HI/Prabhupada 0228 - अमर होने का रास्ता समझो

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Lecture on BG 2.15 -- London, August 21, 1973

तो उनके सम्मेलन, उनके संयुक्त राष्ट्र, उनकी वैज्ञानिक उन्नति, उनकी शैक्षिक प्रणाली, तत्वज्ञान, और बाकी सब, यह सब कुछ है कि इस भौतिक संसार में सुख कैसे हो सकते हैं । ग्रह-व्रतानाम । यहाँ उद्देश्य है कि खुश कैसे रहें । और यह संभव नहीं है । ये दुष्ट नहीं समझ सकते । अगर तुम खुश रहना चाहते हो, तो तुम्हे कृष्ण के पास आना चाहिए । माम उपेत्य तु कौन्तेय दुक्खालयम अशाश्वतम नाप्नुवन्ति ( भ गी ८।१५) कृष्ण कहते हैं "अगर कोई मेरे पास आता है, तो उसे फिर इस दुख से भरे जगह में नहीं अाना पडता है ।" दुक्खालयम । यह भौतिक दुनिया कृष्ण द्वारा समझाया गई है दुक्खालयम के रूप में । अालयम का मतलब है जगह, और दुक्ख का मतलब है संकट । यहाँ सब कुछ मातमी है, लेकिन मूर्खों मोह माया में, माया से ढके हुए, उस संकट को वह खुशी के रूप में स्वीकार करता है । यही माया है । यह खुशी तो है ही नहीं । एक आदमी पूरे दिन और रात काम कर रहा है, और क्योंकि उसे कुछ कागज मिल रहा है जिसमें लिखा है "हम भगवान में विश्वास करते हैं । इस कागज़ लो, सौ डॉलर । मैं तुम्हे धोखा देता हूँ ।" एसा नहीं है? "हम भगवान में विश्वास करते हैं । मैं तुम्हे भुगतान करने का वादा करता हूँ । अब यह पेपर लो । एक पैसे क भी मूल्य नहीं है। वहाँ लिखा है सौ डॉलर । " तो मैं सोच रहा हूँ कि मैं बहुत खुश हूँ : "अब मुझे यह कागज़ मिल गया है ।" बस । धोखा देना और धोखा खाना । यह चल रहा है ।

इसलिए हमें इस भौतिक दुनिया की खुशी और संकट से परेशान नहीं होना चाहिए । यही हमारा उद्देश्य होना चाहिए । हमारा उद्देश्य होना चाहिए कि कैसे कृष्ण भावनामृत का पालन करें । पालन कैसे करें । और चैतन्य महाप्रभु नें बहुत सरल फार्मूला दिया है:

हरेर नाम हरेर नाम हरेर नामैव केवलम
कलौ नास्ति एव नास्ति एव नास्ति एव गतिर अन्यथा
(चै च अादि १७।२१)

। इस कली युग में, तुम किसी भी गंभीर तपस्या को अंजाम नहीं दे सकते हो बस हरे कृष्ण मंत्र का जाप करो । ऐसा करने में भी हम सक्षम नहीं हैं । ज़रा देखो । हम कितने दुर्भाग्यपूर्ण हैं । तो यह कली-युग की स्थिति है । मंदा सुमंद-मतयो मंद-भाग्या उपदृता: (श्री भ १।१।१०) वे बहुत दुष्ट हैं, मंद । मंद का मतलब है बहुत बुरा, मंद । और सुमंद-मतय: । अौर अगर वे कुछ सुधार चाहते हैं, तो वे किसी बदमाश को गुरुजी महाराजा स्वीकार करेंगे । मंदा सुमंद-मतयो । और कोई पार्टी जो सदाशयी नहीं है, उसे वे स्वीकार करते हैं, "ओह, यह बहुत अच्छा है।" तो सब से पहले वे सब दुष्ट हैं, और वे कुछ स्वीकार करते हैं, वह भी दुष्ट है । क्यों? बदकिस्मत । मंदा सुमंद-मतयो मंद-भाग्या (श्री भ १।१।१०) मंद-भाग्या मतलब है बदकिस्मत । और उस के ऊपर, उपदृता: हमेशा परेशान करों से, बारिश न होने से, अपर्याप्त भोजन से । ऐसी बहुत सी बातें । इस कली-युग की स्थिति है । इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा ... चैतन्य महाप्रभु नहीं । यह वैदिक साहित्य में है कि तुम योग का अभ्यास नहीं कर सकते हो, ध्यान या बड़े, बड़े यज्ञ या भगवान की पूजा के लिए बड़े, बड़े मंदिरों का निर्माण । यह आजकल बहुत, बहुत मुश्किल है । बस मंत्र का जाप करो - हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण, हरे हरे / हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । और धीरे - धीरे तुम समझ जाअोगे अमर होने का रास्ता । बहुत बहुत धन्यवाद ।