HI/Prabhupada 0457 - केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है: Difference between revisions

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विज्ञान का मतलब केवल अवलोकन नहीं है लेकिन प्रयोग भी है वह पूरा है । अन्यथा सिद्धांत । यह विज्ञान नहीं है । तो अलग अलग सिद्धांत हैं । कोई भी आगे रख सकता ह । यही नहीं है ... लेकिन वास्तविक तथ्य है कि कृष्ण आध्यात्मिक हैं और वे परम हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कथो उपनिषद २।२।१३) । यह वैदिक निषेधाज्ञा है । भगवान सर्वोच्च नित्य हैं, अनन्त, और सर्वोच्च हैं । शब्दकोश में भी यह कहा गया है, "भगवान का मतलब है सर्वोच्च जीव ।" वे समझ नहीं सकते हैं "सर्वोच्च प्राणी ।" लेकिन वेदों में सिर्फ सर्वोच्च जीव नहीं कहा गया है, लेकिन सर्वोच्च प्राणी कहा जाता है । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम एको यो बहुनाम विदधाति कामान (कथो उपनिषद २।२।१३) यही भगवान का वर्णन है । तो बहुत मुश्किल है समझना आध्यात्मिक पदार्थ को ही, और भगवान की क्या बात करें । आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत है सब से पहले समझने कि अात्मा क्या है । और वे बुद्धि या मन को ले रहे हैं अात्मा के रूप में । लेकिन यह अात्मा नहीं है । उस से परे । अपरेयम इतस तु विद्धि में प्रकृतिक परा ([[Vanisource:BG 7.5|भ गी ७।५]])
विज्ञान का मतलब केवल अवलोकन नहीं है लेकिन प्रयोग भी है | वह पूरा है । अन्यथा सिद्धांत । यह विज्ञान नहीं है । तो अलग अलग सिद्धांत हैं । कोई भी आगे रख सकता ह । यही नहीं है ... लेकिन वास्तविक तथ्य है कि कृष्ण आध्यात्मिक हैं और वे परम हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । यह वैदिक आज्ञा है । भगवान सर्वोच्च नित्य हैं, शाश्वत, और सर्वोच्च व्यक्ति हैं । शब्दकोश में भी यह कहा गया है, "भगवान का मतलब है सर्वोच्च जीव ।" वे समझ नहीं सकते हैं "सर्वोच्च वस्तु ।" लेकिन वेदों में सिर्फ सर्वोच्च वस्तु नहीं कहा गया है, लेकिन सर्वोच्च जीव कहा जाता है ।  


