HI/Prabhupada 0025 - अगर हम असली चीज देते हैं, तो उसका असर तो होगा ही: Difference between revisions
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योगी अमृत देसाई : अापके प्रति | योगी अमृत देसाई : मेरा अापके प्रति बहुत प्रेम है अौर मैनें सोचा कि अापके दर्शन के लिए अाना ही है । | ||
प्रभुपाद: धन्यवाद । | |||
योगी अमृत देसाई: मैं भक्तों से कह रहा था । मैंने कहा कि आप ... | |||
प्रभुपाद: आप डॉ. मिश्रा के साथ हैं ? | |||
योगी अमृत देसाई: नहीं, मैं नहीं हूँ । मैं यहाँ सभी भक्तों को बता रहा था । मैंने कहा कि श्री प्रभुपाद पहले व्यक्ति हैं जो पश्चिम में भक्ति लाए, जहाँ यह सबसे अधिक आवश्यक है । क्योंकि वहाँ, वे इतना दिमाग से सोचते रहते हैं, सोचते रहते हैं, सोचते रहते हैं । प्रेम का यह मार्ग इतना गहरा है । | |||
प्रभुपाद: देखिए । अगर आप एक यथार्थ बात पेश करते हैं । | |||
योगी अमृत देसाई: बहुत यथार्थ । | |||
प्रभुपाद: उसका अनुभव हो जाएगा । | |||
योगी अमृत देसाई: इसी लिए यह बढ़ रहा है इतनी खूबसूरती से, क्योंकि यह यथार्थ है । | |||
प्रभुपाद: और भारतीयों का यह कर्तव्य है कि उन्हें यथार्थ बात दें । यही पर-उपकार है । मुझेसे पहले, ये सभी स्वामी और योगी उन्हें धोखा देने के लिए वहाँ गए । | |||
योगी अमृत देसाई: नहीं, वे सच्चाई देने से डरते थे क्योंकि वे डरते थे कि वे स्वीकारे नहीं किए जाएँगे । | |||
प्रभुपाद: वे सच जानते ही नहीं थे । (हंसी) डर नहीं । क्यों ? अगर कोई सत्य के स्तर पर है, तो उसे क्यों डरना चाहिए ? | |||
योगी अमृत देसाई: यकीनन । | |||
प्रभुपाद: उन्हे सत्य का पता नहीं था, विवेकानंद से शुरुआत होती है । | |||
योगी अमृत देसाई: तब से, सही है । देखिए, आपके आने के बाद...... मैं १९६० में वहाँ था । मैंने योग सिखाना शुरू किया । लकिन आपके आने के बाद मैं निडर हो गया भक्ति और मंत्र जप सिखाने के लिए । तो अब हमारे आश्रम में बहुत भक्ति है, बहुत सारी भक्ति है । अौर मेंने अापको ये सम्मान दिया है क्योंकि मैं उन्हें देने से डर रहा था क्योंकि मैं सोचता था, "वे ईसाई हैं । उन्हें भक्ति पसंद नहीं अाएगी । वे गलत मतलब निकालेंगे ।" लेकिन अापने चमत्कार प्रदर्शन किया है । भगवान, कृष्ण ने आप के माध्यम से यह चमत्कार प्रदर्शन किया है । यह बहुत अद्भुत है, सबसे बड़ा चमत्कार पृथ्वी पर । मैं इसके बारे में इतनी दृढ़ता से महसूस करता हूँ । | |||
प्रभुपाद: आप बहुत दयालु हैं कि यह बयान दे रहै हैं । अगर हम यथार्थ चीज देते हैं, तो उसका असर होगा ही । | |||
योगी अमृत देसाई: सही कहा । यह मैं भी कर रहा हूँ । हर कोई ... हमारे आश्रम में स्थायी रूप से १८० लोग रहते हैं, और वे सब ब्रह्मचर्य का अभ्यास कर रहे हैं । सब ४:०० बजे जागते हैं, और वे ९:०० बजे तक सो जाते हैं । और वे एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते हैं । वे विभिन्न शयन कक्ष में सोते हैं । वे सत-संग में भी अलग से बैठते हैं । सब कुछ सख्ती से पालन किया जाता है । कोई नशा नहीं, कोई शराब नहीं, कोई मांस नहीं, कोई चाय नहीं, कोई कॉफी नहीं, कोई लहसुन नहीं, कोई प्याज नहीं । विशुद्ध । | |||
प्रभुपाद: बहुत अच्छा । हाँ । हम भी इसका अनुसरण कर रहे हैं । | |||
योगी अमृत देसाई: हाँ । | |||
प्रभुपाद: लेकिन आपके पास कोई अर्च विग्रह हैं ? | |||
योगी अमृत देसाई: हाँ । भगवान कृष्ण और राधा हमारे अर्च विग्रह हैं । मेरे गुरु स्वामी कृपालु-आनंदी हैं । वे...बड़ौदा के पास उनका एक आश्रम है । उन्होंने सत्ताईस साल तक साधना का अभ्यास किया, और बारह वर्ष तक पूर्ण मौन में थे । पिछले कुछ वर्षों से वे वर्ष में एक बार या दो बार बात करते हैं क्योंकि कई लोगों के अनुरोध किया । | |||
प्रभुपाद: वे मंत्र जाप नहीं करते हैं ? | |||
योगी अमृत देसाई: वे मंत्र जाप करते हैं । उनके मौन के दौरान, मंत्र जाप की अनुमति है । क्योंकि जब वे कहते हैं ... जब अाप भगवान का नाम लेते हो, उसे मौन तोड़ना नहीं कहा जाता है । तो वे मंत्र जाप करते हैं । | |||
प्रभुपाद: मौन का अर्थ है हम बकवास बात नहीं करेंगे । हम हरे कृष्ण मंत्र का जाप करेंगे । यही मौन है । बजाय समय बर्बाद करने के, इस भौतिक जगत कि बात करके, चलो हम हरे कृष्ण मंत्र का जाप करें । वह सकारात्मक है । और मौन नकारात्मक है । बकवास बंद करो, समझदारी की बात करो । योगी अमृत देसाई: सही है ! यह सही है । प्रभुपाद: परं दृष्ट्वा निवर्तते ([[HI/BG 2.59|भ गी २.५९]]) । परं दृष्ट्वा निवर्तते । अगर हम बकवास बंद करें, तब परम, परम ...परं दृष्ट्वा निवर्तते । जब अापको बेहतर चीजें मिलेगी, तो आप स्वाभाविक रूप से बकवास छोड़ देंगे । तो कुछ भी भौतिक, वह बकवास है । कर्म, ज्ञान, योग, वे सभी भौतिक हैं । कर्म, ज्ञान, योग । यहाँ तक कि तथाकथित योग तक, वे सभी भौतिक हैं । | |||
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Latest revision as of 17:45, 1 October 2020
Conversation with Yogi Amrit Desai of Kripalu Ashram (PA USA) -- January 2, 1977, Bombay
योगी अमृत देसाई : मेरा अापके प्रति बहुत प्रेम है अौर मैनें सोचा कि अापके दर्शन के लिए अाना ही है ।
प्रभुपाद: धन्यवाद ।
योगी अमृत देसाई: मैं भक्तों से कह रहा था । मैंने कहा कि आप ...
प्रभुपाद: आप डॉ. मिश्रा के साथ हैं ?
योगी अमृत देसाई: नहीं, मैं नहीं हूँ । मैं यहाँ सभी भक्तों को बता रहा था । मैंने कहा कि श्री प्रभुपाद पहले व्यक्ति हैं जो पश्चिम में भक्ति लाए, जहाँ यह सबसे अधिक आवश्यक है । क्योंकि वहाँ, वे इतना दिमाग से सोचते रहते हैं, सोचते रहते हैं, सोचते रहते हैं । प्रेम का यह मार्ग इतना गहरा है ।
प्रभुपाद: देखिए । अगर आप एक यथार्थ बात पेश करते हैं ।
योगी अमृत देसाई: बहुत यथार्थ ।
प्रभुपाद: उसका अनुभव हो जाएगा ।
योगी अमृत देसाई: इसी लिए यह बढ़ रहा है इतनी खूबसूरती से, क्योंकि यह यथार्थ है ।
प्रभुपाद: और भारतीयों का यह कर्तव्य है कि उन्हें यथार्थ बात दें । यही पर-उपकार है । मुझेसे पहले, ये सभी स्वामी और योगी उन्हें धोखा देने के लिए वहाँ गए ।
योगी अमृत देसाई: नहीं, वे सच्चाई देने से डरते थे क्योंकि वे डरते थे कि वे स्वीकारे नहीं किए जाएँगे ।
प्रभुपाद: वे सच जानते ही नहीं थे । (हंसी) डर नहीं । क्यों ? अगर कोई सत्य के स्तर पर है, तो उसे क्यों डरना चाहिए ?
