HI/Prabhupada 0458 - हरे कृष्ण का जप, कृष्ण को अपनी जिहवा से छूना: Difference between revisions
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प्रभुपाद: तो जैसे ही | प्रभुपाद: तो जैसे ही नरसिंहदेव नें प्रहलाद महाराज के सिर को छुआ, तुरंत तुम भी वही सुविधा पा सकते हो । "क्या है वह सुविधा ? कैसे? नरसिंहदेव यहाँ नहीं है । कृष्ण यहाँ नहीं हैं ।" नहीं | वे यहाँ हैं । "वह क्या है?" नाम रूपे कली काले कृष्ण अवतार ([[Vanisource:CC Adi 17.22|चैतन्य चरितामृत अादि १७.२२]]) | कृष्ण उपस्थित हैं उनके नाम से, कृष्ण । मत सोचो कि यह कृष्ण, हरे कृष्ण, यह नाम, कृष्ण से अलग है । निरपेक्ष । कृष्ण, अर्च विग्रह कृष्ण, नाम कृष्ण, व्यक्ति कृष्ण - सब कुछ, एक ही निरपेक्ष सत्य । कोई अंतर नहीं है । तो इस युग में केवल जप करके: कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संग: परम व्रजेत ([[Vanisource:SB 12.3.51|श्रीमद भागवतम १२.३.५१]]) । केवल कृष्ण के पवित्र नाम के जप से ... नाम चिंतामणि कृष्ण: चैतन्य रस विग्रह पूर्ण: शुद्धो नित्य मुकत: ([[Vanisource:CC Madhya 17.133|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३३]]) | | ||
भक्त: जय ! | मत सोचो कि कृष्ण का पवित्र नाम श्री कृष्ण से अलग है । यह पूर्णम है । पूर्ण: पूर्णम अद: पूर्णम इदम ([[Vanisource:ISO Invocation|ईषोपनिषद, मंगलाचरण]]) । सब कुछ पूर्ण । पूर्ण का मतलब है "पूरा ।" हमने अपने इशोपनिषद में इस पूर्णता की व्याख्या करने की कोशिश की है । तुमने पढ़ा है । तो कृष्ण के पवित्र नाम के साथ जुडे रहो । तुम्हे वही लाभ मिलेगा जो प्रहलाद महाराज को मिला नरसिंह-देवे के कमल हाथों के सीधे संपर्क से । कोई अंतर नहीं है । हमेशा इस तरह से सोचो, कि जैसे ही तुम हरे कृष्ण का जप करते हो, तम्हे पता होना चाहिए कि तुम कृष्ण को छू रहे हो अपनी जिहवा से । तो फिर तुम्हे प्रहलाद महाराज की तरह ही लाभ मिलेगा । | ||
बहुत बहुत धन्यवाद । | |||
भक्त: जय ! | |||
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Latest revision as of 14:48, 11 October 2018
Lecture on SB 7.9.6 -- Mayapur, February 26, 1977
प्रभुपाद: तो जैसे ही नरसिंहदेव नें प्रहलाद महाराज के सिर को छुआ, तुरंत तुम भी वही सुविधा पा सकते हो । "क्या है वह सुविधा ? कैसे? नरसिंहदेव यहाँ नहीं है । कृष्ण यहाँ नहीं हैं ।" नहीं | वे यहाँ हैं । "वह क्या है?" नाम रूपे कली काले कृष्ण अवतार (चैतन्य चरितामृत अादि १७.२२) | कृष्ण उपस्थित हैं उनके नाम से, कृष्ण । मत सोचो कि यह कृष्ण, हरे कृष्ण, यह नाम, कृष्ण से अलग है । निरपेक्ष । कृष्ण, अर्च विग्रह कृष्ण, नाम कृष्ण, व्यक्ति कृष्ण - सब कुछ, एक ही निरपेक्ष सत्य । कोई अंतर नहीं है । तो इस युग में केवल जप करके: कीर्तनाद एव कृष्णस्य मुक्त-संग: परम व्रजेत (श्रीमद भागवतम १२.३.५१) । केवल कृष्ण के पवित्र नाम के जप से ... नाम चिंतामणि कृष्ण: चैतन्य रस विग्रह पूर्ण: शुद्धो नित्य मुकत: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३३) |
मत सोचो कि कृष्ण का पवित्र नाम श्री कृष्ण से अलग है । यह पूर्णम है । पूर्ण: पूर्णम अद: पूर्णम इदम (ईषोपनिषद, मंगलाचरण) । सब कुछ पूर्ण । पूर्ण का मतलब है "पूरा ।" हमने अपने इशोपनिषद में इस पूर्णता की व्याख्या करने की कोशिश की है । तुमने पढ़ा है । तो कृष्ण के पवित्र नाम के साथ जुडे रहो । तुम्हे वही लाभ मिलेगा जो प्रहलाद महाराज को मिला नरसिंह-देवे के कमल हाथों के सीधे संपर्क से । कोई अंतर नहीं है । हमेशा इस तरह से सोचो, कि जैसे ही तुम हरे कृष्ण का जप करते हो, तम्हे पता होना चाहिए कि तुम कृष्ण को छू रहे हो अपनी जिहवा से । तो फिर तुम्हे प्रहलाद महाराज की तरह ही लाभ मिलेगा ।
बहुत बहुत धन्यवाद ।
भक्त: जय !