HI/Prabhupada 0465 - वैष्णव शक्तिशाली है, लेकिन फिर भी वह बहुत नम्र और विनम्र है: Difference between revisions

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तो प्रहलाद महाराज वैष्णव हैं । वैष्णव की योग्यता है,
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:तृनाद अपि सुनिचेन
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:तरोर अपि सहिश्नुना
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:अमानिना मानदेन
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वैष्णव हमेशा विनम्र है - नम्र और विनम्र । यही वैष्णव है । वैष्णव शक्तिशाली है, लेकिन फिर भी वह बहुत नम्र और विनम्र है । तो यहाँ पर लक्षण हैं । प्रहलाद महाराज बहुत योग्य है, कि तुरंत भगवान न्रसिंस-देव नें उनके सिर पर हाथ रखा; "मेरे प्यारे बच्चे, तुमने इतना दुख सहा है अब शांत हो जाअो ।" यह प्रहलाद महाराज की स्थिति है - तुरंत प्रभु द्वारा स्वीकार किए जाते हैं - लेकिन वे सोच रहा है, " मैं इतने नीच कुल का हूँ, उस परिवार में, राजसिक परिवार ," उग्र-जाते: उन्हे गर्व नहीं है कि, " अब न्रसिंह-देव नें मेरे सिर को छुआ है । मेरे जैसा कौन है ? मैं महान व्यक्तित्व हूँ । " यह वैष्णव नहीं है । सनातन गोस्वामी, जब उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से संपर्क किया, उन्होंने खुद को प्रस्तुत किया , नीच जाति नीच कर्म नीच संगी : "मैं बहुत नीचे कुल के परिवार में पैदा हुआ हूँ, और मेरे कर्तव्य भी बहुत निम्न हैं, और मेरा संग भी बहुत निम्न है । " तो सनातन गोस्वामी एक बहुत सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुआ थे, लेकिन क्योंकि उन्होंने मुहम्मदन राजा की सेवा स्वीकार की थी, वास्तव में उन्होंने अपने सभी ब्राह्मणवादी संस्कृति को खो दिया । वे खोए नहीं थे, लेकिन अल्पज्ञता यह दिखाई दिया, क्योंकि वे मुसलमानों के साथ मिलते थे, उन लोगों के साथ बात करते थे, उनके साथ बैठते थै, उनके साथ खाते थे । लेकिन उन्होंने छोड़ दिया । त्यक्त्वा तूर्नम अशेश-मंडक-पति - श्रेणिम् सदा तुच्छ वे समझ गए, , "मैं क्या कर रहा हूँ? मैं आत्महत्या कर रहा हूं ।" जानिया शुनिया विष खाइनु । नरोतत्म दासा ठाकुर कहते हैं कि "मैं जानबूझकर जहर ले रहा हूँ ।" अनजाने में कोई जहर ले सकता है, लेकिन जानबूझकर जो जहर लेता है, यह बहुत अफसोस की बात है । तो नरोत्तम दासा ठाकुर ने कहा, हरि हरि बिफले जनम गोनाइनु, मनुष्य जनम पाइया राधा कृष्ण न भजिया, जानिया शुनिया विष खाइनु । तो हम पूरी दुनिया में इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रचार करने कि कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिर भी, अगर लोग इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को नहीं लेते हैं, तो फिर वे जानबूझकर जहर पी रहे हैं । यह स्थिति है । वह जहर पी रहा है । यह एक तथ्य है । यह हम कुछ कल्पना कर रहे हैं, सैद्धांतिक . वे अारोप लता रहे हैं, "विचार बदलना "। हाँ, यह यह विचार बदलना है । यह है.......सभी गंदी बातें, दस्त, मस्तिष्क में होता है और हम उसे धोने की कोशिश कर रहे हैं । यह हमारा है ...
वैष्णव हमेशा विनम्र है - नम्र और विनम्र । यही वैष्णव है । वैष्णव शक्तिशाली है, लेकिन फिर भी वह बहुत नम्र और विनम्र है । तो यहाँ पर लक्षण हैं । प्रहलाद महाराज बहुत योग्य है, कि तुरंत भगवान नरसिंह देव नें उनके सिर पर हाथ रखा; "मेरे प्यारे बच्चे, तुमने इतना दुख सहा है | अब शांत हो जाअो ।" यह प्रहलाद महाराज की स्थिति है - तुरंत प्रभु द्वारा स्वीकार किए जाते हैं | लेकिन वे सोच रहे है, "मैं इतने नीच कुल का हूँ, उस परिवार में, राजसिक परिवार," उग्र-जाते: उन्हे गर्व नहीं है कि, "अब नरसिंह-देव नें मेरे सिर को छुआ है । मेरे जैसा कौन है ? मैं महान व्यक्तित्व हूँ ।" यह वैष्णव नहीं है । सनातन गोस्वामी, जब उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से संपर्क किया, उन्होंने खुद को प्रस्तुत किया, नीच जाति नीच कर्म नीच संगी: "मैं बहुत नीचे कुल के परिवार में पैदा हुआ हूँ, और मेरे कार्य भी बहुत निम्न हैं, और मेरा संग भी बहुत निम्न है । "  


