HI/Prabhupada 0084 - केवल कृष्ण का भक्त बनो: Difference between revisions

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कृष्ण से ज्ञान प्राप्त करना हमारा प्रस्ताव है परिशुद्ध पुरुष, श्रीभगवान् । हम शास्त्र को सवीकार करते है, जो की अचूक है. वहाँ कोई गलती नहीं है. जैसे कि, जब मैं गौशाला के पास चल रहा था ढेर सारा, वहाँ ढेर सारा गोबर था। यह देखकर, मैं अपने शिष्यों को समझा रहा था, अगर जानवर, मत कहने का मतलब है, अगर यहाँ अादमी का मल का ढेर होता तो यहाँ कोई नहीं अाता। यहाँ कोई नहीं अाता। लेकिन यह गाय का गोवर है। इतना सारा गाय का गोबर। फिर भी, हम यहां से होके खुशी से जाते हैं. और वेदों में कहा जाता है "गोबर शुद्ध है."इसे शास्त्र कहा जाता है। अगर आप कहते है, "यह कैसे हो सकता हैं? यह पशु का मल है." लेकिन वेदौं, वे ... उनका ज्ञान एकदम सही है, यहां तक ​​कि बहस में हम इतना तक भी साबित नही कर सकतै है, पशु मल कैसे शुद्ध हो जाता है। लेकिन वह शुद्ध है. इस से हमे पता चलता है कि वैदिक ज्ञान परिपूर्ण है. और अगर हम वेदों से ज्ञान लेते है , हम जांच या शोध के लिए बहुत समय बचाते है हम अनुसंधान के बहुत ज्यादा शौकीन हैं। वेदों में सब कुछ है। तुम अपने समय बर्बाद करते कयोै करते हो? यह वैदिक ज्ञान है। वैदिक ज्ञान का मतलब जो श्रीभगवान के द्वारा बोला गया है। यही वैदिक ज्ञान है. अपउरुषेय। यह मेरे जैसे आम आदमी से बोला नहीं जाता। अगर हम वैदिक ज्ञान को स्वीकार करते हैं, अजर स्वीकार करते हैं, जैसे कृष्ण ने बोला है, या उनके प्रतिनिधि ... क्योंकि उनके प्रतिनिधि कभी अैसे कुछ नही बोलते जो कृष्ण नही बोलते। इसलिए वह प्रतिनिधि है. कृष्ण भावनाभावित लोग हि कृष्ण के प्रतिनिधि है. क्योंकि एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कभी बकवास नही बोलेगा, सिर्फ कृष्ण के बारे में बोलगा। फर्क यही है। अन्य बकवास, बदमाश, वे कृष्ण से अलग बात करते है. कृष्ण कहता है, मन-मना भावा मद भकतो मद-याजी माम् नमसहुरु। (गीता 18.65), लेकिन बदमाश विद्वान कहता है "नहीं, यह कृष्ण के लिए नहीं है. यह कुछ और ही है." ये कहां से समझा? कृष्ण सीधा कहते हैं, कृष्ण कहता है, मन-मना भावा मद भकतो मद-याजी माम् नमसहुरु। (गीता 18.65), तो तुम क्यों विचलित करते हो? क्यों कुछ और कहते हो: "यह कृष्ण के अंदर कुछ है"? अापको यह मिल जाएगा ... मैं नाम नहीं नही देना चाहता. इतने सारे बदमाश विद्वानों हैं. वे उसी तरह समझते है. भगवद गीता भारत का एक महान विज्ञान का किताब है, लेकिन बेपरवाह इतने सारे लोगों खो रहे हैं. बड़ा... इन बदमाश विद्वानों के कारण, तथाकथित विद्वानों । वे बस झूठा अर्थ निकालते है. इसलिए हम भगवद गीता प्रस्तुत कर रहे हैं. कृष्ण कहता है, सर्व-धर्मान परितयजय माम एकम् शरणम् व्रज। (गीता 18.66), हम इस पंथ का प्रचार कर रहे हैं, कहते हैं: "कृष्ण भावनभावित रहिए"बस कृष्ण का भक्त बन जाओ. अपने सम्मान को अरपित करो... " तुम्हे हर एक आदमी को सम्मान देना पढ़ता है. तुम्हे हर एक आदमी को सम्मान देना पढ़ता है. यह एक है ... अगर तुम्हे अच्छा स्थान मिल जाए , तुम्हे फिर भी एक आदमी को सम्मान देना पढ़ता है. अगर आप मुख्यमंत्री, एक देश का मुख्यमंत्री बन जाओगे तुम्हे अपने देश के लोगों को बोलना पढ़ेगा "मुझे वोट दो" कृपा कर के. मैं आपको बहुत सुवहिदाओं दूँगा तुम्हे सम्मान देना पढ़ेगा. यह एक तथ्य हे. तुम एक बढ़े आदमी हो सकते हो. लेकिन फिर बी तुम्हे सम्मान देना पड़ेगा. तुम्हे एक गुरु को स्वीकार करना पढ़ेगा. तुम कृष्ण को स्वीकार करते? परम गुरु. क्यों नही कर सकते? नही. मैं कृष्ण के अलबा हज़ारो गुरुओं को स्वीकार करूँगा. यह हमारा दर्शन है. नही. मैं कृष्ण के अलबा हज़ारो अध्यापकों को स्वीकार करूँगा. यह हमारा दर्शन है. तो आप खुश कैसे हो सकते हो? आपको यह खुशी भगवान को स्वीकर करके ही मिल सकता है. भोक्ताराम यज्ञ तपसम सर्वा लोक महेश्वरम सुहरडम सर्व भूतानाम ग्यातवा मां शाणतीम र्रिचाति (गीता 5.29) यही शांति का प्रक्रिया है. कृष्ण कहता है, की तुम्हे स्वीकार करना पढ़ेगा की तुम भोगी नही हो. सिर्फ़ मे भोगी हूँ. तुम भोगी नही हो. आप मुख्यमनत्री या मंत्री हो सकते हो, तुम कोई भी हो सकते हो. लेकिन तुम भोगी नही हो. कृष्ण ही भोगी है. तुम्हे यह जानना चाहिए. जैसे आपके... मेरे पास एक चित्ति आया था. मैंएक आंध्रा राहत समिति के चित्ति को उत्तर लिख रहा था. अगर कृष्ण खुश नही है तो राहत समिति क्या कर सकता हैं? बस पैसे ला सकते हैं? नही. यह नही हो सकता. अभी बारिश हो रहा है. अभी कुछ लाभ होगा. यह बारिश भगवान के इच्छा से होगा. तुम्हारे पैसे ढूड़ने के शक्ति से नही.
कृष्ण से ज्ञान प्राप्त करना हमारा प्रस्ताव है, पूर्ण पुरुष, पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीभगवान् । हम शास्त्र को स्वीकार करते हैं, जो की अचूक है कोई गलती नहीं है जैसे कि, जब मैं गौशाला के पास चल रहा था, ढेर सारा, वहाँ ढेर सारा गोबर था । तो मैं अपने शिष्यों को समझा रहा था, अगर जानवर, मेरे कहने का मतलब है, अगर यहाँ आदमी का मल का ढेर होता, तो यहाँ कोई नहीं आता । यहाँ कोई नहीं आता। लेकिन गाय का गोबर है, इतना सारा गाय का गोबर है, फिर भी, हम उसके पास से गुज़रने से प्रसन्नता महसूस करते हैं और वेदों में कहा जाता है "गोबर शुद्ध है " इसे शास्त्र कहा जाता है । अगर तुम बहस करते हो, "यह कैसे हो सकता है ? यह पशु का मल है " लेकिन वेद, वे... क्योंकि ज्ञान पूर्ण है, यहां तक ​​कि बहस में भी हम साबित नहीं कर सकते हैं कि पशु मल कैसे शुद्ध हो जाता है, लेकिन वह शुद्ध है ।  इस लिए वैदिक ज्ञान पूर्ण है
 
