HI/Prabhupada 0490 - कई महीनों के लिए माँ के गर्भ में एक वायु रोधक हालत में: Difference between revisions

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पिछले श्लोक में, यह बताया गया है कि देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा ([[Vanisource:BG 2.13|भ गी २।१३]]) "हम एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरगमन कर रहे हैं । बिलकुल वैसे ही जैसे हम एक बच्चे के शरीर से एक लड़के के शरीर, एक लड़के के शरीर से युवा में जा रहे हैं । इसी तरह, हम इस शरीर से भी गुजर रहे हैं, और एक और शरीर को स्वीकार कर रहे हैं । " अब, पीडा और खुशी का सवाल । पीडा और खुशी - शरीर के अनुसार । एक बहुत अमीर आदमी काफी आराम से स्थित है । आम पीडा और दुख, यह आम है । आम क्या है? जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुक्ख-दोशानुदर्शनम ([[Vanisource:BG 13.9|भ गी १३।९]]) एक कुत्ते के रूप में या एक राजा के रूप में जन्म लेना, पीडा तो वही है । कोई फर्क नहीं है क्योंकि कुत्ते को भी मां के गर्भ में ही रहना पडता है । कई महीनों के लिए एक वायु-रोधक हालत में, और आदमी, या तो वह राजा हो या कुछ भी हो, उसे भी उस क्लेश से गुजरना पडता है । कोई बहाना नहीं चलेगा । क्योंकि तुम एक राजा के परिवार में जन्म ले रहे हो, इसका मतलब यह नहीं है मां के गर्भ के भीतर दब के रहने में संकट कम है, और क्योंकि वह एक कुत्ते माँ के गर्भ में जन्म ले रहा है, इसलिए वह महान है । एक ही बात है । इसी तरह, मृत्यु के समय पर ... मृत्यु के समय बहुत पीडा होती है । यह इतना बलवान है कि हमें शरीर छोड़ना पडता है । जैसे जब पीडा बहुत बढ जाती है, तो आत्महत्या । वह बर्दाश्त नहीं कर सकता है: "इस शरीर को खत्म करो ।" तो कोई भी इस शरीर को छोड़ना नहीं चाहता है लेकिन पीडा इतना बलवान है कि हम शरीर छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं । यही मृत्यु कहा जाता है । भगवद गीता में तुम पाअोगे, कि मृत्यु सर्व-हरश च अहम । कृष्ण का कहना है कि "मैं मौत हूँ ।" और मृत्यु का अर्थ क्या है? मौत का मतलब है "मैं उससे सब कुछ छीन लेता हूँ ।" समाप्त । मैं उसका शरीर छीन लेता हूँ, मैं उसका संग छीन लेता हूँ, मैं उसका देश छीन लेता हूँ, मैं उसका समाज छीन लेता हूँ, मैं उसका बैंक बैलेंस छीन लेता हूँ, और सब कुछ समाप्त हो जाता है । " सर्व-हर: । सर्व का मतलब सब कुछ । हर कोई संचित करने की कोशिश कर रहा है बड़ा बैंक बैलेंस और बड़ा घर, बड़ा परिवार, बड़ी मोटर गाड़ी ... लेकिन मौत के साथ, सब कुछ समाप्त हो जाता है । तो यह महान संकट है । कभी कभी हम रोते हैं । तुम मृत्यु के समय पाअोगे, कोमा में, उसकी आंखों से बूंदों बाहर आ रही हैं । वह सोच रहा है, "मैंने आराम से रहने के लिए इतनी अच्छी तरह से इतनी सारी चीजें बनाई और अब मैं सब कुछ खो रहा हूँ ।" महान संकट । मैं इलाहाबाद में एक दोस्त को जानता हूँ । वह बहुत अमीर आदमी था । तो वह केवल चौवन साल का था । तो वह अनुरोध कर रहा था, रो रहा था, डॉक्टर को "डॉक्टर, तुम मुझे रहने के लिए कम से कम चार साल दे सकते हो? मेरी एक योजना थी । मैं उसे खत्म करना चाहता था । " डॉक्टर क्या कर सकता है? "यह संभव नहीं है, साहब । तुम्हे निकलना होगा ।" लेकिन ये मूर्ख लोग, वे नहीं जानते । लेकिन हमें सहन करना पड़ता है । हमें सहन करना पड़ता है । यही यहां सलाह दी गई है " क्योंकि तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है, तुम्हे बर्दाश्त करन होगा, मां की कोख के भीतर रहना । " फिर बाहर आअोगे । तब मैं बात भी नहीं कर सकता हूँ । मान लीजिए मैं एक छोटा सा बच्चा हूँ, और कोई कीड़ा मुझे काट रहा है । मैं नहीं कह सकता "माँ" - क्योंकि उस समय पर मैं बात नहीं कर सकता हूँ - ". कुछ मेरी पीठ पर काट रहा है" मैं रो रहा हूँ, और माँ सोच रही है "बच्चा भूखा है । उसे दूध दो ।" (हंसी) देखो यह कितना ... मुझे कुछ चाहिए, और मुझे कुछ अौर दिया जा रहा है । यह एक तथ्य है । क्यों बच्चा रो रहा है? वह असहज महसूस कर रहा है । तो, इस तरह से, मैं बढता हूँ । फिर मैं स्कूल नहीं जाना चाहत हूँ । मुझे स्कूल जाने के लिए मजबूर किया जाता है । हां । कम से कम, मैं एसा था । (हंसी) मैं स्कूल जाना कभी नहीं चाहता था । और मेरे पिता बहुत दयालु थे । "तो ठीक है । तुम क्यों स्कूल नहीं जा रहे हो ?" मैं कहता था "मैं कल जाऊँगा । " "ठीक है ।" लेकिन मेरी मां बहुत सावधान थी । तो शायद अगर मेरी माँ थोड़ा सख्त नहीं होती , मैं कोई भी शिक्षा प्राप्त नहीं करता । मेरे पिता बहुत उदार थे । तो वे मुझे मजबूर करती थी । एक आदमी मुझे स्कूल ले जाता था । दरअसल, बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते । वे खेलना चाहते हैं । बच्चे की इच्छा के खिलाफ, उसे स्कूल जाना पड़ता है । फिर परीक्षा, सिर्फ स्कूल जाना नहीं ।
पिछले श्लोक में, यह बताया गया है कि देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा ([[HI/BG 2.13|भ.गी. २.१३]]) "हम एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरगमन कर रहे हैं । बिलकुल वैसे ही जैसे हम एक बच्चे के शरीर से एक लड़के के शरीर, एक लड़के के शरीर से युवा में जा रहे हैं । इसी तरह, हम इस शरीर से भी गुजर रहे हैं, और एक और शरीर को स्वीकार कर रहे हैं ।" अब, दुःख और सुख का सवाल । दुःख और सुख - शरीर के अनुसार । एक बहुत अमीर आदमी काफी आराम से स्थित है । आम पीडा और दुख, यह आम है । आम क्या है? जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोशानुदर्शनम ([[HI/BG 13.8-12|भ.गी. १३.९]]) | एक कुत्ते के रूप में या एक राजा के रूप में जन्म लेना, दुःख तो वही है । कोई फर्क नहीं है क्योंकि कुत्ते को भी मां के गर्भ में ही रहना पडता है ।  
 