योगी अमृत देसाई: यकीनन ।
प्रभुपाद: उन्हे सत्य का पता नहीं था, विवेकानंद से शुरुआत होती है ।
योगी अमृत देसाई: तब से, सही है । देखिए, आपके आने के बाद...... मैं १९६० में वहाँ था । मैंने योग सिखाना शुरू किया । लकिन आपके आने के बाद मैं निडर हो गया भक्ति और मंत्र जप सिखाने के लिए । तो अब हमारे आश्रम में बहुत भक्ति है, बहुत सारी भक्ति है । अौर मेंने अापको ये सम्मान दिया है क्योंकि मैं उन्हें देने से डर रहा था क्योंकि मैं सोचता था, "वे ईसाई हैं । उन्हें भक्ति पसंद नहीं अाएगी । वे गलत मतलब निकालेंगे ।" लेकिन अापने चमत्कार प्रदर्शन किया है । भगवान, कृष्ण ने आप के माध्यम से यह चमत्कार प्रदर्शन किया है । यह बहुत अद्भुत है, सबसे बड़ा चमत्कार पृथ्वी पर । मैं इसके बारे में इतनी दृढ़ता से महसूस करता हूँ ।
प्रभुपाद: आप बहुत दयालु हैं कि यह बयान दे रहै हैं । अगर हम यथार्थ चीज देते हैं, तो उसका असर होगा ही ।
योगी अमृत देसाई: सही कहा । यह मैं भी कर रहा हूँ । हर कोई ... हमारे आश्रम में स्थायी रूप से १८० लोग रहते हैं, और वे सब ब्रह्मचर्य का अभ्यास कर रहे हैं । सब ४:०० बजे जागते हैं, और वे ९:०० बजे तक सो जाते हैं । और वे एक दूसरे को स्पर्श नहीं करते हैं । वे विभिन्न शयन कक्ष में सोते हैं । वे सत-संग में भी अलग से बैठते हैं । सब कुछ सख्ती से पालन किया जाता है । कोई नशा नहीं, कोई शराब नहीं, कोई मांस नहीं, कोई चाय नहीं, कोई कॉफी नहीं, कोई लहसुन नहीं, कोई प्याज नहीं । विशुद्ध ।
प्रभुपाद: बहुत अच्छा । हाँ । हम भी इसका अनुसरण कर रहे हैं ।
योगी अमृत देसाई: हाँ ।
प्रभुपाद: लेकिन आपके पास कोई अर्च विग्रह हैं ?
योगी अमृत देसाई: हाँ । भगवान कृष्ण और राधा हमारे अर्च विग्रह हैं । मेरे गुरु स्वामी कृपालु-आनंदी हैं । वे...बड़ौदा के पास उनका एक आश्रम है । उन्होंने सत्ताईस साल तक साधना का अभ्यास किया, और बारह वर्ष तक पूर्ण मौन में थे । पिछले कुछ वर्षों से वे वर्ष में एक बार या दो बार बात करते हैं क्योंकि कई लोगों के अनुरोध किया ।
प्रभुपाद: वे मंत्र जाप नहीं करते हैं ?
योगी अमृत देसाई: वे मंत्र जाप करते हैं । उनके मौन के दौरान, मंत्र जाप की अनुमति है । क्योंकि जब वे कहते हैं ... जब अाप भगवान का नाम लेते हो, उसे मौन तोड़ना नहीं कहा जाता है । तो वे मंत्र जाप करते हैं ।
प्रभुपाद: मौन का अर्थ है हम बकवास बात नहीं करेंगे । हम हरे कृष्ण मंत्र का जाप करेंगे । यही मौन है । बजाय समय बर्बाद करने के, इस भौतिक जगत कि बात करके, चलो हम हरे कृष्ण मंत्र का जाप करें । वह सकारात्मक है । और मौन नकारात्मक है । बकवास बंद करो, समझदारी की बात करो । योगी अमृत देसाई: सही है ! यह सही है । प्रभुपाद: परं दृष्ट्वा निवर्तते (भ गी २.५९) । परं दृष्ट्वा निवर्तते । अगर हम बकवास बंद करें, तब परम, परम ...परं दृष्ट्वा निवर्तते । जब अापको बेहतर चीजें मिलेगी, तो आप स्वाभाविक रूप से बकवास छोड़ देंगे । तो कुछ भी भौतिक, वह बकवास है । कर्म, ज्ञान, योग, वे सभी भौतिक हैं । कर्म, ज्ञान, योग । यहाँ तक कि तथाकथित योग तक, वे सभी भौतिक हैं ।