HI/Prabhupada 0393 - निताई गुना मणि अामार तात्पर्य: Difference between revisions
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यह लोचन दास ठाकुर द्वारा | यह गीत लोचन दास ठाकुर द्वारा रचित है, भगवान चैतन्य महाप्रभु के लगभग समकालीन । उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के जीवन और उपदेशों पर कई किताबें लिखी हैं । तो वे कह रहे हैं कि प्रभु नित्यानंद अच्छे गुणों से भरे हैं, गुण-मणि । गुण-मणि का मतलब है सभी गुणों का गहना । तो निताई गुण-मणि अामार निताई गुण-मणि । वे बार-बार बोल रहे हैं कि भगवान नित्यानंद सभी अच्छे गुणों के आशय हैं । | ||
अानिया प्रेमेर वन्या भासाइलो अवनि । और उनके आध्यात्मिक गुणों के कारण, उन्होंने परमेश्वर के प्रेम की बाढ़ से पूरी दुनिया को डुबो दिया । उनकी दयालुता से ही लोग महसूस कर सकते हैं कि भगवान का प्रेम क्या है । प्रेमेर वन्या लोइया अाइला गौड़-देशे । जब चैतन्य महाप्रभु ने घर छोड़ा और संन्यास लिया, उन्होंने जगन्नाथ पुरी को अपना मुख्यालय बनाया । तो संन्यास आश्रम को स्वीकार करने के बाद, जब उन्होंने अपने घर और देश को छोड़ दिया, भगवान नित्यानंद प्रभु भी जगन्नाथ पुरी तक उनके साथ थे । तो कुछ दिनों के बाद, भगवान चैतन्य ने उनसे अनुरोध किया कि, "अगर हम दोनों यहाँ रहेंगे, तो बंगाल में प्रचार कौन करेगा ?" | |||
बंगाल गौड़ देश के रूप में जाना जाता है । तो प्रभु चैतन्य महाप्रभु के आदेश के अनुसार, वे उनसे परम भगवान के प्रेम की बाढ़ लाए, और उन्होंने वितरित किया पूरे बंगाल में, गौड़-देश । और भगवत्प्रेम की उस बाढ़ में, सभी भक्त डूब गए । केवल जो अभक्त हैं, वे नहीं डूब सके, लेकिन वे तैर रहे थे, दीन हीन बाछे । लेकिन जहाँ तक नित्यानंद प्रभु का संबंध है, वे भक्तों और अभक्तों के बीच कोई भेदभाव नहीं करते हैं । | |||
दीन हीन पतीत पामर नाहि बाछे । गरीब हो या अमीर, या प्रबुद्ध या मूर्ख, हर कोई भगवान चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा ले सकता है, और परम भगवान के प्रेम के सागर में डूब सकता है । परम भगवान का इस तरह का प्रेम है ब्रह्मार दुर्लभ । यहाँ तक कि भगवान ब्रह्मा जो इस ब्रह्मांड के परम शिक्षक हैं, वे भी स्वाद नहीं ले सकते हैं । लेकिन भगवान चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद महाप्रभु की कृपा से, परम भगवान का यह प्रेम बिना किसी भेदभाव के सबको वितरित किया गया । तो अाबद्ध करुणा-सिंधु, यह एक बड़े महासागर की तरह था जो सभी पक्षों से अवरुद्ध था । परम भगवान के प्रेम का सागर एक बड़ा महासागर है, लेकिन यह प्लावित नहीं था । | |||
तो नित्यानंद प्रभु ने एक नहर बनाई सागर से, और वे हर दरवाजे़ तक उस नहर को ले गए । घरे घरे बुले प्रेम-अमियार बान । परम भगवान के प्रेम के अमृत की बाढ़ इस प्रकार बंगाल में हर घर में वितरित की गई । वास्तव में अभी-भी बंगाल अभिभूत है जब भगवान चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु की बात होती है । लोचन बोले, अब लेखक अपनी ओर से बोल रहे हैं, कि जो कोई भी भगवान नित्यानंद प्रभु द्वारा दिए गए लाभ को नहीं लेता है, तो उनकी विचार में वे सोचते हैं कि ऐसा व्यक्ति जानबूझकर आत्महत्या कर रहा है । | |||
