HI/Prabhupada 0274 - वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं: Difference between revisions

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तो तुम्हे परम व्यक्ति के समीप जाना होगा, मतलब कृष्ण या उनके प्रतिनिधि के । सभी दूसरे दुष्ट और मूर्ख हैं । अगर तुम एक व्यक्ति के समीप जाते हो, गुरु, जो कृष्ण का प्रतिनिधि नहीं है, तुम एक बदमाश के पास जा रहे हो । कैसे तुम प्रबुद्ध होगे? तुम्हे कृष्ण के समीप जाना चाहिए, या उनके प्रतिनिधि के । यह अावश्यक है । तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मु उ १।२।१२) । तो गुरु कौन है? समित-पानि: श्रोत्रियम ब्रह्म निश्ठम । एक गुरू कृष्ण के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक है । ब्रह्म निश्ठम । और श्रोत्रियम । श्रोत्रियम का मतलब है जिसने सुना है, जिसने ज्ञान प्राप्त किया है श्रोत्रियम पथ से, उच्चाधिकारी से सुनकर । एवं परम्परा-प्राप्तम इमम राजर्शयो: विदु: ([[Vanisource:BG 4.2|भ गी ४।२]]) तो यहाँ हमें अर्जुन से सीखने है कि जब हम उलझन में होते हैं, जब हम अपने वास्तविक कर्तव्य को भूल जाते हैं, और इसलिए हम हैरान हैं, तब हमारा कर्तव्य है अर्जुन की तरह कृष्ण की शरण में जाना । तो अगर तुम कहते हो: " कृष्ण कहाँ है?" कृष्ण नहीं है, लेकिन कृष्ण का प्रतिनिधि है । तुम्हे उसके समीप जाना चाहिए । वही वैदिक निषेधाज्ञा है । तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मु उ १।२।१२) । हमें गुरु के समीप जाना चाहिए । और गुरु का मतलब है मूल रूप से कृष्ण । तेने ब्रह्म ह्रदा य अादि-कवये मुह्यन्ति यत सूरय: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री भ १।१।१]]) जन्मादस्य यत: अन्वयात इतरतस् च अर्थेशु अभिज्ञ स्वराट । तुम्हे समीप जाना ही होगा । यही गुरु है । तो हम विचार करते हैं, ब्रह्मा को लें ... क्योंकि वे इस ब्रह्मांड के पहले प्राणी हैं, वे गुरु के रूप में स्वीकार किए जाते हैं । उन्होंने प्रशिक्षण दिया ... वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं । चार सम्प्रदाय हैं, ब्रह्म सम्प्रदाय, श्री सम्प्रदाय, रुद्र-सम्प्रदाय और कुमार-सम्प्रदाय । वे सभी महाजन हैं । महाजन येन गत: स पंथ: ([[Vanisource:CC Madhya 17.186|चै च मध्य १७।१८६]]) हमें महाजन द्वारा दिए गए मार्ग को स्वीकार करना होगा
तो तुम्हे परम व्यक्ति के समीप जाना होगा, मतलब कृष्ण या उनके प्रतिनिधि के । और सब दुष्ट और मूर्ख हैं । अगर तुम एक व्यक्ति के समीप जाते हो, गुरु, जो कृष्ण का प्रतिनिधि नहीं है, तुम एक बदमाश के पास जा रहे हो । कैसे तुम प्रबुद्ध होगे? तुम्हे कृष्ण के समीप जाना चाहिए, या उनके प्रतिनिधि के । यह अावश्यक है । तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) । तो गुरु कौन है? समित-पानि: श्रोत्रियम ब्रह्म निश्ठम ।  


