HI/Prabhupada 0370 - जहॉ तक मेरा संबंध है, मैं कोई भी श्रेय नहीं लेता

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Conversation with Prof. Kotovsky -- June 22, 1971, Moscow

कोई भी रूढ़िवादी हिंदू आ सकता है, लेकिन हमारे पास हथियार हैं, वैदिक सबूत । तो कोई भी नहीं आया है । लेकिन यहां तक कि ईसाई पादरी ... अमेरिका में ईसाई पादरी भी, वे मुझे प्यार करते हैं । वे कहते हैं कि "यह लड़के, हमारे लड़के, वे अमेरिकी हैं, वे यहूदी हैं, ईसाई हैं । और यह लड़के भगवान के प्रति इतने संलग्न हैं, और हम उनका उद्धार नहीं कर सके ।" वे स्वीकार कर रहे हैं । उनके पिता, उनके माता पिता, मेरे पास अाते हैं । वे प्रणाम करते हैं और कहते हैं, "स्वामी जी, यह हमारा महान सौभाग्य है कि आप यहॉ अाए । आप भगवद भावनामृत सिखा रहे हैं । " तो इसके विपरीत, मुझे अन्य देशों से स्वागत मिला है । और जैसा कि भारत में भी, आप भारत के बारे में पूछ रहे थे, अन्य सभी संप्रदाय, वे स्वीकार कर रहे हैं कि मुझसे पहले , कई सैकड़ों स्वामी वहां गए, लेकिन वे एक भी व्यक्ति को कृष्ण भावनामृत दे नहीं सके । वे इसकी प्रशंसा कर रहे हैं । और जहॉ तक मेरा संबंध है, मैं कोई भी श्रेय नहीं लेता, लेकिन मुझे विश्वास है कि क्योंकि मैं वैदिक ज्ञान पेश कर रहा हूँ यथार्थ, किसी भी मिलावट के बिना, यह प्रभाव कर रहा है । यह मेरा योगदान है । जैसे तुम्हारे पास अगर एक सही दवा है और तुम उसे एक रोगी को देते हो, तो तुम्हे पक्का पता है कि वह ठीक हो जाएगा ।