HI/Prabhupada 0001 - एक करोड़ तक फैल जाअो

Revision as of 09:43, 21 March 2015 by Sahadeva (talk | contribs) (Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:HI-Quotes - 1975 Category:HI-Quotes - Lectures, Caitanya-caritamrta Category:HI-Quotes - in India Category:HI-Quotes - in I...")
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Invalid source, must be from amazon or causelessmery.com

Lecture on CC Adi-lila 1.13 -- Mayapur, April 6, 1975

चैतन्य महाप्रभु ने सभी आचार्यो से कहा है की...

नित्यानंद प्रभु , अद्वैत प्रभु और श्रीवासदी-गौर-भक्त-व्रिन्द

यह सभी आचार्य श्री चैतन्य महाप्रभु के आदेश के वाहक हैं ।

इस लिए आचार्य के मार्ग का अनुगमन करना चाहिए ।

ऐसा करने से जीवन सफल हो जायेगा।

ओर आचार्य बनना कठिन नहीं है।

सबसे पहले, अपने आचार्य का निष्ठावान सेवक होनेके लिए,

अचूक तरीके से जो वो कह रहे है उसका पालन करो ।

उनको प्रसन्न करने का प्रयास करो ओर कृष्ण भावनामृत का फैलाव करो ।

बस यही करो । यह बिल्कुल कठिन काम नहीं है ।

अपने गुरु महाराज के अनुदेश का पालन करो ओर कृष्ण भावनामृत का फैलाव करो ।

चैतन्य महाप्रभु का यही आदेश है ।

अमरा अाज्ञाय गुरु हन तर इ देश ज्यारे देखा तारे कहो कृष्ण-उपदेश (चै च मध्य ७।१२८)

"मेरे आदेश का पालन करने से, तुम गुरु होजाओगे ।"

और अगर हम अचूक तरीके से आचार्य पद्धति का अनुसरण करते हैं

ओर अपने श्रेष्ट प्रयासों द्वारा कृष्ण के अनुदेश का फैलाव करने की कोशिश करते हैं ।

ज्यारे देखा तारे कहा 'कृष्ण'-उपदेश (CC Madhya 7.128).

कृष्ण-उपदेश दों प्रकार के हैं ।

उपदेश का अर्थ है निर्देश ।

कृष्ण द्वारा दिए गए अनुदेश भी कृष्णा-उपदेश हैं,

और कृष्ण के विषय में प्राप्त किया गया निर्देश, वह भी 'कृष्ण'-उपदेश है ।

कृष्णस्य उपदेश इति कृष्ण उपदेश ।

समास, शास्ति-तत-पुरुष-समास ।

और कृष्ण विषया उपदेश, वह भी कृष्ण उपदेश है ।

बहु-व्रीहि-समास ।

संस्कृत व्याकरण को अध्ययन करने का यह तरीका है ।

तो कृष्ण उपदेश भगवद-गीता है ।

वे प्रत्यक्ष रूप से उपदेश दे रहे हैं ।

तो जो इस तरह कृष्ण-उपदेश का प्रसार कर रहा है, केवल कृष्ण ने जो कहा है उसे दोहराता है, तो तुम आचार्य बन जाते हो ।

यह बिलकुल भी कठिन नहीं है । सब कुछ बताया गया है ।

हमें केवल तोते की तरह दोहराना है ।

एक दम तोते की तरह भी नहीं । तोता मतलब नहीं समझता है, केवल बोलता है ।

लेकिन तुम्हे अर्थ भी समझना होगा ;

अन्यथा तुम कैसे समझा सकोगे ?

तो अगर हम कृष्ण भावनामृत का प्रसार करना चाहते हैं ।

केवल तुम अपने अाप को तैयार करो कि कैसे कृष्ण के उपदेश को बहुत अच्छी तरह से दोहराना है, किसी भी गलत या अशुद्ध अर्थ के बिना ।

फिर भविष्य में ... मान लो अभी तुम्हारे पास दस हज़ार है ।

फिर हम एक लाख तक फैल जाऍगे ।

इसकी आवश्यकता है । फिर एक लाख से दस लाख,

और दस लाख से एक करोड़ । भक्त: हरी बोल ! जय !

तो तब आचार्य की कोई कमी नहीं रहेगी,

और लोग सहजता से कृष्ण भावनामृत को समझ पायेंगे ।

तो ऐसा एक संघठन का नीर्माण करो ।

जूठमुठ का घमंड मत करो

आचार्य के उपदेश का पालन करो

और अपने आप को उत्तम एवं परिपक्व बनाअो ।

फिर माया को पराजित करना आसन हो जाएगा ।

हॉ । आचार्य वे माया के विरुद्ध युद्ध घोषित करते हैं ।