तो ब्रह्मा महाजन हैं । अपने हाथ में वेद के साथ ब्रह्मा की तस्वीर तुम पाअोगे । तो वे हैं, उन्होंने वेद की पहले शिक्षा दी । लेकिन उन्हें वैदिक ज्ञान कहॉ से मिला है? इसलिए वैदिक ज्ञान अपौरुशेय है । यह मानव निर्मित नहीं है । यह भगवान द्वारा बनाया गया है । धर्मम् तु साक्षाद भगवत-प्रणीतम ([[Vanisource:SB 6.3.19|श्री भ ६।३।१९]]) तो कैसे भगवान कृष्ण नें ब्रह्मा को दिया? तेने ब्रह्मा ह्रदा । ब्रह्म, ब्रह्म का मतलब है वैदिक ज्ञान । शब्द-ब्रह्म । तेने । उन्होंने वैदिक ज्ञान को दिया ह्रदा से । तेशाम सतत-युक्तानाम भजताम प्रीति पुर्वकम ([[Vanisource:BG 10.10|भ गी १०।१०]]) जब ब्रह्म को बनाया गया था, वे उलझन में थे: "मेरा कर्तव्य क्या है? सब कुछ अन्धेरा है?" तो उन्होने ध्यान किया और कृष्ण नें उन्हें ज्ञान दिया कि: " तुम्हारा कर्तव्य यह है । तुम इस तरह से करो ।" तेने ब्रह्म ह्रदा य आदि-कवये । आदि-कवये ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्री भ १।१।१]]) । ब्रह्म आदि-कवये हैं । तो वास्तविक गुरु कृष्ण हैं । और यहाँ है ... कृष्ण भगवद गीता में सलाह दे रहे हैं । ये दुष्ट और मूर्ख, गुरु के रूप में कृष्ण को स्वीकार नहीं करेंगे । वे कुछ बदमाश, मूर्ख, और शरारती तत्वों के पास जाऍगे और पापी व्यक्ति और गुरु को स्वीकार करेंगे । कैसे वह गुरु हो सकते हैं?
एक गुरू कृष्ण के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक है । ब्रह्म निश्ठम । और श्रोत्रियम । श्रोत्रियम का मतलब है जिसने सुना है, जिसने ज्ञान प्राप्त किया है श्रोत्रियम पथ से, उच्चाधिकारी से सुनकर । एवं परम्परा-प्राप्तम इमम राजर्शयो: विदु: ([[HI/BG 4.2|भ.गी. ४.२]]) | तो यहाँ हमें अर्जुन से सीखना है कि जब हम उलझन में होते हैं, जब हम अपने वास्तविक कर्तव्य को भूल जाते हैं, और इसलिए हम हैरान हैं, तब हमारा कर्तव्य है अर्जुन की तरह कृष्ण की शरण में जाना । तो अगर तुम कहते हो: " कृष्ण कहाँ है?" कृष्ण नहीं है, लेकिन कृष्ण का प्रतिनिधि है । तुम्हे उसके समीप जाना चाहिए । वही वैदिक आज्ञा है ।
 
तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) । हमें गुरु के समीप जाना चाहिए । और गुरु का मतलब है मूल रूप से कृष्ण । तेने ब्रह्म ह्रदा य अादि-कवये मुह्यन्ति यत सूरय: ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) | जन्मादस्य यत: अन्वयात इतरतस् च अर्थेशु अभिज्ञ स्वराट । तुम्हे समीप जाना ही होगा । यही गुरु है । तो हम विचार करते हैं, ब्रह्मा को लें ... क्योंकि वे इस ब्रह्मांड के पहले प्राणी हैं,  वे गुरु के रूप में स्वीकार किए जाते हैं । उन्होंने प्रशिक्षण दिया ... वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं । चार सम्प्रदाय हैं, ब्रह्म सम्प्रदाय, श्री सम्प्रदाय, रुद्र-सम्प्रदाय और कुमार-सम्प्रदाय । वे सभी महाजन हैं ।
 
महाजन येन गत: स पंथा: ([[Vanisource:CC Madhya 17.186|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६]])| हमें महाजन द्वारा दिए गए मार्ग को स्वीकार करना होगा । तो ब्रह्मा महाजन हैं । अपने हाथ में वेद के साथ ब्रह्मा की तस्वीर तुम पाअोगे । तो वे हैं, उन्होंने वेद की पहले शिक्षा दी । लेकिन उन्हें वैदिक ज्ञान कहॉ से मिला है? इसलिए वैदिक ज्ञान अपौरुषेय है । यह मानव निर्मित नहीं है । यह भगवान द्वारा बनाया गया है । धर्मम् तु साक्षाद भगवत-प्रणीतम ([[Vanisource:SB 6.3.19|श्रीमद भागवतम ६.३.१९]]) |
 
तो कैसे भगवान कृष्ण नें ब्रह्मा को दिया? तेने ब्रह्मा ह्रदा । ब्रह्म, ब्रह्म का मतलब है वैदिक ज्ञान । शब्द-ब्रह्म । तेने । उन्होंने वैदिक ज्ञान को दिया ह्रदा से । तेशाम सतत-युक्तानाम भजताम प्रीति पूर्वकम ([[HI/BG 10.10|भ.गी. १०.१०]]) | जब ब्रह्म को बनाया गया था, वे उलझन में थे: "मेरा कर्तव्य क्या है? सब कुछ अन्धेरा है?" तो उन्होने ध्यान किया और कृष्ण नें उन्हें ज्ञान दिया कि: " तुम्हारा कर्तव्य यह है । तुम इस तरह से करो ।" तेने ब्रह्म ह्रदा य आदि-कवये । आदि-कवये ([[Vanisource:SB 1.1.1|श्रीमद भागवतम १.१.१]]) । ब्रह्म आदि-कवये हैं । तो वास्तविक गुरु कृष्ण हैं । और यहाँ है ... कृष्ण भगवद गीता में सलाह दे रहे हैं । ये दुष्ट और मूर्ख, गुरु के रूप में कृष्ण को स्वीकार नहीं करेंगे । वे कुछ बदमाश, मूर्ख, और शरारती तत्वों के पास जाऍगे और पापी व्यक्ति और गुरु को स्वीकार करेंगे । कैसे वह गुरु हो सकता हैं?  
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Latest revision as of 18:27, 17 September 2020