तो यह पूर्णता है जैसे प्रहलाद महाराज का था, तत्काल परम व्यक्तित्व को छूने मात्र से, हम भी पा सकते हैं । संभावना है, बहुत आसानी से, क्योंकि हम गिर हुए हैं, मंदा: - बहुत बुरे, बहुत धीमी गति से । मंदा: और सुमंद-मतयो । और क्योंकि हम बुरे हैं, हर किसी नें एक सिद्धांत का निर्माण किया है । सुमंद-मत । मत का मतलब है "राय ।" और वह राय क्या है? मंद ही नहीं, लेकिन सुमंद, बहुत, बहुत बुरे । सुमंद-मतयो । मंदा: सुमंद-मतयो मंद भाग्या: ([[Vanisource:SB 1.1.10|श्री भ १।१।१०]]) , और सभी अभागे, या बदकिस्मत । क्यों? जब ज्ञान उपस्थित है, वे नहीं लेंगे । वे सिद्धांत बोलेंगे । वे अभागे हैं । ज्ञान उपलब्ध है, लेकिन वे सिद्धांत बोलेंगे, "यह इस तरह से । ऐसा है. ऐसा है । शायद ... हो सकता है ..." यह चल रहा है । इसलिए मंद-भाग्या: । जैसे यहाँ पैसा है । हम उस पैसा को नहीं लेंगे । वह सूअर और कुत्ते की तरह कड़ी मेहनत करेगा पैसा कमाने के लिए । तो दुइसका मतलब है अभागा । तो मंदा: सुमंद-मतयो मंद भाग्या: और क्योंकि मंद भाग्या: , उपदृता: , हमेशा अशांति, यह युद्ध, वह युद्ध, वह युद्ध । शुरुआत, पूरे इतिहास में, बस युद्ध । क्यों युद्ध? क्यों लड़ाई है? कोई लड़ाई नहीं होनी चाहिए , क्योंकि सब कुछ पूरा है, पूर्णम इदम ([[Vanisource: ISO Invocation|ईशपनिषद, मंगलाचरण]]) परम भगवान की दया से पूरी दुनिया भरी है, क्योंकि यह साम्राज्य है.... यह भी परमेश्वर का साम्राज्य है । लेकिन हमनें अनावश्यक रूप से लड़कर इसे नरक बना दिया है । बस । अन्यथा यह है ... एक भक्त के लिए - पूर्णम । विश्वम पूर्णम सुखायते । क्यों लड़ाई होनी चाहिए? भगवान नें सब कुछ की आपूर्ति की है । तुम पानी चाहते हो? पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है । लेकिन यह पानी नमक है । भगवान की प्रक्रिया है कि कैसे इसे मीठा बनाऍ । तुम ऐसा नहीं कर सकते हो । तुम पानी चाहते हो । पर्याप्त पानी है । क्यों कमी होनी चाहिए? अब हम सुन रहे हैं कि यूरोप में वे विचार कर रहे थे पानी के अायात पर । (हंसी) नहीं था? हां । इंग्लैंड में वे आयात करने की सोच रहे थे । यह संभव है? (हंसी) लेकिन ये बदमाश वैज्ञानिक वे एसा सोचते हैं । वे आयात करेंगे । क्यों नहीं? इंग्लैंड पानी से घिरा हुआ है ।क्यों तुम पानी नहीं लेते? नहीं । नीरे करी बास न मे तिलो प्यास "मैं पानी में रह रहा हूँ, लेकिन मैं प्यास से मर रहा हूँ ।" (हंसी) ये दुष्टों का तत्वज्ञान ... या उसमें.. मैं शायद अपने बचपन में एक पुस्तक पढी, एक नैतिक कक्षा किताब, वहाँ एक कहानी है कि एक जहाज बर्बाद हो गया, और उन्होंने एक नाव की शरण ली, लेकिन उनमें से कुछ प्यास से मर गए क्योंिक वे पानी नहीं पी सके । तो वे इस पानी में रह रहे थे, लेकिन वे प्यास से मर गए । तो हमारी स्थिति ऐसी ही है । सब कुछ भरा हुआ है । फिर भी, हम मर रहे हैं और लड़ रहे हैं। कारण क्या है? कारण यह है कि हम कृष्ण का अनुसरन नहीं करते हैं । कृष्ण भावनामृत का अभाव: यह कारण है । मेरे गुरु महाराज कहते थै कि पूरी दुनिया हर चीज़ से भरी हुई है । केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है । कमी केवल । अन्यथा कोई कमी नहीं है । सब कुछ भरा हुआ है । और अगर तुम कृष्ण की शिक्षा लेते हो तो तुम तुरंत खुश हो जाअोगे । तुम पूरी दुनिया को खुश कर सकते हो । भगवद गीता में कृष्ण का यह निर्देश, इतना सही है । यह सही होना ही चाहिए, क्योंिक यह कृष्ण से आ रहा है । यह तथाकथित वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं है । नहीं । सही शिक्षा । और अगर हम अनुदेश का पालन करें, व्यावहारिक रूप से उपयोग करें, तब सारी दुनिया, विश्वम पूर्णम सुखायते ।
नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम एको यो बहुनाम विदधाति कामान  (कठ उपनिषद २.२.१३) | यही भगवान का वर्णन है । तो बहुत मुश्किल है समझना आध्यात्मिक पदार्थ को ही, और भगवान की क्या बात करें । आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत है  सब से पहले समझना की अात्मा क्या है । और वे लोग बुद्धि या मन को ले रहे हैं अात्मा के रूप में । लेकिन यह अात्मा नहीं है । उस से परे । अपरेयम इतस तु विद्धि में प्रकृतिक परा ([[HI/BG 7.5|भ.गी. ७.५]]) |
 
