HI/Prabhupada 0239 - कृष्ण को समझने के लिए, हमें विशेष इंद्रियों की आवश्यकता है

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Lecture on BG 2.3 -- London, August 4, 1973

तो यह सहानुभूति अर्जुन की सहानुभूति की तरह है । सहानुभूति, अब राज्य कातिल के साथ सहानुभूति करते हैं कि उसे मृत्यु दंड नहीं दिया जाना चाहिए । यह अर्जुन है । यही ह्रदय-दौरबल्यम है । यह कर्तव्य नहीं है । हमें बहुत सख्ती से उच्च प्राधिकारी द्वारा दिए गए कर्तव्यों का निर्वहन करना चाहिए, किसी भी विचार के बिना । तो ये दिल की कमजोरी है, इस तरह की सहानुभूति । लेकिन साधारण व्यक्ति समझ नहीं पाऍगे । इसलिए कृष्ण को समझने के लिए, हमें विशेष इंद्रियों की आवश्यकता है, विशेष इंद्रियों की, साधारण इंद्रियों नहीं । विशेष इंद्रियों का मतलब है कि तुम्हे अपनी आँखों को उखाड कर एक और आँखें डालनी होंगी ? नहीं । तुम्हे उन्हे शुद्ध करना होगा । तत-परत्वेन निर्मलम (चै च मध्य १९।१७०) जैसे तुम्हारी आँखों में कुछ रोग है, तो तुम दवा लागाते हो, और जब स्पष्ट हो जाता है, तुम स्पष्ट रूप से सब कुछ देख सकते हो ; इसी तरह, इन कुंद इन्द्रियों के साथ, हम कृष्ण क्या है यह समझ नहीं सकते हैं । सेवन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: ( भ र सि १।२।२३४) जैसे श्री कृष्ण के नामादौ, श्री कृष्ण का नाम, रूप, गुणवत्ता, आदि, इन कुंद इंद्रियों से समझ में नहीं आती हैं, तो यह कैसे किया जा सकता है? अब, सेवन्मुखे हि जिह्वादौ । फिर जिह्वादौ, जीभ से शुरुआत, जीभ को नियंत्रित करना । जरा देखो, यह कुछ अजीब है कि "तुम्हे कृष्ण को समझना होगा जीभ को नियंत्रित करके ?" यह अद्भुत बात है । कैसे है ये? कृष्ण को समझने के लिए मुझे अपनी जीभ को नियंत्रित करना होगा? लेकिन यह है, शास्त्र निषेधाज्ञा है: सेवन्मुखे हि जिह्वादौ । जिह्वा का मतलब है जीभ । तो श्री कृष्ण को देखने के लिए, कृष्ण को समझने के लिए, पहला काम है अपनी जीभ को नियंत्रित करना । इसलिए हम कहते हैं, शराब मेत लो, मांस मत लो । क्योंकि यह जीभ का नियंत्रण है । जीभ सबसे बलवान दुश्मन है इन्द्रिय के रूप मे, विकृत इन्द्रिय के रूप में । और ये दुष्ट कहते हैं, वे "नहीं, तुम जो चाहो खा सकते हो । इसका धर्म से कोई लेना देना नहीं है ।" लेकिन वैदिक शास्त्र कहते हैं "दुष्ट, सब से पहले अपनी जीभ पर नियंत्रण करो । तो फिर तुम समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं ।" तो यह वैदिक निषेधाज्ञा कहा जाता है - बिल्कुल सही । अगर तुम अपनी जीभ पर नियंत्रण करते हो, तो तुम अपने अपने पेट पर नियंत्रण कर सकते हो, तो तुम अपने जननांग को नियंत्रित कर सकते हो । रूपा गोस्वामी का अनुदेश है,

वाचो वेगम मनसो क्रोध-वेगम
जिह्वावेगम उदरोपस्थ-वेगम
एतान वेगान यो विशहेत धीर:
सर्वम अपिमाम स पृथ्विम स शिश्यात
(ने अौ इन १)

यह अनुदेश है, कि जो कोई भी अपनी जीभ को नियंत्रित करने में सक्षम हो जाता है, मन पर नियंत्रण करने में, गुस्से को काबू में करने में, पेट को नियंत्रित करने में और जननांग को नियंत्रित करने में - अगर यह छह प्रकार के नियंत्रण है,ं तो वह आध्यात्मिक गुरु बनने के लिए योग्य है; वह दुनिया भर में शिष्य बना सकता है । और अगर तुम अपनी जीभ पर नियंत्रण नहीं कर सकते हो, अपने गुस्से पर नियंत्रण (नहीं कर सकते हो) अपने मानसिक मनगढ़ंत कहानीयों को नियंत्रित नहीं कर सकते हो, तो कैसे तुम भी एक आध्यात्मिक गुरु बन सकते हो? यह संभव नहीं है । पृथ्विम स शिश्यात । जिसने किया ... वही गोस्वामी, गोस्वामी या स्वामी, इंद्रियों का मालिक कहा जाता है । इन छह प्रकार को नियंत्रित करने वाला मालिक । तो शुरुआत जिह्वा से है । सेवन्मुखे हि जिह्वादौ स्वयम एव स्फुरति अद: ( भ र सि १।२।२३४) सेवा । जीभ को प्रभु की सेवा में लगाया जा सकता है । कैसे? तुम हरे कृष्ण का जाप करो, हमेशा महिमा करो । वाचाम्सि वैकुण्ठ गुणानुवर्नने । वाचाम्सि का मतलब है बात करना । बात करना ही जीभ का काम है, और चखना जीभ का काम है । तो तुम जीभ को व्यस्त रखो भगवान की सेवा में, उनकी महिमा करके । जब भी ... तुम एक व्रत लो कि " जब भी मैं बात करूगा, मैं सिर्फ कृष्ण की महिमा करूगा, अौर कुछ नहीं ।" यही जीभ नियंत्रण है । अगर तुम अपनी जीभ कुछ भी बकवास बात करने की अनुमति नहीं हो, ग्राम्य-कथा ... हम कभी कभी एक साथ बैठते हैं । हम इतनी सारी बकवास बातें करते हैं । यह नियंत्रित किया जाना चाहिए । "अब मैंनें प्रभु की सेवा के लिए अपनी जीभ को लगाया है, इसलिए हम इन्द्रिय संतुष्टि की कोई बात नहीं करेंगे ।" यह जीभ को नियंत्रित करना है । "मैं वह नहीं खा सकता हूँ जो कृष्ण को अर्पण न किया गया हो ।" यह जीभ को नियंत्रित करना है । तो ये छोटे तकनीक हैं, लेकिनह इनका बहुमूल्य है, तोकि कृष्ण खुशी होंगे तपस्या के (साथ) , और वह अपने अाप को प्रकाशित करेंगे । तुम नहीं समझ सकते । तुम कृष्ण को नहीं देख सकते हो । तुम कृष्ण को आदेश नहीं कर सकते " कृष्ण, कृपया आओ, बांसुरी के साथ नृत्य करते हुए । मैं आपको देखूँगा ।" यह आदेश है । श्री कृष्ण तुम्हारे आदेश के अधीन नहीं हैं । इसलिए चैतन्य महाप्रभु, हमें शिक्षा देते हैं, अाश्लिश्य वा पाद-रताम पिनस्तु माम मर्म हताम करोतु वा अदर्शनम (चै च अन्तय २०।४७)