और अगर हम वेदों से ज्ञान लेते हैं , हम जांच या शोध न करने के कारण बहुत समय बचाते हैं । हम अनुसंधान के बहुत ज्यादा शौकीन हैं । वेदों में सब कुछ है । तुम अपना समय बर्बाद क्यों करते हो ? तो यही वैदिक ज्ञान है । वैदिक ज्ञान का अर्थ है जो भगवान के द्वारा बोला गया है । यही वैदिक ज्ञान है । अपौरुषेय । यह मेरे जैसे आम आदमी द्वारा नहीं बोला गया है । तो अगर हम वैदिक ज्ञान को स्वीकार करते हैं, अगर स्वीकार करते हैं, जैसे कृष्ण ने कहा है, या उनके प्रतिनिधि नें ... क्योंकि उनके प्रतिनिधि कभी ऐसे कुछ नही कहते हैं जो कृष्ण नहीं कहते हैं । इसलिए वह प्रतिनिधि है कृष्ण भावनाभावित लोग कृष्ण के प्रतिनिधि हैं क्योंकि एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कभी बकवास नही करेगा, कृष्ण के द्वारा कही गई बात से अलग । फर्क यही है । अन्य बकवास, धूर्त, वे कृष्ण द्वारा कही गई बात से अलग बात करते हैं ।
 
