HI/Prabhupada 0123 - आत्मसमर्पण के लिए मजबूर, यह विशेष एहसान है

Revision as of 12:47, 5 October 2018 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0023: VideoLocalizer - changed YouTube player to show hard-coded subtitles version)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture-Day after Sri Gaura-Purnima -- Hawaii, March 5, 1969

भक्त: क्या हम कृष्ण से अनुरोध कर सकते हैं कि वह हमें आत्मसमर्पण करने के लिए मजबूर करें, हमारी बद्ध अवस्था के कारण?

प्रभुपाद: हाँ, तुम उससे अनुरोध कर सकते हो। और वे कभी कभी मजबूर करते हैं। वे तुम्हें ऐसी परिस्थितियों में डालते हैं कि कृष्ण को आत्मसमर्पण करने के अलावा तुम्हारे पास कोई दूसरा रास्ता नहीं होता हाँ। यह विशेष एहसान है। वह विशेष एहसान है। हाँ। मेरे आध्यात्मिक गुरु चाहते थे कि मैं प्रचार करूँ लेकिन मुझे यह पसंद नहीं था, परंतु उन्होंने मुझे मजबूर किया। हाँ। यह मेरा व्यावहारिक अनुभव है। मेरी इच्छा नहीं थी संन्यास लेकर प्रचार करने की, लेकिन मेरे आध्यात्मिक गुरु ऐसा चाहते थे मैं बहुत ज्यादा पसंद नहीं करता था, लेकिन उन्होंने मुझे मजबूर किया। यह भी किया जाता है। यह विशेष एहसान है। जब उन्होंने मुझे मजबूर किया, उस समय मैं सोच रहा था "यह क्या है? क्या? मैं कुछ गलती कर रहा हूँ या यह क्या है? "मैं हैरान था। लेकिन बाद में मैं समझ सका कि यह मेरे पर सबसे बड़ा एहसान है। तुम देख रहे हो? तो जब कृष्ण किसी को बलपूर्वक आत्मसमर्पण कराते हैं, तो यह एक बहुत बड़ा एहसान है। लेकिन आम तौर पर, वे ऐसा नहीं करते । लेकिन वे ऐसा करते हैं उस व्यक्ति के लिए जो कृष्ण की सेवा करने के लिए बहुत गंभीर है, लेकिन साथ ही साथ वह भौतिक आनंद के लिए भी इच्छा रखता है। उस मामले में वे एसा करते हैं " इस मूर्ख व्यक्ति को पता नहीं है कि, भौतिक सुविधा उसे कभी खुशी नहीं दे सकती है, और वह ईमानदारी से मेरी कृपा की उम्मीद कर रहा है। तो वह मूर्ख है।

इसलिए जो भी संसाधन, थोड़ा संसाधन उसे भौतिक आनंद के लिए मिला है, उसे समाप्त करो। फिर उसके पास मुझे समर्पण करने के अलावा कोई अन्य विकल्प नहीं होगा। " यह भगवद्गीता, नहीं, श्रीमद-भागवतम् में कहा गया है । यस्याहम् अनुघृनामि हरिष्ये तद्धनम् शनैः (श्रीमद भागवतम् १०.८८.८)। कृष्ण कहते हैं कि "यदि मैं किसी पर विशेष कृपा करता हूँ, तो मैं उसे कंगाल बना देता हूँ। मैं उसकी इन्द्र-तृप्ति के सारे साधन छीन लेता हूँ।" तुम देख रहे हो? यह श्रीमद-भागवतम् में कहा गया है। क्योंकि यहाँ इस भौतिक संसार में हर कोई खुश होने की कोशिश कर रहा है, अधिक पैसा कमा कर, व्यापार से, नौकरी से, इस तरह या उस तरह से। लेकिन विशेष मामलों में कृष्ण उसके व्यवसाय या नौकरी को असफल बन देते हैं। तुम्हे पसंद है? (हंसते हुए) उस समय कृष्ण को समर्पण करने के अलावा उसके पास कोई अन्य विकल्प नहीं है। तुम देख रहे हो? लेकिन कभी कभी, जब हम अपने कारोबार के प्रयास या कमाई के प्रयास में असफल होते हैं, हम दुखी हो जाते हैं कि, "ओह, कृष्ण इतने क्रूर हैं मुझ पर, तो इस पर मैं भरोसा नहीं कर सकता हूँ।" लेकिन यह उनकी कृपा है, विशेष कृपा। तुम्हें इस तरह से समझना चाहिए।