तो यह पूर्णता है जैसे प्रहलाद महाराज का था, तत्काल परम व्यक्तित्व को छूने मात्र से, हम भी पा सकते हैं । संभावना है, बहुत आसानी से, क्योंकि हम गिरे हुए हैं, मंदा: - बहुत बुरे, बहुत धीमी गति से । मंदा: और सुमंद-मतयो । और क्योंकि हम बुरे हैं, हर किसी नें एक सिद्धांत का निर्माण किया है । सुमंद-मत । मत का मतलब है "राय ।" और वह राय क्या है? मंद ही नहीं, लेकिन सुमंद, बहुत, बहुत बुरे । सुमंद-मतयो । मंदा: सुमंद-मतयो मंद भाग्या: ([[Vanisource:SB 1.1.10|श्रीमद भागवतम १.१.१०]]), और सभी अभागे, या बदकिस्मत । क्यों? जब ज्ञान उपस्थित है, वे नहीं लेंगे । वे सिद्धांत बोलेंगे । वे अभागे हैं । ज्ञान उपलब्ध है, लेकिन वे सिद्धांत बोलेंगे, "यह इस तरह से है ऐसा है | ऐसा है । शायद ... हो सकता है ..." यह चल रहा है ।  
 
इसलिए मंद-भाग्या: । जैसे यहाँ पैसा है । हम उस पैसे को नहीं लेंगे । वो सूअर और कुत्ते की तरह कड़ी मेहनत करेगा पैसा कमाने के लिए । तो इसका मतलब है अभागा । तो मंदा: सुमंद-मतयो मंद भाग्या: | और क्योंकि मंद भाग्या:, उपदृता:, हमेशा अशांति, यह युद्ध, वह युद्ध, वह युद्ध । शुरुआत, पूरे इतिहास में, बस युद्ध । क्यों युद्ध? क्यों लड़ाई है? कोई लड़ाई नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सब कुछ पूरा है, पूर्णम इदम ([[Vanisource: ISO Invocation|ईशोपनिषद, मंगलाचरण]]) | परम भगवान की दया से पूरी दुनिया भरी है, क्योंकि यह साम्राज्य है.... यह भी परमेश्वर का साम्राज्य है । लेकिन हमनें अनावश्यक रूप से लड़कर इसे नरक बना दिया है । बस । अन्यथा यह है ... एक भक्त के लिए - पूर्णम । विश्वम पूर्णम सुखायते । क्यों लड़ाई होनी चाहिए? भगवान नें सब कुछ की आपूर्ति की है । तुम पानी चाहते हो? पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है । लेकिन यह पानी नमक है । भगवान की प्रक्रिया है कि कैसे इसे मीठा बनाऍ । तुम ऐसा नहीं कर सकते हो । तुम पानी चाहते हो । पर्याप्त पानी है । क्यों कमी होनी चाहिए?  
 
अब हम सुन रहे हैं कि यूरोप में वे विचार कर रहे थे पानी के अायात पर । (हंसी) नहीं था? हां । इंग्लैंड में वे आयात करने की सोच रहे थे । यह संभव है? (हंसी) लेकिन ये बदमाश वैज्ञानिक वे एसा सोचते हैं । वे आयात करेंगे । क्यों नहीं? इंग्लैंड पानी से घिरा हुआ है । क्यों तुम पानी नहीं लेते? नहीं । नीरे करी बास न मे तिलो प्यास "मैं पानी में रह रहा हूँ, लेकिन मैं प्यास से मर रहा हूँ ।" (हंसी) ये दुष्टों का तत्वज्ञान... या उसमें.. मैंने शायद अपने बचपन में एक पुस्तक पढी थी, एक नैतिक कक्षा किताब, वहाँ एक कहानी है कि एक जहाज बर्बाद हो गया, और उन्होंने एक नाव की शरण ली, लेकिन उनमें से कुछ प्यास से मर गए क्योंकि वे पानी नहीं पी सके । तो वे इस पानी में रह रहे थे, लेकिन वे प्यास से मर गए । तो हमारी स्थिति ऐसी ही है । सब कुछ भरा हुआ है । फिर भी, हम मर रहे हैं और लड़ रहे हैं। कारण क्या है?  
 
