HI/Prabhupada 0461 - मैं गुरु के बिना रह सकता हूँ । यह बकवास है
Lecture on SB 7.9.7 -- Mayapur, February 27, 1977
जैसे हमारे देश में, शायद तुम्हें पता है, एक कवि रवींद्रनाथ टैगोर हुअा करते थे । उन्होंने ऑक्सफोर्ड विश्वविद्यालय से कई विशेष सम्मान मिले । उन्हे मिला ... वे स्कूल कभी नहीं गए, लेकिन उन्हे खिताब, डॉक्टर, का मिला "डॉ. रवींद्रनाथ टैगोर ।" और अगर तुम सोचते हो कि "मैं भी एक स्कूल जाए बिना डॉक्टर की उपाधि प्राप्त करूँगा," वह मूर्खता है । वह विशेष है । इसी प्रकार, नकल करने की कोशिश मत करो । सामान्य कार्यप्रणाली का पालन करें, , साधना-सिद्धि । नियामक सिद्धांतों का तुम्हे पालन करना चाहिए जैसा कि शास्त्र में निर्देशित है । इसलिए इतने सारे शास्त्र हैं । और गुरु मार्गदर्शक है । हमे हमेशा चाहिए कि ... भले ही तुम नित्य-सिध्द या कृपा-सिद्ध हो, तुम्हे सामान्य नियामक सिद्धांतों की उपेक्षा नहीं करनी चाहिए । यह बहुत खतरनाक है । ऐसा करने की कोशिश न करो । हमे पालन करना होगा । नित्य ... जैसे चैतन्य महाप्रभु की तरह । चैतन्य महाप्रभु श्री कृष्ण खुद हैं, भगवान, लेकिन वे गुरु स्वीकार कर रहे हैं । उनके गुरु कौन है? वे हर किसी के गुरु हैं, लेकिन उन्होंने भी अपने गुरु के रूप में ईश्वर पुरी को स्वीकार किया । कृष्ण खुद, उन्होंने गुरू को स्वीकार किया, सांदीपनी मुनि, हमें सिखा रहे हैं कि गुरु के बिना तुम कोई भी उन्नति नहीं कर सकते हो । अदौ गुरवाश्रयम ।. पहला काम है गुरु स्वीकार करना । तद-विज्ञानार्थम स गुरुम एवाभीगच्छेत ( मु उ १।२।१२) यह मत सोचो कि, "मैं इतना उन्नत हूँ । मुझे किसी भी गुरु की आवश्यकता नहीं हो सकती है । मैं गुरु के बिना रह सकता हूँ ।" यह बकवास है । वह संभव नहीं । "चाहिए ।" तद-विज्ञानार्थम । तद-विज्ञानार्थम आध्यात्मिक विज्ञान है । " समीप जाना पडेगा ।" गुरुम एवाभिगच्छेत समित-पनि: श्रोत्रियम ब्रह्म-निश्ठम तस्माद-गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम् (श्री भ ११।३।२१) अगर तुम दिव्य विज्ञान समझने के लिए वास्तव में गंभीर हो, आध्यात्मिक ज्ञान को, ओह, तुम्हे गुरु होना आवश्यक है । तस्माद-गुरुम प्रपद्येत जिज्ञासु: श्रेय उत्तमम् और जैसे चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, अामर अाज्ञाय गुरु हाना तार एई देश (चै च मध्य ७।१२८) कोई भी गुरु स्वयं नहीं बन सकता है । नहीं । ऐसी कोई भी उदाहरण पूरे वैदिक साहित्य में नहीं है । और आजकल, इतने सारे दुष्ट, वे किसी भी अधिकार के बिना गुरू बन रहे हैं । यह गुरु नहीं है । तुम्हे अधिकृत होना चाहिए । एवं परम्परा-प्राप्तम इमम रा ... (भ गी ४।२) जैसे ही परम्परा खो जाती है, स कालेन योग नश्टो परन्तप, तुरंत समाप्त । आध्यात्मिक शक्ति समाप्त हो जाती है । तुम एक गुरु की तरह पहनावा कर सकते हो, तुम बड़े, बड़े शब्द बोल सकते हो, लेकिन यह प्रभावी नहीं होगा । तो ये विज्ञान है । तो प्रहलाद महाराज हमारे गुरु हैं । वे साधारण नहीं हैं । यह मत सोचो कि "वे एक पांच साल के लड़के हैं, उन्हे ज्ञान नहीं है ।" नहीं । वे पूर्ण नित्य-सिद्ध गुरू हैं, और हमें हमेशा उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करनी चाहिए । और वही वैष्णव ठाकुर है । वैष्णव ठाकुर तोमार कुकुर बोलिया जानह मोर । यह एक विनम्र तरीका है । "हे वैष्णव ठाकुर ..." सभी वैशणव ठाकुर हैं । वे साधारण व्यक्ति नहीं हैं । ठाकुर ... इसलिए हम सम्बोधन करते हैं: भक्तिविनोद ठाकुर, भक्तिसिद्धान्त सरस्वती ठाकुर । तो वैष्णव, प्रहलाद ठाकुर । इसलिए हमें हमेशा प्रार्थना करनी चाहिए, वैष्णव ठाकुर तोमार कुकुर बोलिया जानह मोर । यह है ... भक्तिविनोद ठाकुर का एक गाना है: "मेरे प्रिय वैष्णव ठाकुर, कृपया मुझे कुत्ते के रूप में स्वीकार करें ।" वैष्णव ठाकुर । कुत्ते के रूप में, गुरु के संकेत से, सब कुछ, बहुत आज्ञाकारी होता है । हमें कुत्ते से यह सबक सीखना है, गुरु के प्रति वफादार कैसे हों । यही निर्देश है । हर परिस्थिति से तुम कुछ सीख सकते हो । हर कोई । इसलिए महा भागवत, वे हर किसी को स्वीकार करते हैं गुरु के रूप में, कुछ सीखने के लिए । दरअसल, कुत्ते से हम इस कला को सीख सकते हैं, जीवन को जोखिम में डाल कर भी वफादार कैसे रहना है । ऐसे कई उदाहरण हैं, कुत्ता नें मालिक के लिए जीवन दे दिया । तो ... और हमें वैष्णव का कुत्ता होना चाहिए । छाडिया वैशणव-सेवा, निसतार पायेछे केबा ।