HI/Prabhupada 0471 - कृष्ण को प्रसन्न करने का आसान तरीका, बस तुम्हारे दिल की आवश्यकता है

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Lecture on SB 7.9.9 -- Mayapur, March 1, 1977

प्रभुपाद: तो प्रहलाद महाराज नें यह सोचा था कि, लांकि, वह एक परिवार में पैदा हुए थे, असुर परिवार, उग्र, उग्र-जातम, फिर भी, अगर वे श्री कृष्ण की सेवा करने का फैसला करते हैं, भगवान न्रसिंह-देव, भक्ति के साथ गज-यूथ पाय, हाथी के राजा के पद चिंहों पर चलकर ... वह पशु था । तुम्हे वह कहानी पता है, कि पानी में एक मगरमच्छ ने उसपर हमला किया था । तो वहाँ दोनों के बीच अस्तित्व के लिए संघर्ष था, और यह बात तो थी कि, मगरमच्छ पानी का जानवर है, वह महान शक्तिशाली था । और हाथी, हालांकि, वह भी बहुत बड़ा, शक्तिशाली जानवर है, लेकिन वह पानी का पशु नहीं था, इसलिए वह बहुत असहाय था । तो अाखिर में, वह प्रभु का पवित्र नाम जपने लगा और प्रार्थना करने लगा, तो वह बच गया था । वह बच गया था, और क्योंकि मगरमच्छ नें हाथी का पैर पकड़ लिया था, वह भी बच गया था क्योंकि वह वैष्णव था । और यह जानवर, मगरमच्छ, वह एक वैष्णव के पैरों के नीचे था, तो वह भी बच गया । (हंसी) यह कहानी है, तुम्हे पता है । तो इसलिए, छाडिया वैष्णव सेवा । उन्होंने परोक्ष रूप से वैष्णव को सेवा दिया, और वह भी मुक्त हो गया । इसलिए भक्ति इतनी अच्छी बात है कि बहुत आसानी से तुम परम व्यक्ति की अनुकंपा प्राप्त कर सकते हो । अौर अगर कृष्ण तुम पर प्रसन्न है, तो फिर क्या रहता है? तुम्हे सब कुछ मिलता है । तुम्हे सब कुछ मिलता है । यस्मिन विज्ञाते सर्वम एव विज्ञातम भवन्ति ( मुन्डक उपनिषद १।३) श्री कृष्ण को प्रसन्न करने के लिए सबसे आसान तरीका है ... तुम्हे ज्यादा पैसे, ज्यादा शिक्षा, और ऐसा कुछ भी की आवश्यकता नहीं है । बस तुम्हारे दिल की आवश्यकता है: "हे कृष्ण, अाप मेरे भगवान हैं । आप सदा मेरे मालिक हैं । मैं सदा अापका दास हूं । मुझे आपकी सेवा में लगे रहने दीजिए ।" यही है हरे कृष्ण, हरे कृष्ण, कृष्ण कृष्ण हरे हरे / (श्रद्धालु मंत्र जपते हैं) हरे राम, हरे राम, राम राम हरे हरे । यही हरे कृष्ण मंत्र का अर्थ है: "हे कृष्ण, हे कृष्ण की शक्ति, मैं आपका सेवक हूँ । किसी तरह से मैं अब इस भौतिक हालत में गिर गया हूँ । कृपया मुझे उठाऍ और सेवा में मुझे व्यस्त करें ।" अइ नन्द-तनुज पतितम किंकरम माम विशमे भवम बुधौ । यही चैतन्य महाप्रभु हमें सिखा रहे हैं । भवम बुधौ यह भौतिक दुनिया एक महान महासागर की तरह है, भव । भव का मतलब है जन्म और मृत्यु की पुनरावृत्ति, और अम्बु का मतलब है अामबुधौ, मतलब है समुद्र में, सागर में । तो हम इस महासागर में अस्तित्व के लिए कठिन संघर्ष कर रहे हैं । तो चैतन्य महाप्रभु कहते हैं, अइi नंद तनुज पतितिम किंकरम माम: "मैं आपका सेवक अनन्तकाल के लिए हूँ । किसी तरह से मैं इस महासागर में गिर गया हूँ और संघर्ष कर रहा हूँ । मुझे उठा लें ।" अइ नन्द-तनुज पतितम किंकरम माम विशमे भवम बुधौ कृपया । आपकी अकारण दया से ...

अइ नन्द-तनुज पतितम किंकरम माम विशमे भवम बुधौ कृपया तव-पाद-पंकज-स्थित-धुली सद्रशम विचिन्तय

(चै च अन्तय २०।३२, शिक्शाश्टकम ५)

यह भक्ति-मार्ग है, ,भक्ति सेवा, बहुत विनम्र होना, नम्र, हमेशा कृष्ण से प्रार्थना करना । "कृपया अापके चरण कमलों की धूल के कण के रूप में मेरा विचार करें ।" यह बहुत साधारण बात है । मन- मना । इस तरह से कृष्ण के बारे में सोचें, उनके भक्त बनें, दंडवत करें । और जो कुछ पत्रम पुष्पम, थोडा फूल, जल, अाप दे सकते हैं, कृष्ण को अर्पण कर सकते हैं । इस तरह से बहुत शांति से रह सकते हैं और खुश रह सकते हैं । बहुत बहुत धन्यवाद ।

भक्त: जय प्रभुपाद ।