HI/Prabhupada 0458 - हरे कृष्ण का जप, कृष्ण को अपनी जिहवा से छूना: Difference between revisions

(Created page with "<!-- BEGIN CATEGORY LIST --> Category:1080 Hindi Pages with Videos Category:Prabhupada 0458 - in all Languages Category:HI-Quotes - 1977 Category:HI-Quotes - Lec...")
 
No edit summary
 
Line 7: Line 7:
[[Category:HI-Quotes - in India, Mayapur]]
[[Category:HI-Quotes - in India, Mayapur]]
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- END CATEGORY LIST -->
<!-- BEGIN NAVIGATION BAR -- DO NOT EDIT OR REMOVE -->
{{1080 videos navigation - All Languages|Hindi|HI/Prabhupada 0457 - केवल कमी कृष्ण भावनामृत की है|0457|HI/Prabhupada 0459 - प्रहलाद महाराज महाजनों में से एक हैं, अधिकृत व्यक्ति|0459}}
<!-- END NAVIGATION BAR -->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<!-- BEGIN ORIGINAL VANIQUOTES PAGE LINK-->
<div class="center">
<div class="center">
Line 15: Line 18:


<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
<!-- BEGIN VIDEO LINK -->
{{youtube_right|QHSwCbYbGbk|हरे कृष्ण का जाप करते हो - कृष्ण को छू रहे हो अपनी जिहवा से<br />- Prabhupāda 0458}}
{{youtube_right|-JG4rCslsiE|हरे कृष्ण का जप, कृष्ण को अपनी जिहवा से छूना<br />- Prabhupāda 0458}}
<!-- END VIDEO LINK -->
<!-- END VIDEO LINK -->


<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<!-- BEGIN AUDIO LINK -->
<mp3player>http://vaniquotes.org/w/images/770226SB-MAY_clip4.mp3</mp3player>
<mp3player>https://s3.amazonaws.com/vanipedia/clip/770226SB-MAY_clip4.mp3</mp3player>
<!-- END AUDIO LINK -->
<!-- END AUDIO LINK -->


Line 27: Line 30:


<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
<!-- BEGIN TRANSLATED TEXT -->
प्रभुपाद: तो जैसे ही नर्सिंहदेव नें प्रहलाद महाराज के सिर को छुआ, तुरंत तुम भी वही सुविधा पा सकते हो । "क्या है वह सुविधा ? कैसे? न्रसिंहदेव यहाँ नहीं है । कृष्ण यहाँ नहीं हैं ।" नहीं, वे यहाँ हैं । "वह क्या है?" नाम रूपे कली काले कृष्ण अवतार ([[Vanisource:CC Adi 17.22|चै च अादि १७।२२]]) कृष्ण उपस्थित हैं उनके नाम से, कृष्ण । मत सोचो कि यह कृष्ण, हरे कृष्ण, यह नाम, कृष्ण से अलग है । निरपेक्ष । कृष्ण, अर्च विग्रह कृष्ण, नाम कृष्ण, व्यक्ति कृष्ण - सब कुछ, एक ही निरपेक्ष सत्य । कोई अंतर नहीं है । तो इस युग में केवल जप करके : कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संग: परम व्रजेत ([[Vanisource:SB 12.3.51|श्री भ १२।३।५१]]) । केवल कृष्ण के पवित्र नाम के जप से ... नाम चिंतामणि कृष्ण: चैतन्य रस विग्रह पूर्ण: शुद्धो नित्य मुकत: ([[Vanisource:CC Madhya 17.133|चै च मध्य १७।१३३]]) मत सोचो कि कृष्ण का पवित्र नाम श्री कृष्ण से अलग है । यह पूर्णम है । पूर्ण: पूर्णम अद: पूर्णम इदम ([[Vanisource:ISO Invocation|ईषोपनिषद, मंगलाचरण]]) । सब कुछ पूर्ण । पूर्ण का मतलब है "पूरा ।" हमने अपने ईषोपनिषद में इस पूर्णता की व्याख्या करने की कोशिश की है । तुमने पढ़ा है । तो कृष्ण के पवित्र नाम के साथ जुडे रहो । तुम्हे वही लाभ मिलेगा जो प्रहलाद महाराज को मिला न्रसिंह-देवे के कमल हाथों के सीधे संपर्क से । कोई अंतर नहीं है । हमेशा इस तरह से सोचो, कि जैसे ही तुम हरे कृष्ण का जाप करते हो, तम्हे पता होना चाहिए कि तुम कृष्ण को छू रहे हो अपनी जिहवा से । तो फिर तुम्हे प्रहलाद महाराजा की तरह ही लाभ मिलेगा । बहुत बहुत धन्यवाद ।
प्रभुपाद: तो जैसे ही नरसिंहदेव नें प्रहलाद महाराज के सिर को छुआ, तुरंत तुम भी वही सुविधा पा सकते हो । "क्या है वह सुविधा ? कैसे? नरसिंहदेव यहाँ नहीं है । कृष्ण यहाँ नहीं हैं ।" नहीं | वे यहाँ हैं । "वह क्या है?" नाम रूपे कली काले कृष्ण अवतार ([[Vanisource:CC Adi 17.22|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२२]]) | कृष्ण उपस्थित हैं उनके नाम से, कृष्ण । मत सोचो कि यह कृष्ण, हरे कृष्ण, यह नाम, कृष्ण से अलग है । निरपेक्ष । कृष्ण, अर्च विग्रह कृष्ण, नाम कृष्ण, व्यक्ति कृष्ण - सब कुछ, एक ही निरपेक्ष सत्य । कोई अंतर नहीं है । तो इस युग में केवल जप करके: कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संग: परम व्रजेत ([[Vanisource:SB 12.3.51|श्रीमद भागवतम १२.३.५१]]) । केवल कृष्ण के पवित्र नाम के जप से ... नाम चिंतामणि कृष्ण: चैतन्य रस विग्रह पूर्ण: शुद्धो नित्य मुकत: ([[Vanisource:CC Madhya 17.133|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३३]]) |  


