HI/Prabhupada 0200 - एक छोटी सी गलती पूरी योजना को खराब कर देगी

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Lecture on CC Adi-lila 1.11 -- Mayapur, April 4, 1975

तो पूरे वैदिक प्रणाली को इस तरह से बनाया गया है कि अंततः इस प्रक्रिया से हम व्यक्ति बच जाए - जन्म, मृत्यु, वृद्धावस्था और बीमारी से । बहुत समय पहले, जब विश्वामित्र मुनि महाराजा दशरथ के पास आए थे भीख माँगने राम-लक्ष्मण की उन्हें ले जाने के लिए क्योंकि जंगल में एक राक्षस परेशान कर रहा था ... वे मार सकते थे, लेकिन हत्या क्षत्रियों का काम है । यह वैदिक सभ्यता है । यह ब्राह्मण का काम नहीं है । तो महाराज दशरथ से जो पहला स्वागत विश्वामित्र मुनि को मिला, कि अैहिष्ठम यत पुनर-जन्म-जयाय: "अाप हो ... आप महान संत, पुण्य व्यक्ति, आपने समाज त्याग दिया है । अाप जंगल में अकेले रह रहे हो । उद्देश्य क्या है? उद्देश्य है पुनर-जन्म-जयाय, जन्म के पुनरावर्तन पर विजय । " यही उद्देश्य है । इसी तरह, हमारा यह कृष्ण भावनामृत आंदोलन भी उसी उद्देश्य के लिए है, पुनर-जन्म-जयाय, जन्म और मृत्यु की पुनरावर्तन पर विजय पाने के लिए । तुम्हे हमेशा यह याद रखना चाहिए । एक छोटी सी गलती पूरी योजना को खराब कर देगी, छोटी सी गलती । प्रकृति बहुत ताकतवर है । दैवी हि एषा गुणमयी मम माया दुरत्यया (भ.गी. ७।१४) । बहुत, बहुत ताकतवर ।

तो आप सब , लड़के और लड़कियॉ, अमेरिका से आए हैं जो लोग, मैं उनका बहुत बहुत आभारी हूँ । लेकिन कम गंभीर नहीं होना । बहुत गंभीर होना । और मैं एक और बात अनुरोध करूँगा, विशेष रूप से अमेरिकियों के लिए, कि अमेरिका के पास अच्छी संभावनाऍ मिलि है दुनिया को बचाने के लिए तो अगर तुम अपने देश में बहुत अच्छी तरह से प्रचार करते हो ... और सभी को दिलचस्पी नहीं होगी, लेकिन अगर तुम्हारे देश में पुरुषों का एक खंड, तुम उन्हें कृष्ण के प्रति जागरूक बना सकते हो, यह पूरी दुनिया के लिए बड़ा लाभ होगा । लेकिन उद्देश्य वही है, पुनर-जन्म-जयाय : जन्म, मृत्यु और बुढ़ापे की इस प्रक्रिया पर विजय हासिल करने के लिए । यह कल्पना नहीं है, यह तथ्य है । लोग गंभीर नहीं हैं । लेकिन तुम अपने लोगों को सिखा सकते हो, अन्यथा, पूरा मानव समाज खतरे में है । वे जानवरों की तरह हैं, बिना किसी... विशेष रूप से यह साम्यवादी (कम्युनिस्ट) आंदोलन बहुत, बहुत खतरनाक है - बड़ा जानवर बनाने के लिए । वे पहले से ही जानवर हैं, और यह आंदोलन बड़े जानवर बना रहा है ।

तो मैं अमेरिका से बात कर रहा हूँ क्योंकि अमेरिका इस साम्यवादी आंदोलन के खिलाफ थोडा सा गंभीर है । अोर यह प्रभावहीन बनाया जा सकता है क्योंकि यह प्रक्रिया वर्तमान है, एक बहुत, बहुत लंबे समय से । देव असुर, देवासुर, देवताओं और राक्षसों के बीच लड़ाई । तो वही लड़ाई अलग नाम से, "साम्यवादियों और पूंजीपतियों ।" लेकिन पूंजीपती भी अस्सी प्रतिशत, नब्बे प्रतिशत राक्षस हैं । हां । क्योंकि वे भगवान को नहीं जानते है । यह राक्षसी सिद्धांत है ।

इसलिए तुम्हारे देश में अच्छा मौका है उन्हें बनाने का, या उनके राक्षसी सिद्धांतों को सुधारने का । और फिर वे अन्य राक्षसों से लड़ने के लिए दृढ़ता से सक्षम होंगे । क्योंकि हम देव हो जाते हैं ... देव मतलब है वैष्णव । विष्णु-भक्तो भवेद देव अासुरस तद-विपर्या: । जो लोग भगवान विष्णु के भक्त हैं, वे देव कहे जाते हैं या देवता । अौर जो विपरीत हैं ... विपरीत संख्या, भी, उनके भी भगवान हैं । जैसे राक्षसों की तरह, वे विशेष रूप से भगवान शिव की पूजा करते हैं । या रावण, उदाहरण ... हम अनावश्यक रूप से आरोप नहीं लगा रहे हैं । रावण एक महान दानव था, लेकिन वह भक्त था ... भगवान शिव को पूजना मतलब कुछ भौतिक लाभ हासिल करना । और विष्णु की पूजा में, भौतिक लाभ होता है । यह विष्णु द्वारा दिया जाता है । यह कर्म नहीं है ।

लेकिन वैष्णव, वे किसी भी भौतिक लाभ के इच्छुक नहीं हैं । भौतिक लाभ स्वचालित रूप से आता है । लेकिन वे, वे इच्छा नहीं करते हैं । अन्याभिलाशिता शून्यम (भक्तिरसामृतसिन्धु १.१.११) । भौतिक लाभ उनके जीवन का उद्देश्य नहीं है । उनके जीवन का उद्देश्य - कैसे विष्णु, भगवान विष्णु को सन्तुष्ट करें । यही वैष्णव है । विष्णुर् अस्य देवत: न ते..... और राक्षस, उन्हे पता नहीं है कि जीवन की उच्चतम पूर्णता है वैष्णव बनना उन्हे यह पता नहीं है । तो वैसे भी, हमारा अनुरोध है कि तुम सभी युवा जिन्होंने इस वैष्णव पथ को चुना है, और तुम्हारे देश में इस पंथ के प्रचार के लिए बहुत अच्छा मौका है, तो भले ही तुम अन्य देशों में बहुत ज्यादा सफल नहीं होते हो, तुम्हारे देश में तुम बहुत सफल होगे । अच्छी संभावना है । और उन्हे मजबूत बनाने के लिए प्रयास करो राक्षसी सिद्धांतों के साथ लड़ने के लिए ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।