HI/Prabhupada 0009 - चोर जो भक्त बना: Difference between revisions

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कृष्ण भगवद गीता में कहते हैं:
कृष्ण भगवद्- गीता में कहते हैं: नाहम प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत ([[HI/BG 7.25|भ गी ७.२५]]): "मैं हर किसी के लिए प्रकट नहीं हूँ । योगमाया, योगमायासे मैं ढ़का हुअा हूँ  ।" तो तुम भगवान को कैसे देख सकते हो ? लेकिन यह धूर्तता चल रही है, कि "क्या आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ? आपने भगवान को देखा है ?" भगवान एक खिलौनेकी तरह बन गए हैं । "यहाँ भगवान हैं । यह भगवान का अवतार है ।" न माम दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा ([[HI/BG 7.15|भ गी ७.१५]]): वे पापी, धूर्त, मूर्ख, मनुष्योंमें अधम हैं । वे एसे पूछताछ करते हैं: "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ?" तुम्हारे पास क्या योग्यता है कि तुम भगवान को देख सको ? योग्यता यह है । क्या है ? तच श्रद्धधाना मुनय: ([[Vanisource:SB 1.2.12|श्रीमद भागवतम ..१२]])
 
(भ गी ७।२५) नाहं प्रकाश: सरवस्य योग-माया-समावृत:
 
"मैं हर किसी के लिए उजागर नहि हूँ । योगमाया, योगमाया से मैं ढ़का हुअा हुँ ।"
 
तो हम भगवान को कैसे देख सकते हैं ?
 
लेकिन यह धूर्तता चल रही है
 
कि "क्या आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ? आपने भगवान को देखा है ?"
 
भगवान एक खिलौने की तरह बन गए हैं ।
 
"यहाँ भगवान हैं । यह भगवान का अवतार है ।"
 
(भ गी ७।१५) न माम् दुष्कृतीनो मूढा प्रपदयन्ते नराधमा:
 
वे पापी, धूर्त, मूर्ख, मानव जाति की सबसे निम्न श्रेणि में गिने जाते हैं ।
 
वे पूछताछ करते हैं: "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ?"
 
तुम्हारे पास क्या योग्यता है कि तुम भगवान को देख सको ?
 
योग्यता यह है ।
 
क्या है ? तच श्रद्धधाना मुनय:
 
व्यक्ति को पहले वफादार होना चाहिए ।
 
वफादार । श्रद्धधाना:
 
उसे भगवान को देखने के लिए बहुत उत्सुक होना चाहिए, वास्तव में ।
 
ऐसा नहीं है कि जैसे एक प्रवृत्ति, तुच्छ बात, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ?"
 
भगवान जैसे एक जादू है, जादू ।
 
नहीं, उसे बहुत गंभीर होना चाहिए:
 
"हाँ, अगर भगवान हैं ...
 
हमने देखा है, हमें भगवान के बारे में जानकारी दी गई है ।
 
तो मुझे दिखना चाहिए ।
 
इस संबंध में एक कहानी है ।
 
यह बहुत शिक्षाप्रद है, सुनने के लिए प्रयास करें ।
 
एक पेशेवर वाचक , भागवतम के बारे में प्रवचन कर रहा था,
 
और वह कृष्ण के बारे में वर्णन कर रहा था, बहुत अत्यधिक रत्नों से सुसज्जित थे,
 
उन्हें वन में गायों को चराने के लिए भेज दिया जाता है ।
 
तो उस प्रवचन में एक चोर था ।
 
तो उसने सोचा कि, " फिर क्यों न मैं वृन्दावन जाकर इस लड़के को लूट लूँ ?
 
वह तो कई बहुमूल्य रत्नों के साथ जंगल में है ।
 
मैं वहाँ जा सकता हूँ और बच्चे को पकड़ कर सभी जवाहरात ले सकता हूँ । "
 
यही उसका इरादा था ।
 
तो, वह उस लड़के का पता लगाने के विषय में गंभीर था ।
 
फिर रातों रात मैं करोड़पति बन जाऊँगा ।
 
इतने गहने ।"नहीं ।"
 
तो वह वहां चला गया, लेकिन उसकी योग्यता थी कि , "मैं कृष्ण को ज़रूर देखूंगा,
 
"मैं कृष्ण को ज़रूर देखूंगा । " उस चिंता, उस उत्सुकता, से यह संभव हुअा कि वृन्दावन में उसने श्री कृष्ण को देखा ।
 