भक्त: जय !
मत सोचो कि कृष्ण का पवित्र नाम श्री कृष्ण से अलग है । यह पूर्णम है । पूर्ण: पूर्णम अद: पूर्णम इदम ([[Vanisource:ISO Invocation|ईषोपनिषद, मंगलाचरण]]) । सब कुछ पूर्ण । पूर्ण का मतलब है "पूरा ।" हमने अपने इशोपनिषद में इस पूर्णता की व्याख्या करने की कोशिश की है । तुमने पढ़ा है । तो कृष्ण के पवित्र नाम के साथ जुडे रहो । तुम्हे वही लाभ मिलेगा जो प्रहलाद महाराज को मिला नरसिंह-देवे के कमल हाथों के सीधे संपर्क से । कोई अंतर नहीं है । हमेशा इस तरह से सोचो, कि जैसे ही तुम हरे कृष्ण का जप करते हो, तम्हे पता होना चाहिए कि तुम कृष्ण को छू रहे हो अपनी जिहवा से । तो फिर तुम्हे प्रहलाद महाराज की तरह ही लाभ मिलेगा ।
 
बहुत बहुत धन्यवाद ।
 
भक्त: जय !  
<!-- END TRANSLATED TEXT -->
<!-- END TRANSLATED TEXT -->

Latest revision as of 14:48, 11 October 2018



Lecture on SB 7.9.6 -- Mayapur, February 26, 1977

प्रभुपाद: तो जैसे ही नरसिंहदेव नें प्रहलाद महाराज के सिर को छुआ, तुरंत तुम भी वही सुविधा पा सकते हो । "क्या है वह सुविधा ? कैसे? नरसिंहदेव यहाँ नहीं है । कृष्ण यहाँ नहीं हैं ।" नहीं | वे यहाँ हैं । "वह क्या है?" नाम रूपे कली काले कृष्ण अवतार (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२२) | कृष्ण उपस्थित हैं उनके नाम से, कृष्ण । मत सोचो कि यह कृष्ण, हरे कृष्ण, यह नाम, कृष्ण से अलग है । निरपेक्ष । कृष्ण, अर्च विग्रह कृष्ण, नाम कृष्ण, व्यक्ति कृष्ण - सब कुछ, एक ही निरपेक्ष सत्य । कोई अंतर नहीं है । तो इस युग में केवल जप करके: कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संग: परम व्रजेत (श्रीमद भागवतम १२.३.५१) । केवल कृष्ण के पवित्र नाम के जप से ... नाम चिंतामणि कृष्ण: चैतन्य रस विग्रह पूर्ण: शुद्धो नित्य मुकत: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३३) |

मत सोचो कि कृष्ण का पवित्र नाम श्री कृष्ण से अलग है । यह पूर्णम है । पूर्ण: पूर्णम अद: पूर्णम इदम (ईषोपनिषद, मंगलाचरण) । सब कुछ पूर्ण । पूर्ण का मतलब है "पूरा ।" हमने अपने इशोपनिषद में इस पूर्णता की व्याख्या करने की कोशिश की है । तुमने पढ़ा है । तो कृष्ण के पवित्र नाम के साथ जुडे रहो । तुम्हे वही लाभ मिलेगा जो प्रहलाद महाराज को मिला नरसिंह-देवे के कमल हाथों के सीधे संपर्क से । कोई अंतर नहीं है । हमेशा इस तरह से सोचो, कि जैसे ही तुम हरे कृष्ण का जप करते हो, तम्हे पता होना चाहिए कि तुम कृष्ण को छू रहे हो अपनी जिहवा से । तो फिर तुम्हे प्रहलाद महाराज की तरह ही लाभ मिलेगा ।

बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय !