HI/Prabhupada 0249 - सवाल उठाया गया था कि , क्यों युद्ध होता है: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0249 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1973 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
(Vanibot #0019: LinkReviser - Revise links, localize and redirect them to the de facto address)
 
Line 6: Line 6:
[[Category:HI-Quotes - in United Kingdom]]
[[Category:HI-Quotes - in United Kingdom]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0248 - कृष्ण की १६१०८ पत्नियां थीं, और लगभग हर बार उन्हे लड़ना पड़ा, पत्नी को हासिल करने के लिए|0248|HI/Prabhupada 0250 - श्री कृष्ण के लिए कार्य करो, भगवान के लिए काम करो, अपने निजी हित के लिए नहीं|0250}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 14: Line 17:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|F8EpbZvJezI|सवाल उठाया गया था कि , क्यों युद्ध होता है - Prabhupāda 0249}}
{{youtube_right|rvVzBv0O24E|सवाल उठाया गया था कि , क्यों युद्ध होता है - Prabhupāda 0249}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/730806BG.LON_clip2.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/730806BG.LON_clip2.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 26: Line 29:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
तो कोई सवाल ही नहीं है अर्जुन का विचार करना कि उसे लड़ना चाहिए या नहीं इसको कृष्ण द्वारा मंजूर दी गई है, तो लड़ाई होनी ही है । जैसे जब हम सैर पर थे, सवाल उठाया गया था कि "क्यों युद्ध होता है?" यह बहुत कठिन विषय नहीं है समझने के लिए क्योंकि हम में से हर एक में लड़ाई करने का जोश है । यहां तक ​​कि बच्चे लड़ते हैं, बिल्लि और कुत्ते लड़ते हैं, पक्षि लड़ते हैं, चींटियॉ लड़ती हैं । हमने यह देखा है । तो क्यों नहीं मनुष्य? लड़ने का जोश तो है । यही जीवित होने का एक लक्षण है । लड़ाई । तो कब यह लड़ाई होनी चाहिए? बेशक, वर्तमान समय में, महत्वाकांक्षी नेताओं द्वारा, वे लड़ते हैं । लेकिन लड़ाई, वैदिक सभ्यता के अनुसार, लड़ाई का मतलब है धर्म-युद्ध । धार्मिक सिद्धांतों पर । राजनीतिक विचारों से नहीं, वाद । जैसे अब लड़ाई दो राजनीतिक समूहों के बीच चल रही है, साम्यवादी और पूंजीवादी । वे केवल लड़ाई से बचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लड़ाई चल रही है । जैसे ही अमेरिका किसी क्षेत्र में अाता है, तुरंत रूस भी वहाँ अाता है । भारत और पाकिस्तान के बीच पिछलि लड़ाई में, जैसे ही राष्ट्रपति निक्सन नें उनके सातवें फ्लीट को भेजा, भारत महासागर पर, बंगाल की खाड़ी, लगभग भारत के सामने ... यह गैरकानूनी था । लेकिन बहुत फूला हुआ, अमेरिका । तो सातवें फ्लीट को भेजा, शायद पाकिस्तान के लिए सहानुभूति दिखाने के लिए । लेकिन तुरंत हमारे रूसी दोस्त भी दिखाई दिए । इसलिए, अमेरिका को वापस जाना पड़ा । अन्यथा, मुझे लगता है, अमेरिका पाकिस्तान की ओर से हमला करता । तो यह चल रहा है । तुम लड़ाई नहीं रोक सकते हो । कई लोग सोच रहे हैं कि वे युद्ध को कैसे रोकें । यह असंभव है । यह बकवास प्रस्ताव है । यह नहीं हो सकता है । क्योंकि लड़ाई का जोश हर किसी में है । यही जीव का एक लक्षण है । यहां तक ​​कि बच्चे जो कोई राजनीति नही जानते, कोई शत्रुता नहीं, वे पांच मिनट के लिए लड़ते हैं, फिर वे दोस्त बन जाते हैं । तो लड़ने का जोश है। अब, उसका कैसे उपयोग किया जाना चाहिए? हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है । हम कहते हैं, भावनामृत या चेतना । हम नहीं कहते हैं "लड़ाई बंद करो" या "यह करो, वह करो, यह करो" नहीं सब कुछ कृष्ण भावनामृत के तहत किया जाना चाहिए । यही हमारा प्रचार है । निर्बन्ध-कृष्ण-संबन्धे । तुम जो भी करो, उसका कुछ संबंध होना चाहिए कृष्ण की संतुष्टि के साथ । अगर कृष्ण संतुष्ट हैं, तो तुम उस पर अमल करो । यही कृष्ण भावनामृत है । कृष्णेन्द्रिय तृप्ति वान्छा तार नाम प्रम ([[Vanisource:CC Adi 4.165|चै च अादि ४।१६५]]) । यही प्रम है । वैसे ही जैसे तुम किसी से प्यार करते हो, अपने प्रेमी की खातिर, तुम कुछ भी कर सकते हो, और हम कभी कभी करते भी हैं । इसी तरह, यही बात कृष्ण को स्थानांतरित की जानी चाहिए । बस । अपने आप को शिक्षित करने का प्रयास करो कि कैसे कृष्ण को प्रम करें और कृष्ण के लिए काम करें । यह जीवन की पूर्णता है । स वै पुम्साम् परो धर्मो यतो भक्तिर अधोक्शजे ([[Vanisource:SB 1.2.6|श्री भ १।२।६]]) भक्ति का मतलब है सेवा, भज-सेवायाम । भज-धातु, यह प्रयोग किया जाता है सेवा के प्रयोजन के लिए, भज । और भज, संस्कृत व्याकरण है, क्ति-प्रत्यय, संज्ञा बनाने के लिए । यह क्रिया है । तो प्रत्यय हैं, क्ति-प्रत्यय, ति-प्रत्यय, कई प्रत्यय । तो भज-धातु क्ति, भक्ति के बराबर है । इसलिए भक्ति का मतलब है कृष्ण को प्रसन्न करना । भक्ति किसी और को लागू नहीं की जा सकती है । अगर कोई कहता है, कि "मैं काली का एक महान भक्त हूँ, देवी काली ।" वह भक्ति नहीं है, वह व्यापार है । क्योंकि किसी भी देवता की तुम पूजा करो , उसके पीछे कुछ उद्देश्य है । आम तौर पर, लोग मांस खाने के लिए देवी काली का भक्त बनते हैं । यह उनका उद्देश्य है. वैदिक संस्कृति में, जो मांस भक्षण करते हैं, उनको सलाह दी गई है कि "कसाईखाना से या बाजार से खरीदा मांस मत खाअो ।" असल में, यह प्रणाली दुनिया भर में, कहीं भी मौजूदा नहीं था, कसाईखाना चलाना । यह नवीनतम आविष्कार है । हम ईसाई सज्जनों के साथ कभी कभी बात करते हैं, और हम पूछताछ करते हैं कि "प्रभु मसीह कहते हैं, 'तुम हत्या नहीं