HI/Prabhupada 0508 - जो पशु हत्यारे हैं, उनका मस्तिष्क पत्थर के रूप में सुस्त है

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Lecture on BG 2.18 -- London, August 24, 1973

अब, यह आत्मा, पिछले श्लोक में हम समझ चुके हैं, अविनाशि तु तद विद्धि येन सर्वम इदम ततम । यह आत्मा का माप नहीं है, लेकिन आत्मा की शक्ति का नाप तुम ले सकते हो । लेकिन आत्मा का नहीं यह संभव नहीं है । आत्मा इतना छोटी है कि यह संभव नहीं है । तुम्हारे पास कोई मापने का कोई तरीका नहीं है, और अब हमारे भौतिक इन्द्रियॉ हैं, यह संभव नहीं है । तुम बस चेतना से समझ सकते हो । जैसे जब चैतन्य महाप्रभु जगन्नाथ मंदिर में बेहोश हो गए, सर्वभौम भट्टाचार्य नें जांच की कि कोई चेतना नहीं है । यहां तक ​​कि पेट भी नहीं हिल रहा था । जब वास्तव में तुम सचेत हो और तुम साँस लेते हो, तब पेट हिलता है । लेकिन चैतन्य महाप्रभु के पेट का परीक्षण सर्वभौम भट्टाचार्य द्वारा किया गया था । यह भी नहीं हिल रहा था । तो उन्होंने सोचा कि , "इस सन्यासी की शायद मृत्यु हो गई है । " लेकिन उन्होंने फिर से कोशिश की । वह एक छोटा से कपास लाए और उनके नथुने पर रखा अौर जब उन्होंने देखा कपास को हिलते हुए, तो उनकी उम्मीद बन गई, हॉ । तो हर किसी का माप अलग प्रकार का होता है, गणना । लेकिन जहॉ तक आत्मा का संबंध है, यहाँ कहा गया है, अप्रमेयस्य, माप का कोई स्रोत नहीं है ।कोई स्रोत नहीं है । इसलिए तथाकथित भौतिकवादी विज्ञान कहता है कि कोई आत्मा नहीं है । नहीं, आत्मा है । आत्मा है इसका सबूत है । यही सबूत है । सबूत क्या है? सबसे पहले चेतना है । यह सबूत है । लेकिन तुम माप नहीं सकते । जगह भी स्थित है । आत्मा दिल में है । इषवर: सर्व भूतानाम ह्रदेशे अर्जुन तिश्ठति (भ गी १८।६१) तो आत्मा दिल में है और कृष्ण भी दिल में हैं । क्योंकि वे दोनों एक साथ रहते हैं । तो जगह भी स्थित है । तुम चेतना ने भी अनुभव कर सकते हो जहां आत्मा की प्रस्तुति है, लेकिन अगर तुम प्रयोग से उपाय करना चाहते हो, यह संभव नहीं है । इसलिए इसे अप्रमेय कहा जाता है । प्रमेय का मतलब है प्रत्यक्ष धारणा । मैं देख सकता हूँ या मैं छू सकता हूँ, मैं संभाल सकता हूँ । तो यह है कि ... श्री कृष्ण कहते हैं कि नहीं, यह संभव नहीं है । अप्रमेय । फिर, मैं कैसे स्वीकार करूँ? अब श्री कृष्ण कहते हैं । तो कैसे मैं कृष्ण पर विश्वास करूँ? कृष्ण कहते हैं उक्त, यह पहले से ही अधिकारियों द्वारा तय किया गया है । उक्त । यह परम्परा प्रणाली है । कृष्ण भी उक्त कहते हैं । श्री कृष्ण नहीं कहते हैं कि "मैं बता रहा हूँ" नहीं । उक्त, वैदिक सबूत है । यह कहाँ है? उपनिषद में है । वैसे ही जैसे, बालग्र-शत_भागस्य शतधा कल्पितस्य च भागो जीव: स विज्ञेय: स चानन्तयाय कल्पते यह उपनिषद में है, शवेताश्वतर उपनिषद । यह वैदिक सबूत कहा जाता है । दूसरे में, श्रीमद-भागवतम में, सबूत है । वह क्या है? केशाग्र-शत-भागस्य शतधा सदृशम जीव: सूक्षम (चै च मध्य १९।१४०) सूक्षम बहुत बारीक । जीव: सूक्षम स्वरूपो अयम संख्यातीत: कल्पते । इस जीव को, एक नहीं, दो, तीन, चार - तुम गणना नहीं कर सकते । असंखय । तो वैदिक साहित्य में सबूत है । तो हमें इसे स्वीकार करना होगा । कृष्ण यह पुष्टि करते हैं और वास्तव में भी तुम माप नहीं सकते । लेकिन हमारे पास सबूत है, आत्मा की उपस्थिति, आत्मा की उपस्थिति का । फिर भी, हम कैसे कह सकते हैं कि कोई आत्मा नहीं है ? नहीं । यह मूर्खता है । पूरी दुनिया इस मूर्खता के तहत चल रही है । अभी ही नहीं, पहले भी । चारवाक मुनि की तरह, वह नास्तिक था, वह विश्वास नहीं करता था । भगवान बुद्ध नें भी ऐसा कहा, लेकिन उन्होंने धोखा दिया । उन्हें सब कुछ पता था क्योंकि वे भगवान के अवतार हैं । लेकिन उन्हें उस तरह से लोगों को धोखा देना पडा, क्योंकि वे बुद्धिमान नहीं थे । क्यों नहीं बुद्धिमान थे? क्योंकि वे जानवरों के हत्यारों थे, वे अपनी बुद्धि खो चुके थे । केशव धृत-बुद्ध-शरीर जय जगदीश हरे । जो पशु हत्यारे हैं, उनका मस्तिष्क पत्थर के रूप में सुस्त है । वे किसी भी बात को नहीं समझ सकते हैं । इसलिए मांस खाना बंद कर दिया जाना चाहिए । मस्तिष्क के महीन ऊतकों को पुनर्जीवित करने के लिए, सूक्ष्म चीजों को समझने के लिए, हमें मांसा खाना छोड़ देना चाहिए ।