Lecture on BG 2.7 -- London, August 7, 1973

तो तुम्हे परम व्यक्ति के समीप जाना होगा, मतलब कृष्ण या उनके प्रतिनिधि के । और सब दुष्ट और मूर्ख हैं । अगर तुम एक व्यक्ति के समीप जाते हो, गुरु, जो कृष्ण का प्रतिनिधि नहीं है, तुम एक बदमाश के पास जा रहे हो । कैसे तुम प्रबुद्ध होगे? तुम्हे कृष्ण के समीप जाना चाहिए, या उनके प्रतिनिधि के । यह अावश्यक है । तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) । तो गुरु कौन है? समित-पानि: श्रोत्रियम ब्रह्म निश्ठम ।

एक गुरू कृष्ण के प्रति पूर्ण रूप से जागरूक है । ब्रह्म निश्ठम । और श्रोत्रियम । श्रोत्रियम का मतलब है जिसने सुना है, जिसने ज्ञान प्राप्त किया है श्रोत्रियम पथ से, उच्चाधिकारी से सुनकर । एवं परम्परा-प्राप्तम इमम राजर्शयो: विदु: (भ.गी. ४.२) | तो यहाँ हमें अर्जुन से सीखना है कि जब हम उलझन में होते हैं, जब हम अपने वास्तविक कर्तव्य को भूल जाते हैं, और इसलिए हम हैरान हैं, तब हमारा कर्तव्य है अर्जुन की तरह कृष्ण की शरण में जाना । तो अगर तुम कहते हो: " कृष्ण कहाँ है?" कृष्ण नहीं है, लेकिन कृष्ण का प्रतिनिधि है । तुम्हे उसके समीप जाना चाहिए । वही वैदिक आज्ञा है ।

तद विज्ञानार्थम स गुरुम एव अभिगच्छेत (मुंडक उपनिषद १.२.१२) । हमें गुरु के समीप जाना चाहिए । और गुरु का मतलब है मूल रूप से कृष्ण । तेने ब्रह्म ह्रदा य अादि-कवये मुह्यन्ति यत सूरय: (श्रीमद भागवतम १.१.१) | जन्मादस्य यत: अन्वयात इतरतस् च अर्थेशु अभिज्ञ स्वराट । तुम्हे समीप जाना ही होगा । यही गुरु है । तो हम विचार करते हैं, ब्रह्मा को लें ... क्योंकि वे इस ब्रह्मांड के पहले प्राणी हैं, वे गुरु के रूप में स्वीकार किए जाते हैं । उन्होंने प्रशिक्षण दिया ... वैसे ही जैसे हम ब्रह्म सम्प्रदाय के हैं । चार सम्प्रदाय हैं, ब्रह्म सम्प्रदाय, श्री सम्प्रदाय, रुद्र-सम्प्रदाय और कुमार-सम्प्रदाय । वे सभी महाजन हैं ।

महाजन येन गत: स पंथा: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६)| हमें महाजन द्वारा दिए गए मार्ग को स्वीकार करना होगा । तो ब्रह्मा महाजन हैं । अपने हाथ में वेद के साथ ब्रह्मा की तस्वीर तुम पाअोगे । तो वे हैं, उन्होंने वेद की पहले शिक्षा दी । लेकिन उन्हें वैदिक ज्ञान कहॉ से मिला है? इसलिए वैदिक ज्ञान अपौरुषेय है । यह मानव निर्मित नहीं है । यह भगवान द्वारा बनाया गया है । धर्मम् तु साक्षाद भगवत-प्रणीतम (श्रीमद भागवतम ६.३.१९) |

तो कैसे भगवान कृष्ण नें ब्रह्मा को दिया? तेने ब्रह्मा ह्रदा । ब्रह्म, ब्रह्म का मतलब है वैदिक ज्ञान । शब्द-ब्रह्म । तेने । उन्होंने वैदिक ज्ञान को दिया ह्रदा से । तेशाम सतत-युक्तानाम भजताम प्रीति पूर्वकम (भ.गी. १०.१०) | जब ब्रह्म को बनाया गया था, वे उलझन में थे: "मेरा कर्तव्य क्या है? सब कुछ अन्धेरा है?" तो उन्होने ध्यान किया और कृष्ण नें उन्हें ज्ञान दिया कि: " तुम्हारा कर्तव्य यह है । तुम इस तरह से करो ।" तेने ब्रह्म ह्रदा य आदि-कवये । आदि-कवये (श्रीमद भागवतम १.१.१) । ब्रह्म आदि-कवये हैं । तो वास्तविक गुरु कृष्ण हैं । और यहाँ है ... कृष्ण भगवद गीता में सलाह दे रहे हैं । ये दुष्ट और मूर्ख, गुरु के रूप में कृष्ण को स्वीकार नहीं करेंगे । वे कुछ बदमाश, मूर्ख, और शरारती तत्वों के पास जाऍगे और पापी व्यक्ति और गुरु को स्वीकार करेंगे । कैसे वह गुरु हो सकता हैं?