करोगे' अाप क्यों मार रहे हो?" वे सबूत देते हैं, " ईसा मसीह भी कभी कभी मांस खाते थे ।" कभी कभी ईसा मसीह मांस खाते थे, यह ठीक है, लेकिन क्या ईसा मसीह नें यह भी कहा था कि "आप बड़े, बड़े कसाईखाना को चलाना और मांस खाते रहना?" तो कोई सामान्य ज्ञान भी नहीं है । ईसा मसीह नें खाया होगा । कभी कभी वे ... अगर वहाँ खाने के लिए कुछ भी नहीं है, तो तुम क्या कर सकते हो? यह एक और सवाल है । महान आवश्यकता में, जब मांस लेने के अलावा कोई अन्य भोजन नहीं है ... यह समय आ रहा है । इस युग में, कली-युग, धीरे - धीरे खाद्यान्न कम हो जाएँगे । यह श्रीमद-भागवता, बारहवें सर्ग में कहा गया है । कोई चावल नहीं, कोई गेहूं नहीं, कोई दूध नहीं, शक्कर नहीं उपलब्ध होगा । हमें मांस खाना होगा । यह हालत हो जाएगी । और शायद मानव मांस भी खाना पडे । यह पापी जीवन अपमानजनक है, इतना तक कि वे अधिक से अधिक पापी हो जाएँगे । तान अहम् द्विशत: क्रूरान क्षीपामि अजस्रम अंधे-योनिशु ([[Vanisource:BG 16.19|भ गी १६।१९]]) जो राक्षस हैं, पापी हैं, प्रकृति का नियम है उसे ऐसी हालत में रखने का कि वह ज्यादा से ज्यादा एक दानव बनेगा ताकि वह भगवान क्या हैं यह कभी समझ नहीं पाएगा । यह प्रकृति का नियम है । अगर तुम भगवान को भूलना चाहते हो, तो भगवान तुम्हे ऐसी स्थिति में डालेंगे कि तुम कभी नहीं समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं । यह राक्षसी जीवन है । वह समय भी आ रहा है । वर्तमान समय में, अभी भी कुछ लोग रुचि रखते हैं, भगवान क्या हैं । अर्तो अर्थात्ति जिज्ञादु ज्ञानी ([[Vanisource:CC Madhya 24.95|चै च मध्य २४।९५]]) लेकिन वह समय अा रहा है जब भगवान को समझने के लिए समझ नहीं होगी । वह काली-युग का अंतिम चरण है, और उस समय कल्की अवतार, कल्की अवतार आएँगे । उस समय भगवान भावनामृत का कोई प्रचार नहीं होगा, बस हत्या, बस हत्या । कल्की अवतार अौर उनकी तलवार केवल कत्लेआम करेगी । उसके बाद फिर से सत्य-युग आएगा । फिर स्वर्ण युग आएगा ।
तो कोई सवाल ही नहीं है अर्जुन का विचार करना कि उसे लड़ना चाहिए या नहीं | इसको कृष्ण द्वारा मंजूर दी गई है, तो लड़ाई होनी ही है । जैसे जब हम सैर पर थे, सवाल उठाया गया था कि "क्यों युद्ध होता है?" यह बहुत कठिन विषय नहीं है समझने के लिए क्योंकि हम में से हर एक में लड़ाई करने का जोश है । यहां तक ​​कि बच्चे लड़ते हैं, बिल्लि और कुत्ते लड़ते हैं, पक्षी लड़ते हैं, चींटियॉ लड़ती हैं । हमने यह देखा है । तो मनुष्य क्यों नहीं? लड़ने का जोश तो है । यही जीवित होने का एक लक्षण है । लड़ाई । तो कब यह लड़ाई होनी चाहिए? बेशक, वर्तमान समय में, महत्वाकांक्षी नेताओं द्वारा, वे लड़ते हैं । लेकिन लड़ाई, वैदिक सभ्यता के अनुसार, लड़ाई का मतलब है धर्म-युद्ध । धार्मिक सिद्धांतों पर । राजनीतिक विचारों से नहीं, वाद ।  
 
