HI/Prabhupada 0506 - तुम्हारी आँखें शास्त्र होनी चाहिए । यह जड़ आँखें नहीं: Difference between revisions

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तो ये पेड़ और पौधे, वे दो लाख किस्में हैं । स्थावरा लक्ष-विम्शति क्रमयो रुद्र-संखया: । और कीड़े, वे ग्यारह सौ हजार हैं । तो यह अाश्चर्यजनक बात है कि कैसे वैदिक साहित्य सब कुछ बहुत सही ढंग से जानता है । नौ लाख, ग्यारह लाख, दो लाख, यथार्थ । यही अात्म बोध कहा जाता है । इस ज्ञान को हम कुछ समझते ही नहीं । हमारी सुविधा है, क्योंकि हम वेदों को स्वीकार करते हैं अधिकृत के रूप में, इसलिए ज्ञान है, तैयार । कोई मुझसे या तुमसे पूछता है, "क्या तुम बता सकते हो कितने जीव के रूप हैं पानी में? " यह बहुत मुश्किल है । यहां तक ​​कि जीवविज्ञानी भी नहीं कह सकते । हालांकि वे बडे विशेषज्ञ हैं । मैं नहीं कह सकता । लेकिन हमारी सुविधाऍ, हम तुरंत कह सकते हैं, नौ लाख हैं । हालांकि मैने प्रयोग कभी नहीं किया है, व्यक्तिगत रूप से देखा भी नहीं है, लेकिन क्योंकि यह वैदिक साहित्य में विस्तार से बताया गया है, मैं तुम्हें सही ढंग से बता सकता हूँ । इसलिए वेदांत सूत्र में यह कहा जाता है, अगर तुम कुछ भी देखना चाहते हो या सीधे महसूस करना चाहते हो.. जैसे इतने सारे दुष्ट अाते हैं, वे चुनौती देते हैं, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं?" तो ... हां । हम तुम्हे भगवान दिखा सकते हैं, अगर तुम्हारे पास देखने वाली आँखें हों तो । भगवान देखे जा सकते हैं आंखों की विभिन्न प्रकार से । यह आंखें नहीं । यह शास्त्र में कहा गया है । अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|CC Madhya 17.136]])(चै च मध्य १७।१३६) इन्द्रियाँ मतलब इंद्रियॉ, यह भौतिक इन्द्रियॉ । इन भौतिक इन्द्रियों के साथ, तुम सीधे अनुभव नहीं कर सकते हो, भगवान का रूप क्या है, उनकी गुणवत्ता क्या है, वे क्या करते हैं । हम परम के बारे में जानना चाहते हैं बहुत सी बातें । लेकिन शास्त्र भगवान के गुणों का वर्णन करता है भगवान के रूप का, भगवान की गतिविधियों का । तुम सीख सकते हो । शास्त्र-योनित्वात । योनि का मतलब है स्रोत, स्रोत । शास्त्र-योनित्वात । शास्त्र-चक्शु । तुम्हारी आँखें शास्त्र होनी चाहिए । यह कुंद आँखें नहीं । सब कुछ हम अनुभव करते हैं शास्त्र से, किताब से । तो हमें अधिकृत पुस्तकों के माध्यम से देखने होगा, जो विवरण हमारी धारणा से परे है । अचिन्त्या: खलु