कृष्ण कहते हैं, मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । ([[HI/BG 18.65|भ गी १८.६५]]), लेकिन धूर्त विद्वान कहता है "नहीं, यह कृष्ण के लिए नहीं है यह कुछ और ही है " एसा कहां से समझा ? कृष्ण सीधा कहते हैं, मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु ([[HI/BG 18.65|भ गी १८.६५]]) तो तुम क्यों विचलित होते हो ? क्यों तुम कुछ और कहते हो: "यह कृष्ण के भीतर कुछ है "? तुम पाओगे ... मैं नाम नहीं लेना चाहता इतने सारे धूर्त विद्वान हैं वे उसी तरह व्याख्या करते हैं । इसलिए हालांकि भगवदगीता भारत का एक महान विज्ञान का पुस्तक है, इतने सारे लोग पथभ्रष्ट हो गए हैं । बड़े.....इन धूर्त विद्वानों के कारण, तथाकथित विद्वान क्योंकि वे केवल गलत अर्थ निकालते हैं ।
 
इसलिए हम भगवद्गीता यथारूप प्रस्तुत कर रहे हैं कृष्ण कहते हैं, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। ([[HI/BG 18.66|भ गी १८.६६]]) । हम कहते हैं, इस पंथ का प्रचार कर रहे हैं: "कृष्ण भावनभावित बनो केवल कृष्ण का भक्त बनो । नमन करो... " तुम्हे हर एक को सम्मान देना पडता है । तुम सर्वोच्च नहीं हो । तुम्हे किसी की चापलूसी करनी पडती है कुछ काम कराने के लिए । यह एक है... चाहे तुम अच्छे पद पर क्यों न हो, तुम्हे चापलूसी तो करनी पडती है अगर तुम राष्ट्र-पति क्यों न बन जाओ, देश के राष्ट्र-पति, तुम्हे अपने देश के लोगों की चापलूसी करनी पडेगी: "कृपया मुझे वोट दें । कृपया, मैं आपको बहुत सुविधाऍ दूँगा ।" तो तुम्हे चापलूसी करनी पडती है । यह एक तथ्य है । तुम एक बडे आदमी हो सकते हो लेकिन तुम्हे किसी न किसी की चापलूसी करनी पडती है । तुम्हे एक मालिक को स्वीकार करना पडेगा । क्यों न कृष्ण को स्वीकार करें, परम मालिक ? क्या कठिनाई है ?  
 
