी शिक्षाओं का पालन करो और अपने आप को उत्तम बनाने की कोशिश करो, परिपक्व । फिर माया को पराजित करना बहुत आसन हो जाएगा । हॉ । आचार्य, वे माया के विरुद्ध युद्ध घोषित करते हैं ।