कारण यह है कि हम कृष्ण का अनुसरन नहीं करते हैं । कृष्ण भावनामृत का अभाव: यह कारण है । मेरे गुरु महाराज कहते थै कि पूरी दुनिया हर चीज़ से पूर्ण है । केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है । एक मात्र कमी । अन्यथा कोई कमी नहीं है । सब कुछ भरा हुआ है । और अगर तुम कृष्ण की शिक्षा लेते हो तो तुम तुरंत खुश हो जाअोगे । तुम पूरी दुनिया को खुश कर सकते हो । भगवद गीता में कृष्ण का यह निर्देश, इतना सही है । यह सही होना ही चाहिए, क्योंकि यह कृष्ण से आ रहा है । यह तथाकथित वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं है । नहीं । सही शिक्षा । और अगर हम अनुदेश का पालन करें, व्यावहारिक रूप से उपयोग करें, तब सारी दुनिया, विश्वम पूर्णम सुखायते ।  
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Latest revision as of 17:39, 1 October 2020



Lecture on SB 7.9.6 -- Mayapur, February 26, 1977

विज्ञान का मतलब केवल अवलोकन नहीं है लेकिन प्रयोग भी है | वह पूरा है । अन्यथा सिद्धांत । यह विज्ञान नहीं है । तो अलग अलग सिद्धांत हैं । कोई भी आगे रख सकता ह । यही नहीं है ... लेकिन वास्तविक तथ्य है कि कृष्ण आध्यात्मिक हैं और वे परम हैं । नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम (कठ उपनिषद २.२.१३) । यह वैदिक आज्ञा है । भगवान सर्वोच्च नित्य हैं, शाश्वत, और सर्वोच्च व्यक्ति हैं । शब्दकोश में भी यह कहा गया है, "भगवान का मतलब है सर्वोच्च जीव ।" वे समझ नहीं सकते हैं "सर्वोच्च वस्तु ।" लेकिन वेदों में सिर्फ सर्वोच्च वस्तु नहीं कहा गया है, लेकिन सर्वोच्च जीव कहा जाता है ।

नित्यो नित्यानाम चेतनश चेतनानाम एको यो बहुनाम विदधाति कामान (कठ उपनिषद २.२.१३) | यही भगवान का वर्णन है । तो बहुत मुश्किल है समझना आध्यात्मिक पदार्थ को ही, और भगवान की क्या बात करें । आध्यात्मिक ज्ञान की शुरुआत है सब से पहले समझना की अात्मा क्या है । और वे लोग बुद्धि या मन को ले रहे हैं अात्मा के रूप में । लेकिन यह अात्मा नहीं है । उस से परे । अपरेयम इतस तु विद्धि में प्रकृतिक परा (भ.गी. ७.५) |

तो यह पूर्णता है जैसे प्रहलाद महाराज का था, तत्काल परम व्यक्तित्व को छूने मात्र से, हम भी पा सकते हैं । संभावना है, बहुत आसानी से, क्योंकि हम गिरे हुए हैं, मंदा: - बहुत बुरे, बहुत धीमी गति से । मंदा: और सुमंद-मतयो । और क्योंकि हम बुरे हैं, हर किसी नें एक सिद्धांत का निर्माण किया है । सुमंद-मत । मत का मतलब है "राय ।" और वह राय क्या है? मंद ही नहीं, लेकिन सुमंद, बहुत, बहुत बुरे । सुमंद-मतयो । मंदा: सुमंद-मतयो मंद भाग्या: (श्रीमद भागवतम १.१.१०), और सभी अभागे, या बदकिस्मत । क्यों? जब ज्ञान उपस्थित है, वे नहीं लेंगे । वे सिद्धांत बोलेंगे । वे अभागे हैं । ज्ञान उपलब्ध है, लेकिन वे सिद्धांत बोलेंगे, "यह इस तरह से है । ऐसा है | ऐसा है । शायद ... हो सकता है ..." यह चल रहा है ।

