HI/Prabhupada 0035 - ये शरीर में दो जीव है

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Lecture on BG 2.1-11 -- Johannesburg, October 17, 1975

अब, कृष्ण ने गुरु का स्थान ले लिया, और वे निर्देश देने लगे । तं उवाच हृषीकेश: । हृषीकेश....कृष्ण का एक और नाम है हृषीकेश । हृषीकेश का अर्थ है हृषीक ईश । हृषीक का अर्थ है इन्द्रियॉ, और ईश, स्वामी । इसलिए कृष्ण हमारे इन्द्रियों के स्वामी हैं, हर किसी कि इन्द्रियों के स्वामी हैं । यह तेरहवें अध्याय में विस्तार से बताया जाएगा कि, क्षेत्र ज्ञं चापि मां विद्धि सर्व क्षेत्रेषु भारत (भ गी १३.३) । इस शरीर में दो जीव हैं । एक मैं हूँ, जीवात्मा, आत्मा, और दूसरा, परमात्मा श्री कृष्ण हैं । ईश्वर: सर्वभूतानां हृद्देशे अर्जुन तिष्ठति (भ गी १८.६१) । तो वास्तव में मालिक परमात्मा हैं । मुझे इसे उपयोग करने का मौका दिया गया है, तो मेरी इन्द्रयॉ, मेरी तथाकथित इन्द्रयॉ, वह मेरी इन्द्रयॉ नहीं हैं । मैंने अपना हाथ नहीं बनाया है ।

हाथ परमेश्वर के द्वारा बनाया गया है, या कृष्ण द्वारा, भौतिक प्रकृति के माध्यम से, और मुझे यह हाथ दिया गया है अपने उद्देश्य के उपयोग के लिए, मेरे खाने के लिए, मेरे एकत्र करने के लिए । लेकिन वास्तव में यह मेरे हाथ में नहीं है । अन्यथा, जब यह हाथ लकवाग्रस्त हो जाता है, मैं दावा करता हूँ, "मेरा हाथ" - मैं इसका उपयोग नहीं कर सकता हूं क्योंकि हाथ की ताकत मालिक ने वापस ले ली है । जैसे एक घर में, किराए के घर में, तुम रह रहे हो । अगर घर का मालिक, मकान मालिक, तुम्हे बेदखल कर दे, तुम वहाँ नहीं रह सकते हो । तुम उसका उपयोग नहीं कर सकते हो ।

इसी तरह, हम तब तक इस शरीर का उपयोग कर सकते हैं जब तक उसके असली मालिक, हृषीकेश, मुझे यहाँ रहने की अनुमति देते है । इसलिए कृष्ण का नाम हृषीकेश है । और यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन का अर्थ है कि हमने कृष्ण से इंद्रियों को स्वीकार किया है । इसे कृष्ण के लिए उपयोग किया जाना चाहिए । बजाय इसके कि हम कृष्ण के लिए इसे उपयोग करें, हम अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए इसका प्रयोग कर रहे हैं । यह हमारे जीवन की दयनीय हालत है । जिस तरह यदि तुम एक घर में रह रहे हो जिसके लिए तुम्हे किराया देना पड़ता है, लकिन अगर तुम किराया नहीं देते हो - तुम इसे अपनी संपत्ति समझने लगते हो - तो परेशानी होती है । इसी तरह, हृषीकेश का अर्थ है असली मालिक कृष्ण हैं । मुझे यह संपत्ती दी गई है । भगवद्-गीता में यह कहा गया है ।

ईश्वर: सर्व भूतानां
ह्रद्देशे अर्जुन तिष्ठति
भ्रामयन् सर्व भूतानि
यन्त्रारूढानि मायया
(भ गी १८.६१)

यन्त्र: यह एक मशीन है । यह मशीन मुझे दी गई है कृष्ण द्वारा क्योंकि यह मेरी इच्छा थी, कि "अगर मुझे एक मशीन मिलता है मानव शरीर जैसा, तो मैं इस तरह से आनंद ले सकता हूँ । " तो कृष्ण तुम्हारी इच्छा को पूरा करते हैं: "ठीक है ।" और मुझे लगता है कि "अगर मुझे एक मशीन मिलता है जिसमे मैं सीधे अन्य जानवर का खून चूस सकता हूँ," "ठीक है," श्री कृष्ण कहते हैं, "तुम एक बाघ के शरीर का मशीन लो और इसका उपयोग करो ।" तो यह चल रहा है । इसलिए उनका नाम हृषीकेश है । और जब हम ठीक से समझते हैं कि "मैं इस शरीर का मालिक नहीं हूँ । कृष्ण इस शरीर के मालिक हैं । मैं एक खास प्रकार का शरीर चाहता था जिसका मैं अपनी इन्द्रिय संतुष्टि के लिए उपयोग कर सकूं । उन्होंने वह दे दिया और मैं खुश नहीं हूं । इसलिए मैं सीखूंगा कि कैसे इस मशीन को मालिक के लिए उपयोग किया जा सकता है ।" इसे भक्ति कहा जाता है । हृषीकेण हृषीकेश-सेवनं भक्तिर् उच्यते (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७०) । जब यह इंद्रियॉ - क्योंकि कृष्ण इंद्रियों के स्वामी हैं - वे इस शरीर के मालिक हैं - तो जब यह शरीर कृष्ण की सेवा के लिए उपयोग किया जाएगा, तो यह हमारा जीवन की पूर्णता है ।