HI/Prabhupada 0248 - कृष्ण की १६१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए: Difference between revisions

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प्रद्युम्न: "न ही हमें पता है कि क्या बेहतर है - उन्हें जीतने, या उनके द्वारा पराजित होना । धृतराष्ट्र के बेटे - जिन्हे हमने अगर मारा, तो हम जीने के लिए परवाह नहीं करनी चाहिए - - अब ये युद्ध के मैदान में हमारे सामने खड़े हैं ।" प्रभुपाद: तो ये चचेरे भाईयों का दो समूह ... महाराज पाण्डु के पाँच पुत्र थे और धृतराष्ट्र के एक सौ बेटे थे । तो यह परिवार, एक ही परिवार, और यह उन दोनों के बीच समझ थी, कि अगर परिवार से परे अन्य लोगों नें उन पर हमला किया, वे १०५ भाइ एक जुट होकर लड़ेंगे । लेकिन जब आपस में लड़ने के बात अाई - एक तरफ, सौ भाइ, एक तरफ, पांच भाई । क्योंकि एक क्षत्रिय परिवार, एसा समझा जाता है कि उन्हे लड़ते रहना होगा । यहां तक ​​कि उनकी शादी में भी लड़ाई होती है । लड़ने के बिना, कोई शादी क्षत्रिय परिवार में नहीं होती है । कृष्ण की १६१०८ 6 पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए । यह एक खेल था । क्षत्रिय का लड़ना, यह एक खेल था । तो वे उलझन में है कि इस तरह की लडाई को प्रोत्साहित करें या नहीं । बंगाल में एक कहावत है, खाबो कि खाबो ना यदि खाअो तु पौशे । "जब तुम उलझन में हो, क्या में खाऊँ, या नहीं, बेहतर है मत खाअो ।" कभी कभी हम इस हालत में हैं, "मैं बहुत भूख नहीं हूँ, मैं खाऊँ या नहीं? सबसे अच्छा उपाय है न खाना, न कि खाना । लेकिन अगर तु खाते हो, तो तुम दिसंबर, पौश के महीने में खाअो । क्यों? यह है ... बंगाल में ... बंगाल में उष्णकटिबंधीय जलवायु है, लेकिन सर्दि के मौसम में, यह सलाह दी जाती है कि "अगर तुम खाते हो तो यह इतना हानिकारक नहीं है क्योंकि यह पच जाएगा ।" रात बहुत लंबी है, या ठंड का मौसम, पाचन शक्ति, अच्छी है । तो जब हम भ्रमित होते हैं ", करें या न करें" जाबो कि जाबो ना यदि जाअो तु शौचे " "जब तुम सोचते हो, 'मैं जाऊँ या नहीं?' बेहतर है मत जाअो । लेकिन जब यह शौचालय जाने का सवाल है, तो तुम्हे जाना चाहिए ।" जाबो कि जाबो ना यदि तु शैचे, खाबो कि खाबो ना यरि खाअो तु पौशे । ये बहुत ही आम समझ है । इसी तरह, अर्जुन उलझन में हैं, अब मैं लड़ाई लडुँ या नहीं ?" वह भी हर जगह है । जब आधुनिक नेताओं के बीच युद्ध की घोषणा होती है तो वे विचार करते हैं ... जैसे पिछले द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर युद्ध के लिए तैयारी कर रहा था ... हर कोई जानता था कि हिटलर जवाबी कार्रवाई करेगा क्योंकि पहली लड़ाई में वा पराजित हो गया था । तो हिटलर फिर से तैयारी कर रहा था । एक, मेरे गुरु भाई, जर्मन, वह भारत में १९३३ में आए थे । तो उस समय उन्होंने कहा कि "युद्ध होना चाहिए । हिटलर भारी तैयारियाँ तैयारी कर रहा है । युद्ध होना ही चाहिए । " तो उस समय, लगता है, तुम्हारे देश में प्रधानमंत्री श्री चेम्बरलेन थे । और वे युद्ध को रोकने के लिए हिटलर को देखने के लिए गए । लेकिन वह माना नहीं । तो इसी तरह, इस लड़ाई में, आखिरी क्षण तक, श्री कृष्ण नें युद्ध से बचाने की कोशिश की । उन्होंने दुर्योधन को प्रस्ताव दिया कि , "वे क्षत्रिय हैं, तम्हारे चचेरे भाई भाई । तुमने उनका राज्य हडप लिया है । कोई बात नहीं, तुमने किसी न किसी तरह से । लेकिन वे क्षत्रिय हैं । उनकी आजीविका का कुछ साधन होना चाहिए । तो उन्हें दे दो, पांच भाई, पांच गांव । पूरी दुनिया के साम्राज्य में से, तुम उन्हें पांच गांव दे दो ।" तो वह ... "नहीं, मैं लड़ाई के बिना राज्य का एक इंच नहीं दूँगा ।" इसलिए, इस स्थिति में, लड़ाई होनी ही चाहिए ।
प्रद्युम्न: "न ही हमें पता है कि क्या बेहतर है - उन्हें जीतने, या उनके द्वारा पराजित होना । धृतराष्ट्र के बेटे - जिन्हे हमने अगर मारा, तो हमे जीने के लिए परवाह नहीं करनी चाहिए - अब ये युद्ध के मैदान में हमारे सामने खड़े हैं ।"  
 