कई महीनों के लिए एक वायु-रोधक हालत में, और आदमी, भले ही वह राजा हो या कुछ भी हो, उसे भी उस क्लेश से गुजरना पडता है । कोई बहाना नहीं चलेगा । क्योंकि तुम एक राजा के परिवार में जन्म ले रहे हो, इसका मतलब यह नहीं है मां के गर्भ के भीतर दब के रहने में संकट कम है, और क्योंकि वह एक कुत्ते की माँ के गर्भ में जन्म ले रहा है, इसलिए वह महान है । एक ही बात है । इसी तरह, मृत्यु के समय पर... मृत्यु के समय बहुत पीडा होती है । यह इतना बलवान है कि हमें शरीर छोड़ना पडता है ।  
 
जैसे जब पीडा बहुत बढ जाती है, तो आत्महत्या । वह बर्दाश्त नहीं कर सकता है: "इस शरीर को खत्म करो ।" तो कोई भी इस शरीर को छोड़ना नहीं चाहता है, लेकिन पीडा इतना बलवान है कि हम शरीर छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं । यही मृत्यु कहा जाता है । भगवद गीता में तुम पाअोगे, कि मृत्यु सर्व-हरश च अहम । कृष्ण का कहना है कि "मैं मौत हूँ ।" और मृत्यु का अर्थ क्या है? मौत का मतलब है "मैं उससे सब कुछ छीन लेता हूँ ।" समाप्त । मैं उसका शरीर छीन लेता हूँ, मैं उसका संग छीन लेता हूँ, मैं उसका देश छीन लेता हूँ, मैं उसका समाज छीन लेता हूँ, मैं उसका बैंक बैलेंस छीन लेता हूँ, और सब कुछ समाप्त हो जाता है ।"  
 