इसलिए मंद-भाग्या: । जैसे यहाँ पैसा है । हम उस पैसे को नहीं लेंगे । वो सूअर और कुत्ते की तरह कड़ी मेहनत करेगा पैसा कमाने के लिए । तो इसका मतलब है अभागा । तो मंदा: सुमंद-मतयो मंद भाग्या: | और क्योंकि मंद भाग्या:, उपदृता:, हमेशा अशांति, यह युद्ध, वह युद्ध, वह युद्ध । शुरुआत, पूरे इतिहास में, बस युद्ध । क्यों युद्ध? क्यों लड़ाई है? कोई लड़ाई नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सब कुछ पूरा है, पूर्णम इदम (ईशोपनिषद, मंगलाचरण) | परम भगवान की दया से पूरी दुनिया भरी है, क्योंकि यह साम्राज्य है.... यह भी परमेश्वर का साम्राज्य है । लेकिन हमनें अनावश्यक रूप से लड़कर इसे नरक बना दिया है । बस । अन्यथा यह है ... एक भक्त के लिए - पूर्णम । विश्वम पूर्णम सुखायते । क्यों लड़ाई होनी चाहिए? भगवान नें सब कुछ की आपूर्ति की है । तुम पानी चाहते हो? पृथ्वी का तीन चौथाई हिस्सा पानी से भरा हुआ है । लेकिन यह पानी नमक है । भगवान की प्रक्रिया है कि कैसे इसे मीठा बनाऍ । तुम ऐसा नहीं कर सकते हो । तुम पानी चाहते हो । पर्याप्त पानी है । क्यों कमी होनी चाहिए?

अब हम सुन रहे हैं कि यूरोप में वे विचार कर रहे थे पानी के अायात पर । (हंसी) नहीं था? हां । इंग्लैंड में वे आयात करने की सोच रहे थे । यह संभव है? (हंसी) लेकिन ये बदमाश वैज्ञानिक वे एसा सोचते हैं । वे आयात करेंगे । क्यों नहीं? इंग्लैंड पानी से घिरा हुआ है । क्यों तुम पानी नहीं लेते? नहीं । नीरे करी बास न मे तिलो प्यास "मैं पानी में रह रहा हूँ, लेकिन मैं प्यास से मर रहा हूँ ।" (हंसी) ये दुष्टों का तत्वज्ञान... या उसमें.. मैंने शायद अपने बचपन में एक पुस्तक पढी थी, एक नैतिक कक्षा किताब, वहाँ एक कहानी है कि एक जहाज बर्बाद हो गया, और उन्होंने एक नाव की शरण ली, लेकिन उनमें से कुछ प्यास से मर गए क्योंकि वे पानी नहीं पी सके । तो वे इस पानी में रह रहे थे, लेकिन वे प्यास से मर गए । तो हमारी स्थिति ऐसी ही है । सब कुछ भरा हुआ है । फिर भी, हम मर रहे हैं और लड़ रहे हैं। कारण क्या है?

कारण यह है कि हम कृष्ण का अनुसरन नहीं करते हैं । कृष्ण भावनामृत का अभाव: यह कारण है । मेरे गुरु महाराज कहते थै कि पूरी दुनिया हर चीज़ से पूर्ण है । केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है । एक मात्र कमी । अन्यथा कोई कमी नहीं है । सब कुछ भरा हुआ है । और अगर तुम कृष्ण की शिक्षा लेते हो तो तुम तुरंत खुश हो जाअोगे । तुम पूरी दुनिया को खुश कर सकते हो । भगवद गीता में कृष्ण का यह निर्देश, इतना सही है । यह सही होना ही चाहिए, क्योंकि यह कृष्ण से आ रहा है । यह तथाकथित वैज्ञानिक सिद्धांत नहीं है । नहीं । सही शिक्षा । और अगर हम अनुदेश का पालन करें, व्यावहारिक रूप से उपयोग करें, तब सारी दुनिया, विश्वम पूर्णम सुखायते ।