HI/Prabhupada 0455 - तुम अपने बेकार के तर्क को लागु मेत करो उन मामलों में जो तुम्हारी समझ से बाहर है: Difference between revisions

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प्रद्युम्न: अनुवाद - "प्रहलाद महाराज के सिर पर भगवान न्रसिंह-देव के हाथ के स्पर्श से, प्रहलाद पूरी तरह से सभी भौतिक संदूषणों और इच्छाओं से मुक्त हो गए, जैसे कि वह अच्छी तरह से शुद्ध किए गए हों । इसलिए वे तुरन्त दिव्य मंच पर स्थित हो गए, अौर और परमानंद के सभी लक्षण उनके शरीर में प्रकट हो गए । उनका दिल प्रेम से भरा गया, और उनकी आँखें आँसू से, और इस तरह से वे पूरी तरह से अपने दिल में प्रभु के कमल चरणों पर कब्जा करने में सक्षम थे । "
प्रद्युम्न: अनुवाद - "प्रहलाद महाराज के सिर पर भगवान नरसिंह-देव के हाथ के स्पर्श से, प्रहलाद पूरी तरह से सभी भौतिक दूषणों और इच्छाओं से मुक्त हो गए, जैसे कि वह अच्छी तरह से शुद्ध किए गए हों । इसलिए वे तुरन्त दिव्य मंच पर स्थित हो गए, अौर और परमानंद के सभी लक्षण उनके शरीर में प्रकट हो गए । उनका दिल प्रेम से भरा गया, और उनकी आँखें आँसू से, और इस तरह से वे पूरी तरह से अपने दिल में प्रभु के चरणकमलों पर कब्जा करने में सक्षम हुए "  


प्रभुपाद:
प्रभुपाद:  


:स तत-कर-स्पर्श-धुताखीलाशुभ:
:स तत-कर-स्पर्श-धुताखीलाशुभ:  
:सपदि ाभिव्यक्त परात्म-दर्शन:
:सपदि अभिव्यक्त परात्म-दर्शन:  
:तत-पाद-पदमम ह्रदि निव्ृतो दधौ
:तत-पाद-पदमम हृदि निवृतो दधौ  
:ह्रश्यत-तनु: क्लिन्न-ह्रद-अश्रु-लोचन:
:हृश्यत-तनु: क्लिन्न-हृद-अश्रु-लोचन:  
:([[Vanisource:SB 7.9.6|श्री भ ७।९।६]])
:([[Vanisource:SB 7.9.6|श्रीमद भागवतम ७.९.६]])  


