HI/Prabhupada 0204 - मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0204 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1975 Category:HI-Quotes - Mor...")
 
(Vanibot #0023: VideoLocalizer - changed YouTube player to show hard-coded subtitles version)
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in USA, San Francisco]]
[[Category:HI-Quotes - in USA, San Francisco]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0203 - इस हरे कृष्ण आंदोलन को रोकना मत|0203|HI/Prabhupada 0205 - मैंने उम्मीद कभी नहीं किया, "यह लोग स्वीकार करेंगे"|0205}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|wt3__jE93UQ|मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है - Prabhupāda 0204}}
{{youtube_right|43zrtjPNK40|मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है - Prabhupāda 0204}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/750721MW.SF_clip.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/750721MW.SF_clip.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
प्रभुपाद: तुम्हे दोनों के साथ संबद्ध करना होगा। गुरु-कृष्णा-कृपाए-पाए भक्ति-लता-बीज ([[Vanisource:CC Madhya 19.151|चैच मध्य 19.151]])। दोनों गुरु की कृपा और कृष्ण की कृपा, उन्हे जोडना चाहिए। तो फिर तुम्हे मिलेगा।
प्रभुपाद: तुम्हे दोनों के साथ संग करना होगा। गुरु-कृष्णा-कृपाय-पाय भक्ति-लता-बीज ([[Vanisource:CC Madhya 19.151|चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५१]])। दोनों गुरु की कृपा और कृष्ण की कृपा, उन्हे जोडना चाहिए। तो फिर तुम्हे मिलेगा।  


जयअद्वैत: हम उस गुरू कृपा पाने के लिए बहुत उत्सुक हैं।
जयअद्वैत: हम उस गुरू कृपा पाने के लिए बहुत उत्सुक हैं।


प्रभुपाद: कौन?
प्रभुपाद: कौन?  


जयअद्वैत: हम, हम सब।
जयअद्वैत: हम, हम सब।  


प्रभुपाद: हाँ। यस्या प्रसादाद् भगवत-प्रसाद: अगर तुम्हे गुरु की कृपा मिलती है, तो स्वचालित रूप से तुम्हे कृष्ण मिलेंगे।
प्रभुपाद: हाँ। यस्या प्रसादाद भगवत-प्रसाद: अगर तुम्हे गुरु की कृपा मिलती है, तो स्वचालित रूप से तुम्हे कृष्ण मिलेंगे।  


नारायण: गुरु कृपा केवल आध्यात्मिक गुरु को प्रसन्न करने से ही मिलता है, श्रील प्रभुपाद?
नारायण: गुरु कृपा केवल आध्यात्मिक गुरु को प्रसन्न करने से ही मिलता है, श्रील प्रभुपाद?  


प्रभुपाद: नहीं तो कैसे?
प्रभुपाद: नहीं तो कैसे?  


नारायण: क्षमा करें?
नारायण: क्षमा करें?  


प्रभुपाद: अन्यथा यह कैसे आ सकता है?
प्रभुपाद: अन्यथा यह कैसे आ सकता है?  


नारायण: जिन शिष्यों को अापको देखना का या अापसे बात करने का मौका नहीं मिलता...
नारायण: जिन शिष्यों को अापको देखना का या अापसे बात करने का मौका नहीं मिलता.....  


प्रभुपाद: वह बोल रहा था, वाणी और वापुह। अगर तुम उनके शरीर को नहीं देखते हो, तो तुम उनके शब्द, वाणी को लो।
प्रभुपाद: वह बोल रहा था, वाणी और वपुह। अगर तुम उनके शरीर को नहीं देखते हो, तो तुम उनके शब्द, वाणी को लो।  


नारायण: लेकिन उन्हे कैसे पता लगे कि वह अापको प्रसन्न कर रहा है, वे, श्रील प्रभुपाद?
नारायण: लेकिन उन्हे कैसे पता लगे कि वह अापको प्रसन्न कर रहा है, वे, श्रील प्रभुपाद?  


प्रभुपाद: अगर तुम वास्तव में गुरु के शब्दों का पालन करो, इसका मतलब है कि वह खुश है। अगर तुम पालन नहीं करते हो, तो वह कैसे खुश हो सकता है?
प्रभुपाद: अगर तुम वास्तव में गुरु के शब्दों का पालन करो, इसका मतलब है कि वह खुश है। अगर तुम पालन नहीं करते हो, तो वह कैसे खुश हो सकते है?  


सुदामा: इतना ही नहीं, लेकिन आपकी दया हर जगह फैली हई है, और अगर हम लाभ लेते हैं, आपने एक बार हमें बताया, तो हम परिणाम महसूस करेंगे।
सुदामा: इतना ही नहीं, लेकिन आपकी दया हर जगह फैली हई है, और अगर हम लाभ लेते हैं, आपने एक बार हमें बताया, तो हम परिणाम महसूस करेंगे।  


प्रभुपाद: हाँ।
प्रभुपाद: हाँ।  


जयअद्वैत: अगर हमें गुरु जो कहता है उस पर विश्वास है, तो स्वचालित रूप से हम ऐसा करेंगे।
जयअद्वैत: अगर हमें गुरु जो कहते है उस पर विश्वास है, तो स्वचालित रूप से हम ऐसा करेंगे।  


