HI/Prabhupada 0096 - हमे व्यक्ति भागवत से अध्ययन करना चाहिए: Difference between revisions

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मैं अपने दिल में इतने गंदे चीज़ सोच रहा हौं "अमेरिकन, हिंदू, मुसलमान" तुम अपने दिल को साफ करो. ह्रदय अंतः स्तः आबद्रणी यह गंदे चीज़े मेरे दिल के अंदर है, और अगर हम अपने दिल को साफ करेंगे तो हम इस पद्नाम से मुक्त हो जाएँगे नाश्ता प्रायेशू अभद्रेशू नित्यं भगवाता सेवया ([[Vanisource:भगवातम 1.2.18|भगवातम 1.2.18]]) नाश्ता प्रायेशू. यह गंदे चीज़े साफ हो जाएँगे अगर हम नियमित रूप से श्रीमद् भगवातम या भगवद् गीता को सुने नित्यं भगवाता... और भगवाता मतलब किताब और आदमी भगवाता आदमी भगवाता हमारा गुरु है या कोई भी बढ़ा भक्त. बह भगवत है. महा भगवत तो भागवत सेवया का मतलब यह नही है बस भगवद् गीता और भगवातम को पढ़ो हमें इस भगवत इंसान से भी सीखना पढ़ेगा. इसका ज़रूरत है चैतन्य महाप्रभु ने सलाह दिया है भगवत परा गिया भगवाता स्‍थाने अगर तुम भगवत को सीखना चाहते हो, तो भगवत इंसान, जो की एक साधित इंसान है के पास जाओ पेशेवर के पास नही. यह तुम्हारा मदद नही करेगा पेशेवर - मंदिर जाओ, चर्च जाओ, और फिर वापिस अपने नारकिया जीवन मे जाओ. नही तुम बस यह भगवत इंसान के साथ सहयोगी रहो और उनसे यह ज्ञान पाओ - इसी किताब को सुन कृष्ण का प्रतिनिधि. जैसे कृष्ण कहता है, तत समसेना मे श्रीनू. मे श्रीनू. "मुझ से या मेरा प्रतिनिधि से सुनो. तभी तुम्हे लाभ मिलेगा" तो यह केंद्रों बस इसीलिए कोले जा रहे है, की इन पीधीत इंसानू क मौका मिले बस इस जिंदगी मे नही - हमेशा के लिए एई रुपए ब्राह्मंदा भ्रमिते कोना भाग्यवान जीवा गुरु कृष्ण कृपया पाया भक्ति लता बीज ([[Vanisource:चैतन्य चरितम्रित 19.151|चैतन्य चरितम्रित 19.151]]) यह हमारा कर्तव्य है. हमने इस कर्तव्या को कृष्ण के लिए लिया है कृष्ण खुद सीखने के लिए आता है. जैसे वह अपने श्रीमद् भगवातम छोड़के गये फिर वह अपने भक्तो को आम लोगों को समझने के लिए सौपे है. हम यह करने का कोशिश कर रहे है. हमे अपना कुछ नही बनाया है. सारा समान यहाँ है. हम बस चपरासी बन कर वितरण कर रहे है. बस यही है और हमारे पास कोई कातीनाई नही है. अगर हम भगवद् गीता, कृष्ण का उपदेश को ऐसे ही उपस्थित करें तो हमारा कर्तव्य पूरा हो गया हमें कुछ निर्माण करने का ज़रूरत नही है. ना ही हमारे पास कुछ बनाने का शक्ति ह देखें तो इतने लोग है जो बस अपने नये विचार और दर्शन निकलते जाते है. यह मदद नही करेगा. असली ज्ञान को लो
मैं यह सोच रहा हूँ, "अमरीकी, हिंदू, मुसलमान", ये सारी बातें मेरे हृदय की मैल है । तुम अपने हृदय को साफ़ करो । हृदय अंतः स्थ: अभद्राणि । यह गंदी बातें मेरे हृदय में हैं, तो अगर हम अपने हृदय को साफ़ करें, तो हम इन उपाधियों से मुक्त हो जाएँगे । नष्ट-प्रायेषु अभद्रेषु नित्यं भागवत-सेवया ([[Vanisource:SB 1.2.18|श्रीमद् भागवतम् १..१८]])। नष्ट-प्रायेषु । ये गंदी बातें साफ हो जाएँगी अगर हम नियमित रूप से श्रीमद् भागवतम् या भगवद्-गीता को सुनें । नित्यं भागवत... और भागवत का अर्थ है ग्रंथ और व्यक्ति भागवत । व्यक्ति भागवत आध्यात्मिक गुरु हैं । या कोई भी उत्तम भक्त । वह भागवत है, महा-भागवत, भागवत ।
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तो भागवत्-सेवया का अर्थ यह नहीं है केवल भगवद्-गीता और भागवतम् को पढ़ना, लेकिन हमें इसे व्यक्ति भागवत से भी सीखना होगा । इसकी ज़रूरत है चैतन्य महाप्रभु ने सलाह दी है, भागवत परा गिया भगवात स्‍थाने: "अगर तुम भागवत को सीखना चाहते हो, तो व्यक्ति भागवत के पास जाओ जो स्वरूपसिद्ध है |" पेशेवर के पास नहीं । यह आपकी मदद नहीं करेगा पेशेवर- मंदिर जाओ, चर्च जाओ और फिर वापिस अपने नारकीय जीवन मे जाओ... नहीं । आप केवल व्यक्ति भगवत का संग करो, जो स्वरूपसिद्ध है और उनसे सुनो इसी किताब से, वही ज्ञान । कृष्ण के प्रतिनिधि जैसे श्रीकृष्ण कहते हैं, तत समासेन मे श्रुणु  ([[HI/BG 13.4|भ गी १३.४]])। मे श्रुणु : "मुझ से या मेरे प्रतिनिधि से सुनो । तब तुम्हें लाभ मिलेगा "  
 