जैसे अब लड़ाई दो राजनीतिक समूहों के बीच चल रही है, साम्यवादी और पूंजीवादी । वे केवल लड़ाई से बचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लड़ाई चल रही है । जैसे ही अमेरिका किसी क्षेत्र में अाता है, तुरंत रूस भी वहाँ अाता है । भारत और पाकिस्तान के बीच पिछली लड़ाई में, जैसे ही राष्ट्रपति निक्सन नें उनके सातवें फ्लीट को भेजा, भारत महासागर पर, बंगाल की खाड़ी, लगभग भारत के सामने ... यह गैरकानूनी था । लेकिन बहुत फूला हुआ, अमेरिका । तो सातवें फ्लीट को भेजा, शायद पाकिस्तान के लिए सहानुभूति दिखाने के लिए । लेकिन तुरंत हमारे रूसी दोस्त भी दिखाई दिए । इसलिए, अमेरिका को वापस जाना पड़ा । अन्यथा, मुझे लगता है, अमेरिका पाकिस्तान की ओर से हमला करता ।  
 
तो यह चल रहा है । तुम लड़ाई नहीं रोक सकते हो । कई लोग सोच रहे हैं कि वे युद्ध को कैसे रोकें । यह असंभव है । यह बकवास प्रस्ताव है । यह नहीं हो सकता है । क्योंकि लड़ाई का जोश हर किसी में है । यही जीव का एक लक्षण है । यहां तक ​​कि बच्चे जो कोई राजनीति नही जानते, कोई शत्रुता नहीं, वे पांच मिनट के लिए लड़ते हैं, फिर वे दोस्त बन जाते हैं । तो लड़ने का जोश है। अब, उसका कैसे उपयोग किया जाना चाहिए? हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।  
 
हम कहते हैं, भावनामृत या चेतना । हम नहीं कहते हैं "लड़ाई बंद करो" या "यह करो, वह करो, यह करो" नहीं | सब कुछ कृष्ण भावनामृत के तहत किया जाना चाहिए । यही हमारा प्रचार है । निर्बन्ध-कृष्ण-संबन्धे । तुम जो भी करो, उसका कुछ संबंध होना चाहिए कृष्ण की संतुष्टि के साथ । अगर कृष्ण संतुष्ट हैं, तो तुम उस पर अमल करो । यही कृष्ण भावनामृत है । कृष्णेन्द्रिय तृप्ति वान्छा तार नाम प्रेम ([[Vanisource:CC Adi 4.165|चैतन्य चरितामृत अादि ४.१६५]]) । यही प्रेम है । वैसे ही जैसे तुम किसी से प्यार करते हो, अपने प्रेमी की खातिर, तुम कुछ भी कर सकते हो, और हम कभी कभी करते भी हैं । इसी तरह, यही बात कृष्ण को स्थानांतरित की जानी चाहिए । बस । अपने आप को शिक्षित करने का प्रयास करो कि कैसे कृष्ण को प्रेम करें और कृष्ण के लिए काम करें । यह जीवन की पूर्णता है ।  
 
स वै पुंसाम परो धर्मो यतो भक्तिर अधोक्षजे ([[Vanisource:SB 1.2.6|श्रीमद भागवतम १.२.६]]) | भक्ति का मतलब है सेवा, भज-सेवायाम। भज-धातु, यह प्रयोग किया जाता है सेवा के प्रयोजन के लिए, भज । और भज, संस्कृत व्याकरण है, क्ति-प्रत्यय, संज्ञा बनाने के लिए । यह क्रिया है । तो प्रत्यय हैं, क्ति-प्रत्यय, ति-प्रत्यय, कई प्रत्यय । तो भज-धातु क्ति, भक्ति के बराबर है । इसलिए भक्ति का मतलब है कृष्ण को प्रसन्न करना । भक्ति किसी और को लागू नहीं की जा सकती है । अगर कोई कहता है, कि "मैं काली का एक महान भक्त हूँ, देवी काली ।" वह भक्ति नहीं है, वह व्यापार है ।  
 
क्योंकि किसी भी देवता की तुम पूजा करो , उसके पीछे कुछ उद्देश्य है । आम तौर पर, लोग मांस खाने के लिए देवी काली के भक्त बनते हैं । यह उनका उद्देश्य है | वैदिक संस्कृति में, जो मांस भक्षण करते हैं, उनको सलाह दी गई है कि "कसाईखाना से या बाजार से खरीदा मांस मत खाअो ।" असल में, यह प्रणाली दुनिया भर में, कहीं भी मौजूद नहीं था, कसाईखाना चलाना । यह नवीनतम आविष्कार है । हम ईसाई सज्जनों के साथ कभी कभी बात करते हैं, और हम पूछताछ करते हैं कि "प्रभु मसीह कहते हैं, 'तुम हत्या नहीं करोगे'; अाप क्यों मार रहे हो?"  
 