प्रभुपाद: हाँ। मेरे गुरु महाराज १९३६ में चल बसे, और मैंने तीस साल बाद, १९६५ में इस आंदोलन को शुरू किया। तो फिर? मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है। यहां तक कि गुरु शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है, अगर तुम वाणी का पालन करो, तो तुम्हे मदद मिल रही है।
प्रभुपाद: हाँ। मेरे गुरु महाराज १९३६ में चल बसे, और मैंने तीस साल बाद, १९६५ में इस आंदोलन को शुरू किया। तो फिर? मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है। यहां तक कि गुरु शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है, अगर तुम वाणी का पालन करो, तो तुम्हे मदद मिल रही है।  


सुदामा: तो जुदाई का कोई सवाल ही नहीं है जब तक शिष्य गुरु की शिक्षा का पालन करता है ।
सुदामा: तो जुदाई का कोई सवाल ही नहीं है जब तक शिष्य गुरु की शिक्षा का पालन करता है ।


प्रभुपाद: नहीं । चक्खु दान् दिलो जेइ....अगला क्या है?
प्रभुपाद: नहीं । चक्षु दान दिलो जेइ....अगला क्या है?  


सुदामा: चक्खु दान् दिलो जेइ, जन्मे जन्मे प्रभू सेइ।
सुदामा: चक्षु दान दिलो जेइ, जन्मे जन्मे प्रभू सेइ।  


प्रभुपाद: जन्मे जन्मे प्रभू सेइ। तो जुदाई वहाँ कहाँ है? किसने तुम्हारी आँखें खोल दी हैं, वह जन्म जन्मान्तर तुम्हारा प्रभु है।
प्रभुपाद: जन्मे जन्मे प्रभू सेइ। तो जुदाई कहाँ है? जीसने तुम्हारी आँखें खोल दी हैं, वह जन्म जन्मान्तर के लिए तुम्हारे प्रभु है।  


परमहंस: आपको अपने आध्यात्मिक गुरु से तीव्र जुदाई कभी महसूस नहीं होती?
परमहंस: आपको अपने आध्यात्मिक गुरु से तीव्र जुदाई कभी महसूस नहीं होती?  


प्रभुपाद: तुम्हे यह सवाल करने की आवश्यकता नहीं है।
प्रभुपाद: तुम्हे यह सवाल करने की आवश्यकता नहीं है।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 13:00, 5 October 2018



Morning Walk -- July 21, 1975, San Francisco

प्रभुपाद: तुम्हे दोनों के साथ संग करना होगा। गुरु-कृष्णा-कृपाय-पाय भक्ति-लता-बीज (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१५१)। दोनों गुरु की कृपा और कृष्ण की कृपा, उन्हे जोडना चाहिए। तो फिर तुम्हे मिलेगा।

जयअद्वैत: हम उस गुरू कृपा पाने के लिए बहुत उत्सुक हैं।

प्रभुपाद: कौन?

जयअद्वैत: हम, हम सब।

प्रभुपाद: हाँ। यस्या प्रसादाद भगवत-प्रसाद: अगर तुम्हे गुरु की कृपा मिलती है, तो स्वचालित रूप से तुम्हे कृष्ण मिलेंगे।

नारायण: गुरु कृपा केवल आध्यात्मिक गुरु को प्रसन्न करने से ही मिलता है, श्रील प्रभुपाद?

प्रभुपाद: नहीं तो कैसे?

नारायण: क्षमा करें?

प्रभुपाद: अन्यथा यह कैसे आ सकता है?

नारायण: जिन शिष्यों को अापको देखना का या अापसे बात करने का मौका नहीं मिलता.....

प्रभुपाद: वह बोल रहा था, वाणी और वपुह। अगर तुम उनके शरीर को नहीं देखते हो, तो तुम उनके शब्द, वाणी को लो।

नारायण: लेकिन उन्हे कैसे पता लगे कि वह अापको प्रसन्न कर रहा है, वे, श्रील प्रभुपाद?

प्रभुपाद: अगर तुम वास्तव में गुरु के शब्दों का पालन करो, इसका मतलब है कि वह खुश है। अगर तुम पालन नहीं करते हो, तो वह कैसे खुश हो सकते है?

सुदामा: इतना ही नहीं, लेकिन आपकी दया हर जगह फैली हई है, और अगर हम लाभ लेते हैं, आपने एक बार हमें बताया, तो हम परिणाम महसूस करेंगे।

प्रभुपाद: हाँ।

जयअद्वैत: अगर हमें गुरु जो कहते है उस पर विश्वास है, तो स्वचालित रूप से हम ऐसा करेंगे।

प्रभुपाद: हाँ। मेरे गुरु महाराज १९३६ में चल बसे, और मैंने तीस साल बाद, १९६५ में इस आंदोलन को शुरू किया। तो फिर? मुझे गुरु की दया मिल रही है। यह वाणी है। यहां तक कि गुरु शारीरिक रूप से मौजूद नहीं है, अगर तुम वाणी का पालन करो, तो तुम्हे मदद मिल रही है।

सुदामा: तो जुदाई का कोई सवाल ही नहीं है जब तक शिष्य गुरु की शिक्षा का पालन करता है ।

प्रभुपाद: नहीं । चक्षु दान दिलो जेइ....अगला क्या है?

सुदामा: चक्षु दान दिलो जेइ, जन्मे जन्मे प्रभू सेइ।

प्रभुपाद: जन्मे जन्मे प्रभू सेइ। तो जुदाई कहाँ है? जीसने तुम्हारी आँखें खोल दी हैं, वह जन्म जन्मान्तर के लिए तुम्हारे प्रभु है।

परमहंस: आपको अपने आध्यात्मिक गुरु से तीव्र जुदाई कभी महसूस नहीं होती?

प्रभुपाद: तुम्हे यह सवाल करने की आवश्यकता नहीं है।