HI/Prabhupada 0236 - एक ब्राह्मण, एक सन्यासी,भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं: Difference between revisions

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इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि विशयीर अन्न खाइले मालीन हय मन ([[Vanisource:CC Antya 6.278|चै च अन्तय ६।२७८]]) ऐसे महान व्यक्तित्व दूशित हो गए क्योंकि उन्होंने उनसे पैसा लिया, अन्न अगर मैं बहुत अधिक भौतिकवादी द्वारा प्रदान किया जाता हूँ, तो वह मुझे प्रभावित करेगा । मैं भी भौतिकवादी हो जाऊँगा । मैं भी भौतिकवादी हो जाऊँगा । तो चैतन्य महाप्रभु ने चेतावनी दी है कि "जो विशयि हैं, जो भक्त नहीं हैं, उनसे कुछ भी स्वीकार मत करो क्योंकि यह तुम्हारे मन को अशुद्ध कर देगा ।" तो इसलिए एक ब्राह्मण और एक वैष्णव, वे सीधे पैसा स्वीकार नहीं करते । वे भिक्षा स्वीकार करते हैं । भिक्षा, भिक्षा तुम कर सकते हो ... जैसे यहाँ कहा जाता है भौक्क्षयम । श्रेयो भोक्तुम भैक्क्षयम अपीह लोके ([[Vanisource:BG 2.5|भ गी २।५]]) । जब तुम किसी से पूछते हो... फिर भी, भिक्षा भी वर्जित है कभी कभी उस व्यक्ति से जो बहुत अधिक भौतिकवादी है । लेकिन भिक्षा संन्यासियों के लिए अनुमति है, ब्राह्मण के लिए । तो इसलिए अर्जुन बोल रहे हैं कि "बजाय हत्या के, इस तरह के महान गुरु जो इतने महान व्यक्तित्व हैं, महानुभावान....." तो भैक्क्षयम । एक क्षत्रिय के लिए ... एक ब्राह्मण, एक सन्यासी, भीख माँग सकते हैं, भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं । इसकी अनुमति नहीं है । जैसे ... वे एक क्षत्रिय थे, अर्जुन । तो वे कहते हैं, " बेहतर मैं एक ब्राह्मण का पेशा अपनाऊँ, और दर दर भीख मागूँ, बजाय इसके की मैं राज्य का आनंद लूँ अपने गुरु की हत्या करके ।" यह उनका प्रस्ताव था । तो कुल मिलाकर, अर्जुन भ्रमित हैं - भ्रमित इस मतलब से कि वे अपने कर्तव्य को भूल रहे हैं । वे क्षत्रिय हैं, उनका कर्तव्य है लडना, विपरीत पार्टी कोई भी हो, उनका बेटा भी हो तो भी, एक क्षत्रिय अपने बेटे को मारने में संकोच नहीं करेगा भले ही वह विरोधी है, इसी तरह, बेटा, अगर पिता प्रतिकूल है, वह अपने पिता को मारने के लिए संकोच नहीं करता है । यही क्षत्रिय का कड़ा कर्तव्य है, कोई विचार नहीं । एक क्षत्रिय उस तरह से विचार नहीं कर सकता है । इसलिए कृष्ण ने कहा, क्लैबवयम: "तुम कायर मत बनो । क्यों तुम कायर बन रहे हो ?" यह विषय चल रहे हैं । बाद में, श्री कृष्ण उसे वास्तविक आध्यात्मिक शिक्षा देंगे । यह है ... साधारण वार्ता दोस्त और दोस्त के बीच में हो रही है
इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि विषयीर् अन्न खाइले मलिन हय मन ([[Vanisource:CC Antya 6.278|चैतन्य चरितामृत अन्त्य ६.२७८]]) ऐसे महान व्यक्तित्व दूषित हो गए क्योंकि उन्होंने उनसे धन लिया, अन्न | यदि मैं किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा उपबंधित किया जाता हूँ जो बहुत अधिक भौतिकवादी है, तो यह मुझे प्रभावित करेगा । मैं भी भौतिकवातादी बन जाऊँगा । मैं भी भौतिकतावादी बन जाऊँगा । तो चैतन्य महाप्रभु ने चेतावनी दी है कि, "जो विषयी हैं, जो भक्त नहीं हैं, उनसे कुछ भी स्वीकार मत करो क्योंकि यह आपके मन को अशुद्ध कर देगा ।" तो इसलिए एक ब्राह्मण और एक वैष्णव, वे प्रत्यक्ष धन स्वीकार नहीं करते । वे भिक्षा स्वीकार करते हैं । भिक्षा, भिक्षा आप कर सकते हैं... जैसा कि यहाँ बताया गया है भैक्क्षयम् । श्रेयो भोक्तुम भैक्क्षयम् अपीह लोके ([[HI/BG 2.5|भ.गी. २.५]]) । जब आप किसी से माँगते हैं... फिर भी, भिक्षा भी वर्जित है कभी-कभी उस व्यक्ति से जो बहुत अधिक भौतिकतावादी है । लेकिन संन्यासी के लिए भिक्षा माँगने की अनुमति है, ब्राह्मण के लिए ।  


