HI/Prabhupada 0039 - आधुनिक नेता कठपुतली के समान है: Difference between revisions

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तो युधिष्ठिर की तरह एक आदर्श राजा, वह न केवल भूमि पर शासन करते थे, लेकिन ग्रहों पर, समुद्र पर। यह आदर्श है। (पढने:) " आधुनिक अंग्रेजी कानून ज्येष्ठाधिकार का, या जेठा द्वारा विरासत का कानून, उन दिनों में प्रचलित था जब महाराजा युधिष्ठिर पृथ्वी और समुद्र पर शासन करते थे। मतलब है समुद्र सहित पूरा ग्रह। (पढ़ने) उन दिनों हस्तिनापुर के राजा, नई दिल्ली का अब भाग, समुद्र सहित दुनिया के बादशाह थे, महाराजा परिक्शित् के समय तक , महाराजा युधिष्ठिर का पोता। उनके छोटे भाई, उनके मंत्री और राज्य के कमांडरों के रूप में अभिनय कर रहे थे, और राजा के धार्मिक भाइयों के बीच पूर्ण सहयोग था। महाराज युधिष्ठिर आदर्श राजा थे या भगवान श्री कृष्ण के प्रतिनिधि थे ... " राजा को प्रतिनिधि होना चाहिए कृष्ण का। "... पृथ्वी पर राज करने के लिए अौर वह राजा इंद्र से तुलनीय थे, स्वर्गीय ग्रह के प्रतिनिधि शासक। इंद्र,चंद्र, सूर्य, वरुण, वायु, आदि जैसे देवताओं ब्रह्मांड के विभिन्न ग्रहों के प्रतिनिधि राजा हैं। और इसी प्रकार महाराजा युधिष्ठिर भी उनमें से एक थे, पृथ्वी पर राज कर रहे थे। महाराजा युधिष्ठिर एक आम नामालूम राजनीतिक नेता नहीं थे इस आधुनिक लोकतंत्र के। महाराजा युधिष्ठिर को अचूक भगवान अौर भीष्मदेव् ने निर्देश दिया था, और इसलिए उन्हे पूर्णता में सब कुछ का पूरा ज्ञान था। राज्य की आधुनिक निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख सिर्फ एक कठपुतली की तरह हैं क्योंकि उसके पास कोई महान ताकत नहि है, अगर वह महाराजा युधिष्ठिर की तरह प्रबुद्ध है, तो भी, वह कुछ नहिं कर सकता है अपनी मंगल-कामना से भी, खुद की वैधानिक स्थिति के कारण। इसलिए, कई राज्य पृथ्वी पर झगड़ा कर रहे हैं वैचारिक मतभेद या अन्य स्वार्थ के कारण। लेकिन महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक राजा की अपने खुद की कोई विचारधारा नहीं थी। उन्हें केवल अचूक प्रभु और भगवान के प्रतिनिधि की शिक्षा का पालन करना था, और अधिकृत एजेंट, भीष्मदेव यह शास्त्र में निर्देश दिए है कि हमें एक महान अधिकारी का अनुसरन् करना चाहिए या अचूक प्रभु का, किसि भी निजी मकसद और विनिर्मित विचारधारा बिना। इसलिए महाराजा युधिष्ठिर पूरी दुनिया पर राज कर सके, समुद्र सहित, क्योंकि उन्के सिद्धांत अचूक थे और हर किसी पर सार्वभौमिक लागू थे। अगर एक दुनिया राज्य की अवधारणा को पूरा करना है तो हमें अचूक अधिकारी का पालन करना होगा। एक अपूर्ण इंसान हर किसी के लिए स्वीकार्य एक विचारधारा नहीं बना सकता। केवल सही और अचूक व्यक्ति ही कार्यक्रम बना सकता है जो हर जगह पर लागू होता है और दुनिया में सभी के द्वारा अनुसरण किया जा सकता है। एक व्यक्ति ही राज करता है, कोइ अवैयक्तिक सरकार नही। अगर व्यक्ति सही है, तो सरकार सही है। अगर एक व्यक्ति मूर्ख है, तो सरकार एक मूर्ख स्वर्ग है। यही प्रकृति का नियम है। तो कई कहानियाँ हैं अपूर्ण राजाओं या कार्यकारी प्रमुखों की। इसलिए, कार्यकारी प्रधान, महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक प्रशिक्षित व्यक्ति होना चाहिए, और उसेके पास दुनिया पर राज करने के लिए पूर्ण निरंकुश शक्ति होनी चाहिए एक दुनिया राज्य की अवधारणा केवल महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक आदर्श राजा के शासन में आकार ले सकता है। दुनिया उन दिनों में खुश थी क्योंकि दुनिया पर शासन करने के लिए महाराजा युधिष्ठिर जैसे राजा थे। " इस राजा को महाराजा युधिष्ठिर का अनुसरण करना चाहिए और एक उदाहरण देना चिहिए की कैसे राजशाही एक आदर्श राज्य बन सकता है। वहाँ शास्त्रों में निर्देश है, और वह उसका अनुसरण करे, वे ऐसा कर सकता है। उसके पास शक्ति है। तो, क्योंकि वह एक सही राजा थे, कृष्ण के प्रतिनिधि थे, तो, कामाम् ववर्श परजन्यह (श्री भ १।