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020
Purport to Nitai Guna Mani Amara
यह गीत लोचन दास ठाकुर द्वारा रचित है, भगवान चैतन्य महाप्रभु के लगभग समकालीन । उन्होंने चैतन्य महाप्रभु के जीवन और उपदेशों पर कई किताबें लिखी हैं । तो वे कह रहे हैं कि प्रभु नित्यानंद अच्छे गुणों से भरे हैं, गुण-मणि । गुण-मणि का मतलब है सभी गुणों का गहना । तो निताई गुण-मणि अामार निताई गुण-मणि । वे बार-बार बोल रहे हैं कि भगवान नित्यानंद सभी अच्छे गुणों के आशय हैं ।
अानिया प्रेमेर वन्या भासाइलो अवनि । और उनके आध्यात्मिक गुणों के कारण, उन्होंने परमेश्वर के प्रेम की बाढ़ से पूरी दुनिया को डुबो दिया । उनकी दयालुता से ही लोग महसूस कर सकते हैं कि भगवान का प्रेम क्या है । प्रेमेर वन्या लोइया अाइला गौड़-देशे । जब चैतन्य महाप्रभु ने घर छोड़ा और संन्यास लिया, उन्होंने जगन्नाथ पुरी को अपना मुख्यालय बनाया । तो संन्यास आश्रम को स्वीकार करने के बाद, जब उन्होंने अपने घर और देश को छोड़ दिया, भगवान नित्यानंद प्रभु भी जगन्नाथ पुरी तक उनके साथ थे । तो कुछ दिनों के बाद, भगवान चैतन्य ने उनसे अनुरोध किया कि, "अगर हम दोनों यहाँ रहेंगे, तो बंगाल में प्रचार कौन करेगा ?"
बंगाल गौड़ देश के रूप में जाना जाता है । तो प्रभु चैतन्य महाप्रभु के आदेश के अनुसार, वे उनसे परम भगवान के प्रेम की बाढ़ लाए, और उन्होंने वितरित किया पूरे बंगाल में, गौड़-देश । और भगवत्प्रेम की उस बाढ़ में, सभी भक्त डूब गए । केवल जो अभक्त हैं, वे नहीं डूब सके, लेकिन वे तैर रहे थे, दीन हीन बाछे । लेकिन जहाँ तक नित्यानंद प्रभु का संबंध है, वे भक्तों और अभक्तों के बीच कोई भेदभाव नहीं करते हैं ।
दीन हीन पतीत पामर नाहि बाछे । गरीब हो या अमीर, या प्रबुद्ध या मूर्ख, हर कोई भगवान चैतन्य महाप्रभु की शिक्षा ले सकता है, और परम भगवान के प्रेम के सागर में डूब सकता है । परम भगवान का इस तरह का प्रेम है ब्रह्मार दुर्लभ । यहाँ तक कि भगवान ब्रह्मा जो इस ब्रह्मांड के परम शिक्षक हैं, वे भी स्वाद नहीं ले सकते हैं । लेकिन भगवान चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद महाप्रभु की कृपा से, परम भगवान का यह प्रेम बिना किसी भेदभाव के सबको वितरित किया गया । तो अाबद्ध करुणा-सिंधु, यह एक बड़े महासागर की तरह था जो सभी पक्षों से अवरुद्ध था । परम भगवान के प्रेम का सागर एक बड़ा महासागर है, लेकिन यह प्लावित नहीं था ।
तो नित्यानंद प्रभु ने एक नहर बनाई सागर से, और वे हर दरवाजे़ तक उस नहर को ले गए । घरे घरे बुले प्रेम-अमियार बान । परम भगवान के प्रेम के अमृत की बाढ़ इस प्रकार बंगाल में हर घर में वितरित की गई । वास्तव में अभी-भी बंगाल अभिभूत है जब भगवान चैतन्य महाप्रभु और नित्यानंद प्रभु की बात होती है । लोचन बोले, अब लेखक अपनी ओर से बोल रहे हैं, कि जो कोई भी भगवान नित्यानंद प्रभु द्वारा दिए गए लाभ को नहीं लेता है, तो उनकी विचार में वे सोचते हैं कि ऐसा व्यक्ति जानबूझकर आत्महत्या कर रहा है ।