वे सबूत देते हैं, " ईसा मसीहने भी कभी कभी मांस खाया था ।" कभी कभी ईसा मसीह मांस खाते थे, यह ठीक है, लेकिन क्या ईसा मसीह नें यह भी कहा था कि "आप बड़े, बड़े कसाईखाने को चलाना और मांस खाते रहना?" तो कोई सामान्य ज्ञान भी नहीं है । ईसा मसीह नें खाया होगा । कभी कभी वे ... अगर वहाँ खाने के लिए कुछ भी नहीं है, तो तुम क्या कर सकते हो? यह एक और सवाल है । महान आवश्यकता में, जब मांस लेने के अलावा कोई अन्य भोजन नहीं है ... यह समय आ रहा है । इस युग में, कली-युग, धीरे - धीरे खाद्यान्न कम हो जाएँगे । यह श्रीमद-भागवतम, बारहवें स्कंध में कहा गया है । कोई चावल नहीं, कोई गेहूं नहीं, कोई दूध नहीं, शक्कर नहीं उपलब्ध होगा । हमें मांस खाना होगा । यह हालत हो जाएगी । और शायद मानव मांस भी खाना पडे । यह पापी जीवन पतित हो रही है, इतनी तक कि वे अधिक से अधिक पापी हो जाएँगे ।  
 
तान अहम् द्विशत: क्रूरान क्षीपामि अजस्रम अंधे-योनिशु ([[HI/BG 16.19|भ.गी. १६.१९]]) | जो राक्षस हैं, पापी हैं, प्रकृति का नियम है उसे ऐसी हालत में रखने का कि वह ज्यादा से ज्यादा एक दानव बनेगा ताकि वह भगवान क्या हैं यह कभी समझ नहीं पाएगा । यह प्रकृति का नियम है । अगर तुम भगवान को भूलना चाहते हो, तो भगवान तुम्हे ऐसी स्थिति में डालेंगे कि तुम कभी नहीं समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं । यह राक्षसी जीवन है । वह समय भी आ रहा है । वर्तमान समय में, अभी भी कुछ लोग रुचि रखते हैं, भगवान क्या हैं ।  
 
आर्तो अर्थार्थी जिज्ञासु ज्ञानी ([[Vanisource:CC Madhya 24.95|चैतन्य चरितामृत मध्य २४.९५]]) | लेकिन वह समय अा रहा है जब भगवान को समझने के लिए समझ नहीं होगी । वह कलियुग का अंतिम चरण है, और उस समय कल्की अवतार, कल्की अवतार आएँगे । उस समय भगवान भावनामृत का कोई प्रचार नहीं होगा, बस हत्या, बस हत्या । कल्की अवतार अौर उनकी तलवार केवल कत्लेआम करेगी । उसके बाद फिर से सत्य-युग आएगा । फिर स्वर्ण युग आएगा ।  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 18:24, 17 September 2020



Lecture on BG 2.6 -- London, August 6, 1973

तो कोई सवाल ही नहीं है अर्जुन का विचार करना कि उसे लड़ना चाहिए या नहीं | इसको कृष्ण द्वारा मंजूर दी गई है, तो लड़ाई होनी ही है । जैसे जब हम सैर पर थे, सवाल उठाया गया था कि "क्यों युद्ध होता है?" यह बहुत कठिन विषय नहीं है समझने के लिए क्योंकि हम में से हर एक में लड़ाई करने का जोश है । यहां तक ​​कि बच्चे लड़ते हैं, बिल्लि और कुत्ते लड़ते हैं, पक्षी लड़ते हैं, चींटियॉ लड़ती हैं । हमने यह देखा है । तो मनुष्य क्यों नहीं? लड़ने का जोश तो है । यही जीवित होने का एक लक्षण है । लड़ाई । तो कब यह लड़ाई होनी चाहिए? बेशक, वर्तमान समय में, महत्वाकांक्षी नेताओं द्वारा, वे लड़ते हैं । लेकिन लड़ाई, वैदिक सभ्यता के अनुसार, लड़ाई का मतलब है धर्म-युद्ध । धार्मिक सिद्धांतों पर । राजनीतिक विचारों से नहीं, वाद ।

