HI/Prabhupada 0043 - भगवद् गीता मुख्य सिद्धांत है: Difference between revisions
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:असंशयम समग्रम माम यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु | |||
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यह श्लोक भगवद्-गीता से है, कैसे कृष्ण भावनामृत या भगवद भावनामृतको जागृत किया जाये । भगवद्-गीता, आपमें से कई लोगोंने भगवद्-गीताका नाम सुना होगा । यह पूरे विश्वमें अत्यधिक पढ़े जाने वाले ज्ञानवर्धक पुस्तकोंमेसे एक है । व्यावहारिक रूपसे प्रत्येक देशमें भगवद्-गीता के कई संस्करण हैं । अतएव भगवद्-गीता हमारे कृष्ण भावनामृत आन्दोलनका मुख्य सिद्धान्त है । जो हम कृष्ण भावनामृतके रूपमें फैला रहे हैं, वह भगवद्-गीता ही है । ऐसा नहीं है की हमने कुछ निर्माण किया है । यह कृष्ण भावनामृत संसार सृजनके समय से चला आ रहा है, किन्तु कमसे कम पिछले पांच हज़ार वर्षोंसे, जब कृष्ण इस पृथ्वी पर उपस्थित थे, उन्होंने स्वयम कृष्ण भावनामृत का उपदेश दिया, और वह उपदेश जो वे पीछे छोड़ गए, वही भगवद्-गीता है । दुर्भाग्यवश, इस भगवद्-गीता का तथाकथित पंडितों और स्वामियोंने दुष्प्रयोग किया है । निराकारवादी वर्ग, या नास्तिक वर्ग के लोग, उन्होंने भगवद् गीताका अपने अनुसार अर्थघटन कीया है । | |||
जब मैं १९६६ में अमेरिका में था, तब एक अमरीकी महिलाने मुझसे कहा कि मैं सिफारिश करूं किसी एक भगवद्-गीता के अंग्रेजी संस्करणकी जिसे वह पढ़ सके ।किन्तु ईमानदारी से कहूं तो मैं एक भी ऐसे संस्करणके बारेमें सिफारिश नहीं कर सका, उनके मनगढ़ंत अनुवाद के कारण । इस बातने मुझे भगवद्-गीता यथारूप लिखनेकी प्रेरणा दी । और यह भगवद्-गीता यथारूपका संस्करण, मैकमिलन नामक सबसे बड़ी प्रकाशक कंपनीने किया है, सबसे बड़े प्रकाशक दुनिया भरमें । और हम बहुत सफल हुए हैं । हमने १९६८ में भगवद्-गीता यथारूपका एक छोटा संस्करण प्रकाशित किया था । और इसकी बहुत बिक्री हुई । और मैकमिलनके ट्रेड प्रबंधकने हमे बताया कि हमारी किताबें अधिक मात्रामें बिक रही हैं और दूसरे किताबोंकी बिक्री कम हो रही है । और हाल ही में, १९७२ में हमने भगवद् -गीता यथारूपका पूर्ण संस्करण प्रकाशित किया है । और मैकमिलनने पहलेसे ५०००० कॉपी प्रकाशित की थी, किन्तु वह तीन महीनेमें ही बिक गई और अब वह उसके दूसरे संस्करणकी व्यवस्था कर रहे हैं । | |||
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Latest revision as of 12:33, 5 October 2018
Lecture on BG 7.1 -- Sydney, February 16, 1973
प्रभुपाद:
- योगम युञ्जन मदाश्रय:
- असंशयम समग्रम माम यथा ज्ञास्यसि तच्छृणु
- (भ गी ७.१ )
यह श्लोक भगवद्-गीता से है, कैसे कृष्ण भावनामृत या भगवद भावनामृतको जागृत किया जाये । भगवद्-गीता, आपमें से कई लोगोंने भगवद्-गीताका नाम सुना होगा । यह पूरे विश्वमें अत्यधिक पढ़े जाने वाले ज्ञानवर्धक पुस्तकोंमेसे एक है । व्यावहारिक रूपसे प्रत्येक देशमें भगवद्-गीता के कई संस्करण हैं । अतएव भगवद्-गीता हमारे कृष्ण भावनामृत आन्दोलनका मुख्य सिद्धान्त है । जो हम कृष्ण भावनामृतके रूपमें फैला रहे हैं, वह भगवद्-गीता ही है । ऐसा नहीं है की हमने कुछ निर्माण किया है । यह कृष्ण भावनामृत संसार सृजनके समय से चला आ रहा है, किन्तु कमसे कम पिछले पांच हज़ार वर्षोंसे, जब कृष्ण इस पृथ्वी पर उपस्थित थे, उन्होंने स्वयम कृष्ण भावनामृत का उपदेश दिया, और वह उपदेश जो वे पीछे छोड़ गए, वही भगवद्-गीता है । दुर्भाग्यवश, इस भगवद्-गीता का तथाकथित पंडितों और स्वामियोंने दुष्प्रयोग किया है । निराकारवादी वर्ग, या नास्तिक वर्ग के लोग, उन्होंने भगवद् गीताका अपने अनुसार अर्थघटन कीया है ।
जब मैं १९६६ में अमेरिका में था, तब एक अमरीकी महिलाने मुझसे कहा कि मैं सिफारिश करूं किसी एक भगवद्-गीता के अंग्रेजी संस्करणकी जिसे वह पढ़ सके ।किन्तु ईमानदारी से कहूं तो मैं एक भी ऐसे संस्करणके बारेमें सिफारिश नहीं कर सका, उनके मनगढ़ंत अनुवाद के कारण । इस बातने मुझे भगवद्-गीता यथारूप लिखनेकी प्रेरणा दी । और यह भगवद्-गीता यथारूपका संस्करण, मैकमिलन नामक सबसे बड़ी प्रकाशक कंपनीने किया है, सबसे बड़े प्रकाशक दुनिया भरमें । और हम बहुत सफल हुए हैं । हमने १९६८ में भगवद्-गीता यथारूपका एक छोटा संस्करण प्रकाशित किया था । और इसकी बहुत बिक्री हुई । और मैकमिलनके ट्रेड प्रबंधकने हमे बताया कि हमारी किताबें अधिक मात्रामें बिक रही हैं और दूसरे किताबोंकी बिक्री कम हो रही है । और हाल ही में, १९७२ में हमने भगवद् -गीता यथारूपका पूर्ण संस्करण प्रकाशित किया है । और मैकमिलनने पहलेसे ५०००० कॉपी प्रकाशित की थी, किन्तु वह तीन महीनेमें ही बिक गई और अब वह उसके दूसरे संस्करणकी व्यवस्था कर रहे हैं ।