ये भावा न ताम्स तर्केन योजयेत । तर्केन, तर्क से, जो हमारी इन्द्रिय अनुभूति से परे है । ऐसी बहुत सी बातें । यहां तक ​​कि हम दैनिक इतने सारे ग्रह देखते हैं, आकाश में सितारे, लेकिन हमें कोई जानकारी नहीं है वे चन्द्रमा ग्रह को देखने के लिए सीधे जा रहे हैं, लेकिन बुरी तरह से वापस आ रहे हैं । यह बहुत ही संदिग्ध है । और उन्हे सिद्धांतवादी धारणा है: "इस ग्रह को छोड़कर, अन्य ग्रहों में, इतने सारे, कोई जीवन नहीं है ।" ये सही समझ नहीं हैं । सस्त्र-योनि से, अगर तुम शास्त्र के माध्यम से देखना चाहते हो ... जैसे चंद्रमा ग्रह । हमें जानकारी मिली है श्रीमद-भागवतम से कि वहाँ लोग वे दस हजार साल के लिए जीते हैं । और उनके साल का माप क्या है? हमारे छह महीने उनके एक दिन के बराबर होते हैं । अब ऐसे दस हजार साल , कल्पना करो । यह दैव-वर्ष कहा जाता है । दैव-वर्ष का मतलब है देवताओं की गणना के अनुसार साल । जैसे ब्रह्मा के दिन की तरह, यह देवताओं की गणना है । सहस्र-युग-पर्यन्तम अर यद ब्रह्मणो विदु: ([[Vanisource:BG 8.17|भ गी ८।१७]]) हमें जानकारी मिलती है भगवद गीता से, श्री कृष्ण कहते हैं, वे देवताओं के वर्षों की गणना करते हैं । हर किसी के वर्ष की गणना होती है । यह कहा जाता है ... यह आधुनिक विज्ञान द्वारा स्वीकार किया जाता है, सापेक्षिक सच्चाई या सापेक्षता का कानून । एक छोटी सी चींटी, वह भी सौ साल जीती है, लेकिन चींटी के सौ साल और हमारे सौ साल अलग हैं । इसे सापेक्ष कहा जाता है । सब कुछ सापेक्षिक, तुम्हारे शरीर के अनुसार । हमारे सौ साल और ब्रह्मा के सौ साल, अलग हैं । इसलिए कृष्ण नें कहा इस तरह से गणना करो : सहस्र-युग-पर्यन्तम अर यद ब्रह्मणो विदु: ([[Vanisource:BG 8.17|भ गी ८।१७]]) ।
तो ये पेड़ और पौधे, वे बिस लाख किस्म के हैं । स्थावरा लक्ष-विंशति कृमयो रुद्र-संखया: । और कीड़े, वे ग्यारह लाख हैं । तो यह अाश्चर्यजनक बात है कि कैसे वैदिक साहित्य सब कुछ बहुत सही ढंग से जानता है । नौ लाख, ग्यारह लाख, बीस लाख, यथार्थ । यही साक्षात्कार कहा जाता है । इस ज्ञान को हम कुछ समझते ही नहीं । हमारी सुविधा है, क्योंकि हम वेदों को स्वीकार करते हैं अधिकृत सत्ता के रूप में, इसलिए ज्ञान है, तैयार । कोई मुझसे या तुमसे पूछता है, "क्या तुम बता सकते हो कितने जीव के रूप हैं पानी में?" यह बहुत मुश्किल है । यहां तक ​​कि जीवविज्ञानी भी नहीं कह सकते । हालांकि वे बडे विशेषज्ञ हैं । मैं नहीं कह सकता ।  
 
