HI/Prabhupada 0169 - कृष्ण को देखने के लिए कठिनाई कहां है

Revision as of 18:15, 17 September 2020 by Vanibot (talk | contribs) (Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
(diff) ← Older revision | Latest revision (diff) | Newer revision → (diff)


Lecture on BG 4.24 -- August 4, 1976, New Mayapur (French farm)

योगेश्वर: वह कहता है कि क्योंकि अभी हम उन्नत नहीं हैं परम व्यक्ति के रूप में कृष्ण को देखने के लिए, हम उस पर कैसे ध्यान करें?

प्रभुपाद: तुम कृष्ण को मंदिर में नहीं देख रहे हो? (हंसी) हम कुछ अस्पष्ट पूजा कर रहे हैं? तुम्हे कृष्ण को देखना होगा जैसे कि कृष्ण कहते हैं । वर्तमान स्थिति में ... जैसे कृष्ण कहते हैं, रसो हम अप्सु कौन्तेय (भ गी ७.८) | कृष्ण कहते हैं "मैं पानी का स्वाद हूँ।" तुम कृष्ण को देखो पानी के स्वाद में। यह तुम्हे उन्नत कर देगा। विभिन्न चरणों के अनुसार ... कृष्ण कहते हैं "मैं पानी का स्वाद हूँ। " तो जब तुम पानी पीते हो, तुम क्यों कृष्ण को नहीं देख रहे हो। "ओह, यह स्वाद कृष्ण है।" रसो अहम् अप्सु कौन्तेय प्रभास्मि शशि-सूर्ययोः । तुम धूप, चांदनी देखते हो । कृष्ण कहते हैं "मैं धूप हूँ, मैं चांदनी हूँ।" इसलिए जैसे ही तुम सुबह, धूप को देखते हो, तुम कृष्ण को देख रहे हो।

जैसे ही तुम रात को चांदनी देखते हो, तुम कृष्ण को देख रहे हो। प्रणव: सर्व-वेदेशु । किसी भी वैदिक मंत्र का जाप किया जाता है: ओम तद् विष्णु पर, यह ओमकार कृष्ण है। "पौरुषम् विष्णु"। और किसी के द्वारा किया गया असाधारण कुछ भी, वह कृष्ण है। तो तुम्हे इस तरह से कृष्ण को देखना होगा । फिर, धीरे - धीरे, तुम देखोगे, कृष्ण अपने आप को उजागर करेंगे, तुम देखोगे । लेकिन कोई अंतर नहीं है कृष्ण को पानी के स्वाद में साकार करना और व्यक्तिगत रूप से कृष्ण को देखना, कोई अंतर नहीं है । तो, अपनी वर्तमान स्थिति के अनुसार, तुम उस में कृष्ण को देखते हो। तो फिर तुम उन्हें धीरे - धीरे देखोगे । अगर तुम तुरंत कृष्ण की रास लीला को देखना चाहते हो तो यह संभव नहीं है । तुम्हे देखना है ... जैसे ही गर्मी है, तो तुम्हे पता होना चाहिए कि अाग भी है । जैसे ही धुंआ है, तुम जानना चाहिए की अग्नि है, हालाँकि तुम सीधे आग नहीं देखते हो। लेकिन हम समझ सकते हैं क्योंकि बर्फ, ना, धुआं है , आग होनी चाहिए। तो, इस तरह से, शुरुआत में, तुम्हे कृष्ण का एहसास करना होगा। यह सातवें अध्याय में कहा गया है। पता लगाअो ।

रसो अहम् अप्सु कौन्तेय
प्रभास्मि शशी-सूर्ययोः
प्रनव: सर्व वेदेषु
(भ गी ७.८)|

जयतिर्थ: सात आठ: हे कुंती के पुत्र, अर्जुन, मैं पानी का स्वाद हूँ, सूरज और चाँद की रोशनी हूँ, वैदिक मंत्रों में शब्दांश ओम हूँ, मैं आकाश में ध्वनि हूँ और आदमी में क्षमता हूँ ।

प्रभुपाद: तो इस तरह से कृष्ण को देखो। कठिनाई कहां है? किसने यह सवाल पूछा? कृष्ण को देखने के लिए कठिनाई कहां है? कोई कठिनाई है? कृष्ण को देखो। मन-मना भव मद् भक्तो, कृष्ण कहते हैं: 'मेरे बारे में हमेशा सोचो ।" तो, जैसे ही तुम पानी पीते हो, तुरंत स्वाद और कहो, " आह, यहाँ कृष्ण है; मन-मना भव मद् भक्तो | कठिनाई कहां है? कोई कठिनाई नहीं है। सब कुछ है। उह? कठिनाई क्या है?

अभिनन्द: हमें 'कृष्ण भगवान है' ये याद करने की कोशिश करनी चाहिए?

प्रभुपाद: तुम उनके बारे में क्या सोचते हो? (सब लोग हंसते हुए) (बंगाली) वहाँ, सब रामायण पढ़ कर और पढ़ने के बाद, वह पूछ रहा है, 'सीता देवी, वह किसके पिता है? (हंसते हुए) किसके पिता है सीता देवी? (जोर से हंसते हुए) तुम्हारा प्रश्न ऐसा ही है । (अधिक हंसते हुए)

अभिनन्द: क्योंकि पिछले साल , मायापुर में, श्रील प्रभुपाद, आपने कहा कि हमें 'कृष्ण भगवान है' यह नहीं भूलना चाहिए। आपने यह कई बार कहा ।

प्रभुपाद: हाँ, तो तुम क्यों भूल रहे हो? (भक्त हँस रहे हैं) यह क्या है?

भक्त: अगर एक भक्त भक्ति सेवा के रास्ते से नीचे गिर जाता है, (चरणाम्बुज जयन्तकृत से कहते हैं : तुम्हे इन सब बातों का अनुवाद करना चाहिए ।)

भक्त: भागवत में वर्णित नरक में उसे जाना पडता है?

प्रभुपाद: एक भक्त कभी नीचे नहीं गिरता है । (अधिक हंसी)

भक्त: जय! जय श्रील प्रभुपाद!