HI/Prabhupada 0237 - हम कृष्ण के साथ संपर्क में आ जाते हैं उनका नाम जप कर, हरे कृष्ण
Lecture on BG 2.3 -- London, August 4, 1973
प्रद्युम्न: अनुवाद - " हे पृथा के बेटे, इस अपमानजनक नपुंसकता के अाधीन मत अाअो । यह तुम्हे शोभा नहीं देता । दिल की ऐसी क्षुद्र कमजोरी को छोड़ दो और उठो, दुश्मन के हे ताड़क ।"
प्रभुपाद: तो भगवान, कृष्ण उत्साहित कर रहे है., क्षूद्रम ह्रदय-दौर्बल्यम । "एक क्षत्रिय का इस तरह बात करना, 'नहीं, नहीं, मैं अपने भाइयों को नहीं मार सकता । मैं अपने हथियार डाल रहा हूँ , यह कायरता है, कमजोरी । क्यों तुम यह सब बकवास कर रहे हो? " क्षूद्रम ह्रदय-दौर्बल्यम । " इस तरह की करुणा, एक क्षत्रिय के रूप में अपने कर्तव्य को त्याग देना, यह बस दिल की कमजोरी है । इसका कोई मतलब नहीं है ।" क्लैब्यम म स्म गम: पार्थ नैतत् त्वयै उपपद्यते । "खासकर तुम्हारे लिए । तुम मेरे दोस्त हो । लोग क्या कहेंगे? तो, दिल की इस कमजोरी को त्याग दो अौर उत्तिश्ठ, खड़े हो जाओ, साहसी बनो ।" तो देखो कैसे कृष्ण अर्जुन को प्रेरणा दे रहे लड़ने के लिए । लोग बहुत ज्यादा अज्ञात हैं और वे कभी कभी आलोचना करते हैं कि "कृष्ण अर्जुन को उक्सा रहे है वे बहुत सज्जन हैं, अहिंसक, और कृष्ण उन्हे लड़ने के लिए उक्सा रहे हैं ।" इसे जड-दर्शन कहा जाता है । जड-दर्शन । जड-दर्शन का मतलब है भौतिक दृष्टि । इसलिए शास्त्र कहते हैं, अत: श्री कृष्ण नामादि न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: (चै च मध्य १७।१३६) श्री कृष्ण-नामादि । हम कृष्ण के साथ संपर्क में अा जाते हैं उनका नाम जप कर, हरे कृष्ण । यही श्री कृष्ण के साथ हमारे संबंध की शुरुआत है । नामादि । तो शास्त्र कहते हैं, अत: श्री कृष्ण-नामादि । अदि का मतलब है शुरुआत । तो कृष्ण के साथ हमारा कोई संबंध नहीं है । लेकिन अगर हम हरे कृष्ण महा मंत्र का जाप करते हैं, तुरंत हमारा पहल मौका अाता है कृष्ण से संपर्क करने के लिए । तो यह अभ्यास किया जाना चाहिए । ऐसा नहीं है कि तुरंत मैं कृष्ण का एहसास करूँगा । यही नहीं है ... बेशक, अगर कोई उन्नत है, यह तुरंत संभव है । तो श्री कृष्ण-नामादि । नाम का मतलब है, नाम । तो कृष्ण नाम ही नहीं हैं । आदि, यह शुरुआत है, लेकिन रूप, गतिविधियॉ । जैसे श्रवणम् कीर्तनम (श्री भ ७।५।२३) । तो श्रवणम् कीर्तनम, महिमा करना या कृष्ण के बारे में वर्णन करना ... तो उनका अपना रूप है । तो नाम का मतलब है नाम, और फिर, रूप का मतलब है आकार । नाम, रूप... लीला का मतलब है लीलाऍ, गुण का मतलब है गुणवत्ता, घेरा, उनके साथि, यह सभी ... अत: श्री कृष्ण नामादि न (चै च मध्य १७।१३६) । न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: साधारण इंद्रियों के द्वारा हम नहीं समझ सकते हैं ... या तो श्री कृष्ण के नाम को... हम सुन रहे हैं अपने, कर्ण के माध्यम से, श्री कृष्ण का नाम, लेकिन अगर हम शुद्धि के बिना हमारे कान को रखते हैं, तो ... बेशक, सुनने से, यह शुद्ध हो जाएगा । हमें मदद करनी होगी । मदद का मतलब है, अपराधों से बचना होगा, अपराधों के दस प्रकार । तो इस तरह से हम शुद्धिकरण की प्रक्रिया में मदद कर सकते हैं । जैसे की अगर मैं आग लगना चाहता हूँ, तो मैं अाग लगाने की प्रक्रिया में मदद करता हूँ लकड़ी सुखाने के द्वारा । यह बहुत जल्द ही आग पकडेगा । इसी तरह, बस जप करके, यह हमारी मदद करेगा पर समय लगेगा । लेकिन अगर हम अपराधों से बचते हैं, तो यह बहुत जल्दी से शुद्ध हो जाएगा । नतिजा निकलेगा ।