तो प्रहलाद महाराज, तत-कर-स्पर्श, "न्रसिंस-देव के कमल हथेली के स्पर्श," वही हथेली, जहॉ नाखून है, तव कर कमल वरे नखम अद्भुत श्रिंगम । वही हथेली नख अद्भुत के साथ ... दलित-हिरण्यकशिपु-तुनु-भृंगम तुरन्त, केवल नाखून के साथ ... प्रभु को किसी भी हथियार की जरूरत नहीं थी इस विशाल राक्षस को मारने के लिए, बस नाखून । तव कर कमल । उदाहरण बहुत अच्छा है: कमल । कमला का मतलब है कमल का फूल । भगवान की हथेली कमल के फूल की तरह है । इसलिए कमल का फूल बहुत नरम होता है, बहुत भाता है, और कैसे वह नाखून आया ? इसलिए अद्भुत । तव कर कमल, अद्भुत । नखम अद्भुत श्रंगम । यह संभव नहीं है कुछ क्रूर नाखून बढ़ना, क्रूर नाखून, कमल के फूल में । यह विरोधाभासी है । इसलिए जयदेव कहते हैं अद्भुत: "यह अद्भुत है । यह आश्चर्यजनक है ।" इसलिए भगवान की शक्ति, शक्ति और तेज नाखून की प्रदर्शनी, वे सब समझ से बाहर है । श्रील जीव गोस्वामी नें समझाया है, " जब तक तुम स्वीकार नहीं करते हो, परम भगवान की अचिन्त्य शक्ति, कोई समझ नहीं है ।" अचिन्त्य । अचिन्त्य-शक्ति । अचिन्त्य का मतलब है "समझ से बाहर " तुम अटकलें नहीं कर सकते हो कि यह कैसे हो रहा है , कैसे कमल के फूल में, वहाँ इतना क्रूर नाखून नहीं है जो तुरंत, एक क्षण में, यह हिरण्यकश्यप की तरह एक महान दानव को मार सकता है । इसलिए यह अचिन्त्य है । हम कल्पना नहीं कर सकते हैं । अचिन्त्य । और इसलिए वैदिक शिक्षा है अचिन्त्य खलु ये भावा न तमस् तर्केन यो जयेत : "तुम अपने बेकार के तर्क को लागु मेत करो उन मामलों में जो तुम्हारी समझ से बाहर है ।" कोई तर्क नहीं है कि कैसे कमल के फूल पर नाखून उग सकता है । वे कहते हैं "पौराणिक कथाऍ ।" क्योंकि वे अपने छोटे मस्तोष्क के भीतर यह सोच नहीं सकते हैं, वे समायोजित नहीं कर सकते कि कैसे यह होता है, वे कहते हैं "पौराणिक कथाऍ ।" पौराणिक कथाऍ नहीं । यह तथ्य है । लेकिन यह तुम्हारे या हमारी समझ से बाहर है । यह संभव नहीं है । तो यह, वही कर कमल, प्रहलाद महाराज के सिर पर रखा गया था । प्रह्लादलाद-दायिने । प्रहलाद महाराज महसूस कर रहे थे "ओह, कितना आनंदमय है यह हाथ ।" सिर्फ लग नहीं रहा था, लेकिन तुरंत उनके सारी भौतिक दुख, कष्ट, गायब हो गए । यह प्रक्रिया है दिव्य स्पर्श की । हम इस युग में भी यह सुविधा पा सकते हैं । यह नहीं है कि प्रहलाद महाराज ही केवल तुरंत उल्लसित हो गए प्रभु के कमल हथेली के स्पर्श से ... तुम्हे भी तुरंत यह लाभ हो सकता है अगर हम प्रहलाद महाराज की तरह बनें । तो यह संभव है । कृष्ण अद्वय-ज्ञान हैं, तो इस युग में कृष्ण अपने ध्वनि कंपन के रूप में अवतरित हुए हैं: कलि युग नाम रूपे कृष्णावतार ([[Vanisource:CC Adi 17.22|चै च अादि लिला १७।२२]]) । इस युग..... क्योंकि इस युग में ये गिरे पुरुष, वे हैं ... उनकी कोई योग्यता नहीं है मंद: हर कोई खराब है । कोई भी योग्य नहीं है । कोई आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है । बुरा मत मानना । तम्हारे पश्चिमी देश में वे बहुत ज्यादा भौतिक ज्ञान के कारण फूले हुए है, लेकिन उन्हे कोई आध्यात्मिक ज्ञान नही है । शायद इतिहास में, इतिहास में पहली बार, उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान की कुछ जानकारी मिल रही है ।
तो प्रहलाद महाराज, तत-कर-स्पर्श, "नरसिंह-देव के कमल हथेली का स्पर्श," वही हथेली, जहॉ नाखून है, तव कर कमल वरे नखम अद्भुत श्रृंगम । वही हथेली नख अद्भुत के साथ ... दलित-हिरण्यकशिपु-तुनु-भृंगम | तुरन्त, केवल नाखून के साथ... प्रभु को किसी भी हथियार की जरूरत नहीं थी इस विशाल राक्षस को मारने के लिए, बस नाखून । तव कर कमल । उदाहरण बहुत अच्छा है: कमल । कमल का मतलब है कमल का फूल । भगवान की हथेली कमल के फूल की तरह है । इसलिए कमल का फूल बहुत नरम होता है, बहुत भाता है, और कैसे वह नाखून आया ? इसलिए अद्भुत । तव कर कमल, अद्भुत । नखम अद्भुत श्रृंगम । यह संभव नहीं है कुछ क्रूर नाखून बढ़ाना, क्रूर नाखून, कमल के फूल में । यह विरोधाभासी है । इसलिए जयदेव कहते हैं अद्भुत: "यह अद्भुत है । यह आश्चर्यजनक है ।" इसलिए भगवान की शक्ति, शक्ति और तेज नाखून की प्रदर्शनी, वे सब समझ से बाहर है ।  