"नहीं । मैं कृष्ण के अलवा हज़ारो मालिकों को स्वीकार करूँगा ।" यह हमारा विचार है
 
"मैं कृष्ण के अलवा हज़ारो अध्यापकों को स्वीकार करूँगा यह मेरा दृढ़ संकल्प है ।"
 
तो तुम सुखी कैसे रह सकते हो ? कृष्ण को स्वीकर करने से ही सुख प्राप्त होगा ।
:भोक्तारं यज्ञतपसां
:सर्वलोकमहेश्वरम्
:सुह्रदं सर्वभूतानां
:ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति
:([[HI/BG 5.29|भ गी ५.२९]])  
 
यही शांति की प्रक्रिया है कृष्ण कहते हैं कि तुम यह स्वीकार करो "मैं भोक्ता हूं । तुम भोक्ता नहीं हो ।" तुम भोक्ता नहीं हो तुम राष्ट्र-पति हो सकते हो या तुम सचिव हो सकते हो, या तुम जो कुछ भी हो लेकिन तुम भोक्ता नहीं हो । भोक्ता कृष्ण हैं । हमें यह समझना होगा । जैसे तुम्हारे... मैं आ रहा हूं, आंध्रा राहत समिति की चिट्ठी का उत्तर लिख रहा हूं । अगर कृष्ण संतुष्ट नहीं हैं तो राहत समिति क्या कर सकती है ? केवल पैसे इकट्ठा करने से ? नहीं, यह सम्भव नहीं है । अभी वर्षा हो रही है अभी तुम्हे कुछ लाभ होगा । लकिन यह वर्षा का होना कृष्ण पर निर्भर करता है, तुम्हारे पैसे इकट्ठा करने पर नहीं ।
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Latest revision as of 18:06, 17 September 2020



Lecture on BG 2.22 -- Hyderabad, November 26, 1972

कृष्ण से ज्ञान प्राप्त करना हमारा प्रस्ताव है, पूर्ण पुरुष, पूर्ण पुरुषोत्तम श्रीभगवान् । हम शास्त्र को स्वीकार करते हैं, जो की अचूक है । कोई गलती नहीं है । जैसे कि, जब मैं गौशाला के पास चल रहा था, ढेर सारा, वहाँ ढेर सारा गोबर था । तो मैं अपने शिष्यों को समझा रहा था, अगर जानवर, मेरे कहने का मतलब है, अगर यहाँ आदमी का मल का ढेर होता, तो यहाँ कोई नहीं आता । यहाँ कोई नहीं आता। लेकिन गाय का गोबर है, इतना सारा गाय का गोबर है, फिर भी, हम उसके पास से गुज़रने से प्रसन्नता महसूस करते हैं । और वेदों में कहा जाता है "गोबर शुद्ध है ।" इसे शास्त्र कहा जाता है । अगर तुम बहस करते हो, "यह कैसे हो सकता है ? यह पशु का मल है ।" लेकिन वेद, वे... क्योंकि ज्ञान पूर्ण है, यहां तक ​​कि बहस में भी हम साबित नहीं कर सकते हैं कि पशु मल कैसे शुद्ध हो जाता है, लेकिन वह शुद्ध है । इस लिए वैदिक ज्ञान पूर्ण है ।

और अगर हम वेदों से ज्ञान लेते हैं , हम जांच या शोध न करने के कारण बहुत समय बचाते हैं । हम अनुसंधान के बहुत ज्यादा शौकीन हैं । वेदों में सब कुछ है । तुम अपना समय बर्बाद क्यों करते हो ? तो यही वैदिक ज्ञान है । वैदिक ज्ञान का अर्थ है जो भगवान के द्वारा बोला गया है । यही वैदिक ज्ञान है । अपौरुषेय । यह मेरे जैसे आम आदमी द्वारा नहीं बोला गया है । तो अगर हम वैदिक ज्ञान को स्वीकार करते हैं, अगर स्वीकार करते हैं, जैसे कृष्ण ने कहा है, या उनके प्रतिनिधि नें ... क्योंकि उनके प्रतिनिधि कभी ऐसे कुछ नही कहते हैं जो कृष्ण नहीं कहते हैं । इसलिए वह प्रतिनिधि है । कृष्ण भावनाभावित लोग कृष्ण के प्रतिनिधि हैं क्योंकि एक कृष्ण भावनाभावित व्यक्ति कभी बकवास नही करेगा, कृष्ण के द्वारा कही गई बात से अलग । फर्क यही है । अन्य बकवास, धूर्त, वे कृष्ण द्वारा कही गई बात से अलग बात करते हैं ।