:श्रृन्वताम स्व-कथा: कृष्ण:
तो सनातन गोस्वामी एक बहुत सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन क्योंकि उन्होंने मुस्लिम राजा की सेवा स्वीकार की थी, वास्तव में उन्होंने अपने सभी ब्राह्मणवादी संस्कृति को खो दिया । वे खोए नहीं थे, लेकिन उपर उपर से यह दिखाई दिया, क्योंकि वे मुसलमानों के साथ मिलते थे, उन लोगों के साथ बात करते थे, उनके साथ बैठते थै, उनके साथ खाते थे । लेकिन उन्होंने छोड़ दिया । त्यक्त्वा तूर्णम अशेश-मंडल-पति - श्रेणिम सदा तुच्छ | वे समझ गए, "मैं क्या कर रहा हूँ? मैं आत्महत्या कर रहा हूं ।" जानिया शुनिया विष खाइनु । नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं कि "मैं जानबूझकर जहर ले रहा हूँ ।" अ
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:विधुनोति सुह्रत सताम
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विधुनोति, यह शब्द, यहाँ है विधुनोति का मतलब है धोना । वॉशिंग । जैसे जैसे तुम श्रीमद भागवतम या भगवद गीता का संदेश सुनते हो, प्रक्रिया है विधुनोति, धोना । दरअसल, यह विचार बदलना ही है - लेकिन अच्छे के लिए । धोना बुरा नहीं है । (हंसी) ये दुष्ट, वे नहीं जानते हैं । वे सोच रहे हैं "ओह, तुम मुझे शुद्ध कर रहे हो? ओह, तुम बहुत खतरनाक हो ।" यह उनका है ..मूर्खायोपदेषो हि प्रकोपाय न शांतये : "एक बदमाश को अगर तुम अच्छी सलाह देते हो, वह नाराज हो जाता है ।" मूर्खायोपदेषो हि प्रकोपाय न शांतये । कैसे? पाय:-पानम भजंगानाम केवलम विष-वर्धनम ।
नजाने में कोई जहर ले सकता है, लेकिन जानबूझकर जो जहर लेता है, यह बहुत अफसोस की बात है । तो नरोत्तम दास ठाकुर ने कहा, हरि हरि बिफले जनम ग्वाइनु, मनुष्य जनम पाइया राधा कृष्ण न भजिया, जानिया शुनिया विष खाइनु । तो हम पूरी दुनिया में इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिर भी, अगर लोग इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को नहीं लेते हैं, तो फिर वे जानबूझकर जहर पी रहे हैं । यह स्थिति है । वह जहर पी रहा है । यह एक तथ्य है । यह हम कुछ कल्पना कर रहे हैं, सैद्धांतिक | वे अारोप लगा रहे हैं, "दिमाग को धोना |" हाँ, यह यह दिमाग की धुलाई है । यह है.......सभी गंदी बातें, मल, मस्तिष्क में होता है, और हम उसे धोने की कोशिश कर रहे हैं । यह हमारा है ...
 
:शृण्वताम स्व-कथा: कृष्ण:
:पुन्य श्रवण कीर्तन:
:हृदि अंत: स्थो हि अभद्राणि
:विधुनोति सुहृत सताम
:([[Vanisource:SB 1.2.17|श्रीमद भागवतम १.२.१७]])
 
विधुनोति, यह शब्द, यहाँ है विधुनोति का मतलब है धोना । धोना । जैसे जैसे तुम श्रीमद भागवतम या भगवद गीता का संदेश सुनते हो, प्रक्रिया है विधुनोति, धोना । दरअसल, यह दिमाग को धोना ही है - लेकिन अच्छे के लिए । धोना बुरा नहीं है । (हंसी) ये दुष्ट, वे नहीं जानते हैं । वे सोच रहे हैं "ओह, तुम मुझे शुद्ध कर रहे हो? ओह, तुम बहुत खतरनाक हो ।" यह उनका है ..मूर्खायोपदेषो हि प्रकोपाय न शांतये: "एक बदमाश को अगर तुम अच्छी सलाह देते हो, वह क्रोधित हो जाता है ।" मूर्खायोपदेषो हि प्रकोपाय न शांतये । कैसे? पाय:-पानम भुजंगानाम केवलम विष-वर्धनम ।  
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Latest revision as of 15:19, 11 October 2018



Lecture on SB 7.9.8 -- Mayapur, February 28, 1977

तो प्रहलाद महाराज वैष्णव हैं । वैष्णव की योग्यता है,

तृणाद अपि सुनिचेन
तरोर अपि सहिश्नुना
अमानिना मानदेन
कीर्तनीय सदा हरि:
(चैतन्य चरितामृत अादि १७.३१)