भक्त: जय
श्रील जीव गोस्वामी नें समझाया  है, "जब तक तुम स्वीकार नहीं करते हो, परम भगवान की अचिन्त्य शक्ति, कोई समझ नहीं है ।" अचिन्त्य । अचिन्त्य-शक्ति । अचिन्त्य का मतलब है "समझ से बाहर |" तुम अटकलें नहीं कर सकते हो कि यह कैसे हो रहा है, कैसे कमल के फूल में, वहाँ इतना क्रूर नाखून है जो तुरंत, एक क्षण में, यह हिरण्यकश्यपु की तरह एक महान दानव को मार सकता है । इसलिए यह अचिन्त्य है । हम कल्पना नहीं कर सकते हैं । अचिन्त्य । और इसलिए वैदिक शिक्षा है अचिन्त्य खलु ये भावा न तमस् तर्केण यो जयेत: "तुम अपने बेकार के तर्क को लागु मेत करो उन मामलों में जो तुम्हारी समझ से बाहर है ।" कोई तर्क नहीं है कि कैसे कमल के फूल पर नाखून उग सकता है । वे कहते हैं "पौराणिक कथाऍ ।" क्योंकि वे अपने छोटे मस्तिष्क के भीतर यह सोच नहीं सकते हैं, वे समायोजित नहीं कर सकते कि कैसे यह होता है, वे कहते हैं "पौराणिक कथाऍ ।" पौराणिक कथाऍ नहीं । यह तथ्य है । लेकिन यह तुम्हारी या हमारी समझ से बाहर है । यह संभव नहीं है ।  


प्रभुपाद: नहीं तो कोई आध्यात्मिक ज्ञान नहीं था । वे नहीं जानते । यह एक तथ्य है ।
तो यह, वही कर कमल, प्रहलाद महाराज के सिर पर रखा गया था । प्रह्लादलाद-दायिने । प्रहलाद महाराज महसूस कर रहे थे "ओह, कितना आनंदमय है यह हाथ ।" सिर्फ लग नहीं रहा था, लेकिन तुरंत उनके सारी भौतिक दुख, कष्ट, गायब हो गए । यह प्रक्रिया है दिव्य स्पर्श की । हम इस युग में भी यह सुविधा पा सकते हैं । यह नहीं है कि प्रहलाद महाराज ही केवल तुरंत उल्लसित हो गए प्रभु के कमल हथेली के स्पर्श से... तुम्हे भी तुरंत यह लाभ हो सकता है अगर हम प्रहलाद महाराज की तरह बनें । तो यह संभव है । कृष्ण अद्वय-ज्ञान हैं, तो इस युग में कृष्ण अपने ध्वनि कंपन के रूप में अवतरित हुए हैं: कलि युग नाम रूपे कृष्णावतार ([[Vanisource:CC Adi 17.22|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२२]]) । इस युग... क्योंकि इस युग में ये पतित व्यक्ति, वे हैं... उनकी कोई योग्यता नहीं है | मंदा: हर कोई खराब है । कोई भी योग्य नहीं है । कोई आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है । बुरा मत मानना । तम्हारे पश्चिमी देश में वे बहुत ज्यादा भौतिक ज्ञान के कारण फूले हुए है, लेकिन उन्हे कोई आध्यात्मिक ज्ञान नही है । शायद इतिहास में, इतिहास में पहली बार, उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान की कुछ जानकारी मिल रही है ।
 
भक्त: जय ।
 
प्रभुपाद: नहीं तो कोई आध्यात्मिक ज्ञान नहीं था । वे नहीं जानते । यह एक तथ्य है ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on SB 7.9.6 -- Mayapur, February 26, 1977

प्रद्युम्न: अनुवाद - "प्रहलाद महाराज के सिर पर भगवान नरसिंह-देव के हाथ के स्पर्श से, प्रहलाद पूरी तरह से सभी भौतिक दूषणों और इच्छाओं से मुक्त हो गए, जैसे कि वह अच्छी तरह से शुद्ध किए गए हों । इसलिए वे तुरन्त दिव्य मंच पर स्थित हो गए, अौर और परमानंद के सभी लक्षण उनके शरीर में प्रकट हो गए । उनका दिल प्रेम से भरा गया, और उनकी आँखें आँसू से, और इस तरह से वे पूरी तरह से अपने दिल में प्रभु के चरणकमलों पर कब्जा करने में सक्षम हुए । "

प्रभुपाद:

स तत-कर-स्पर्श-धुताखीलाशुभ:
सपदि अभिव्यक्त परात्म-दर्शन:
तत-पाद-पदमम हृदि निवृतो दधौ
हृश्यत-तनु: क्लिन्न-हृद-अश्रु-लोचन:
(श्रीमद भागवतम ७.९.६)

