HI/Prabhupada 0038 - ज्ञान वेदों से उत्पन्न होता है: Difference between revisions
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अब, श्री कृष्ण | अब, श्री कृष्ण हैं । हमारे पास कृष्ण का चित्र है, कृष्ण की तस्वीर है, कृष्ण का मंदिर है, इतने सारे कृष्ण हैं । वे काल्पनिक नहीं हैं । वे कल्पना नहीं हैं, जैसे मायावादी दार्शनिक समझते हैं, कि "तुम अपने मन में कल्पना कर सकते हो ।" नहीं, भगवान की कल्पना नहीं की जा सकती है । यह एक और मूर्खता है । कैसे तुम भगवान की कल्पना कर सकते हो? तब भगवान तुम्हारी कल्पना का विषय बन जाते हैं । वे तत्त्व नहीं हैं । यह भगवान नहीं है । जो काल्पनिक हो, वह भगवान नहीं है । भगवान, तुम्हारे सामने कृष्ण मौजूद हैं । वे इस लोक पर आते हैं । तदात्मानं सृजामि अहं सम्भवामि युगे युगे ([[HI/BG 4.8|भ गी ४.८]]) । तो जिन लोगों ने भगवान को देखा है, तुम उन लोगों से जानकारी लो । | ||
:तद विद्धि प्रणिपातेन | |||
:परिप्रशनेन सेवया | |||
:उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानम् | |||
:ज्ञानिनस् तत्व दर्शिन: | |||
:([[HI/BG 4.34|भ गी ४।३४]]) | |||
तत्व दर्शिन: । जब तक तुमने देखा नहीं हैं, कैसे तुम दूसरों को सच्चाई की जानकारी दे सकते हो ? तो भगवान को देखा जाता है, केवल इतिहास में ही नहीं । इतिहास में, जब कृष्ण इस लोक में मौजूद थे, कुरुक्षेत्र की लड़ाई का इतिहास जहां यह भगवद्-गीता कहा गया था, एक ऐतिहासिक तथ्य है । तो हम इतिहास के माध्यम से भी देख सकते हैं भगवान श्री कृष्ण को और शास्त्र के माध्यम से भी । शास्त्र चक्षुशा । जैसे वर्तमान समय में कृष्ण शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, लेकिन कृष्ण क्या हैं हम शास्त्र के माध्यम से समझ सकते हैं । | |||
तो शास्त्र चक्षुशा । शास्त्र.......या तो तुम प्रत्यक्ष अनुभूति लो या शास्त्र के माध्यम से ... शास्त्र के माध्यम से अनुभूती प्रत्यक्ष अनुभूति से बेहतर है । इसलिए हमारा ज्ञान, जो वैदिक सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं, उनका ज्ञान वेदों से लिया गया है । वे किसी भी ज्ञान का निर्माण नहीं करते हैं । अगर कोइ बात वेदों के प्रमाण से समझ में आ जाती है, तो यह तथ्य है । तो कृष्ण वेदों के माध्यम से समझे जाते हैं । वेदैश च सर्वैर् अहं एव वेद्य: ([[HI/BG 15.15|भ गी १५.१५]]) । यह भगवद्-गीता में कहा गया है । तुम कृष्ण की कल्पना नहीं कर सकते हो । अगर कोइ धूर्त कहता है कि "मैं कल्पना कर रहा हूँ," वह धूर्तता है । तुम्हे वेदों के माध्यम से कृष्ण को देखना होगा । वेदैश च सर्वैर् अहं एव वेद्य: ([[HI/BG 15.15|भ गी १५.१५]]) । यही वेदों का अध्ययन करने का उद्देश्य है । अतएव उसे वेदांत कहा जाता है । कृष्ण का ज्ञान वेदांत है । | |||
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Latest revision as of 18:01, 17 September 2020
Lecture on BG 7.1 -- Hong Kong, January 25, 1975
अब, श्री कृष्ण हैं । हमारे पास कृष्ण का चित्र है, कृष्ण की तस्वीर है, कृष्ण का मंदिर है, इतने सारे कृष्ण हैं । वे काल्पनिक नहीं हैं । वे कल्पना नहीं हैं, जैसे मायावादी दार्शनिक समझते हैं, कि "तुम अपने मन में कल्पना कर सकते हो ।" नहीं, भगवान की कल्पना नहीं की जा सकती है । यह एक और मूर्खता है । कैसे तुम भगवान की कल्पना कर सकते हो? तब भगवान तुम्हारी कल्पना का विषय बन जाते हैं । वे तत्त्व नहीं हैं । यह भगवान नहीं है । जो काल्पनिक हो, वह भगवान नहीं है । भगवान, तुम्हारे सामने कृष्ण मौजूद हैं । वे इस लोक पर आते हैं । तदात्मानं सृजामि अहं सम्भवामि युगे युगे (भ गी ४.८) । तो जिन लोगों ने भगवान को देखा है, तुम उन लोगों से जानकारी लो ।
- तद विद्धि प्रणिपातेन
- परिप्रशनेन सेवया
- उपदेक्ष्यन्ति ते ज्ञानम्
- ज्ञानिनस् तत्व दर्शिन:
- (भ गी ४।३४)
तत्व दर्शिन: । जब तक तुमने देखा नहीं हैं, कैसे तुम दूसरों को सच्चाई की जानकारी दे सकते हो ? तो भगवान को देखा जाता है, केवल इतिहास में ही नहीं । इतिहास में, जब कृष्ण इस लोक में मौजूद थे, कुरुक्षेत्र की लड़ाई का इतिहास जहां यह भगवद्-गीता कहा गया था, एक ऐतिहासिक तथ्य है । तो हम इतिहास के माध्यम से भी देख सकते हैं भगवान श्री कृष्ण को और शास्त्र के माध्यम से भी । शास्त्र चक्षुशा । जैसे वर्तमान समय में कृष्ण शारीरिक रूप से मौजूद नहीं हैं, लेकिन कृष्ण क्या हैं हम शास्त्र के माध्यम से समझ सकते हैं ।
तो शास्त्र चक्षुशा । शास्त्र.......या तो तुम प्रत्यक्ष अनुभूति लो या शास्त्र के माध्यम से ... शास्त्र के माध्यम से अनुभूती प्रत्यक्ष अनुभूति से बेहतर है । इसलिए हमारा ज्ञान, जो वैदिक सिद्धांतों का पालन कर रहे हैं, उनका ज्ञान वेदों से लिया गया है । वे किसी भी ज्ञान का निर्माण नहीं करते हैं । अगर कोइ बात वेदों के प्रमाण से समझ में आ जाती है, तो यह तथ्य है । तो कृष्ण वेदों के माध्यम से समझे जाते हैं । वेदैश च सर्वैर् अहं एव वेद्य: (भ गी १५.१५) । यह भगवद्-गीता में कहा गया है । तुम कृष्ण की कल्पना नहीं कर सकते हो । अगर कोइ धूर्त कहता है कि "मैं कल्पना कर रहा हूँ," वह धूर्तता है । तुम्हे वेदों के माध्यम से कृष्ण को देखना होगा । वेदैश च सर्वैर् अहं एव वेद्य: (भ गी १५.१५) । यही वेदों का अध्ययन करने का उद्देश्य है । अतएव उसे वेदांत कहा जाता है । कृष्ण का ज्ञान वेदांत है ।