कृष्ण कहते हैं, मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु । (भ गी १८.६५), लेकिन धूर्त विद्वान कहता है "नहीं, यह कृष्ण के लिए नहीं है । यह कुछ और ही है ।" एसा कहां से समझा ? कृष्ण सीधा कहते हैं, मन्मना भव मद्भक्तो मद्याजी मां नमस्कुरु (भ गी १८.६५) । तो तुम क्यों विचलित होते हो ? क्यों तुम कुछ और कहते हो: "यह कृष्ण के भीतर कुछ है "? तुम पाओगे ... मैं नाम नहीं लेना चाहता । इतने सारे धूर्त विद्वान हैं । वे उसी तरह व्याख्या करते हैं । इसलिए हालांकि भगवदगीता भारत का एक महान विज्ञान का पुस्तक है, इतने सारे लोग पथभ्रष्ट हो गए हैं । बड़े.....इन धूर्त विद्वानों के कारण, तथाकथित विद्वान । क्योंकि वे केवल गलत अर्थ निकालते हैं ।

इसलिए हम भगवद्गीता यथारूप प्रस्तुत कर रहे हैं । कृष्ण कहते हैं, सर्वधर्मान्परित्यज्य मामेकं शरणं व्रज। (भ गी १८.६६) । हम कहते हैं, इस पंथ का प्रचार कर रहे हैं: "कृष्ण भावनभावित बनो । केवल कृष्ण का भक्त बनो । नमन करो... " तुम्हे हर एक को सम्मान देना पडता है । तुम सर्वोच्च नहीं हो । तुम्हे किसी की चापलूसी करनी पडती है कुछ काम कराने के लिए । यह एक है... चाहे तुम अच्छे पद पर क्यों न हो, तुम्हे चापलूसी तो करनी पडती है । अगर तुम राष्ट्र-पति क्यों न बन जाओ, देश के राष्ट्र-पति, तुम्हे अपने देश के लोगों की चापलूसी करनी पडेगी: "कृपया मुझे वोट दें । कृपया, मैं आपको बहुत सुविधाऍ दूँगा ।" तो तुम्हे चापलूसी करनी पडती है । यह एक तथ्य है । तुम एक बडे आदमी हो सकते हो । लेकिन तुम्हे किसी न किसी की चापलूसी करनी पडती है । तुम्हे एक मालिक को स्वीकार करना पडेगा । क्यों न कृष्ण को स्वीकार करें, परम मालिक ? क्या कठिनाई है ?

"नहीं । मैं कृष्ण के अलवा हज़ारो मालिकों को स्वीकार करूँगा ।" यह हमारा विचार है ।

"मैं कृष्ण के अलवा हज़ारो अध्यापकों को स्वीकार करूँगा । यह मेरा दृढ़ संकल्प है ।"

तो तुम सुखी कैसे रह सकते हो ? कृष्ण को स्वीकर करने से ही सुख प्राप्त होगा ।

भोक्तारं यज्ञतपसां
सर्वलोकमहेश्वरम्
सुह्रदं सर्वभूतानां
ज्ञात्वा मां शान्तिमृच्छति
(भ गी ५.२९)

यही शांति की प्रक्रिया है । कृष्ण कहते हैं कि तुम यह स्वीकार करो "मैं भोक्ता हूं । तुम भोक्ता नहीं हो ।" तुम भोक्ता नहीं हो । तुम राष्ट्र-पति हो सकते हो या तुम सचिव हो सकते हो, या तुम जो कुछ भी हो । लेकिन तुम भोक्ता नहीं हो । भोक्ता कृष्ण हैं । हमें यह समझना होगा । जैसे तुम्हारे... मैं आ रहा हूं, आंध्रा राहत समिति की चिट्ठी का उत्तर लिख रहा हूं । अगर कृष्ण संतुष्ट नहीं हैं तो राहत समिति क्या कर सकती है ? केवल पैसे इकट्ठा करने से ? नहीं, यह सम्भव नहीं है । अभी वर्षा हो रही है । अभी तुम्हे कुछ लाभ होगा । लकिन यह वर्षा का होना कृष्ण पर निर्भर करता है, तुम्हारे पैसे इकट्ठा करने पर नहीं ।