लेकिन हमारी सुविधाऍ, हम तुरंत कह सकते हैं, नौ लाख हैं । हालांकि मैने प्रयोग कभी नहीं किया है, व्यक्तिगत रूप से देखा भी नहीं है, लेकिन क्योंकि यह वैदिक साहित्य में विस्तार से बताया गया है, मैं तुम्हें सही ढंग से बता सकता हूँ । इसलिए वेदांत सूत्र में यह कहा जाता है, अगर तुम कुछ भी देखना चाहते हो या सीधे महसूस करना चाहते हो... जैसे इतने सारे दुष्ट अाते हैं, वे चुनौती देते हैं, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं?" तो... हां । हम तुम्हे भगवान दिखा सकते हैं, अगर तुम्हारे पास देखने वाली आँखें हों तो । भगवान देखे जा सकते हैं आंखों के विभिन्न प्रकार से । यह आंखें नहीं । यह शास्त्र में कहा गया है । अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: ([[Vanisource:CC Madhya 17.136|चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६]]) | इन्द्रियाँ मतलब इंद्रियॉ, यह भौतिक इन्द्रियॉ ।  
 
इन भौतिक इन्द्रियों के साथ, तुम सीधे अनुभव नहीं कर सकते हो, भगवान का रूप क्या है, उनके गुण क्या है, वे क्या करते हैं । हम परम भगवान के बारे में जानना चाहते हैं बहुत सी बातें । लेकिन शास्त्र भगवान के गुणों का वर्णन करता है, भगवान के रूप का, भगवान की गतिविधियों का । तुम सीख सकते हो । शास्त्र-योनित्वात । योनि का मतलब है स्रोत, स्रोत । शास्त्र-योनित्वात । शास्त्र-चक्षु । तुम्हारी आँखें शास्त्र होनी चाहिए । यह जड़ आँखें नहीं । सब कुछ हम अनुभव करते हैं शास्त्र से, पुस्तक से । तो हमें अधिकृत पुस्तकों के माध्यम से देखने होगा, जो विवरण हमारी धारणा से परे है । अचिन्त्या: खलु ये भावा न तांस तर्केण योजयेत । तर्केण, तर्क से, जो हमारी इन्द्रिय अनुभूति से परे है । ऐसी बहुत सी बातें । यहां तक ​​कि हम दैनिक इतने सारे ग्रह देखते हैं, आकाश में सितारे, लेकिन हमें कोई जानकारी नहीं है | वे चन्द्र ग्रह को देखने के लिए सीधे जा रहे हैं, लेकिन बुरी तरह से वापस आ रहे हैं । यह बहुत ही संदिग्ध है । और उन्हे सिद्धांतवादी धारणा है: "इस ग्रह को छोड़कर, अन्य ग्रहों में, इतने सारे, कोई जीवन नहीं है ।" ये सही समझ नहीं हैं ।  
 
शास्त्र-योनि से, अगर तुम शास्त्र के माध्यम से देखना चाहते हो... जैसे चंद्र ग्रह । हमें जानकारी मिली है श्रीमद-भागवतम से कि वहाँ लोग, वे दस हजार साल के लिए जीते हैं । और उनके साल का माप क्या है? हमारे छह महीने उनके एक दिन के बराबर होते हैं । अब ऐसे दस हजार साल, कल्पना करो । यह दैव-वर्ष कहा जाता है । दैव-वर्ष का मतलब है देवताओं की गणना के अनुसार साल । जैसे ब्रह्मा के दिन की तरह, यह देवताओं की गणना है । सहस्र-युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: ([[HI/BG 8.17|भ.गी. ८.१७]]) | हमें जानकारी मिलती है भगवद गीता से, कृष्ण कहते हैं, वे देवताओं के वर्षों की गणना करते हैं । हर किसी के वर्ष की गणना होती है ।  
 
यह कहा जाता है... यह आधुनिक विज्ञान द्वारा स्वीकार किया जाता है, सापेक्षिक सच्चाई या सापेक्षता का कानून । एक छोटी सी चींटी, वह भी सौ साल जीती है, लेकिन चींटी के सौ साल और हमारे सौ साल अलग हैं । इसे सापेक्ष कहा जाता है । सब कुछ सापेक्षिक, तुम्हारे शरीर के अनुसार । हमारे सौ साल और ब्रह्मा के सौ साल, अलग हैं । इसलिए कृष्ण नें कहा है की इस तरह से गणना करो: सहस्र-युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: ([[HI/BG 8.17|भ.गी. ८.१७]]) ।  
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Latest revision as of 18:46, 17 September 2020



Lecture on BG 2.18 -- London, August 24, 1973

तो ये पेड़ और पौधे, वे बिस लाख किस्म के हैं । स्थावरा लक्ष-विंशति कृमयो रुद्र-संखया: । और कीड़े, वे ग्यारह लाख हैं । तो यह अाश्चर्यजनक बात है कि कैसे वैदिक साहित्य सब कुछ बहुत सही ढंग से जानता है । नौ लाख, ग्यारह लाख, बीस लाख, यथार्थ । यही साक्षात्कार कहा जाता है । इस ज्ञान को हम कुछ समझते ही नहीं । हमारी सुविधा है, क्योंकि हम वेदों को स्वीकार करते हैं अधिकृत सत्ता के रूप में, इसलिए ज्ञान है, तैयार । कोई मुझसे या तुमसे पूछता है, "क्या तुम बता सकते हो कितने जीव के रूप हैं पानी में?" यह बहुत मुश्किल है । यहां तक ​​कि जीवविज्ञानी भी नहीं कह सकते । हालांकि वे बडे विशेषज्ञ हैं । मैं नहीं कह सकता ।