तो यह केंद्र खोले जा रहे हैं केवल पीड़ित लोगों को अवसर देने के लिए केवल इस जन्म में नहीं, हर जन्म में ।
 
:एई रुपे ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव
:गुरु कृष्ण कृपाय पाय भक्ति लता बीज  
:([[Vanisource:CC Madhya 19.151||चैतन्य चरितामृत १९.१५१]])
 
तो यह हमारा कर्तव्य है, हमने इस कर्तव्य को कृष्ण की अोर से लिया है कृष्ण स्वयं सिखाने के लिए आते हैं | जैसे वे अपने श्रीमद् भागवतम् को छोड़ के गए | फिर वे अपने भक्तों को ज़िम्मेदारी सौंपते हैं आम लोगों को समझाने के लिए हम यही करने का प्रयास कर रहे हैं । हमने अपने मन से कुछ निर्माण नहीं किया है सारा समान पहले से ही है हम केवल चपरासी बन कर वितरण कर रहे हैं । बस और हमें कोई कठिनाई नहीं है अगर हम केवल भगवद्-गीता को पेश करें, कृष्ण का उपदेश, यथारुप, तो हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है । हमें कुछ निर्माण करने की ज़रूरत नहीं है; न ही हमारे में कुछ बनाने की क्षमता है । जैसे इतने सारे लोग हैं । वे नए विचारों का निर्माण करते हैं, नए दर्शन... सब बकवास । यह सहायता नहीं करेगा असली ज्ञान प्राप्त करो ।
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Latest revision as of 18:07, 17 September 2020



Lecture on BG 13.4 -- Miami, February 27, 1975

मैं यह सोच रहा हूँ, "अमरीकी, हिंदू, मुसलमान", ये सारी बातें मेरे हृदय की मैल है । तुम अपने हृदय को साफ़ करो । हृदय अंतः स्थ: अभद्राणि । यह गंदी बातें मेरे हृदय में हैं, तो अगर हम अपने हृदय को साफ़ करें, तो हम इन उपाधियों से मुक्त हो जाएँगे । नष्ट-प्रायेषु अभद्रेषु नित्यं भागवत-सेवया (श्रीमद् भागवतम् १.२.१८)। नष्ट-प्रायेषु । ये गंदी बातें साफ हो जाएँगी अगर हम नियमित रूप से श्रीमद् भागवतम् या भगवद्-गीता को सुनें । नित्यं भागवत... और भागवत का अर्थ है ग्रंथ और व्यक्ति भागवत । व्यक्ति भागवत आध्यात्मिक गुरु हैं । या कोई भी उत्तम भक्त । वह भागवत है, महा-भागवत, भागवत ।

तो भागवत्-सेवया का अर्थ यह नहीं है केवल भगवद्-गीता और भागवतम् को पढ़ना, लेकिन हमें इसे व्यक्ति भागवत से भी सीखना होगा । इसकी ज़रूरत है । चैतन्य महाप्रभु ने सलाह दी है, भागवत परा गिया भगवात स्‍थाने: "अगर तुम भागवत को सीखना चाहते हो, तो व्यक्ति भागवत के पास जाओ जो स्वरूपसिद्ध है |" पेशेवर के पास नहीं । यह आपकी मदद नहीं करेगा । पेशेवर- मंदिर जाओ, चर्च जाओ और फिर वापिस अपने नारकीय जीवन मे जाओ... नहीं । आप केवल व्यक्ति भगवत का संग करो, जो स्वरूपसिद्ध है और उनसे सुनो इसी किताब से, वही ज्ञान । कृष्ण के प्रतिनिधि । जैसे श्रीकृष्ण कहते हैं, तत समासेन मे श्रुणु (भ गी १३.४)। मे श्रुणु : "मुझ से या मेरे प्रतिनिधि से सुनो । तब तुम्हें लाभ मिलेगा ।"

तो यह केंद्र खोले जा रहे हैं केवल पीड़ित लोगों को अवसर देने के लिए केवल इस जन्म में नहीं, हर जन्म में ।

एई रुपे ब्रह्माण्ड भ्रमिते कोन भाग्यवान जीव
गुरु कृष्ण कृपाय पाय भक्ति लता बीज
(|चैतन्य चरितामृत १९.१५१)
तो यह हमारा कर्तव्य है, हमने इस कर्तव्य को कृष्ण की अोर से लिया है । कृष्ण स्वयं सिखाने के लिए आते हैं | जैसे वे अपने श्रीमद् भागवतम् को छोड़ के गए | फिर वे अपने भक्तों को ज़िम्मेदारी सौंपते हैं आम लोगों को समझाने के लिए । हम यही करने का प्रयास कर रहे हैं । हमने अपने मन से कुछ निर्माण नहीं किया है । सारा समान पहले से ही है । हम केवल चपरासी बन कर वितरण कर रहे हैं । बस । और हमें कोई कठिनाई नहीं है । अगर हम केवल भगवद्-गीता को पेश करें, कृष्ण का उपदेश, यथारुप, तो हमारा कर्तव्य पूरा हो जाता है । हमें कुछ निर्माण करने की ज़रूरत नहीं है; न ही हमारे में कुछ बनाने की क्षमता है । जैसे इतने सारे लोग हैं । वे नए विचारों का निर्माण करते हैं, नए दर्शन... सब बकवास । यह सहायता नहीं करेगा । असली ज्ञान प्राप्त करो ।