उसने श्री कृष्ण को उसी रूप में देखा जैसे भागवत पाठक द्वारा सूचित किया गया था ।
 
फिर उसने देखा, "ओह, ओह, आप कितने अच्छे लड़के हो, कृष्ण ।"
 
इसलिए वह चापलूसी करने लगा ।
 
उसने सोचा कि, "चापलूसी से मैं सभी जवाहरात ले जाऊँगा ।"
 
तो जब उसने अपने वास्तविक व्यापार का प्रस्ताव रखा,
 
"तो मैं अापके कुछ आभूषण ले सकता सकता हुँ ? अाप इतने अमीर हैं ।"
 
"नहीं, नहीं, नहीं. तुम ... मेरी माँ नाराज़ हो जाएगी । मैं नहीं कर सकता ..."
 
एक बच्चे के रूप में कृष्ण ।
 
तो वह अधिक से अधिक कृष्ण के लिए उत्सुक हो गया ।
 
और फिर ... कृष्ण की संगत में, वह पहले हि शुद्ध हो गया था
 
फिर, अंत में, कृष्ण ने कहा, "ठीक है, तुम ले सकते हो ।"


तो वह एक भक्त बन गया, तुरंत
व्यक्तिको पहले श्रद्धावान होना चाहिए । श्रद्धावान । श्रद्धधाना: वो भगवानको देखने के लिए बहुत उत्सुक होना चाहिए, वास्तवमें । एक प्रवृत्तिकी तरह नहीं, तुच्छ बात, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ?" एक जादू, जैसे भगवान एक जादू है । नहीं । वो बहुत गंभीर होना चाहिए: "हाँ, अगर भगवान हैं ... हमने देखा है, हमें भगवानके बारे में जानकारी दी गई है । तो मुझे देखना ही है "


क्योंकि कृष्ण की संगत से.....
इस संबंधमें एक कहानी है । यह बहुत शिक्षाप्रद है, सुनने के लिए प्रयास करो । एक पेशेवर वाचक भागवतमका प्रवचन कर रहा था, और वह कृष्णके बारे में वर्णन कर रहा था, कि वे बहुत अत्यधिक रत्नों से सुसज्जित थे, उन्हें वनमें गायों को चराने के लिए भेज दिया जाता है । तो उस प्रवचनमें एक चोर था । तो उसने सोचा कि, "फिर क्यों न मैं वृन्दावन जाकर इस लड़केको लूट लूँ ? वह तो कई बहुमूल्य रत्नोंके साथ जंगल में है । मैं वहाँ जा सकता हूँ और बच्चेको पकड़ कर सभी जवाहरात ले सकता हूँ । " यही उसका इरादा था । तो, वह गंभीर था कि, "उस लड़के का पता लगाना है । फिर रातोरात मैं करोड़पति बन जाऊँगा । इतने गहने । नहीं ।" तो वह वहां चला गया, लेकिन उसकी योग्यता थी कि , "मुझे कृष्ण को ज़रूर देखना है, मुझे कृष्णको ज़रूर देखना है ।"


तो किसी भी रास्ते से, हमें कृष्ण के संपर्क में आना चाहिए
उस चिंता, उस उत्सुकता, से यह संभव हुअा कि वृन्दावनमें उसने कृष्णको देखा । उसने कृष्णको उसी रूप में देखा जैसे भागवत पाठक द्वारा वह सूचित किया गया था । फिर उसने देखा, "ओह, ओह, आप कितने अच्छे लड़के हो, कृष्ण ।" तो वह चापलूसी करने लगा । उसने सोचा कि, "चापलूसीसे मैं सभी जवाहरात लेलूंगा ।" तो जब उसने अपने वास्तविक इरादे का प्रस्ताव रखा, "तो मैं अापके कुछ आभूषण ले सकता हुँ ? अाप इतने अमीर हैं ।" "नहीं, नहीं, नहीं. तुम ... मेरी माँ नाराज़ हो जाएगी । मैं नहीं कर सकता ..." एक बच्चेके रूपमें कृष्ण । तो वह अौर अधिक कृष्णके लिए उत्सुक हो गया । और फिर ... कृष्ण की संगतमें, वह पहले ही शुद्ध हो गया था । फिर, अंतमें, कृष्णने कहा, "ठीक है, तुम ले सकते हो ।" तब वह एक भक्त बन गया, तुरंत । क्योंकि कृष्णकी संगत से.....