लेकिन हमारी सुविधाऍ, हम तुरंत कह सकते हैं, नौ लाख हैं । हालांकि मैने प्रयोग कभी नहीं किया है, व्यक्तिगत रूप से देखा भी नहीं है, लेकिन क्योंकि यह वैदिक साहित्य में विस्तार से बताया गया है, मैं तुम्हें सही ढंग से बता सकता हूँ । इसलिए वेदांत सूत्र में यह कहा जाता है, अगर तुम कुछ भी देखना चाहते हो या सीधे महसूस करना चाहते हो... जैसे इतने सारे दुष्ट अाते हैं, वे चुनौती देते हैं, "आप मुझे भगवान दिखा सकते हैं?" तो... हां । हम तुम्हे भगवान दिखा सकते हैं, अगर तुम्हारे पास देखने वाली आँखें हों तो । भगवान देखे जा सकते हैं आंखों के विभिन्न प्रकार से । यह आंखें नहीं । यह शास्त्र में कहा गया है । अत: श्री कृष्ण-नामादि न भवेद ग्राह्यम इन्द्रियै: (चैतन्य चरितामृत मध्य १७.१३६) | इन्द्रियाँ मतलब इंद्रियॉ, यह भौतिक इन्द्रियॉ ।

इन भौतिक इन्द्रियों के साथ, तुम सीधे अनुभव नहीं कर सकते हो, भगवान का रूप क्या है, उनके गुण क्या है, वे क्या करते हैं । हम परम भगवान के बारे में जानना चाहते हैं बहुत सी बातें । लेकिन शास्त्र भगवान के गुणों का वर्णन करता है, भगवान के रूप का, भगवान की गतिविधियों का । तुम सीख सकते हो । शास्त्र-योनित्वात । योनि का मतलब है स्रोत, स्रोत । शास्त्र-योनित्वात । शास्त्र-चक्षु । तुम्हारी आँखें शास्त्र होनी चाहिए । यह जड़ आँखें नहीं । सब कुछ हम अनुभव करते हैं शास्त्र से, पुस्तक से । तो हमें अधिकृत पुस्तकों के माध्यम से देखने होगा, जो विवरण हमारी धारणा से परे है । अचिन्त्या: खलु ये भावा न तांस तर्केण योजयेत । तर्केण, तर्क से, जो हमारी इन्द्रिय अनुभूति से परे है । ऐसी बहुत सी बातें । यहां तक ​​कि हम दैनिक इतने सारे ग्रह देखते हैं, आकाश में सितारे, लेकिन हमें कोई जानकारी नहीं है | वे चन्द्र ग्रह को देखने के लिए सीधे जा रहे हैं, लेकिन बुरी तरह से वापस आ रहे हैं । यह बहुत ही संदिग्ध है । और उन्हे सिद्धांतवादी धारणा है: "इस ग्रह को छोड़कर, अन्य ग्रहों में, इतने सारे, कोई जीवन नहीं है ।" ये सही समझ नहीं हैं ।

शास्त्र-योनि से, अगर तुम शास्त्र के माध्यम से देखना चाहते हो... जैसे चंद्र ग्रह । हमें जानकारी मिली है श्रीमद-भागवतम से कि वहाँ लोग, वे दस हजार साल के लिए जीते हैं । और उनके साल का माप क्या है? हमारे छह महीने उनके एक दिन के बराबर होते हैं । अब ऐसे दस हजार साल, कल्पना करो । यह दैव-वर्ष कहा जाता है । दैव-वर्ष का मतलब है देवताओं की गणना के अनुसार साल । जैसे ब्रह्मा के दिन की तरह, यह देवताओं की गणना है । सहस्र-युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: (भ.गी. ८.१७) | हमें जानकारी मिलती है भगवद गीता से, कृष्ण कहते हैं, वे देवताओं के वर्षों की गणना करते हैं । हर किसी के वर्ष की गणना होती है ।

यह कहा जाता है... यह आधुनिक विज्ञान द्वारा स्वीकार किया जाता है, सापेक्षिक सच्चाई या सापेक्षता का कानून । एक छोटी सी चींटी, वह भी सौ साल जीती है, लेकिन चींटी के सौ साल और हमारे सौ साल अलग हैं । इसे सापेक्ष कहा जाता है । सब कुछ सापेक्षिक, तुम्हारे शरीर के अनुसार । हमारे सौ साल और ब्रह्मा के सौ साल, अलग हैं । इसलिए कृष्ण नें कहा है की इस तरह से गणना करो: सहस्र-युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: (भ.गी. ८.१७) ।