जैसे अब लड़ाई दो राजनीतिक समूहों के बीच चल रही है, साम्यवादी और पूंजीवादी । वे केवल लड़ाई से बचने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन लड़ाई चल रही है । जैसे ही अमेरिका किसी क्षेत्र में अाता है, तुरंत रूस भी वहाँ अाता है । भारत और पाकिस्तान के बीच पिछली लड़ाई में, जैसे ही राष्ट्रपति निक्सन नें उनके सातवें फ्लीट को भेजा, भारत महासागर पर, बंगाल की खाड़ी, लगभग भारत के सामने ... यह गैरकानूनी था । लेकिन बहुत फूला हुआ, अमेरिका । तो सातवें फ्लीट को भेजा, शायद पाकिस्तान के लिए सहानुभूति दिखाने के लिए । लेकिन तुरंत हमारे रूसी दोस्त भी दिखाई दिए । इसलिए, अमेरिका को वापस जाना पड़ा । अन्यथा, मुझे लगता है, अमेरिका पाकिस्तान की ओर से हमला करता ।

तो यह चल रहा है । तुम लड़ाई नहीं रोक सकते हो । कई लोग सोच रहे हैं कि वे युद्ध को कैसे रोकें । यह असंभव है । यह बकवास प्रस्ताव है । यह नहीं हो सकता है । क्योंकि लड़ाई का जोश हर किसी में है । यही जीव का एक लक्षण है । यहां तक ​​कि बच्चे जो कोई राजनीति नही जानते, कोई शत्रुता नहीं, वे पांच मिनट के लिए लड़ते हैं, फिर वे दोस्त बन जाते हैं । तो लड़ने का जोश है। अब, उसका कैसे उपयोग किया जाना चाहिए? हमारा कृष्ण भावनामृत आंदोलन है ।

हम कहते हैं, भावनामृत या चेतना । हम नहीं कहते हैं "लड़ाई बंद करो" या "यह करो, वह करो, यह करो" नहीं | सब कुछ कृष्ण भावनामृत के तहत किया जाना चाहिए । यही हमारा प्रचार है । निर्बन्ध-कृष्ण-संबन्धे । तुम जो भी करो, उसका कुछ संबंध होना चाहिए कृष्ण की संतुष्टि के साथ । अगर कृष्ण संतुष्ट हैं, तो तुम उस पर अमल करो । यही कृष्ण भावनामृत है । कृष्णेन्द्रिय तृप्ति वान्छा तार नाम प्रेम (चैतन्य चरितामृत अादि ४.१६५) । यही प्रेम है । वैसे ही जैसे तुम किसी से प्यार करते हो, अपने प्रेमी की खातिर, तुम कुछ भी कर सकते हो, और हम कभी कभी करते भी हैं । इसी तरह, यही बात कृष्ण को स्थानांतरित की जानी चाहिए । बस । अपने आप को शिक्षित करने का प्रयास करो कि कैसे कृष्ण को प्रेम करें और कृष्ण के लिए काम करें । यह जीवन की पूर्णता है ।

स वै पुंसाम परो धर्मो यतो भक्तिर अधोक्षजे (श्रीमद भागवतम १.२.६) | भक्ति का मतलब है सेवा, भज-सेवायाम। भज-धातु, यह प्रयोग किया जाता है सेवा के प्रयोजन के लिए, भज । और भज, संस्कृत व्याकरण है, क्ति-प्रत्यय, संज्ञा बनाने के लिए । यह क्रिया है । तो प्रत्यय हैं, क्ति-प्रत्यय, ति-प्रत्यय, कई प्रत्यय । तो भज-धातु क्ति, भक्ति के बराबर है । इसलिए भक्ति का मतलब है कृष्ण को प्रसन्न करना । भक्ति किसी और को लागू नहीं की जा सकती है । अगर कोई कहता है, कि "मैं काली का एक महान भक्त हूँ, देवी काली ।" वह भक्ति नहीं है, वह व्यापार है ।