तो प्रहलाद महाराज, तत-कर-स्पर्श, "नरसिंह-देव के कमल हथेली का स्पर्श," वही हथेली, जहॉ नाखून है, तव कर कमल वरे नखम अद्भुत श्रृंगम । वही हथेली नख अद्भुत के साथ ... दलित-हिरण्यकशिपु-तुनु-भृंगम | तुरन्त, केवल नाखून के साथ... प्रभु को किसी भी हथियार की जरूरत नहीं थी इस विशाल राक्षस को मारने के लिए, बस नाखून । तव कर कमल । उदाहरण बहुत अच्छा है: कमल । कमल का मतलब है कमल का फूल । भगवान की हथेली कमल के फूल की तरह है । इसलिए कमल का फूल बहुत नरम होता है, बहुत भाता है, और कैसे वह नाखून आया ? इसलिए अद्भुत । तव कर कमल, अद्भुत । नखम अद्भुत श्रृंगम । यह संभव नहीं है कुछ क्रूर नाखून बढ़ाना, क्रूर नाखून, कमल के फूल में । यह विरोधाभासी है । इसलिए जयदेव कहते हैं अद्भुत: "यह अद्भुत है । यह आश्चर्यजनक है ।" इसलिए भगवान की शक्ति, शक्ति और तेज नाखून की प्रदर्शनी, वे सब समझ से बाहर है ।

श्रील जीव गोस्वामी नें समझाया है, "जब तक तुम स्वीकार नहीं करते हो, परम भगवान की अचिन्त्य शक्ति, कोई समझ नहीं है ।" अचिन्त्य । अचिन्त्य-शक्ति । अचिन्त्य का मतलब है "समझ से बाहर |" तुम अटकलें नहीं कर सकते हो कि यह कैसे हो रहा है, कैसे कमल के फूल में, वहाँ इतना क्रूर नाखून है जो तुरंत, एक क्षण में, यह हिरण्यकश्यपु की तरह एक महान दानव को मार सकता है । इसलिए यह अचिन्त्य है । हम कल्पना नहीं कर सकते हैं । अचिन्त्य । और इसलिए वैदिक शिक्षा है अचिन्त्य खलु ये भावा न तमस् तर्केण यो जयेत: "तुम अपने बेकार के तर्क को लागु मेत करो उन मामलों में जो तुम्हारी समझ से बाहर है ।" कोई तर्क नहीं है कि कैसे कमल के फूल पर नाखून उग सकता है । वे कहते हैं "पौराणिक कथाऍ ।" क्योंकि वे अपने छोटे मस्तिष्क के भीतर यह सोच नहीं सकते हैं, वे समायोजित नहीं कर सकते कि कैसे यह होता है, वे कहते हैं "पौराणिक कथाऍ ।" पौराणिक कथाऍ नहीं । यह तथ्य है । लेकिन यह तुम्हारी या हमारी समझ से बाहर है । यह संभव नहीं है ।

तो यह, वही कर कमल, प्रहलाद महाराज के सिर पर रखा गया था । प्रह्लादलाद-दायिने । प्रहलाद महाराज महसूस कर रहे थे "ओह, कितना आनंदमय है यह हाथ ।" सिर्फ लग नहीं रहा था, लेकिन तुरंत उनके सारी भौतिक दुख, कष्ट, गायब हो गए । यह प्रक्रिया है दिव्य स्पर्श की । हम इस युग में भी यह सुविधा पा सकते हैं । यह नहीं है कि प्रहलाद महाराज ही केवल तुरंत उल्लसित हो गए प्रभु के कमल हथेली के स्पर्श से... तुम्हे भी तुरंत यह लाभ हो सकता है अगर हम प्रहलाद महाराज की तरह बनें । तो यह संभव है । कृष्ण अद्वय-ज्ञान हैं, तो इस युग में कृष्ण अपने ध्वनि कंपन के रूप में अवतरित हुए हैं: कलि युग नाम रूपे कृष्णावतार (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२२) । इस युग... क्योंकि इस युग में ये पतित व्यक्ति, वे हैं... उनकी कोई योग्यता नहीं है | मंदा: हर कोई खराब है । कोई भी योग्य नहीं है । कोई आध्यात्मिक ज्ञान नहीं है । बुरा मत मानना । तम्हारे पश्चिमी देश में वे बहुत ज्यादा भौतिक ज्ञान के कारण फूले हुए है, लेकिन उन्हे कोई आध्यात्मिक ज्ञान नही है । शायद इतिहास में, इतिहास में पहली बार, उन्हे आध्यात्मिक ज्ञान की कुछ जानकारी मिल रही है ।

भक्त: जय ।

प्रभुपाद: नहीं तो कोई आध्यात्मिक ज्ञान नहीं था । वे नहीं जानते । यह एक तथ्य है ।