१०।४)परजन्यह का मतलब है वर्षा। तो वर्षा जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति का बुनियादी सिद्धांत हे, वर्षा। इसलिए कृष्ण कहते हैं, भगवद गीता में, अन्नाद भवन्ति भूतानी पर्जन्याद् अन्न-सम्भवह (बी गी ३।१४)। अगर तुम लोगों को खुश करना चाहते हो, आदमी और जानवर दोनों ... पशु को भी हैं। वे भी ... ये बदमाश राज्य कार्यकारिणी, कभी कभी वे पुरुषों के लिए लाभ का एक शो करते हैं लेकिन पशुओं के लिए कोई लाभ नहीं। क्यों? क्यों यह अन्याय? वे भी इस देश में जन्म लेते हैं। वह भी जीव हैं। वे पशु हो सकते हैं। उनके पास कोई बुद्धिमत्ता नहि है। वे बुद्धिमान है, आदमी जितना नही, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि नियमित कसाईखाना उन्हें मारने के लिए बनाया जाना चाहिए? क्या यह न्याय है? न केवल ये, पर कोइ भी , अगर वह राज्य में आता है, उस राजा को उसे आश्रय देना चाहिए। यह भेदभव क्यों? कोइ भी आश्रय लेता है, "सर, मैं आपके राज्य में रहना चाहते हैं", तो उसे सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए। ऐसा क्यों, "नहीं, नहीं, तुम नहीं आ सकते। आप अमेरिकी हैं। आप भारतीय हैं। आप यह हैं"? नहीं। तो कई बातें हैं। वास्तव में अगर वह सिद्धांत का पालन करें, वैदिक सिद्धांत, तो आदर्श राजा एक अच्छा नेता हो जाएगा। और प्रकृति से मदद मिलेगी। इसलिए यह कहा जाता है, कि महाराज युधिष्ठिर के शासनकाल के दौरान कामाम् ववर्श पर्जन्यह सर्व काम दुघा मही (श्री भा १।१०।४) माही, पृथ्वी। तुम्हे पृथ्वी से सभी जरूरतें मिलती हैं। यह आसमान से गिरता नहि है। हाँ, यह बारिश के रूप में आसमान से गिरता है। लेकिन वे विज्ञान नहीं जानते कि कैसे चीजें अलग व्यवस्था से पृथ्वी से आ रहे हैं। कुछ शर्तों के तहत बारिश गिरता है और सूक्ष्म प्रभाव। तो फिर इतनी सारी चीजें उत्पादित की जाती है, बहुमूल्य पत्थर, मोती। उन्हे पता नहीं है यह चीज़ें कहॉ से अा रही है। तो इसलिए अगर राजा पवित्र है, तो प्रकृति भी सहयोग करेगी। और यदि राजा, सरकार अधर्मी है , तो प्रकृति सहयोग नहीं करेंगी।
तो युधिष्ठिर की तरह एक आदर्श राजा, वह न केवल भूमि पर शासन कर सकते हैं, समुद्र पर, सारे लोकों पर । यही आदर्श है । (पढते हुए:) "आधुनिक अंग्रेजी कानून ज्येष्ठाधिकार का, या ज्येष्ठ द्वारा विरासत का कानून, उन दिनों में प्रचलित था जब महाराजा युधिष्ठिर पृथ्वी और समुद्र पर शासन करते थे।" इसका मतलब है समुद्र सहित पूरा लोक । (पढ़ते हुए) "उन दिनों हस्तिनापुर के राजा, अब नई दिल्ली का भाग, समुद्र सहित दुनिया के बादशाह थे, महाराजा परिक्षित के समय तक, महाराजा युधिष्ठिर के पोते । उनके छोटे भाई, उनके मंत्री और राज्य के कमांडरों के रूप में कार्य कर रहे थे, और राजा के धार्मिक भाइयों के बीच पूर्ण सहयोग था । महाराज युधिष्ठिर आदर्श राजा थे या भगवान श्री कृष्ण के प्रतिनिधि थे... " राजा को प्रतिनिधि होना चाहिए कृष्ण का । "... पृथ्वी पर राज करने के लिए अौर वह राजा इंद्र से तुलनीय थे, स्वर्गीय ग्रह के प्रतिनिधि शासक । इंद्र, चंद्र, सूर्य, वरुण, वायु, आदि जैसे देवता ब्रह्मांड के विभिन्न लोकों के प्रतिनिधि राजा हैं । और इसी प्रकार महाराजा युधिष्ठिर भी उनमें से एक थे, पृथ्वी पर राज कर रहे थे ।
 