क्योंकि किसी भी देवता की तुम पूजा करो , उसके पीछे कुछ उद्देश्य है । आम तौर पर, लोग मांस खाने के लिए देवी काली के भक्त बनते हैं । यह उनका उद्देश्य है | वैदिक संस्कृति में, जो मांस भक्षण करते हैं, उनको सलाह दी गई है कि "कसाईखाना से या बाजार से खरीदा मांस मत खाअो ।" असल में, यह प्रणाली दुनिया भर में, कहीं भी मौजूद नहीं था, कसाईखाना चलाना । यह नवीनतम आविष्कार है । हम ईसाई सज्जनों के साथ कभी कभी बात करते हैं, और हम पूछताछ करते हैं कि "प्रभु मसीह कहते हैं, 'तुम हत्या नहीं करोगे'; अाप क्यों मार रहे हो?"

वे सबूत देते हैं, " ईसा मसीहने भी कभी कभी मांस खाया था ।" कभी कभी ईसा मसीह मांस खाते थे, यह ठीक है, लेकिन क्या ईसा मसीह नें यह भी कहा था कि "आप बड़े, बड़े कसाईखाने को चलाना और मांस खाते रहना?" तो कोई सामान्य ज्ञान भी नहीं है । ईसा मसीह नें खाया होगा । कभी कभी वे ... अगर वहाँ खाने के लिए कुछ भी नहीं है, तो तुम क्या कर सकते हो? यह एक और सवाल है । महान आवश्यकता में, जब मांस लेने के अलावा कोई अन्य भोजन नहीं है ... यह समय आ रहा है । इस युग में, कली-युग, धीरे - धीरे खाद्यान्न कम हो जाएँगे । यह श्रीमद-भागवतम, बारहवें स्कंध में कहा गया है । कोई चावल नहीं, कोई गेहूं नहीं, कोई दूध नहीं, शक्कर नहीं उपलब्ध होगा । हमें मांस खाना होगा । यह हालत हो जाएगी । और शायद मानव मांस भी खाना पडे । यह पापी जीवन पतित हो रही है, इतनी तक कि वे अधिक से अधिक पापी हो जाएँगे ।

तान अहम् द्विशत: क्रूरान क्षीपामि अजस्रम अंधे-योनिशु (भ.गी. १६.१९) | जो राक्षस हैं, पापी हैं, प्रकृति का नियम है उसे ऐसी हालत में रखने का कि वह ज्यादा से ज्यादा एक दानव बनेगा ताकि वह भगवान क्या हैं यह कभी समझ नहीं पाएगा । यह प्रकृति का नियम है । अगर तुम भगवान को भूलना चाहते हो, तो भगवान तुम्हे ऐसी स्थिति में डालेंगे कि तुम कभी नहीं समझ सकते हो कि भगवान क्या हैं । यह राक्षसी जीवन है । वह समय भी आ रहा है । वर्तमान समय में, अभी भी कुछ लोग रुचि रखते हैं, भगवान क्या हैं ।

आर्तो अर्थार्थी जिज्ञासु ज्ञानी (चैतन्य चरितामृत मध्य २४.९५) | लेकिन वह समय अा रहा है जब भगवान को समझने के लिए समझ नहीं होगी । वह कलियुग का अंतिम चरण है, और उस समय कल्की अवतार, कल्की अवतार आएँगे । उस समय भगवान भावनामृत का कोई प्रचार नहीं होगा, बस हत्या, बस हत्या । कल्की अवतार अौर उनकी तलवार केवल कत्लेआम करेगी । उसके बाद फिर से सत्य-युग आएगा । फिर स्वर्ण युग आएगा ।