कोई बात नहीं । धन्यवाद ।
तो इसलिए अर्जुन बोल रहे हैं कि "वध करने की जगह, ऐसे महान गुरुजन जो इतने महान व्यक्ति हैं, महानुभावान्...." तो भैक्क्षयम । एक क्षत्रिय  के लिए ... एक ब्राह्मण, एक संन्यासी, भीख माँग सकते हैं,  भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं । इसकी अनुमति नहीं है । जैसे... वे एक क्षत्रिय थे, अर्जुन । तो वे कहते हैं, " श्रेष्ठतर होगा मैं ब्राह्मण वृति अपनाऊँ, और द्वार- द्वार जाकर भीख मागूँ, बजाय इसके की मैं राज्य का आनंद लूँ अपने गुरु की हत्या करके ।" यह उनका प्रस्ताव था । तो कुल मिलाकर, अर्जुन भ्रमित हैं - भ्रमित हैें अर्थात् वे अपने कर्तव्य को भूल रहे हैं । वे क्षत्रिय हैं, उनका कर्तव्य है युद्ध करना, विपरीत पक्ष में कोई भी क्यों न हो, यहाँ तक ​​कि उनका पुत्र भी, एक क्षत्रिय अपने पुत्र को मारने में संकोच नहीं करेगा, भले ही वह विरोधी हो, इसी तरह, पुत्र, अगर पिता प्रतिकूल है, वह अपने पिता को मारने के लिए संकोच नहीं करता है ।
 
यही क्षत्रिय का कठोर कर्तव्य है, कोई विचार नहीं । एक क्षत्रिय उस तरह से विचार नहीं कर सकता है । इसलिए कृष्ण ने कहा, क्लैबयम्: "तुम कायर मत बनो । क्यों तुम कायर बन रहे हो ?" यह विषय चल रहे हैं । बाद में, श्रीकृष्ण उसे वास्तविक आध्यात्मिक शिक्षा देंगे । यह है... मित्र और मित्र के मध्य सामान्य वार्ता चल रही है। ।
 
ठीक है । धन्यवाद ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on BG 2.4-5 -- London, August 5, 1973

इसलिए चैतन्य महाप्रभु ने कहा है कि विषयीर् अन्न खाइले मलिन हय मन (चैतन्य चरितामृत अन्त्य ६.२७८) । ऐसे महान व्यक्तित्व दूषित हो गए क्योंकि उन्होंने उनसे धन लिया, अन्न | यदि मैं किसी ऐसे व्यक्ति द्वारा उपबंधित किया जाता हूँ जो बहुत अधिक भौतिकवादी है, तो यह मुझे प्रभावित करेगा । मैं भी भौतिकवातादी बन जाऊँगा । मैं भी भौतिकतावादी बन जाऊँगा । तो चैतन्य महाप्रभु ने चेतावनी दी है कि, "जो विषयी हैं, जो भक्त नहीं हैं, उनसे कुछ भी स्वीकार मत करो क्योंकि यह आपके मन को अशुद्ध कर देगा ।" तो इसलिए एक ब्राह्मण और एक वैष्णव, वे प्रत्यक्ष धन स्वीकार नहीं करते । वे भिक्षा स्वीकार करते हैं । भिक्षा, भिक्षा आप कर सकते हैं... जैसा कि यहाँ बताया गया है भैक्क्षयम् । श्रेयो भोक्तुम भैक्क्षयम् अपीह लोके (भ.गी. २.५) । जब आप किसी से माँगते हैं... फिर भी, भिक्षा भी वर्जित है कभी-कभी उस व्यक्ति से जो बहुत अधिक भौतिकतावादी है । लेकिन संन्यासी के लिए भिक्षा माँगने की अनुमति है, ब्राह्मण के लिए ।

तो इसलिए अर्जुन बोल रहे हैं कि "वध करने की जगह, ऐसे महान गुरुजन जो इतने महान व्यक्ति हैं, महानुभावान्...." तो भैक्क्षयम । एक क्षत्रिय के लिए ... एक ब्राह्मण, एक संन्यासी, भीख माँग सकते हैं, भीख माँग सकते हैं, लेकिन एक क्षत्रिय नहीं, एक वैश्य नहीं । इसकी अनुमति नहीं है । जैसे... वे एक क्षत्रिय थे, अर्जुन । तो वे कहते हैं, " श्रेष्ठतर होगा मैं ब्राह्मण वृति अपनाऊँ, और द्वार- द्वार जाकर भीख मागूँ, बजाय इसके की मैं राज्य का आनंद लूँ अपने गुरु की हत्या करके ।" यह उनका प्रस्ताव था । तो कुल मिलाकर, अर्जुन भ्रमित हैं - भ्रमित हैें अर्थात् वे अपने कर्तव्य को भूल रहे हैं । वे क्षत्रिय हैं, उनका कर्तव्य है युद्ध करना, विपरीत पक्ष में कोई भी क्यों न हो, यहाँ तक ​​कि उनका पुत्र भी, एक क्षत्रिय अपने पुत्र को मारने में संकोच नहीं करेगा, भले ही वह विरोधी हो, इसी तरह, पुत्र, अगर पिता प्रतिकूल है, वह अपने पिता को मारने के लिए संकोच नहीं करता है ।

यही क्षत्रिय का कठोर कर्तव्य है, कोई विचार नहीं । एक क्षत्रिय उस तरह से विचार नहीं कर सकता है । इसलिए कृष्ण ने कहा, क्लैबयम्: "तुम कायर मत बनो । क्यों तुम कायर बन रहे हो ?" यह विषय चल रहे हैं । बाद में, श्रीकृष्ण उसे वास्तविक आध्यात्मिक शिक्षा देंगे । यह है... मित्र और मित्र के मध्य सामान्य वार्ता चल रही है। ।

ठीक है । धन्यवाद ।