HI/Prabhupada 0138 - ईश्वर बहुत दयालु है। तुम जो इच्छा करते हो, वह पूरी करेंगे

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Ratha-yatra -- Philadelphia, July 12, 1975

देवियों और सज्जनों, सबसे पहले मैं आपको धन्यवाद देना चाहता हूँ, इस महान शहर के निवासी, फिलाडेल्फिया । आप इतने दयालु, उत्साही हैं, जो इस आंदोलन में भाग ले रहे हैं । तो मैं बहुत-बहुत आभारी हूँ । मैं विशेष रूप से अमरिका के लड़कों और लड़कियों के प्रति आभारी हूँ जो मुझे बहुत मदद कर रहे हैं पश्चिमी देशों में इस कृष्णभावनामृत आंदोलन के प्रसार में । मेरे आध्यात्मिक गुरु ने मुझे आदेश दिया था कि पश्चिमी देशों में इस कृष्णभावनामृत का प्रचार करो । तो पहली बार मैं न्यूयॉर्क १९६५ में आया था । फिर १९६६ में इस संस्था को न्यूयॉर्क में पंजीकृत किया गया था, और १९६७ से यह आंदोलन नियमित रूप से यूरोप, कनाडा, अमरिका में चल रहा है, और दक्षिण प्रशांत महासागर, ऑस्ट्रेलिया और पूरी दुनिया भर में ।

इसलिए मैं आपको इस आंदोलन, कृष्णभावनामृत के बारे में कुछ बता सकता हूँ । कृष्ण, इस शब्द, का अर्थ है सर्व-आकर्षक । कृष्ण, हर जीव के लिए आकर्षक हैं, न केवल मनुष्य, यहाँ तक की जानवरों, पक्षियों, मधुमक्खियों, पेड़, फूल, फल, पानी । यही वृन्दावन का स्पष्ट वर्णन है । यह भौतिक जगत् है । हमें आध्यात्मिक जगत् का कोई अनुभव नहीं है । लेकिन हमें एक झलक प्राप्त कर सकते हैं, आत्मा क्या है और पदार्थ क्या है । एक जीवित व्यक्ति और एक मृत शरीर के बीच अंतर समझने की कोशिश करो । मृत शरीर का अर्थ है जैसे ही शरीर के भीतर रहने वाली अात्मा चली जाती है, तो वह मृत पदार्थ है, बेकार । और जब तक अात्मा है, शरीर बहुत महत्वपूर्ण है ।

तो हम इस शरीर में अनुभव करते हैं कि मृत पदार्थ के रुप में कुछ हैं और जीवित शक्ति के रुप में कुछ है । वैसे ही, दो जगत् हैं : भौतिक जगत् और आध्यात्मिक जगत् । हम जीव, हम में से हर एक, हम आध्यात्मिक जगत् से संबंधित हैं । हम इस भौतिक जगत् से संबंधित नहीं हैं । किसी तरह से, हम इस भीतिक जगत् और भौतिक शरीर के संपर्क में हैं, और बात ये है कि हालांकि हम शाश्वत अात्मा हैं, इस भौतिक शरीर के साथ हमारे संपर्क के कारण, हमें चार क्लेश सहन करने पड़ते हैं: जन्म, मृत्यु, बीमारी और बुढ़ापा । हमें इससे गुज़रना होगा । इस भौतिक संसार में हमें एक प्रकार का शरीर मिलता है और यह एक निश्चित स्तर पर अाकर खत्म हो जाता है । जैसे कोई भौतिक पदार्थ । उदाहरण के लिए, अाप अपने वस्त्र ले लो । आप एक निश्चित प्रकार के वस्त्र के साथ तैयार हैं, पर जब वह पुराना हो जाता है अौर किसी काम का नहीं होता, आप उसे फेंंक देते हैं अौरे दूसरे वस्त्र लेते हैं । तो यह भौतिक शरीर आत्मा की पोशाक है । लेकिन क्योंकि हम इस भौतिक जगत् से अासक्त हैं, हम इस भौतिक जगत् का आनंद लेना चाहते हैं, हमें विभिन्न प्रकार के शरीर मिलते हैं । यह भगवद्गीता में एक मशीन के रूप में समझाया गया है । दरअसल यह मशीन है, यह शरीर । भगवद्गीता में यह कहा गया है,