प्रभुपाद: तो ये चचेरे भाईयों का दो समूह ... महाराज पाण्डु के पाँच पुत्र थे और धृतराष्ट्र के एक सौ बेटे थे । तो यह परिवार, एक ही परिवार, और यह उन दोनों के बीच समझ थी, कि अगर परिवार से परे अन्य लोगों नें उन पर हमला किया, वे १०५ भाइ एक जुट होकर लड़ेंगे । लेकिन जब आपस में लड़ने के बात अाई - एक तरफ, सौ भाइ, एक तरफ, पांच भाई । क्योंकि एक क्षत्रिय परिवार, एसा समझा जाता है कि उन्हे लड़ते रहना होगा । यहां तक ​​कि उनकी शादी में भी लड़ाई होती है । लड़ाई के बिना, कोई शादी क्षत्रिय परिवार में नहीं होती है ।  
 
कृष्ण की १६,१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए । यह एक खेल था । क्षत्रिय का लड़ना, यह एक खेल था । तो वो उलझन में है कि इस तरह की लडाई को प्रोत्साहित करें या नहीं । बंगाल में एक कहावत है, खाबो कि खाबो ना यदि खाअो तु पौशे । "जब तुम उलझन में हो, क्या में खाऊँ, या नहीं, बेहतर है मत खाअो ।" कभी कभी हम इस हालत में हैं, "मैं बहुत भूखा नहीं हूँ, मैं खाऊँ या नहीं? सबसे अच्छा उपाय है न खाना, न कि खाना । लेकिन अगर तुम खाते हो, तो तुम दिसंबर, पौश के महीने में खाअो । क्यों?  
 
यह है ... बंगाल में ... बंगाल में उष्णकटिबंधीय जलवायु है, लेकिन सर्दि के मौसम में, यह सलाह दी जाती है कि "अगर तुम खाते हो तो यह इतना हानिकारक नहीं है क्योंकि यह पच जाएगा ।" रात बहुत लंबी है, या ठंड का मौसम, पाचन शक्ति, अच्छी है । तो जब हम भ्रमित होते हैं, "करें या न करें," जाबो कि जाबो ना यदि जाअो तु शौचे " "जब तुम सोचते हो, 'मैं जाऊँ या नहीं?' बेहतर है मत जाअो । लेकिन जब यह शौचालय जाने का सवाल है, तो तुम्हे जाना चाहिए ।" जाबो कि जाबो ना यदि तु शौचे, खाबो कि खाबो ना यदि खाअो तु पौशे । ये बहुत ही आम समझ है । इसी तरह, अर्जुन उलझन में हैं, अब मैं लड़ाई लडुँ या नहीं ?" वह भी हर जगह है ।
 
जब आधुनिक नेताओं के बीच युद्ध की घोषणा होती है तो वे विचार करते हैं ... जैसे पिछले द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर युद्ध के लिए तैयारी कर रहा था ... हर कोई जानता था कि हिटलर जवाबी कार्रवाई करेगा क्योंकि पहली लड़ाई में वा पराजित हो गया था । तो हिटलर फिर से तैयारी कर रहा था । एक, मेरे गुरु भाई, जर्मन, वह भारत में १९३३ में आए थे । तो उस समय उन्होंने कहा कि "युद्ध होगा ही । हिटलर भारी तैयारियाँ कर रहा है । युद्ध होगा ही । "  
 
तो उस समय, लगता है, तुम्हारे देश में प्रधानमंत्री श्रीमान चेम्बरलेन थे । और वे युद्ध को रोकने के लिए हिटलर को देखने के लिए गए । लेकिन वह माना नहीं । तो इसी तरह, इस लड़ाई में, आखिरी क्षण तक, श्री कृष्ण नें युद्ध से बचाने की कोशिश की । उन्होंने दुर्योधन को प्रस्ताव दिया कि "वे क्षत्रिय हैं, तम्हारे चचेरे भाई । तुमने उनका राज्य हडप लिया है । कोई बात नहीं, तुमने ले लिया है ऐसे या वैसे । लेकिन वे क्षत्रिय हैं । उनकी आजीविका का कुछ साधन होना चाहिए । तो उन्हें दे दो, पांच भाई, पांच गांव । पूरी दुनिया के साम्राज्य में से, तुम उन्हें पांच गांव दे दो ।" तो वह ... "नहीं, मैं लड़ाई के बिना राज्य का एक इंच भी नहीं दूँगा ।" इसलिए, इस स्थिति में, लड़ाई होनी ही चाहिए ।  
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Latest revision as of 13:07, 5 October 2018