महाराजा युधिष्ठिर एक आम अज्ञात राजनीतिक नेता नहीं थे इस आधुनिक लोकतंत्र के । महाराजा युधिष्ठिर को भीष्मदेव् अौर अच्युत भगवान ने निर्देश दिया था, और इसलिए उन्हे पूर्णता में हर चीज़ का पूर्ण ज्ञान था । राज्य की आधुनिक निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख सिर्फ एक कठपुतली की तरह है क्योंकि उसके पास कोई महान ताकत नहीं है, अगर वह महाराजा युधिष्ठिर की तरह प्रबुद्ध है, तो भी, वह कुछ नहीं कर सकता है अपनी मंगल-कामना से भी, खुद की स्वाभाविक स्थिति के कारण । इसलिए, कई राज्य पृथ्वी पर झगड़ा कर रहे हैं वैचारिक मतभेद या अन्य स्वार्थ के कारण । लेकिन महाराजा युधिष्ठिर के जैसे एक राजा की अपने खुद की कोई विचारधारा नहीं थी । उन्हें केवल अच्युत भगवान और भगवान के प्रतिनिधि के निर्देश का पालन करना था, और अधिकृत प्रतिनिधि, भीष्मदेव का । यह शास्त्र में निर्देश दिया गया है कि हमें एक महान अधिकारी का अनुसरण करना चाहिए या अच्युत भगवान का, किसी भी निजी मकसद और विनिर्मित विचारधारा के बिना । इसलिए महाराजा युधिष्ठिर पूरी दुनिया पर राज कर सके, समुद्र सहित, क्योंकि उन्के सिद्धांत अच्युत थे और हर किसी पर एक समान लागू थे ।
 
अगर एक संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा को पूरा करना है तो हमें अच्युत अधिकारी का अनुरसण करना होगा । एक अपूर्ण मनुष्य हर किसी के लिए स्वीकार्य एक विचारधारा नहीं बना सकता । केवल पूर्ण और अच्युत व्यक्ति ही एसा कार्यक्रम बना सकता है जो हर जगह पर लागू होता है और दुनिया में सभी के द्वारा अनुसरण किया जा सकता है । एक व्यक्ति ही राज करता है, कोइ अवैयक्तिक सरकार नही । अगर व्यक्ति पूर्ण है, तो सरकार पूर्ण है । अगर एक व्यक्ति मूर्ख है, तो सरकार एक काल्पनिक स्वर्ग है । यही प्रकृति का नियम है । कई कहानियाँ हैं अपूर्ण राजाओं या कार्यकारी प्रमुखों की । इसलिए, कार्यकारी प्रधान, महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक प्रशिक्षित व्यक्ति होना चाहिए, और उसके पास दुनिया पर राज करने के लिए पूर्ण निरंकुश शक्ति होनी चाहिए एक संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा केवल महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक आदर्श राजा के शासन में आकार ले सकता है । दुनिया उन दिनों में सुखी थी क्योंकि दुनिया पर शासन करने के लिए महाराजा युधिष्ठिर जैसे राजा थे ।" (श्रीमद भागवतम १.१०.३) इस राजा को महाराजा युधिष्ठिर का अनुसरण करना चाहिए और एक उदाहरण देना चिहिए की कैसे राजशाही एक आदर्श राज्य बन सकता है । शास्त्रों में निर्देश है, और अगर वह उसका अनुसरण करे, वह ऐसा कर सकता है ।
 
