HI/Prabhupada 0507 - अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो: Difference between revisions

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अब तुम एक दिन की गणना के द्वारा ब्रह्मा की आयु क्या है यह समझने की कोशिश करो । तुम्हारा, सहस्र-युग, यहॉ चार युग हैं, सत्य, त्रेत, द्वापर, कली - ये चार कहे जाते हैं ... यह गणना है ४३००००० सालों की । यही चार युगों का कुल जोड़ है । अठारह, बारह, आठ, और चार . कितना यह आता है? अठारह और बारह? तीस, और उसके बाद आठ, अड़तीस, फिर चार । यह मोटा अनुमान है । ४२, ४३ । सहस्र युग-पर्यन्तम । तो इतने साल, सहस्र युग-पर्यन्तम अह: अह: का मतलब है दिन । सहस्र युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: ([[Vanisource:BG 8.17|भ गी ८।१७]]) यह ब्रह्मा का एक दिन है । एक दिन का मतलब है सुबह से शाम । ४३००००० तुम्हारी गणना के अनुसार । इसलिए इन बातों को शास्त्र के माध्यम से समझा जाना चाहिए । अन्यथा, तुम्हे ज्ञान नहीं है । तुम गणना नहीं कर सकते हो । तुम ब्रह्मा को पास नहीं जा सकते हो, तुम तो चंद्रमा ग्रह को भी नहीं जा सकते हो । और ब्रह्मलोक की क्या बात करें, वह परम है, इस ब्रह्मांड का दूरस्थ भाग । तो अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो, और तुम जा भी नहीं सकते हो । वे अनुमान लगाते हैं, आधुनिक वैमानिकी, वे अनुमान लगाते हैं, कि सर्वोच्च ग्रह पर जाने के लिए, ४०००० साल लगेंगे । आच्छा वर्ष के हिसाब से । आच्छा वर्ष की तरह, हमारे पास गणना है
अब तुम एक दिन की गणना के द्वारा ब्रह्मा की आयु क्या है यह समझने की कोशिश करो । तुम्हारा सहस्र-युग, यहॉ चार युग हैं, सत्य, त्रेता, द्वापर, कली - ये चार कहे जाते हैं... यह गणना है ४३,००,००० सालों की । यही चार युगों का कुल जोड़ है । अठारह, बारह, आठ, और चार | कितना यह आता है? अठारह और बारह? तीस, और उसके बाद आठ, अड़तीस, फिर चार । यह मोटा अनुमान है । ४२, ४३ । सहस्र युग-पर्यन्तम । तो इतने साल, सहस्र युग-पर्यन्तम अह: | अह: का मतलब है दिन । सहस्र युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: ([[HI/BG 8.17|भ.गी. ८.१७]]) | यह ब्रह्मा का एक दिन है । एक दिन का मतलब है सुबह से शाम । ४३,००,००० तुम्हारी गणना के अनुसार ।  


तो हम प्रत्यक्ष धारणा से अनुमान नहीं कर सकते हैं इस भौतिक संसार में भी, और आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । नहीं ... पंथास तु कोटि-शट वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनसो मुनि पंगवानाम ( ब्र स ५।३४) मानसिक रूप से, मुनि-पंग का मतलब है मानसिक अटकलें । तुम मानसिक अटकलें किए जाअो । लेकिन अगर तुम कई सैकड़ों और हजारों साल के लिए भी करते रहो, यह गणना करना संभव नहीं है तुम्हे शास्त्र के माध्यम से इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा, अन्यथा यह संभव नहीं है । इसलिए कृष्ण ने कहा, नित्यस्योक्त: शरीर-उक्त । उक्त का मतलब है यह कहा जाता है । ऐसा नहीं है कि "मैं कुछ हठधर्मिता पेश कर रहा हूँ" हालांकि वे ऐसा कर सकते हैं । वे देवत्व के परम व्यक्तित्व हैं । यही विधि है । जब तक उक्त न हो, अधिकारियों द्वारा कहा गया, पिछले अधिकारियों द्वारा, अाचार्यों, तुम कुछ नहीं कह सकते । यह परम्परा कहा जाता है । तुम अपनी बुद्धि से समझने की कोशिश करो, लेकिन तुम कोई भी वृद्धि या परिवर्तन नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए यह नित्यस्योक्त: कहा जाता है । यह पहले से ही कहा गया है, तय हो चुका है । तुम बहस नहीं कर सकते हो । नित्यस्योक्त: शरीरिन: अनाशीनो अप्रमेयस्य ([[Vanisource:BG 2.18|भ गी २।१८]]) । अथाह
इसलिए इन बातों को शास्त्र के माध्यम से समझा जाना चाहिए । अन्यथा, तुम्हे ज्ञान नहीं है । तुम गणना नहीं कर सकते हो । तुम ब्रह्मा को पास नहीं जा सकते हो, तुम तो चंद्र ग्रह को भी नहीं जा सकते हो । और ब्रह्मलोक की क्या बात करें, वह परम है, इस ब्रह्मांड का सबसे दूर भाग । तो अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो, और तुम जा भी नहीं सकते हो । वे अनुमान लगाते हैं, आधुनिक वैमानिकी, वे अनुमान लगाते हैं, कि सर्वोच्च ग्रह पर जाने के लिए, ४०,००० साल लगेंगे प्रकाश वर्ष के हिसाब से । प्रकाश वर्ष की तरह, हमारे पास गणना है ।
 
