HI/Prabhupada 0349 - मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा
Arrival Address -- New York, July 9, 1976
इसलिए बुद्धिमान व्यक्ति को पता होना चाहिए अलग अलग स्थितियों, विभिन्न जीवन के बारे में । वे नहीं जानते । उस दिन हमारे डा. स्वरूप दामोदर बोल रहे थे, कि जो भी वैज्ञानिक सुधार या शैक्षिक सुधार उन्होंने की है, दो चीजों की कमी है । उन्हे पता नहीं है कि आकाश में विभिन्न ग्रह क्या हैं । वे नहीं जानते । वे केवल कल्पना कर रहे हैं । वे चंद्रमा ग्रह पर जाने की कोशिश कर रहे हैं, मंगल ग्रह । यह भी संभव नहीं है । अगर तुम चले भी जाओ, एक या दो ग्रहों में, लाखों ग्रह हैं, तुम उनके बारे में क्या जानते हो? कोई ज्ञान नहीं है । और एक और ज्ञान: उन्हे जीवन की समस्याऍ क्या हैं, यह पता नहीं है । दो बातें की कमी है उनमे । और हम इन दो चीजों के बारे में जानते हैं । जीवन की समस्या यह है कि हम महरूम हैं, हम दूर हैं कृष्ण भावनामृत से, इसलिए हम पीड़ित हैं । अगर तुम चेतना भावनामृत को अपनाते हो, तो सारी समस्या का हल निकलता है । और जहॉ तक ग्रह प्रणाली का सवाल है, तो कृष्ण तुम्हे मौका दे रहा हैं, तुम जहॉ जाना चाहो तुम जा सकते हो । लेकिन बुद्धिमान व्यक्ति चयन करेगा, मद याजिनो अपि या्नति माम (भ गी ९।२५) "जो कृष्ण के प्रति जागरूक हैं, वे मेरे पास आते हैं ।" तो इन दोनों के बीच अंतर क्या है? अगर मैं चंद्रमा ग्रह या मंगल ग्रह या ब्रह्मलोक चला भी गया, कृष्ण कहते हैं, अा ब्रह्म भुवनाल लोका: पुनर अवर्तिनो (भ गी ८।१६) तुम ब्रह्मलोक जा सकते हो, लेकिन क्शिने पुण्ये पुण्यो मृत्य-लोकम् विशन्ति : "तुम्हे फिर से वापस आना होगा ।" और कृष्ण यह भी कहते हैं यद गत्वा न निवर्तन्ते त धाम परमम् मम (भ गी १५।६) मद याजिनो अपि यान्ति माम ।
तो तुम यह अवसर मिला है, कृष्ण भावनामृत । सब कुछ भगवद गीता में स्पष्ट किया गया है, क्या क्या है । इस अवसर को खोना नहीं चाहिए । मूर्ख मत बनो, तथाकथित वैज्ञानिकों या दार्शनिकों या नेताओं द्वारा गुमराह मत हो । कृष्ण भावनामृत को अपनाअो । और यह संभव है केवल गुरु कृष्ण-कृपाय (चै च मध्य १९।१५१) गुरु की कृपा से और कृष्ण की कृपा से तुम सभी सफलता प्राप्त कर सकते हो । यही रहस्य है ।
यस्य देव परा भक्तिर यथा देवे तथा गुरौ तस्यैते कथिता हि अर्थ: प्रकाशन्ते महात्मन: (श्वे उ ६।२३)
तो जो यह गुरू पूजा हम कर रहे हैं, यह स्वयं की उन्नति के लिए नहीं है, यह असली शिक्षण है । तुम दैनिक गाते हो, वो क्या है? गुरु मुख-पद्म-वाक्य... आर ना करिया अैक्या । बस, यह अनुवाद है । मैं सच में तुम्हे बतता हूँ, जो थोड़ी भी सफलता है इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन की, मैंने तो बस विश्वास किया जो भी मेरे गुरु महाराज नें कहा । तुम यह भी यही जारी रखो । तो हर सफलता आएगी। बहुत बहुत धन्यवाद ।