उसके पास शक्ति है । तो, क्योंकि वह एक पूर्ण राजा थे, कृष्ण के प्रतिनिधि थे, अतएव, कामं ववर्श पर्जन्य:  ([[Vanisource:SB 1.10.3|श्रीमद भागवतम १.१०.४]] पर्जन्य: का मतलब है वर्षा । तो वर्षा जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति का बुनियादी सिद्धांत हे, वर्षा । इसलिए कृष्ण कहते हैं, भगवद्-गीता में, अन्नाद् भवन्ति भूतानी पर्जन्याद् अन्न-सम्भव:  ([[HI/BG 3.14|भ गी ३.१४]]) । अगर तुम लोगों को खुश करना चाहते हो, आदमी और पशु दोनों ... पशु भी हैं ।  वे भी... ये धूर्त राज्य कार्यकारिणी, कभी कभी वे दिखावा करते हैं कि वे मनुष्यों का लाभ कर रहे हैं लेकिन पशुओं के लिए कोई लाभ नहीं । क्यों ? क्यों यह अन्याय ? वे भी इस देश में जन्म लेते हैं ।  वे भी जीव हैं । वे पशु हो सकते हैं । उनके पास कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । वे बुद्धिमान हैं, आदमी जितना नहीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि नियमित कसाईखाना उन्हें मारने के लिए बनाया जाना चाहिए ? क्या यह न्याय है ? इतना ही नहीं, पर कोइ भी, अगर वह राज्य में आता है, उस राजा को उसे आश्रय देना चाहिए । यह भेदभाव क्यों ? कोइ भी आश्रय लेता है, "श्रीमान, मैं आपके राज्य में रहना चाहता हूं," तो उसे सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए ।
 
ऐसा क्यों, "नहीं, नहीं, तुम नहीं आ सकते । तुम अमेरिकी हो । तुम भारतीय हो । तुम यह हो ?" नहीं । तो कई बातें हैं । वास्तव में अगर वे सिद्धांत का पालन करें, वैदिक सिद्धांत, तो आदर्श राजा एक अच्छा नेता हो जाएगा । और प्रकृति से मदद मिलेगी । इस,लिए यह कहा जाता है, कि महाराजा युधिष्ठिर के शासनकाल के दौरान कामं ववर्ष पर्जन्य: सर्व काम दुघा मही ([[Vanisource:SB 1.10.3|श्रीमद भागवतम १.१०.४]] । मही, पृथ्वी । तुम्हे पृथ्वी से सभी जरूरतें मिलती हैं । यह आसमान से गिरता नहीं है । हाँ, यह वर्षा के रूप में आसमान से गिरती है । लेकिन वे विज्ञान को नहीं जानते कि कैसे चीजें अलग व्यवस्था से पृथ्वी से आ रही हैं । कुछ शर्तों के तहत वर्षा गिरती है और सूक्ष्म प्रभाव । तो फिर इतनी सारी चीजें उत्पादित की जाती है, बहुमूल्य पत्थर, मोती । उन्हे पता नहीं है कि यह चीज़ें कहॉ से अा रही हैं । तो इसलिए, अगर राजा पवित्र है, तो उसकी सहायता के लिए प्रकृति भी सहयोग करती है । और राजा, अगर सरकार अधर्मी है , तो प्रकृति सहयोग नहीं करेंगी ।
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Latest revision as of 18:01, 17 September 2020