तो हम प्रत्यक्ष धारणा से अनुमान नहीं कर सकते हैं इस भौतिक संसार में भी, और आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । नहीं... पंथास तु कोटि-शट वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनसो मुनि पुंगवानाम (ब्रह्मसंहिता ५.३४) | मानसिक रूप से, मुनि-पुंग का मतलब है मानसिक अटकलें । तुम मानसिक अटकलें किए जाअो । लेकिन अगर तुम कई सैकड़ों और हजारों साल के लिए भी करते रहो, यह गणना करना संभव नहीं है | तुम्हे शास्त्र के माध्यम से इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा, अन्यथा यह संभव नहीं है ।  
 
इसलिए कृष्ण ने कहा, नित्यस्योक्ता: शरीर-उक्त । उक्त का मतलब है यह कहा जाता है । ऐसा नहीं है कि "मैं कुछ हठधर्मिता पेश कर रहा हूँ," हालांकि वे ऐसा कर सकते हैं । वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । यही विधि है । जब तक उक्त न हो, अधिकारियों द्वारा कहा गया, पिछले अधिकारियों द्वारा, अाचार्यों द्वारा, तुम कुछ नहीं कह सकते । यह परम्परा कहा जाता है । तुम अपनी बुद्धि से समझने की कोशिश करो, लेकिन तुम कोई भी वृद्धि या परिवर्तन नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए यह नित्यस्योक्त: कहा जाता है । यह पहले से ही कहा गया है, तय हो चुका है । तुम बहस नहीं कर सकते हो । नित्यस्योक्त: शरीरिण: अनाशीनो अप्रमेयस्य ([[HI/BG 2.18|भ.गी. २.१८]]), अमाप्य ।  
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Latest revision as of 17:43, 1 October 2020



Lecture on BG 2.18 -- London, August 24, 1973

अब तुम एक दिन की गणना के द्वारा ब्रह्मा की आयु क्या है यह समझने की कोशिश करो । तुम्हारा सहस्र-युग, यहॉ चार युग हैं, सत्य, त्रेता, द्वापर, कली - ये चार कहे जाते हैं... यह गणना है ४३,००,००० सालों की । यही चार युगों का कुल जोड़ है । अठारह, बारह, आठ, और चार | कितना यह आता है? अठारह और बारह? तीस, और उसके बाद आठ, अड़तीस, फिर चार । यह मोटा अनुमान है । ४२, ४३ । सहस्र युग-पर्यन्तम । तो इतने साल, सहस्र युग-पर्यन्तम अह: | अह: का मतलब है दिन । सहस्र युग-पर्यन्तम अहर यद ब्रह्मणो विदु: (भ.गी. ८.१७) | यह ब्रह्मा का एक दिन है । एक दिन का मतलब है सुबह से शाम । ४३,००,००० तुम्हारी गणना के अनुसार ।

इसलिए इन बातों को शास्त्र के माध्यम से समझा जाना चाहिए । अन्यथा, तुम्हे ज्ञान नहीं है । तुम गणना नहीं कर सकते हो । तुम ब्रह्मा को पास नहीं जा सकते हो, तुम तो चंद्र ग्रह को भी नहीं जा सकते हो । और ब्रह्मलोक की क्या बात करें, वह परम है, इस ब्रह्मांड का सबसे दूर भाग । तो अपने प्रत्यक्ष अनुभव से, तुम गणना नहीं कर सकते हो, और तुम जा भी नहीं सकते हो । वे अनुमान लगाते हैं, आधुनिक वैमानिकी, वे अनुमान लगाते हैं, कि सर्वोच्च ग्रह पर जाने के लिए, ४०,००० साल लगेंगे प्रकाश वर्ष के हिसाब से । प्रकाश वर्ष की तरह, हमारे पास गणना है ।

तो हम प्रत्यक्ष धारणा से अनुमान नहीं कर सकते हैं इस भौतिक संसार में भी, और आध्यात्मिक दुनिया की क्या बात करें । नहीं... पंथास तु कोटि-शट वत्सर संप्रगम्यो वायोर अथापि मनसो मुनि पुंगवानाम (ब्रह्मसंहिता ५.३४) | मानसिक रूप से, मुनि-पुंग का मतलब है मानसिक अटकलें । तुम मानसिक अटकलें किए जाअो । लेकिन अगर तुम कई सैकड़ों और हजारों साल के लिए भी करते रहो, यह गणना करना संभव नहीं है | तुम्हे शास्त्र के माध्यम से इस सच्चाई को स्वीकार करना होगा, अन्यथा यह संभव नहीं है ।

इसलिए कृष्ण ने कहा, नित्यस्योक्ता: शरीर-उक्त । उक्त का मतलब है यह कहा जाता है । ऐसा नहीं है कि "मैं कुछ हठधर्मिता पेश कर रहा हूँ," हालांकि वे ऐसा कर सकते हैं । वे पूर्ण पुरुषोत्तम भगवान हैं । यही विधि है । जब तक उक्त न हो, अधिकारियों द्वारा कहा गया, पिछले अधिकारियों द्वारा, अाचार्यों द्वारा, तुम कुछ नहीं कह सकते । यह परम्परा कहा जाता है । तुम अपनी बुद्धि से समझने की कोशिश करो, लेकिन तुम कोई भी वृद्धि या परिवर्तन नहीं कर सकते । यह संभव नहीं है । इसलिए यह नित्यस्योक्त: कहा जाता है । यह पहले से ही कहा गया है, तय हो चुका है । तुम बहस नहीं कर सकते हो । नित्यस्योक्त: शरीरिण: अनाशीनो अप्रमेयस्य (भ.गी. २.१८), अमाप्य ।