किसी भी रास्ते से । तो फिर हम शुद्ध हो जाएँगे ।
तो किसी न किसी उपाय से, हमें कृष्ण के संपर्कमें आना चाहिए । किसी न किसी उपायसे । तो फिर हम शुद्ध हो जाएँगे ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on SB 1.2.12 -- Los Angeles, August 15, 1972

कृष्ण भगवद्- गीता में कहते हैं: नाहम प्रकाश: सर्वस्य योगमायासमावृत (भ गी ७.२५): "मैं हर किसी के लिए प्रकट नहीं हूँ । योगमाया, योगमायासे मैं ढ़का हुअा हूँ ।" तो तुम भगवान को कैसे देख सकते हो ? लेकिन यह धूर्तता चल रही है, कि "क्या आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ? आपने भगवान को देखा है ?" भगवान एक खिलौनेकी तरह बन गए हैं । "यहाँ भगवान हैं । यह भगवान का अवतार है ।" न माम दुष्कृतिनो मूढा: प्रपद्यन्ते नराधमा (भ गी ७.१५): वे पापी, धूर्त, मूर्ख, मनुष्योंमें अधम हैं । वे एसे पूछताछ करते हैं: "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ?" तुम्हारे पास क्या योग्यता है कि तुम भगवान को देख सको ? योग्यता यह है । क्या है ? तच श्रद्धधाना मुनय: (श्रीमद भागवतम १.२.१२) ।

व्यक्तिको पहले श्रद्धावान होना चाहिए । श्रद्धावान । श्रद्धधाना: वो भगवानको देखने के लिए बहुत उत्सुक होना चाहिए, वास्तवमें । एक प्रवृत्तिकी तरह नहीं, तुच्छ बात, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं ?" एक जादू, जैसे भगवान एक जादू है । नहीं । वो बहुत गंभीर होना चाहिए: "हाँ, अगर भगवान हैं ... हमने देखा है, हमें भगवानके बारे में जानकारी दी गई है । तो मुझे देखना ही है ।"

इस संबंधमें एक कहानी है । यह बहुत शिक्षाप्रद है, सुनने के लिए प्रयास करो । एक पेशेवर वाचक भागवतमका प्रवचन कर रहा था, और वह कृष्णके बारे में वर्णन कर रहा था, कि वे बहुत अत्यधिक रत्नों से सुसज्जित थे, उन्हें वनमें गायों को चराने के लिए भेज दिया जाता है । तो उस प्रवचनमें एक चोर था । तो उसने सोचा कि, "फिर क्यों न मैं वृन्दावन जाकर इस लड़केको लूट लूँ ? वह तो कई बहुमूल्य रत्नोंके साथ जंगल में है । मैं वहाँ जा सकता हूँ और बच्चेको पकड़ कर सभी जवाहरात ले सकता हूँ । " यही उसका इरादा था । तो, वह गंभीर था कि, "उस लड़के का पता लगाना है । फिर रातोरात मैं करोड़पति बन जाऊँगा । इतने गहने । नहीं ।" तो वह वहां चला गया, लेकिन उसकी योग्यता थी कि , "मुझे कृष्ण को ज़रूर देखना है, मुझे कृष्णको ज़रूर देखना है ।"

उस चिंता, उस उत्सुकता, से यह संभव हुअा कि वृन्दावनमें उसने कृष्णको देखा । उसने कृष्णको उसी रूप में देखा जैसे भागवत पाठक द्वारा वह सूचित किया गया था । फिर उसने देखा, "ओह, ओह, आप कितने अच्छे लड़के हो, कृष्ण ।" तो वह चापलूसी करने लगा । उसने सोचा कि, "चापलूसीसे मैं सभी जवाहरात लेलूंगा ।" तो जब उसने अपने वास्तविक इरादे का प्रस्ताव रखा, "तो मैं अापके कुछ आभूषण ले सकता हुँ ? अाप इतने अमीर हैं ।" "नहीं, नहीं, नहीं. तुम ... मेरी माँ नाराज़ हो जाएगी । मैं नहीं कर सकता ..." एक बच्चेके रूपमें कृष्ण । तो वह अौर अधिक कृष्णके लिए उत्सुक हो गया । और फिर ... कृष्ण की संगतमें, वह पहले ही शुद्ध हो गया था । फिर, अंतमें, कृष्णने कहा, "ठीक है, तुम ले सकते हो ।" तब वह एक भक्त बन गया, तुरंत । क्योंकि कृष्णकी संगत से.....

तो किसी न किसी उपाय से, हमें कृष्ण के संपर्कमें आना चाहिए । किसी न किसी उपायसे । तो फिर हम शुद्ध हो जाएँगे ।