Lecture on SB 1.10.3-4 -- Tehran, March 13, 1975

तो युधिष्ठिर की तरह एक आदर्श राजा, वह न केवल भूमि पर शासन कर सकते हैं, समुद्र पर, सारे लोकों पर । यही आदर्श है । (पढते हुए:) "आधुनिक अंग्रेजी कानून ज्येष्ठाधिकार का, या ज्येष्ठ द्वारा विरासत का कानून, उन दिनों में प्रचलित था जब महाराजा युधिष्ठिर पृथ्वी और समुद्र पर शासन करते थे।" इसका मतलब है समुद्र सहित पूरा लोक । (पढ़ते हुए) "उन दिनों हस्तिनापुर के राजा, अब नई दिल्ली का भाग, समुद्र सहित दुनिया के बादशाह थे, महाराजा परिक्षित के समय तक, महाराजा युधिष्ठिर के पोते । उनके छोटे भाई, उनके मंत्री और राज्य के कमांडरों के रूप में कार्य कर रहे थे, और राजा के धार्मिक भाइयों के बीच पूर्ण सहयोग था । महाराज युधिष्ठिर आदर्श राजा थे या भगवान श्री कृष्ण के प्रतिनिधि थे... " राजा को प्रतिनिधि होना चाहिए कृष्ण का । "... पृथ्वी पर राज करने के लिए अौर वह राजा इंद्र से तुलनीय थे, स्वर्गीय ग्रह के प्रतिनिधि शासक । इंद्र, चंद्र, सूर्य, वरुण, वायु, आदि जैसे देवता ब्रह्मांड के विभिन्न लोकों के प्रतिनिधि राजा हैं । और इसी प्रकार महाराजा युधिष्ठिर भी उनमें से एक थे, पृथ्वी पर राज कर रहे थे ।

महाराजा युधिष्ठिर एक आम अज्ञात राजनीतिक नेता नहीं थे इस आधुनिक लोकतंत्र के । महाराजा युधिष्ठिर को भीष्मदेव् अौर अच्युत भगवान ने निर्देश दिया था, और इसलिए उन्हे पूर्णता में हर चीज़ का पूर्ण ज्ञान था । राज्य की आधुनिक निर्वाचित कार्यकारी प्रमुख सिर्फ एक कठपुतली की तरह है क्योंकि उसके पास कोई महान ताकत नहीं है, अगर वह महाराजा युधिष्ठिर की तरह प्रबुद्ध है, तो भी, वह कुछ नहीं कर सकता है अपनी मंगल-कामना से भी, खुद की स्वाभाविक स्थिति के कारण । इसलिए, कई राज्य पृथ्वी पर झगड़ा कर रहे हैं वैचारिक मतभेद या अन्य स्वार्थ के कारण । लेकिन महाराजा युधिष्ठिर के जैसे एक राजा की अपने खुद की कोई विचारधारा नहीं थी । उन्हें केवल अच्युत भगवान और भगवान के प्रतिनिधि के निर्देश का पालन करना था, और अधिकृत प्रतिनिधि, भीष्मदेव का । यह शास्त्र में निर्देश दिया गया है कि हमें एक महान अधिकारी का अनुसरण करना चाहिए या अच्युत भगवान का, किसी भी निजी मकसद और विनिर्मित विचारधारा के बिना । इसलिए महाराजा युधिष्ठिर पूरी दुनिया पर राज कर सके, समुद्र सहित, क्योंकि उन्के सिद्धांत अच्युत थे और हर किसी पर एक समान लागू थे ।

अगर एक संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा को पूरा करना है तो हमें अच्युत अधिकारी का अनुरसण करना होगा । एक अपूर्ण मनुष्य हर किसी के लिए स्वीकार्य एक विचारधारा नहीं बना सकता । केवल पूर्ण और अच्युत व्यक्ति ही एसा कार्यक्रम बना सकता है जो हर जगह पर लागू होता है और दुनिया में सभी के द्वारा अनुसरण किया जा सकता है । एक व्यक्ति ही राज करता है, कोइ अवैयक्तिक सरकार नही । अगर व्यक्ति पूर्ण है, तो सरकार पूर्ण है । अगर एक व्यक्ति मूर्ख है, तो सरकार एक काल्पनिक स्वर्ग है । यही प्रकृति का नियम है । कई कहानियाँ हैं अपूर्ण राजाओं या कार्यकारी प्रमुखों की । इसलिए, कार्यकारी प्रधान, महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक प्रशिक्षित व्यक्ति होना चाहिए, और उसके पास दुनिया पर राज करने के लिए पूर्ण निरंकुश शक्ति होनी चाहिए । एक संयुक्त राष्ट्र की अवधारणा केवल महाराजा युधिष्ठिर की तरह एक आदर्श राजा के शासन में आकार ले सकता है । दुनिया उन दिनों में सुखी थी क्योंकि दुनिया पर शासन करने के लिए महाराजा युधिष्ठिर जैसे राजा थे ।" (श्रीमद भागवतम १.१०.३) इस राजा को महाराजा युधिष्ठिर का अनुसरण करना चाहिए और एक उदाहरण देना चिहिए की कैसे राजशाही एक आदर्श राज्य बन सकता है । शास्त्रों में निर्देश है, और अगर वह उसका अनुसरण करे, वह ऐसा कर सकता है ।