सर्व-हर: । सर्व का मतलब सब कुछ । हर कोई संचित करने की कोशिश कर रहा है बड़ा बैंक बैलेंस और बड़ा घर, बड़ा परिवार, बड़ी मोटर गाड़ी... लेकिन मौत के साथ, सब कुछ समाप्त हो जाता है । तो यह महान संकट है । कभी कभी हम रोते हैं । तुम मृत्यु के समय पाअोगे, कोमा में, उसकी आंखों से बूंदे बाहर आ रही हैं । वह सोच रहा है, "मैंने आराम से रहने के लिए इतनी अच्छी तरह से इतनी सारी चीजें बनाई, और अब मैं सब कुछ खो रहा हूँ ।" महान संकट । मैं इलाहाबाद में एक दोस्त को जानता हूँ । वह बहुत अमीर आदमी था । तो वह केवल चौवन साल का था । तो वह अनुरोध कर रहा था, रो रहा था, डॉक्टर को, "डॉक्टर, तुम मुझे रहने के लिए कम से कम चार साल दे सकते हो? मेरी एक योजना थी । मैं उसे खत्म करना चाहता था । " डॉक्टर क्या कर सकता है? "यह संभव नहीं है, साहब । तुम्हे निकलना होगा ।" लेकिन ये मूर्ख लोग, वे नहीं जानते । लेकिन हमें सहन करना पड़ता है । हमें सहन करना पड़ता है ।  
 
यही यहां सलाह दी गई है " क्योंकि तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है, तुम्हे बर्दाश्त करन होगा, मां की कोख के भीतर रहना । " फिर बाहर आअोगे । तब मैं बात भी नहीं कर सकता हूँ । मान लीजिए मैं एक छोटा सा बच्चा हूँ, और कोई कीड़ा मुझे काट रहा है । मैं नहीं कह सकता "माँ" - क्योंकि उस समय पर मैं बात नहीं कर सकता हूँ - "कुछ मेरी पीठ पर काट रहा है |" मैं रो रहा हूँ, और माँ सोच रही है "बच्चा भूखा है । उसे दूध दो ।" (हंसी) देखो यह कितना... मुझे कुछ चाहिए, और मुझे कुछ अौर दिया जा रहा है ।  
 
यह एक तथ्य है । क्यों बच्चा रो रहा है? वह असहज महसूस कर रहा है । तो, इस तरह से, मैं बढता हूँ । फिर मैं स्कूल नहीं जाना चाहत हूँ । मुझे स्कूल जाने के लिए मजबूर किया जाता है । हां । कम से कम, मैं एसा था । (हंसी) मैं स्कूल जाना कभी नहीं चाहता था । और मेरे पिता बहुत दयालु थे । "तो ठीक है । तुम क्यों स्कूल नहीं जा रहे हो ?" मैं कहता था "मैं कल जाऊँगा । " "ठीक है ।" लेकिन मेरी मां बहुत सावधान थी । तो शायद अगर मेरी माँ थोड़ा सख्त नहीं होती, मैं कोई भी शिक्षा प्राप्त नहीं करता । मेरे पिता बहुत उदार थे । तो वो मुझे मजबूर करती थी । एक आदमी मुझे स्कूल ले जाता था । दरअसल, बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते । वे खेलना चाहते हैं । बच्चे की इच्छा के खिलाफ, उसे स्कूल जाना पड़ता है । फिर परीक्षा, सिर्फ स्कूल जाना नहीं ।  
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Latest revision as of 17:44, 1 October 2020



Lecture on BG 2.14 -- Germany, June 21, 1974

पिछले श्लोक में, यह बताया गया है कि देहिनो अस्मिन यथा देहे कौमारम यौवनम जरा (भ.गी. २.१३) "हम एक शरीर से दूसरे शरीर में स्थानांतरगमन कर रहे हैं । बिलकुल वैसे ही जैसे हम एक बच्चे के शरीर से एक लड़के के शरीर, एक लड़के के शरीर से युवा में जा रहे हैं । इसी तरह, हम इस शरीर से भी गुजर रहे हैं, और एक और शरीर को स्वीकार कर रहे हैं ।" अब, दुःख और सुख का सवाल । दुःख और सुख - शरीर के अनुसार । एक बहुत अमीर आदमी काफी आराम से स्थित है । आम पीडा और दुख, यह आम है । आम क्या है? जन्म-मृत्यु-जरा-व्याधि-दुःख-दोशानुदर्शनम (भ.गी. १३.९) | एक कुत्ते के रूप में या एक राजा के रूप में जन्म लेना, दुःख तो वही है । कोई फर्क नहीं है क्योंकि कुत्ते को भी मां के गर्भ में ही रहना पडता है ।

कई महीनों के लिए एक वायु-रोधक हालत में, और आदमी, भले ही वह राजा हो या कुछ भी हो, उसे भी उस क्लेश से गुजरना पडता है । कोई बहाना नहीं चलेगा । क्योंकि तुम एक राजा के परिवार में जन्म ले रहे हो, इसका मतलब यह नहीं है मां के गर्भ के भीतर दब के रहने में संकट कम है, और क्योंकि वह एक कुत्ते की माँ के गर्भ में जन्म ले रहा है, इसलिए वह महान है । एक ही बात है । इसी तरह, मृत्यु के समय पर... मृत्यु के समय बहुत पीडा होती है । यह इतना बलवान है कि हमें शरीर छोड़ना पडता है ।

