HI/Prabhupada 0510 - आधुनिक सभ्यता, उन्हे आत्मा का ज्ञान नहीं है

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Lecture on BG 2.25 -- London, August 28, 1973

प्रद्युम्न: "यह कहा जाता है कि आत्मा, अदृश्य है, समझ से परे, अपरिवर्त्य, और अपरिवर्तनीय है । ये जानने के बाद, तुम्हे शरीर के लिए शोक नहीं करना चाहिए । "

प्रभुपाद:

अव्यक्तो अयम अचिन्त्यो अयम
अविकार्यो अयम उच्यते
तस्माद एवम विदित्वैनम
नानुशोचितुम अर्हसि
(भ गी २।२५)

तो कृष्ण नें सब से पहले अर्जुन को यह सिखाया शुरूअात में, अशोचयान अन्वशोचस त्वम प्रज्ञा-वादाम्श च भाशसे (भ गी २।११) "तुम सीखे हुए विद्वान की तरह बात कर रहे हो, लेकिन तुम शरीर के लिए विलाप कर रहे हो, जो बिलकुल महत्वपूर्ण नहीं है । " नानुशोचन्ति । यहाँ भी वही बात । तस्माद एवम विदित्वैनम, यह शरीर, न अनुशोचितुम अर्हसि । इस शरीर के बारे में बहुत ज्यादा गंभीर नहीं होना चाहिए । आत्मा विषयवस्तु है विचार करने के लिए । लेकिन आधुनिक सभ्यता, वे इस शरीर से मतलब रखते हैं । बिलकुल विपरीत । कृष्ण कहते हैं: क्योंकि आत्मा अमर है, इसलिए तस्माद एवम विदित्वा, इस सिद्धांत की समझ, एनम, यह शरीर, न अनुशोचितुम अर्हसि । असली कारक आत्मा है । हमें आत्मा की देखभाल करनी चाहिए, न के शरीर का । जहॉ तक शरीर का संबंध है, दर्द और सुख जलवायु परिवर्तन जैसे हैं । अागमापायिन: अनित्या: , इस तरह के शारीरिक दर्द और सुख अाते जाते हैं, और वे स्थायी नहीं हैं । तामस् तितिक्शस्व भारत । तो तुम्हे इन शारीरिक दर्द और सुख को बर्दाश्त करने के लिए सीखना होगा, लेकिन तुम्हे आत्मा का ख्याल रखना होगा । लेकिन आधुनिक सभ्यता, उन्हे आत्मा का ज्ञान नहीं है, ध्यान रखने की बात ही क्या है, और, जानवरों की तरह, वे जीवन की शारीरिक अवधारणा में हैं, शरीर का बहुत ख्याल रखते हैं, लेकिन उन्हे आत्मा की कोई जानकारी है, और ध्यान रखने की बात ही क्या करें । यह आधुनिक सभ्यता की शोचनीय स्थिति है । पशु सभ्यता । जानवर बस अपने शरीर का ध्यान रखते हैं, आत्मा की कोई जानकारी नहीं है । तो यह सभ्यता पशु सभ्यता है, मूढा । मूढा का मतलब है पशु, गधे । अब अगर हम सामान्य रूप से लोगों को कहते हैं, वे हम पर गुस्सा हो जाएँगे, लेकिन वास्तव में यहि स्थिति है । यस्यात्मा-बुद्धि: कुणपे त्रि-धातुके (श्री भ १०।८४।१३) मैंने कई बार इस श्लोक की व्याख्या की है । यस्य अात्मा-बुद्धि: आत्मा का मतलब है स्वयं, बुद्धि, स्वयं के रूप में इस शरीर को लिया है । यस्यात्म-बुद्धि: । लेकिन यह शरीर क्या है? शरीर कुछ भी नहीं है, केवल थैला त्रि-धातु का, कफ, पित्त, वायु, और इसके द्वारा उत्पाद । बलगम, पित्त और हवा से, इन तीन बातों के मेल से ... जैसे इस भौतिक दुनिया की तरह, यह घर । यह घर क्या है? तेजो-वारी-मृदाम विनिमय: । कुछ भी चीज़ इस भौतिक संसार में , वह क्या है? तेजो-वारी-मृदाम विनिमय: आग, पानी, और पृथ्वी का अादान-प्रदान । तेजो-वारी-मृदाम विनिमय: । अादान-प्रदान । तुम पृथ्वी लो, तुम पानी लो, मिलाअो दोनो को, और आग पर रखो, यह ईंट हो जाता है, उसे पीस लो, सीमेंट हो जाता है, फिर उन्हें मिलाअो, एक बड़े गगनचुंबी इमारत का निर्माण हो जाता है । तो जैसे इस भौतिक दुनिया में, तुम कुछ भी लो, यह केवल इन तीन पदार्थों का एक संयोजन है, अौर हवा और आकाश सूखने के लिए । हवा सुखाने के लिए आवश्यक है । तो पांच तत्वों का संयोजन । इसी तरह, यह शरीर भी पांच तत्वों का संयोजन है । कोई अंतर नहीं है । लेकिन क्योंकि बड़ी गगनचुंबी इमारत में कोई आत्मा नहीं है, यह एक ही स्थान पर खड़ा है । लेकिन शरीर में आत्मा है, इसलिए यह चालता है । यह अंतर है । आत्मा महत्वपूर्ण बात है । लेकिन वे नहीं जानते । वैसे ही जैसे हमने हवाई जहाज का निर्माण किया है और कोई आत्मा नहीं है, लेकिन एक और आत्मा का मतलब है पायलट । वह ख्याल रखता है । वह चलाता है । इसलिए, यह हिल रहा है । तो आत्मा के बिना, कोई भी हिलना नहीं हो सकता । या तो उस चीज़ में आत्मा होना आवश्यक है या कोई अन्य आत्मा को उसका ध्यान रखना होगा । तो फिर यह हिलेगा । इसलिए, महत्वपूर्ण आत्मा है, न की यह भौतिक शरीर ।