उसके पास शक्ति है । तो, क्योंकि वह एक पूर्ण राजा थे, कृष्ण के प्रतिनिधि थे, अतएव, कामं ववर्श पर्जन्य: (श्रीमद भागवतम १.१०.४ । पर्जन्य: का मतलब है वर्षा । तो वर्षा जीवन की सभी आवश्यकताओं की आपूर्ति का बुनियादी सिद्धांत हे, वर्षा । इसलिए कृष्ण कहते हैं, भगवद्-गीता में, अन्नाद् भवन्ति भूतानी पर्जन्याद् अन्न-सम्भव: (भ गी ३.१४) । अगर तुम लोगों को खुश करना चाहते हो, आदमी और पशु दोनों ... पशु भी हैं । वे भी... ये धूर्त राज्य कार्यकारिणी, कभी कभी वे दिखावा करते हैं कि वे मनुष्यों का लाभ कर रहे हैं लेकिन पशुओं के लिए कोई लाभ नहीं । क्यों ? क्यों यह अन्याय ? वे भी इस देश में जन्म लेते हैं । वे भी जीव हैं । वे पशु हो सकते हैं । उनके पास कोई बुद्धिमत्ता नहीं है । वे बुद्धिमान हैं, आदमी जितना नहीं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि नियमित कसाईखाना उन्हें मारने के लिए बनाया जाना चाहिए ? क्या यह न्याय है ? इतना ही नहीं, पर कोइ भी, अगर वह राज्य में आता है, उस राजा को उसे आश्रय देना चाहिए । यह भेदभाव क्यों ? कोइ भी आश्रय लेता है, "श्रीमान, मैं आपके राज्य में रहना चाहता हूं," तो उसे सभी सुविधाएं दी जानी चाहिए ।

ऐसा क्यों, "नहीं, नहीं, तुम नहीं आ सकते । तुम अमेरिकी हो । तुम भारतीय हो । तुम यह हो ?" नहीं । तो कई बातें हैं । वास्तव में अगर वे सिद्धांत का पालन करें, वैदिक सिद्धांत, तो आदर्श राजा एक अच्छा नेता हो जाएगा । और प्रकृति से मदद मिलेगी । इस,लिए यह कहा जाता है, कि महाराजा युधिष्ठिर के शासनकाल के दौरान कामं ववर्ष पर्जन्य: सर्व काम दुघा मही (श्रीमद भागवतम १.१०.४ । मही, पृथ्वी । तुम्हे पृथ्वी से सभी जरूरतें मिलती हैं । यह आसमान से गिरता नहीं है । हाँ, यह वर्षा के रूप में आसमान से गिरती है । लेकिन वे विज्ञान को नहीं जानते कि कैसे चीजें अलग व्यवस्था से पृथ्वी से आ रही हैं । कुछ शर्तों के तहत वर्षा गिरती है और सूक्ष्म प्रभाव । तो फिर इतनी सारी चीजें उत्पादित की जाती है, बहुमूल्य पत्थर, मोती । उन्हे पता नहीं है कि यह चीज़ें कहॉ से अा रही हैं । तो इसलिए, अगर राजा पवित्र है, तो उसकी सहायता के लिए प्रकृति भी सहयोग करती है । और राजा, अगर सरकार अधर्मी है , तो प्रकृति सहयोग नहीं करेंगी ।