HI/Prabhupada 0040 - यहाँ एक परम पुरुष हैं



Lecture on BG 16.8 -- Tokyo, January 28, 1975

लाखों, करोड़ों और अरबों जीव हैं, और हर दिल में वे (भगवान) वहाँ बैठे हैं । सर्वस्य चाहं ह्रदि सन्निविष्टो मत्त: स्मृतिर्ज्ञानं अपोहनं च (भ गी १५.१५) । वे इस तरह से संचालन कर रहे हैं । तो अगर हम सोचते हैं कि वे हमारे जैसे एक नियंत्रक हैं, तो यह हमारी गलत धारणा है । वे नियंत्रक हैं । नियंत्रक तो है । असीमित ज्ञान और असीमित सहायकों के साथ, असीमित शक्तियाँ के साथ, वे संचालन कर रहे हैं । ये मायावादी, वे कल्पना भी नहीं कर सकते हैं कि कोई एक व्यक्ति इतना असीमित शक्तिशाली हो सकता है । इसलिए वे मायावादी हो जाते हैं । वे उसके बारे में सोच भी नहीं सकते हैं । मायावादी, वे कल्पना भी नहीं कर सकते हैं ... वे कल्पना करते हैं "जब कोई एक व्यक्ति है, वह मेरे जैसा एक व्यक्ति ही है । मैं ऐसा नहीं कर सकता । इसलिए वे भी ऐसा नहीं कर सकते हैं । " इसलिए वे मूढ हैं ।

अवजानन्ति मां मूढा: (भ गी ९.११) । वे अपनी तुलना कृष्ण के साथ करते हैं । वह एक व्यक्ति है, उसी प्रकार, कृष्ण एक व्यक्ति हैं । वह नहीं जानता है । वेद सूचित करते हैं कि "हालांकि वे व्यक्ति हैं, वे सभी असीमित व्यक्तियों का पोषण करते हैं ।" यह वे नहीं जानते हैं । एको यो बहुनां विदधाति कामान् । वह एक विलक्षण व्यक्ति, वे कई लाखों, कई लाखों, कई खरबों का पोषण करते हैं । हम सब, हर एक, हम व्यक्ति हैं । मैं व्यक्ति हूँ । तुम व्यक्ति हो । चींटी व्यक्ति है । बिल्ली व्यक्ति है । कुत्ता व्यक्ति है । और कीट व्यक्ति है । पेड़ व्यक्ति हैं । हर कोई व्यक्ति है । हर कोई व्यक्ति है । और एक अन्य व्यक्ति हैं । वे भगवान हैं, कृष्ण । वह एक व्यक्ति लाखों और अरबों किस्मों के व्यक्तियों का पोषण कर रहा है । यह वैदिक आज्ञा है .. एको यो बहुनां विदधाति कामान्, नित्यो नित्यानां चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । यह जानकारी है ।

तो कृष्ण भी भगवद्-गीता में कहते हैं, अहं सर्वस्य प्रभवो मत्त: सर्वं प्रवर्तते इति मत्वा भजन्ते मां (भ गी १०.८) इसलिए एक भक्त, जब वह समझता है अच्छी तरह से कि "यहां एक परम पुरुष हैं, जो नेता हैं, जो नियंत्रक हैं, जो हर चीज़ का अनुरक्षक हैं," तब वह उनकी शरण ग्रहण करता है और उनका भक्त बन जाता है ।