जैसे जब पीडा बहुत बढ जाती है, तो आत्महत्या । वह बर्दाश्त नहीं कर सकता है: "इस शरीर को खत्म करो ।" तो कोई भी इस शरीर को छोड़ना नहीं चाहता है, लेकिन पीडा इतना बलवान है कि हम शरीर छोड़ने पर मजबूर हो जाते हैं । यही मृत्यु कहा जाता है । भगवद गीता में तुम पाअोगे, कि मृत्यु सर्व-हरश च अहम । कृष्ण का कहना है कि "मैं मौत हूँ ।" और मृत्यु का अर्थ क्या है? मौत का मतलब है "मैं उससे सब कुछ छीन लेता हूँ ।" समाप्त । मैं उसका शरीर छीन लेता हूँ, मैं उसका संग छीन लेता हूँ, मैं उसका देश छीन लेता हूँ, मैं उसका समाज छीन लेता हूँ, मैं उसका बैंक बैलेंस छीन लेता हूँ, और सब कुछ समाप्त हो जाता है ।"

सर्व-हर: । सर्व का मतलब सब कुछ । हर कोई संचित करने की कोशिश कर रहा है बड़ा बैंक बैलेंस और बड़ा घर, बड़ा परिवार, बड़ी मोटर गाड़ी... लेकिन मौत के साथ, सब कुछ समाप्त हो जाता है । तो यह महान संकट है । कभी कभी हम रोते हैं । तुम मृत्यु के समय पाअोगे, कोमा में, उसकी आंखों से बूंदे बाहर आ रही हैं । वह सोच रहा है, "मैंने आराम से रहने के लिए इतनी अच्छी तरह से इतनी सारी चीजें बनाई, और अब मैं सब कुछ खो रहा हूँ ।" महान संकट । मैं इलाहाबाद में एक दोस्त को जानता हूँ । वह बहुत अमीर आदमी था । तो वह केवल चौवन साल का था । तो वह अनुरोध कर रहा था, रो रहा था, डॉक्टर को, "डॉक्टर, तुम मुझे रहने के लिए कम से कम चार साल दे सकते हो? मेरी एक योजना थी । मैं उसे खत्म करना चाहता था । " डॉक्टर क्या कर सकता है? "यह संभव नहीं है, साहब । तुम्हे निकलना होगा ।" लेकिन ये मूर्ख लोग, वे नहीं जानते । लेकिन हमें सहन करना पड़ता है । हमें सहन करना पड़ता है ।

यही यहां सलाह दी गई है " क्योंकि तुम्हे यह भौतिक शरीर मिला है, तुम्हे बर्दाश्त करन होगा, मां की कोख के भीतर रहना । " फिर बाहर आअोगे । तब मैं बात भी नहीं कर सकता हूँ । मान लीजिए मैं एक छोटा सा बच्चा हूँ, और कोई कीड़ा मुझे काट रहा है । मैं नहीं कह सकता "माँ" - क्योंकि उस समय पर मैं बात नहीं कर सकता हूँ - "कुछ मेरी पीठ पर काट रहा है |" मैं रो रहा हूँ, और माँ सोच रही है "बच्चा भूखा है । उसे दूध दो ।" (हंसी) देखो यह कितना... मुझे कुछ चाहिए, और मुझे कुछ अौर दिया जा रहा है ।

यह एक तथ्य है । क्यों बच्चा रो रहा है? वह असहज महसूस कर रहा है । तो, इस तरह से, मैं बढता हूँ । फिर मैं स्कूल नहीं जाना चाहत हूँ । मुझे स्कूल जाने के लिए मजबूर किया जाता है । हां । कम से कम, मैं एसा था । (हंसी) मैं स्कूल जाना कभी नहीं चाहता था । और मेरे पिता बहुत दयालु थे । "तो ठीक है । तुम क्यों स्कूल नहीं जा रहे हो ?" मैं कहता था "मैं कल जाऊँगा । " "ठीक है ।" लेकिन मेरी मां बहुत सावधान थी । तो शायद अगर मेरी माँ थोड़ा सख्त नहीं होती, मैं कोई भी शिक्षा प्राप्त नहीं करता । मेरे पिता बहुत उदार थे । तो वो मुझे मजबूर करती थी । एक आदमी मुझे स्कूल ले जाता था । दरअसल, बच्चे स्कूल जाना नहीं चाहते । वे खेलना चाहते हैं । बच्चे की इच्छा के खिलाफ, उसे स्कूल जाना पड़ता है । फिर परीक्षा, सिर्फ स्कूल जाना नहीं ।