HI/Prabhupada 0316 - नकल करने की कोशिश मत करो, यह बहुत खतरनाक है

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Lecture on SB 7.9.5 -- Mayapur, February 25, 1977

प्रभुपाद: तुरंत हम प्रथम श्रेणी के भक्त नहीं हो सकते । हम हरिदास ठाकुर की नकल नहीं कर सकते। यह संभव नहीं है। लेकिन कम से कम। संख्या-पूर्वक-नाम-गान-नटिभी: (षड गोस्वामी अष्टक) । हमें अभ्यास करना पडेगा । कुछ संख्यात्मक ताकत हमें बनाए रखनी चाहिए। और हमनें इसलिए यह कर दिया है ... हमारे कुछ तथाकथित भक्त, वे मेरी आलोचना करते हैं कि केवल सोलह माला सीमित है। नहीं, क्यों सोलह माला? तुम तीन सौ माला करो, लेकिन कम से कम, कम से कम सोलह माला, क्योंकि हम आदी नहीं हैं अधिक समय समर्पित करने के लिए । हमें हमेशा व्यस्त होना चाहिए । लेकिन एक जगह बैठ के और हरे कृष्ण मंत्र का जप करना लगातार, यह किसी भी बद्ध आत्मा के लिए संभव नहीं है - जब तक वह मुक्त न हो। तो नकल करने की कोशिश न करो।

मेरे गुरु महाराज नें सख्ती से मना किया है, "हरिदास ठाकुर, रूप गोस्वामी जैसी बड़ी हस्तियों की नकल करने की कोशिश मत करो।" वे कहते थे, रूप गोस्वामी के मोघ वान्छा । रूप गोस्वामी, क्योंकि वह कमर में एक कपड़े का प्रयोग करते थे... त्यक्त्वा तुर्णम अशेश-मंडल-पति- श्रेणिम् सदा तुच्छवत् भुत्वा दिन-गणेशकौ करुणया कौपिन-कंठ...... तो रूप गोस्वामी की नकल करके, या उनके पहनावे की नकल करके, कोई फायदा नहीं, और फिर, मौका मिलते ही, बीड़ी पियो। (हंसी) यह बकवास मत करो। इसका कोई फायदा नहीं है, नकली है। अनुसरण, न कि अनुकरण। अनुकरण खतरनाक है। अनुसरण । साधु- मार्गानुगमनम् । यह भक्ति है। हम बड़े, बड़े भक्तों, साधुओं के कदमों का अनुसरण करने की कोशिश करेगें। हम नहीं कर सकते हैं ... हम पालन करने की कोशिश करेंगे। नकल करने की कोशिश मत करो। यह बहुत खतरनाक है।

हमारे भक्तों में से कुछ छोड़ के चले गए, कि "यहाँ कोई भजन नहीं है," (हंसी) और मुझेसे आशीर्वाद माँग रहे थे कोई दूसरा गुरु पता लगाने के लिए। तो वह मेरा आशीर्वाद चाहते हैं दुसरा एक गुरु पता लगाने के लिए। तो यह धूर्तता अच्छी नहीं है। इसलिए सबसे अच्छी बात यह है कि महाजनो येन गत: स पंथा:(चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१८६) । यहाँ महाजन है। प्रहलाद महाराज महाजनों में से एक है। बारह महाजनों में से, प्रहलाद महाराज एक हैं। स्वयम्भुर नारद: शंभु: कपिलो मनु: प्रहलाद: (श्रीमद भागवतम ६.३.२०) | प्रहलाद महाराज का नाम है। जनको भीष्मो बलिर् वैयासकिर वयम् (श्रीमद भागवतम ६.३.२०)। तो प्रहलाद महाराज महाजन है। तो अनुसरण करो, अनुसरण करने की कोशिश करो, प्रहलाद महाराज । अनुसरण । साधु-मार्गानुगमनम् ।

तो प्रहलाद महाराजा नें क्या किया? वह अपने पिता द्वारा इतनी सारी मुसीबतों में डाल दिए गए, और उन्होंने क्या किया? वह बस कृष्ण के बारे में सोच रहे थे "मैं क्या कर सकता हूँ? मेरे पिता खिलाफ है।" यह है मन-मना भव मद-भक्त: । और अंत में, जब पिता मर गए, वह दण्डवत प्रणाम कर रहे हैं। तो ये चार बातें, ईमानदारी से एक विशुद्ध भक्त के पदचिह्नों का अनुसरण करना । सर्वोपाधि विनिर्मुक्तम् (चैतन्य चरितामृत मध्य १९.१७) | प्रहलाद महाराजने कभी नहीं सोचा कि "मैं हिरण्यकश्यप का बेटा हूँ।" कभी नहीं सोचा । वह हमेशा सोचते थे "मैं नारद का दास हूं।" ये उन्होंने कहा । जब उन्हें आशीर्वाद देना चाहते थे, तो उन्होंने नरसिंहदेव से कहा, "कृपया अपने नौकर नारद की सेवा में मुझे व्यस्त करें, जिनसे मुझे यह निर्देश मिला है।" उन्होंने कभी नहीं कहा, "मुझे मेरे पिता की सेवा करने दो। " नहीं। क्योंकि उन्हें निर्देश मिला, वह हमेशा ... चक्षुदान दिलो जन्मे जन्मे पिता सेइ । वह ही पिता है। कोई अौर पिता नहीं । चक्षुदान दिलो येइ जन्मे जन्मे पिता सेइ। अगली लाइन क्या है?

भक्त: दिव्य ज्ञान ह्रदे प्रकाशितो।

प्रभुपाद: आह, दिव्य ज्ञान ह्रदे प्रकाशितो। तो वह पिता है। तो हमें हमेशा ध्यान रखना चाहिए। कल का नवाब न बनो और सनकी होकर इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को मत छोड़ो।

बहुत बहुत धन्यवाद।