ईश्वर: सर्व भूतानाम्
हृद-देशे अर्जुन तिष्ठति
भ्रामायान् सर्व भूतानि
यन्त्रारूढ़ानि मायया
(भ गी १८.६१)

तो हम जीव, हम इच्छा करते हैं । "मनुष्य प्रस्ताव रखता है, भगवान व्यवस्था करते हैं ।" ईश्वर बहुत दयालु हैं । आप जो इच्छा करते हैं, वह पूरी करते हैं । हाँलाकि उन्होंने कहा है कि, "इन भौतिक इच्छाओं से आप संतुष्ट कभी नहीं होंगे, " लेकिन हम चाहते हैं । इसलिए भगवान आपूर्ति करते हैं, कृष्ण, हमारी विभिन्न इच्छाओं को पूरा करने के लिए, विभिन्न प्रकार के शरीर । इसे भौतिक, बद्ध जीवन कहा जाता है । यह शरीर, शरीर का परिवर्तन इच्छा के अनुसार, विकासवादी प्रक्रिया कहा जाता है । विकास करके हम कई अन्य लाखों शरीरों के माध्यम से इस मनुष्य शरीर में आते हैं । जलजा नव लक्क्षाणि स्थावर लक्ष-विम्शति । हम पानी में, नौ लाख प्रजातियों के रूप में गुजरते हैं । इसी तरह, दो लाख रूप पेड़-पौधों के रूप में । इसी तरह, प्रकृति के माध्यम से, प्रकृति ही हमें मनुष्य जीवन में लाती है, हमारी चेतना विकसित या जगृत करने के लिए । प्रकृति हमें मौका देती है, "अब आप क्या करना चाहते हैं ? अब आपको विकसित चेतना मिल गई है । अब अाप फिर से विकास की प्रक्रिया में जाना चाहते हैं, या आप उच्च ग्रहों में जाना चाहते हैं, या अाप भगवान, श्रीकृष्ण के पास जाना चाहते हैं, या अाप यहीं रहना चाहते हैं ? " ये विकल्प हैं । यह भगवद्गीता में कहा गया है,

यान्ति देव व्रता देवान्
पितृन् यान्ति पितृ व्रता:
भूतेज्य यान्ति भूतानि
मद-याजिनो अपि यान्ति माम्
(भ गी ९.२५)

अब आप चयन करो । यदि आप उच्च ग्रहों में जाना चाहते हैं, आप जा सकते हैं । यदि आप यहाँ रहना चाहते हैं, मध्यम ग्रह प्रणाली में, आप ऐसा कर सकते हैं । और अगर आप निचले ग्रहों में जाना चाहते हैं, तो आप ऐसा कर सकते हैं । और अगर आप भगवान, कृष्ण के पास जाना चाहते हैं, तो आप वह भी कर सकते हैं । यह आपके चयन पर निर्भर करता है । इसलिए, इस भौतिक जगत् के बीच क्या अंतर है, उच्च ग्रह प्रणाली में या निम्न ग्रह प्रणाली में और आध्यात्मिक जगत् में ? आध्यात्मिक जगत् का अर्थ है, वहाँ कुछ भी भौतिक नहीं है । सब कुछ चेतन है, जैसे मैंने आपको बताया । पेड़, फूल, फल, पानी, पशु सब कुछ आध्यात्मिक है । इसलिए वहाँ विनाश नहीं है । वह शाश्वत है । तो अगर आप आध्यात्मिक जगत् में जाना चाहते हैं, तो आप इस मनुष्य जीवन में इस अवसर को प्राप्त कर सकते हैं, अौर अगर आप इस भौतिक संसार में रहना चाहते हैं, आप ऐसा कर सकते हैं ।