Lecture on BG 2.6 -- London, August 6, 1973

प्रद्युम्न: "न ही हमें पता है कि क्या बेहतर है - उन्हें जीतने, या उनके द्वारा पराजित होना । धृतराष्ट्र के बेटे - जिन्हे हमने अगर मारा, तो हमे जीने के लिए परवाह नहीं करनी चाहिए - अब ये युद्ध के मैदान में हमारे सामने खड़े हैं ।"

प्रभुपाद: तो ये चचेरे भाईयों का दो समूह ... महाराज पाण्डु के पाँच पुत्र थे और धृतराष्ट्र के एक सौ बेटे थे । तो यह परिवार, एक ही परिवार, और यह उन दोनों के बीच समझ थी, कि अगर परिवार से परे अन्य लोगों नें उन पर हमला किया, वे १०५ भाइ एक जुट होकर लड़ेंगे । लेकिन जब आपस में लड़ने के बात अाई - एक तरफ, सौ भाइ, एक तरफ, पांच भाई । क्योंकि एक क्षत्रिय परिवार, एसा समझा जाता है कि उन्हे लड़ते रहना होगा । यहां तक ​​कि उनकी शादी में भी लड़ाई होती है । लड़ाई के बिना, कोई शादी क्षत्रिय परिवार में नहीं होती है ।

कृष्ण की १६,१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए । यह एक खेल था । क्षत्रिय का लड़ना, यह एक खेल था । तो वो उलझन में है कि इस तरह की लडाई को प्रोत्साहित करें या नहीं । बंगाल में एक कहावत है, खाबो कि खाबो ना यदि खाअो तु पौशे । "जब तुम उलझन में हो, क्या में खाऊँ, या नहीं, बेहतर है मत खाअो ।" कभी कभी हम इस हालत में हैं, "मैं बहुत भूखा नहीं हूँ, मैं खाऊँ या नहीं? सबसे अच्छा उपाय है न खाना, न कि खाना । लेकिन अगर तुम खाते हो, तो तुम दिसंबर, पौश के महीने में खाअो । क्यों?

यह है ... बंगाल में ... बंगाल में उष्णकटिबंधीय जलवायु है, लेकिन सर्दि के मौसम में, यह सलाह दी जाती है कि "अगर तुम खाते हो तो यह इतना हानिकारक नहीं है क्योंकि यह पच जाएगा ।" रात बहुत लंबी है, या ठंड का मौसम, पाचन शक्ति, अच्छी है । तो जब हम भ्रमित होते हैं, "करें या न करें," जाबो कि जाबो ना यदि जाअो तु शौचे " "जब तुम सोचते हो, 'मैं जाऊँ या नहीं?' बेहतर है मत जाअो । लेकिन जब यह शौचालय जाने का सवाल है, तो तुम्हे जाना चाहिए ।" जाबो कि जाबो ना यदि तु शौचे, खाबो कि खाबो ना यदि खाअो तु पौशे । ये बहुत ही आम समझ है । इसी तरह, अर्जुन उलझन में हैं, अब मैं लड़ाई लडुँ या नहीं ?" वह भी हर जगह है ।

जब आधुनिक नेताओं के बीच युद्ध की घोषणा होती है तो वे विचार करते हैं ... जैसे पिछले द्वितीय विश्व युद्ध में हिटलर युद्ध के लिए तैयारी कर रहा था ... हर कोई जानता था कि हिटलर जवाबी कार्रवाई करेगा क्योंकि पहली लड़ाई में वा पराजित हो गया था । तो हिटलर फिर से तैयारी कर रहा था । एक, मेरे गुरु भाई, जर्मन, वह भारत में १९३३ में आए थे । तो उस समय उन्होंने कहा कि "युद्ध होगा ही । हिटलर भारी तैयारियाँ कर रहा है । युद्ध होगा ही । "

तो उस समय, लगता है, तुम्हारे देश में प्रधानमंत्री श्रीमान चेम्बरलेन थे । और वे युद्ध को रोकने के लिए हिटलर को देखने के लिए गए । लेकिन वह माना नहीं । तो इसी तरह, इस लड़ाई में, आखिरी क्षण तक, श्री कृष्ण नें युद्ध से बचाने की कोशिश की । उन्होंने दुर्योधन को प्रस्ताव दिया कि "वे क्षत्रिय हैं, तम्हारे चचेरे भाई । तुमने उनका राज्य हडप लिया है । कोई बात नहीं, तुमने ले लिया है ऐसे या वैसे । लेकिन वे क्षत्रिय हैं । उनकी आजीविका का कुछ साधन होना चाहिए । तो उन्हें दे दो, पांच भाई, पांच गांव । पूरी दुनिया के साम्राज्य में से, तुम उन्हें पांच गांव दे दो ।" तो वह ... "नहीं, मैं लड़ाई के बिना राज्य का एक इंच भी नहीं दूँगा ।" इसलिए, इस स्थिति में, लड़ाई होनी ही चाहिए ।