HI/Prabhupada 0331 - असली खुशी वापस भगवद धाम जाने में है

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Lecture on SB 6.2.16 -- Vrndavana, September 19, 1975

कुल मिलाकर, निष्कर्ष यह है कि जो कोई भी इस भौतिक संसार में है, वह एक पापी व्यक्ति है । कोई भी । अन्यथा उसे यह भौतिक शरीर नहीं मिलता । जैसे कि जो कारागार में है, तुम निष्कर्ष निकाल सकते हो कि वह एक पापी, अपराधी व्यक्ति है । तुम्हें एक के बाद एक अध्ययन करने की आवश्यकता नहीं है । क्योंकि वह कारागार में है तुम निष्कर्ष निकाल सकते हो कि, "यहाँ एक अपराधी है ।" इसी तरह, भौतिक संसार में जो कोई भी है, वह एक अपराधी है । लेकिन जेल का अधीक्षक नहीं । तुम यह निष्कर्ष नहीं निकाल सकेत हो, "क्योंकि हर कोई कारागार में है, अपराधी है, इसलिए जेल का अधीक्षक, वह भी अपराधी है ।" तो तुम गलत हो । जो लोग इन पापी व्यक्तिओ को संभाल रहे हैं उन्हें वापस परम धाम को, वापस घर को ले जाने के लिए हैं, वह अपराधी नहीं हैं । उसका काम है कैसे इस कारागार से इस बदमाश को रिहा करें और वापस उसे भगवद धाम ले जाएँ ।

तो महद्-विचलनम् नृणाम् गृहिणाम् दीन-चेतसाम् । गृहिणाम् । गृहि का मतलब है जो कोई भी इस शरीर में रह रहा है या जो कोई भी इस भौतिक दुनिया में रह रहा है । यह एक ठोस बात है । तो वे बहुत छोटी-सोच के हैं । उन्हें यह पता नहीं है कि जीवन का क्या मूल्य है । न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम (श्रीमद् भागवतम् ७.५.३१) । तो बजाय इसके कि उन्हें प्रबुद्ध करें, अगर महात या महात्मा, वे उन्हें अंधेरे में रखें, यह एक बड़ी क्षति है । उन्हे प्रबुद्ध किया जाना चाहिए । उनका काम है प्रचार करना, "इस भौतिक दुनिया में अपने आप को मत रखो । आध्यात्मिक दुनिया में अाअो ।" यह महात्मा का काम है । महद-विचलम् नृणाम गृहिणाम् दीन-चेतसाम । वे बहुत गरीब हैं ज्ञान में, मूढ़ । उन्हें वर्णित किया गया है मूढ़, दुष्कृतिन के रूप में । ये सभी पुरुष अपनी अज्ञानता के कारण पाप गतिविधियों में लगे हुए हैं ।

यदि तुम कहते हो, "नहीं, अाप कैसे कह सकते हो कि वे अज्ञान में हैं ? कई विश्वविद्यालय हैं । वे एम ए सी, डी ए सी, डॉक्टर, पीएच.डी. में उत्तीर्ण हो रहे हैं, और फिर भी वे अज्ञानी हैं ? " "हाँ ।" "कैसे?" माययापहृत-ज्ञाना: "तथाकथित ज्ञान माया द्वारा ले लिया जाता है ।" वरना क्यों वे इस भौतिक दुनिया में पडे़ हैं ? अगर तुम प्रबुद्ध हो जाते हो, तो तुम्हें पता होना चाहिए, कि यह भौतिक दुनिया हमारा बसेरा नहीं है । हमें वापस घर को जाना चाहिए, वापस परम धाम को । इसलिए यह कृष्णभावनामृत आंदोलन प्रचार कर रहा है कि "यह तुम्हारा घर नहीं है । यहाँ खुश होने की कोशिश न करो ।" दुराशया ये बहिर् अर्थ मानिन: । बहिर अर्थ मानिन: । बहिर, बाहरी शक्ति । वे सोच रहे हैं कि, "भौतिक तरीके से, अगर हम कुछ व्यवस्था करते हैं ..."

उनमें से कुछ वैज्ञानिक सुधार से खुश होने की कोशिश कर रहे हैं, या उनमें से कुछ स्वर्गीय ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं, और उनमें से कुछ ये या वो बनने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन उन्हें पता नहीं है कि असली खुशी घर के लिए वापस जाने के लिए है, वापस भगवद धाम को । न ते विदु: स्वार्थ गतिम हि विष्णुम (श्रीमद् भागवतम् ७.५.३१) । उन्हें पता नहीं है । तो यह बहुत महत्वपूर्ण आंदोलन है कि हम उन्हें संकेत दे रहे हैं और शिक्षा, कि कैसे घर को वापस जाना है, वापस परम धाम को । बहुत-बहुत धन्यवाद ।