वैष्णव हमेशा विनम्र है - नम्र और विनम्र । यही वैष्णव है । वैष्णव शक्तिशाली है, लेकिन फिर भी वह बहुत नम्र और विनम्र है । तो यहाँ पर लक्षण हैं । प्रहलाद महाराज बहुत योग्य है, कि तुरंत भगवान नरसिंह देव नें उनके सिर पर हाथ रखा; "मेरे प्यारे बच्चे, तुमने इतना दुख सहा है | अब शांत हो जाअो ।" यह प्रहलाद महाराज की स्थिति है - तुरंत प्रभु द्वारा स्वीकार किए जाते हैं | लेकिन वे सोच रहे है, "मैं इतने नीच कुल का हूँ, उस परिवार में, राजसिक परिवार," उग्र-जाते: उन्हे गर्व नहीं है कि, "अब नरसिंह-देव नें मेरे सिर को छुआ है । मेरे जैसा कौन है ? मैं महान व्यक्तित्व हूँ ।" यह वैष्णव नहीं है । सनातन गोस्वामी, जब उन्होंने चैतन्य महाप्रभु से संपर्क किया, उन्होंने खुद को प्रस्तुत किया, नीच जाति नीच कर्म नीच संगी: "मैं बहुत नीचे कुल के परिवार में पैदा हुआ हूँ, और मेरे कार्य भी बहुत निम्न हैं, और मेरा संग भी बहुत निम्न है । "

तो सनातन गोस्वामी एक बहुत सम्मानजनक ब्राह्मण परिवार में पैदा हुए थे, लेकिन क्योंकि उन्होंने मुस्लिम राजा की सेवा स्वीकार की थी, वास्तव में उन्होंने अपने सभी ब्राह्मणवादी संस्कृति को खो दिया । वे खोए नहीं थे, लेकिन उपर उपर से यह दिखाई दिया, क्योंकि वे मुसलमानों के साथ मिलते थे, उन लोगों के साथ बात करते थे, उनके साथ बैठते थै, उनके साथ खाते थे । लेकिन उन्होंने छोड़ दिया । त्यक्त्वा तूर्णम अशेश-मंडल-पति - श्रेणिम सदा तुच्छ | वे समझ गए, "मैं क्या कर रहा हूँ? मैं आत्महत्या कर रहा हूं ।" जानिया शुनिया विष खाइनु । नरोत्तम दास ठाकुर कहते हैं कि "मैं जानबूझकर जहर ले रहा हूँ ।" अ

नजाने में कोई जहर ले सकता है, लेकिन जानबूझकर जो जहर लेता है, यह बहुत अफसोस की बात है । तो नरोत्तम दास ठाकुर ने कहा, हरि हरि बिफले जनम ग्वाइनु, मनुष्य जनम पाइया राधा कृष्ण न भजिया, जानिया शुनिया विष खाइनु । तो हम पूरी दुनिया में इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन का प्रचार करने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन फिर भी, अगर लोग इस कृष्ण भावनामृत आंदोलन को नहीं लेते हैं, तो फिर वे जानबूझकर जहर पी रहे हैं । यह स्थिति है । वह जहर पी रहा है । यह एक तथ्य है । यह हम कुछ कल्पना कर रहे हैं, सैद्धांतिक | वे अारोप लगा रहे हैं, "दिमाग को धोना |" हाँ, यह यह दिमाग की धुलाई है । यह है.......सभी गंदी बातें, मल, मस्तिष्क में होता है, और हम उसे धोने की कोशिश कर रहे हैं । यह हमारा है ...

शृण्वताम स्व-कथा: कृष्ण:
पुन्य श्रवण कीर्तन:
हृदि अंत: स्थो हि अभद्राणि
विधुनोति सुहृत सताम
(श्रीमद भागवतम १.२.१७)

विधुनोति, यह शब्द, यहाँ है विधुनोति का मतलब है धोना । धोना । जैसे जैसे तुम श्रीमद भागवतम या भगवद गीता का संदेश सुनते हो, प्रक्रिया है विधुनोति, धोना । दरअसल, यह दिमाग को धोना ही है - लेकिन अच्छे के लिए । धोना बुरा नहीं है । (हंसी) ये दुष्ट, वे नहीं जानते हैं । वे सोच रहे हैं "ओह, तुम मुझे शुद्ध कर रहे हो? ओह, तुम बहुत खतरनाक हो ।" यह उनका है ..मूर्खायोपदेषो हि प्रकोपाय न शांतये: "एक बदमाश को अगर तुम अच्छी सलाह देते हो, वह क्रोधित हो जाता है ।" मूर्खायोपदेषो हि प्रकोपाय न शांतये । कैसे? पाय:-पानम भुजंगानाम केवलम विष-वर्धनम ।