HI/Prabhupada 0117 - मुफ्त होटल और मुफ्त सोने का आवास

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Lecture on SB 7.9.24 -- Mayapur, March 2, 1976

यही विचार है, दास बनना और दासी बनना । यह मानव सभ्यता का आदर्श है। हर महिला को उसके पति की दासी बनने की कोशिश करनी चाहिए और हर आदमी को कृष्ण का सौ बार दास बनने के लिए प्रयास करना चाहिए । यह भारतीय सभ्यता है नहीं है कि "पति और पत्नी, हमारे समान अधिकार हैं। "यह, यूरोप में, अमेरिका में, आंदोलन चल रहा है, "समान अधिकार।" यह वैदिक सभ्यता नहीं है। वैदिक सभ्यता है, पति कृष्ण का एक ईमानदार सेवक होना चाहिए, और पत्नी पति की एक ईमानदार दासी होनी चाहिए।

इसलिए यहाँ यह कहा है, उपनय माम् निज-भृत्य पार्श्वम् (श्रीमद भागवतम ७.९.२४) | यह सबसे अच्छा संग है। जब नारद मुनि वर्णन करते हैं कि आदमी को कैसे व्यवहार करना चाहिए, कैसे महिला को व्यवहार करना चाहिए ... हम अपने टेप डिक्टाफोन में अब चर्चा कर रहे हैं। तुम सुनोगे। मालिक बनने जैसी कोई बात नहीं है। यह बेकार है। तुम मालिक नहीं बन सकते । अहंकार विमूढात्मा कर्ताहम् इति मन्यते (भ गी ३।२७)। तुम मालिक नहीं बन सकते । जीवेर स्वरूप हय नित्य कृष्ण दास (चैतन्य चरितामृत मध्य २०.१०८-१०९)। कोई भी आदमी या औरत, हर कोई कृष्ण का नौकर है। हमें उस मंच पर प्रशिक्षिण पाना होगा, सबसे अच्छा नौकर कैसे बनें, न केवल सीधे नौकर, लेकिन नौकरों के नौकर । यही परम्परा सेवक कहा जाता है। मेरा आध्यात्मिक गुरु अपने आध्यात्मिक गुरु के सेवक हैं, और मैं भी अपने आध्यात्मिक गुरु का दास हूं। इसी तरह, हम सोचते हैं "नौकर का नौकर।" बनने का कोई सवाल ही नहीं है ... यह भौतिक रोग है (चैतन्य चरितामृत मध्य १३.८०) ।

कृष्ण भुलिया जीव भोग वांछा कारे
पाशेते माया तारे जापटीया धारे।

जैसे ही हम गर्वित बन जाते हैं - "अब मैं मालिक बन जाऊँगा। मैं बस आदेश दूँगा। मैं किसी का अनुसरण नहीं करूँगा" - यह माया है।

इसलिए यह रोग चल रहा है ब्रह्मा से नीचे चींटी तक। प्रहलाद महाराजा की समझ में आ गया है तथाकथित झूठी प्रतिष्ठित स्थिति एक मालिक बनने की। वे कहते हैं कि "मैं इस झूठी बात को जानता हूँ। कृपया मुझे संलग्न करें..." निज भृत्य पार्श्वम्। निज भृत्य पार्श्वम् का मतलब है सहायक के जैसे | सहायक, एक सहायक एक विशेषज्ञ आदमी के साथ काम करता है। धीरे धीरे, वह सहायक काम करना सीख जाता है। इसलिए वह कहता है निज भृत्य पार्श्वम्। "एसा नहीं कि तुरंत मैं बहुत विशेषज्ञ नौकर बन गया हूँ, लेकिन मुझे ..."

हमारी यह संस्था उस उद्देश्य के लिए है। तो अगर कोई यहां आता है, मुफ्त होटल और मुफ्त सोने का आवास, तो उसका इस संघ में आना बेकार है। उसे सेवा करना सीखना होगा। निज भृत्य पार्श्वम्। जो सेवा कर रहे हैं, वे ... उसके पास से सीखना चाहिए कि कैसे वह चौबीस घंटे सेवा कर रहा है, तो हमारा यहॉ शामिल होना इस संस्था में सफल होगा। और अगर हम सोचते हैं कि "यहाँ एक संस्था है जहां हमें मुफ्त होटल मिलेगा, मुफ्त रहने और स्वतंत्र इन्द्रिय संतुष्टि, "तो पूरा संस्था खराब हो जाएगा। सावधान रहें। सभी जीबीसी, वे सावधान रहें कि इस मानसिकता में वृद्धि न हो। हर कोई सेवा करने के लिए बहुत उत्सुक होना चाहिए, सेवा कैसे करें यह सीखने के लिए । निज भृत्य पार्श्वम, तो जीवन सफल हो जाएगा।

बहुत बहुत धन्यवाद।